Thursday, June 20, 2019

प्रभु श्री राम की सबरी

एकटक देर तक उस सुपुरुष को निहारते रहने के बाद बुजुर्ग भीलनी के मुंह से बोल फूटे:
"कहो राम! सबरी की डीह ढूंढ़ने में अधिक कष्ट तो नहीं हुआ?"

राम मुस्कुराए: "यहां तो आना ही था मां, कष्ट का क्या मूल्य...?"

    *"जानते हो राम! तुम्हारी प्रतीक्षा तब से कर रही हूँ जब तुम जन्में भी नहीं थे।* यह भी नहीं जानती थी कि तुम कौन हो? कैसे दिखते हो? क्यों आओगे मेरे पास..? *बस इतना ज्ञात था कि कोई पुरुषोत्तम आएगा जो मेरी प्रतीक्षा का अंत करेगा..."*

राम ने कहा: *"तभी तो मेरे जन्म के पूर्व ही तय हो चुका था कि राम को सबरी के आश्रम में जाना है।"*

     "एक बात बताऊँ प्रभु! *भक्ति के दो भाव होते हैं। पहला मर्कट भाव, और दूसरा मार्जार भाव। बन्दर का बच्चा अपनी पूरी शक्ति लगाकर अपनी माँ का पेट पकड़े रहता है ताकि गिरे न... उसे सबसे अधिक भरोसा माँ पर ही होता है और वह उसे पूरी शक्ति से पकड़े रहता है। यही भक्ति का भी एक भाव है, जिसमें भक्त अपने ईश्वर को पूरी शक्ति से पकड़े रहता है। दिन रात उसकी आराधना करता है........*
".....पर मैंने यह भाव नहीं अपनाया। *मैं तो उस बिल्ली के बच्चे की भाँति थी जो अपनी माँ को पकड़ता ही नहीं, बल्कि निश्चिन्त बैठा रहता है कि माँ है न, वह स्वयं ही मेरी रक्षा करेगी, और माँ सचमुच उसे अपने मुँह में टांग कर घूमती है... मैं भी निश्चिन्त थी कि तुम आओगे ही, तुम्हे क्या पकड़ना...।"*

राम मुस्कुरा कर रह गए।

भीलनी ने पुनः कहा: "सोच रही हूँ बुराई में भी तनिक अच्छाई छिपी होती है न... कहाँ सुदूर उत्तर के तुम, कहाँ घोर दक्षिण में मैं। तुम प्रतिष्ठित रघुकुल के भविष्य, मैं वन की भीलनी... यदि रावण का अंत नहीं करना होता तो तुम कहाँ से आते?"

राम गम्भीर हुए। कहा:
*"भ्रम में न पड़ो मां! राम क्या रावण का वध करने आया है?*
......... *अरे रावण का वध तो लक्ष्मण अपने पैर से बाण चला कर कर सकता है।*
......... *राम हजारों कोस चल कर इस गहन वन में आया है तो केवल तुमसे मिलने आया है मां, ताकि हजारों वर्षों बाद जब कोई पाखण्डी भारत के अस्तित्व पर प्रश्न खड़ा करे तो इतिहास चिल्ला कर उत्तर दे कि इस राष्ट्र को क्षत्रिय राम और उसकी भीलनी माँ ने मिल कर गढ़ा था।*
............ *जब कोई कपटी भारत की परम्पराओं पर उँगली उठाये तो काल उसका गला पकड़ कर कहे कि नहीं! यह एकमात्र ऐसी सभ्यता है जहाँ...... एक राजपुत्र वन में प्रतीक्षा करती एक दरिद्र वनवासिनी से भेंट करने के लिए चौदह वर्ष का वनवास स्वीकार करता है।*
.......... *राम वन में बस इसलिए आया है ताकि जब युगों का इतिहास लिखा जाय तो उसमें अंकित हो कि सत्ता जब पैदल चल कर समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुँचे तभी वह रामराज्य है।*
............ *राम वन में इसलिए आया है ताकि भविष्य स्मरण रखे कि प्रतीक्षाएँ अवश्य पूरी होती हैं। राम रावण को मारने भर के लिए नहीं आया मां...!"*

      सबरी एकटक राम को निहारती रहीं।

राम ने फिर कहा:
*"राम की वन यात्रा रावण युद्ध के लिए नहीं है माता! राम की यात्रा प्रारंभ हुई है भविष्य के लिए आदर्श की स्थापना के लिए।*
........... *राम निकला है ताकि विश्व को बता सके कि माँ की अवांछनीय इच्छओं को भी पूरा करना ही 'राम' होना है।*
.............. *राम निकला है कि ताकि भारत को सीख दे सके कि किसी सीता के अपमान का दण्ड असभ्य रावण के पूरे साम्राज्य के विध्वंस से पूरा होता है।*
.............. *राम आया है ताकि भारत को बता सके कि अन्याय का अंत करना ही धर्म है,*
............  *राम आया है ताकि युगों को सीख दे सके कि विदेश में बैठे शत्रु की समाप्ति के लिए आवश्यक है कि पहले देश में बैठी उसकी समर्थक सूर्पणखाओं की नाक काटी जाय, और खर-दूषणों का घमंड तोड़ा जाय।*
......और,
.............. *राम आया है ताकि युगों को बता सके कि रावणों से युद्ध केवल राम की शक्ति से नहीं बल्कि वन में बैठी सबरी के आशीर्वाद से जीते जाते हैं।"*

सबरी की आँखों में जल भर आया था। उसने बात बदलकर कहा: "बेर खाओगे राम?

राम मुस्कुराए, "बिना खाये जाऊंगा भी नहीं मां..."

सबरी अपनी कुटिया से झपोली में बेर ले कर आई और राम के समक्ष रख दिया।

राम और लक्ष्मण खाने लगे तो कहा: "मीठे हैं न प्रभु?"

   *"यहाँ आ कर मीठे और खट्टे का भेद भूल गया हूँ मां! बस इतना समझ रहा हूँ कि यही अमृत है...।"*

  सबरी मुस्कुराईं, बोलीं: *"सचमुच तुम मर्यादा पुरुषोत्तम हो, राम!"*

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                          🙏
*भारत-राष्ट्र के महानायक, मर्यादा-पुरुषोत्तम, भगवान श्री राम को बारम्बार सादर वन्दन!!*
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साभार - फेसबुक

आधुनिक सच

*** आधुनिक सच ***

पति पत्नी दोनों मिल खूब कमाते हैं
तीस लाख का पैकेज दोनों ही पाते हैं
सुबह आठ बजे नौकरियों पर जाते हैं
रात ग्यारह तक ही वापिस आते हैं

अपने परिवारिक रिश्तों से कतराते हैं
अकेले रह कर वह कैरियर बनाते हैं
कोई कुछ मांग न ले वो मुंह छुपाते हैं
भीड़ में रहकर भी अकेले रह जाते हैं

मोटे वेतन की नौकरी छोड़ नहीं पाते हैं
अपने नन्हे मुन्ने को पाल नहीं पाते हैं
फुल टाइम की मेड ऐजेंसी से लाते हैं
उसी के जिम्मे वो बच्चा छोड़ जाते हैं

परिवार को उनका बच्चा नहीं जानता है
केवल आया'आंटी को ही पहचानता है
दादा -दादी, नाना-नानी कौन होते है?
अनजान है सबसे किसी को न मानता है

आया ही नहलाती है आया ही खिलाती है
टिफिन भी रोज़ रोज़ आया ही बनाती है
यूनिफार्म पहना के स्कूल कैब में बिठाती है
छुट्टी के बाद कैब से आया ही घर लाती है

नींद जब आती है तो आया ही सुलाती है
जैसी भी उसको आती है लोरी सुनाती है
उसे सुलाने में अक्सर वो भी सो जाती है
कभी जब मचलता है तो टीवी दिखाती है

जो टीचर मैम बताती है वही वो मानता है
देसी खाना छोड कर पीजा बर्गर खाता है
वीक ऐन्ड पर मौल में पिकनिक मनाता है
संडे की छुट्टी मौम-डैड के संग बिताता है

वक्त नहीं रुकता है तेजी से गुजर जाता है
वह स्कूल से निकल के कालेज में आता है
कान्वेन्ट में पढ़ने पर इंडिया कहाँ भाता है
आगे पढाई करने वह विदेश चला जाता है

वहाँ नये दोस्त बनते हैं उनमें रम जाता है
मां-बाप के पैसों से ही खर्चा चलाता है
धीरे-धीरे वहीं की संस्कृति में रंग जाता है
मौम डैड से रिश्ता पैसों का रह जाता है

कुछ दिन में उसे काम वहीं मिल जाता है
जीवन साथी शीघ्र ढूंढ वहीं बस जाता है
माँ बाप ने जो देखा ख्वाब वो टूट जाता है
बेटे के दिमाग में भी कैरियर रह जाता है

बुढ़ापे में माँ-बाप अब अकेले रह जाते हैं
जिनकी अनदेखी की उनसे आँखें चुराते हैं
क्यों इतना कमाया ये सोच के पछताते हैं
घुट घुट कर जीते हैं खुद से भी शरमाते हैं

हाथ पैर ढीले हो जाते, चलने में दुख पाते हैं
दाढ़- दाँत गिर जाते, मोटे चश्मे लग जाते हैं
कमर भी झुक जाती, कान नहीं सुन पाते हैं
वृद्धाश्रम में दाखिल हो, जिंदा ही मर जाते हैं

सोचना की बच्चे अपने लिए पैदा कर रहे हो या विदेश की सेवा के लिए।

बेटा एडिलेड में, बेटी है न्यूयार्क।
ब्राईट बच्चों के लिए, हुआ बुढ़ापा डार्क।

बेटा डालर में बंधा, सात समन्दर पार।
चिता जलाने बाप की, गए पड़ोसी चार।

ऑन लाईन पर हो गए, सारे लाड़ दुलार।
दुनियां छोटी हो गई, रिश्ते हैं बीमार।

बूढ़ा-बूढ़ी आँख में, भरते खारा नीर।
हरिद्वार के घाट की, सिडनी में तकदीर।
#दीप...🙏🙏🙏🙏
साभार - फेसबुक

भाभी माँ

"भाभी माँ "
    "ओफ भाभी....! कितना ले जाऊंगी..बस हो गया" नम्रता ने कहा
"क्या हो गया....कभी-कभी तो आती है....तुम इनकी भाई होती तो आधा हिस्सा लेती कि न लेती"
"पर भाभी ,भैया इतने खर्चे में हैं....आप लोगो का इतना प्यार मिल रहा है ,वही बहुत है मेरे लिये"
    ननद एक वर्ष बाद आयी थी....सपना   ने उसे बेटी की तरह पाला पोसा था...हालांकि सपना  की सास कभी  नही चाहती थी कि बेटी अपनी भाभी के सम्पर्क में रहे पर बेटी नम्रता  के व्यवहार से भाभी की बेटी ही बनकर रह गयी थी......
आज एक सप्ताह रहकर बेटी पुनः अपनी ससुराल जा रही थी......

"बहू....! जा किचन मे जा...दूध उबाल पर है" सपना की सास उनके पास आते ही बोली

"जी, मां जी " कहते हुये सपना किचन में चली गयी....बहू के किचन में जाते ही सास ने अपनी बेटी को दस हजार रुपये अपनी साड़ी के पल्लू में  से निकाल कर दिया.....

"यह क्या मां..?"

"रख ले बेटी तेरे काम आयेंगे"

"पर मां, तुझे यह मिले  कहां....आपकी कोई नौकरी तो है नही....अभी भैया को छुटकी के स्कुल की फीस भरनी है....उन्ही को दे दीजिये,अभी उन्हें इसकी ज्यादा जरूरत है "

"नही बेटी ..तुम्हारे पापा मुझे कंगाल छोड़कर नही गये थे, ......रख ले.."
           और जबरन बेटी के हाथ में रुपियो  टूंसकर चली गयीं.. ..बेटी नम्रता  को पिछले महीने का भाभी का फोन याद आया.....
भाभी बहुत परेशान थीं.....भैया को सेलरी मिली थी और उसमें से दस हजार रुपये घर में से  गायब हो गए बता रही थीं.....
उसने कुछ सोचा,वह होल से  मुस्करायी और किचन की तरफ चल पड़ी....

"अच्छा भाभी मैं चली....और हां यह दस  हजार रुपये अभी सोफे के नीचे मिला है....मेरी जूती उसके नीचे चली गयी थी..जूती  तलाशने में यह भी मिला.....शायद यह वही रुपया है जिसके विषय में आपने फोन किया था "
          सपना की आंखों में आंसू थे.....वह सास और ननद की बातें सुन चुकी थी....ननद को अपने आगोश  में भर लिया....और धीरे से कहा "तू मेरी सबसे बड़ी बेटी है "
        ननद -भाभी दोनों मुस्करा पड़ीं,सच है जीवन का यह भी एक सुन्दर रूप है
      दोस्तों बदलते रिस्तो की कहानी ...कैसी लगी ...
साभार -फेसबुक

राह मिल गई

#कहानी- राह मिल गई सामान से लदे थैलों के साथ रितु हांफने लगी थी, लेकिन रिक्शा था कि मिलने का नाम ही नहीं ले रहा था. थक-हारकर रितु पास ही के ...