Saturday, November 25, 2023

राह मिल गई

#कहानी- राह मिल गई

सामान से लदे थैलों के साथ रितु हांफने लगी थी, लेकिन रिक्शा था कि मिलने का नाम ही नहीं ले रहा था. थक-हारकर रितु पास ही के एक रेस्तरां में घुस गई और एक ठंडी लस्सी ऑर्डर कर दी. काउंटर पर गरम-गरम समोसे निकलते देख उसके मुंह में पानी आ गया. उसने दो समोसे भी ऑर्डर कर दिए. अपनी थुलथुल काया और थैले संभालती वह एक कोनेवाली सीट की ओर बढ़ गई. एक टेबल के पास से गुज़रते हुए उसने महसूस किया कि उस पर बैठा स्मार्ट सा नवयुवक उसे बहुत ध्यान से देखे जा रहा था. लेकिन रितु को नहीं लगा कि वह उसे जानती है और ऐसी बेडौल होती काया पर कोई लाइन मारेगा इसकी उसे उम्मीद नहीं थी. इसलिए वह इत्मिनान से घर फोन कर आया से बेबी के बारे में पूछने लगी. यह जानकर कि बेबी अभी तक सोई हुई है उसने संतोष की सांस ली.
“क्या मैं यहां बैठ सकता हूं?” उसी नवयुवक को अपने इतने समीप पाकर रितु चौंक उठी.

“आपने शायद मुझे पहचाना नहीं?” युवक कुर्सी खींचकर बैठ चुका था.

“मैं अंकित हूं, आपके नरेन जीजाजी का छोटा भाई. आपकी सीमा दीदी की शादी में आपसे मुलाक़ात हुई थी…”
“हां, हां… याद आया. अंकित नाम है न तुम्हारा? और तुम बी. कॉम. ऑनर्स कर रहे थे. पर तुम… तुम तो बिल्कुल बदल गए हो. मैं क्या, कोई भी तुम्हें एक बार में नहीं पहचानेगा.”
“आप भी तो कितना बदल गई हैं! ख़ैर, इंडियन लेडीज़ में शादी के बाद यह बदलाव तो आता ही है.”
अंकित का मंतव्य समझ रितु झेंप गई थी. अपनी थुलथुल होती काया पर उसे इससे ज़्यादा शर्मिंदगी पहले कभी महसूस नहीं हुई थी. बरबस ही उसे ख़्याल आ गया कितनी कमनीय और सुडौल काया थी उसकी! सहेलियां उसे देखकर ईर्ष्या से आहें भरती थीं, पर मां-बाप के दिए संस्कारों ने उसे कभी अपने रूप और छरहरी काया पर घमंड नहीं होने दिया था. वह हमेशा से ही सामनेवाले के गुणों को देखकर दोस्त बनाना पसंद करती थी न कि रूप को देखकर. इसीलिए सीमा दीदी की शादी में आए नरेन जीजाजी और उसका यह भाई अंकित जब उसकी प्रिय सहेली कविता के सांवले रंग और छोटे कद का मज़ाक बनाने लगे, तो रितु से सहन नहीं हुआ था और वह उन्हें टोक बैठी थी, “कोई आप लोगों को मोटा और चष्मिश कहे, तो आपको कैसा लगेेगा?”

रितु के तेवर देखकर दोनों के चेहरों का रंग उड़ गया था. रितु को भी अफ़सोस हुआ था कि उसे ऐसा नहीं कहना चाहिए था.
वेटर दोनों के ऑर्डर रख गया था. अंकित ने जूस मंगाया था. सामने रखे समोसे जिन्हें देखकर रितु के मुंह में कुछ देर पूर्व पानी आ गया था अब उसे मुंह चिढ़ाते प्रतीत हो रहे थे. उस दिन उसने दोनों भाइयों को संतुलित देहयष्टि पर कितना लंबा-चौड़ा भाषण दिया था.

“देखिए रूप-रंग सब भगवान देता है, इसलिए उसका मज़ाक बनाना उचित नहीं है. हमारे हाथ में है अपनी काया को स्वस्थ, सुडौल ओैर आकर्षक बनाना. अपने गुणों को इतना उभारना कि ये कमज़ोरियां उसमें छुप जाएं…”
“आपके समोसे ठंडे हो रहे हैं.” अंकित ने चेताया तो पुरानी बातें याद कर रितु के चेहरे पर फिर से शर्मिंदगी के बादल मंडराने लगे. अंकित ने शायद उसकी मनःस्थिति भांप ली थी.

“अरे, आप शर्मिंदा मत होइए. मैं तो बल्कि पुरानी उन सब बातों के लिए आपको धन्यवाद देना चाहता हूं, मेरा यह बदला हुआ रूप-रंग आपकी उसी समझाइश की बदौलत ही तो है. मैंने वर्कआउट और संयमित खानपान से यह संतुलित देहयष्टि हासिल की है. मुझे 'मिस्टर राजस्थान' का ख़िताब भी मिल चुका है.”
“अरे वाह, बहुत-बहुत बधाई! अब आगे की क्या योजना हेै?” रितु ने एक समोसा ख़त्म कर दूसरा अंकित के आगे बढ़ा दिया.

“नहीं! यह सब अभी बंद कर रखा है. मैं दरअसल यहां महानगरी में मॉडलिंग के क्षेत्र में अपना भाग्य आज़माने आया हूं.”
“अरे वाह, बहुत अच्छे! ईश्‍वर करे तुम्हें ख़ूब कामयाबी हासिल हो. नरेन जीजू कैसे हैं?”
“वे तो अब भी वैसे ही हैं. आपकी समझाइश उन्होंने उसी वक़्त एक कान से सुनकर दूसरे से निकाल दी थी… ख़ैर, आपकी हौसलाअफ़जाई के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया. वैसे मेरे पापा-मम्मी तो नहीं चाहते थे कि मैं इन सब मॉडलिंग आदि के पचेड़ों में पड़ूं, हमारा
अपना खानदानी व्यवसाय है. वे चाहते हैं मैं उसे संभालूं, पर मैं सोचता हूं इधर भी भाग्य आज़मा लूं. पांव नहीं जमा पाया, तो वह सब तो करना ही है.”
“हूं… वह भी ठीक है.” रितु का मोबाइल बजने लगा था.

“ओह बेबी उठ गई है. मुझे निकलना होगा.” रितु उठकर सामान आदि समेटने लगी थी.

“काश! अब तो रिक्शा मिल जाए.”
“मेरे पास गाड़ी है, मैं छोड़ देता हूं.” अंकित ने आगे बढ़कर उसका सामान उठा लिया, तो रितु मना नहीं कर पाई और मुस्कुराती हुई उसके साथ चल पड़ी. घर पहुंचकर रितु ने अंकित को धन्यवाद दिया और कॉफी के लिए आग्रह किया.

“आज तो नहीं, पर एक दिन आऊंगा ज़रूर, अब तो घर भी देख लिया है. कॉफी उधार रहेगी.”
अंकित लौट गया था, पर रितु के दिल के सोए तार छेड़ गया था. अब दिन में फ्री होने पर वह अक्सर पुराने एलबम लेकर बैठ जाती. अपनी पुरानी तस्वीरें देखकर आहें भरती रहती. इससे भी मन नहीं भरता, तो संदूक खोलकर पुराने ड्रेसेज़ टटोलने लगती, जिनमें समाकर कभी उसकी कमनीय काया खिल उठती थी. उसे याद आया सहेलियां कहती थीं इस ड्रेस को पहनने से तेरी नहीं इस ड्रेस की शोभा बढ़ गई है. कपड़े सहेजकर रखते रितु के चेहरे पर यह सब याद कर मायूसी पसर जाती थी. जिससे फिर वह चाहकर भी उबर नहीं पाती थी. आख़िर एक दिन उसने निश्‍चय कर लिया कि वह अपनी पुरानी देहयष्टि पाकर ही रहेगी.

रितु की दिनचर्या में आया बदलाव ग़ौर करने लायक था. सवेरे बेबी के उठने से पहले वह 2 घंटे जॉगिंग कर आती. उसके बाद डायटीशियन द्वारा बताया गया उबला या भाप में पकाया हुआ खाना खाती. शाम को फिर हल्का वर्कआउट. चार दिन बीतते-बीतते रितु का जोश ठंडा पड़ने लगा था. पूरे दिन बदनदर्द और कमज़ोरी के एहसास ने उसके चेहरे को निस्तेज़ कर डाला था. पति गौरव से यह सब नहीं देखा गया.

“रितु, तुम जैसी हो ठीक हो. मुझे तुम ऐसे भी पसंद हो. यह डायटिंग, वर्कआउट तुम्हारे बस की बात नहीं है. वज़न तो कम होगा नहीं व्यर्थ ही और बीमारियों को न्यौता दे बैठोगी.”
लेकिन पति की समझाइश ने आग में घी का काम किया. रितु ने निश्‍चय कर लिया कि वह सबको ग़लत सिद्ध करके दिखाएगी. आख़िर इंसान को कुछ तो अपनी ख़ुशी के लिए भी करना चाहिए. वह दोगुने जोश से अपने अभियान में जुट गई थी. 4-6 महीने बीतते-बीतते परिवर्तन स्पष्ट नज़र आने लगा था. रितु दर्पण में ख़ुद को निहारती और ख़ुद पर ही मोहित हो उठती.

लोगों की आंखों में अपने प्रति प्रंशसा के भाव उसे लुभाते. मन ही मन वह अंकित को धन्यवाद देती, जिसने उसे ख़ुद से प्यार करना सिखाया. यदि अब अंकित उसे देखे, तो उसकी क्या प्रतिक्रिया होगी? रितु सोचती और मन ही मन उसकी प्रतिक्रिया की कल्पना कर फूली नहीं समाती.

उसकी इच्छा उस दिन सचमुच जीवंत हो उठी जब एक दिन अंकित ने आकर उसके दरवाज़े की घंटी बजा दी. दरवाज़ा खोलते ही अंकित को देखकर उसके मुंह से ख़ुशी की चीख निकल गई थी. अंकित ठिठककर दो कदम पीछे हट गया था. ओैर आंखें फाड़-फाड़कर रितु को देख रहा था. उसकी विस्मय से चौड़ी होती आंखें देखकर रितु का हंस-हंसकर ताली पीटने को मन कर रहा था.
“आप क्या कोई जादू जानती हैं? कभी शरीर में हवा भर लेती हैं कभी निकाल देती हैं?”
रितु इस प्रतिक्रिया पर हसंते-हंसते लोटपोट हो गई थी. अंकित सामने सोफे पर बैठा उसे इस तरह हंसते देखकर मुस्कुराता रहा. “यदि हंसी थम गई हो, तो मेरे लिए कॉफी बना लाओ. मैं तो अपना कॉफी पीने का वादा पूरा करने आ गया हूं.”
बेबी सो रही थी, इसलिए गरम-गरम कॉफी के घूंट भरते दोनों देर तक बतियाते रहे.

“इधर से गुज़र रहा था. सोचा आपको निमंत्रण देता चलूं. दो दिन बाद मेरा शो है. मैं चाहता हूं आप मुझे रैंप पर वॉक करता हुआ देखें.”
“हां, हां.. क्यों नहीं! कुछ सिने मैगजीन्स में पढ़ा था तुम्हारे बारे में. कुछ एड वेड भी किए हैं?”
“हां, दो-चार छोटे-मोटे.”
रितु ग़ौर कर रही थी अंकित के चेहरे पर वह ख़ुशी नहीं थी, जो इच्छित वस्तु पा लेने पर इंसान के चेहरे पर आ जाती है.
“तुम्हारे मां-पिताजी? घर जाना हुआ या नहीं? वे ख़ुश हैं?”
“हां, सभी मेरी कामयाबी से बहुत ख़ुश हैं या शायद यह सोचकर ख़ुश हैं कि मैं खुश हूं. दो बार घर भी हो आया हूं. सभी के लिए तोह़फे लेकर गया था. मां कहती है मेरी वजह से उनकी आस-पड़ोस, नाते-रिश्तेदारों में इज़्ज़त बढ़ गई है.”
“यह तो तुम्हारे लिए गर्व की बात है.”
“मेरा छोटा भाई और कुछ और भी चचेरे-ममेरे भाई-बहन इस क्षेत्र में आना चाहते हैं.”

उसके चेहरे पर चिंता की रेखाएं उभर आई थीं, जिन्हें रितु स्पष्टतः देख सकती थी.
“तुम क्या चाहते हो?”
मैं उनकी आंखों में वही उत्सुकता, वही सपने देखता हूं, जो कभी मेरी आंखों में थे. पर यह सब देखकर मुझे ख़ुशी नहीं होती, वरन एक अनजाना-सा भय घेरने लगता है.”
“भय? कैसा भय?” रितु हैरत में थी.

“इस मायानगरी की चकाचौंध आकर्षित तो करती है, पर पास आने पर पता चलता है सब मृगमरीचिका हेै. ग्लैमर की यह नगरी अंदर से खोखली और अस्थिर है. यदि मैं अपने भाई-बहनों को यह सब बताऊंगा तो शायद वे मेरी बातों पर यक़ीन नहीं करेगें.

समझेगें मैं उनकी मदद नहीं करना चाहता. मेरे माता-पिता ने शायद अपने अनुभव के आधार पर मुझे पहले ही चेता दिया था. तब मैंने उनकी सलाह अनसुनी कर दी थी. पर हक़ीक़त यह है कि आज मैं उनके पास लौटना चाहता हूं. अपने पुश्तैनी व्यवसाय से जुड़ना चाहता हूं. वहां मेहनत है, तो साथ में सम्मान, प्यार और निश्‍चित आय भी है. यहां सिर्फ़ मेहनत है और किसी चीज़ की गारंटी नहीं है. मैं असमंजस में हू कि क्या मुंह लेकर लौटूं और किस मुंह से अपने भाई-बहनों को यहां न आने की सीख दूं?”

“तुम कुछ ज़्यादा ही उद्विग्न हो रहे हो. जबकि समस्या इतनी गंभीर नहीं है. मेरा कहा मानो तो जो कुछ तुमने सीखा, देखा और भोगा है वही सब कुछ अपने परिचितों को बता दो. अब यह उनकी इच्छा है कि वे क्या कदम उठाते हैं? कई बार हम अनजाने ही किसी के आदर्श बन जाते हैं. जैसे कि मैं तुम्हारी आदर्श बन गई थी. तुम अपने भाई-बहनों के आदर्श बन गए हो.

तुम मेरे रास्ते पर चलते हुए कामयाबी की सीढ़ियां चढ़ते चले गए. मिस्टर राजस्थान बने, फिर मॉडल बने… और मैं… मैं अपने ही दिखाए रास्ते से भटक गई. फिर तुम्हें देखा, तो अपना आदर्श याद आया. फिर सही राह पर चलने लगी. लेकिन तुम्हारे भाई यानी जीजू ने सब देखकर भी अनदेखा कर दिया. वे आज भी वहीं हैं. आगे नहीं बढ़ पाए. कहने का सार यह है कि आप किसी के आगे बढ़ने, न बढ़ने का हेतु यानी कि एक सहायक कारण हो सकते हैं, पर एकमात्र ज़िम्मेदार कारक नहीं. अपनी हर प्रगति अवनति के लिए इंसान स्वयं ज़िम्मेदार होता है, कोई दूसरा नहीं.”
“मुझे डर है जिस तरह मैंने अपने माता-पिता की नहीं सुनी, उसी तरह वे भी मेरी बात नहीं सुनेगें.”
“कोई बात नहीं. देखो अंकित, दुनिया में भिन्न-भिन्न तरह के लोग होते हैं. कुछ दूसरों को लड़खड़ाते देखकर ख़ुद संभलकर चलने लग जाते हैं, तो कुछ रास्ता ही बदल लेते हैं. कुछ ख़ुद के लड़खड़ाकर गिरने का इंतज़ार करते हैं. फिर संभलते हैं. तो कुछ ऐसे भी होते हैं, जो सब कुछ देखते-सुनते हुए भी अंधे-बहरे बने रहते हैं. उनका कुछ नहीं हो सकता. इसलिए बिना कोई अपराधबोध पाले तुम अपना पक्ष दुनिया के सामने रख दो. अब कौन, क्या निर्णय लेता है इसके लिए वे स्वयं ज़िम्मेदार होगें, तुम नहीं.

जहां तक माता-पिता के पास किस मुंह से लौटने की बात है, तो इंसान को ऐसा सोचना भी नहीं चाहिए. दुनिया में एक माता-पिता ही तो ऐसे हैं जिनके पास लौटने में इंसान को कभी भी संकोच नहीं करना चाहिए, क्योंकि उनका प्यार निःस्वार्थ होता है. यदि हम सच्चे दिल से क्षमा मांगते हुए उनके पैरों में झुकेगें, तो उनके घुटनों तक ही झुक पाएंगे, क्योंकि पहले ही उनके भावातिरेक से कांपते हाथ हमारे कंधे थाम लेगें.” अपनी बात समाप्त कर रितु ने नज़रें उठाईं, तो पाया अंकित का चेहरा आंसुओं से तर था. पर चेहरे पर संतुष्टि के भाव थे. शायद उसे अपनी राह मिल गई थी.- संगीता

लाखों मैं

#कहानी- लाखों में… 
‘’नैना, तेरा चुनाव ही ग़लत था. अबकी बार नील को बोल आना कि अब उसकी ज़िंदगी में वापस नहीं आऊंगी...”
“वापस नहीं आऊंगी का क्या मतलब है मम्मी? घर है मेरा, जब मर्ज़ी है आऊंगी-जाऊंगी और आप तो पार्क में ही इंतज़ार करना, घर मत आना.”

“सुन, फोन करूंगी, अपने पास ही रखना.” रागिनी की आवाज़ पर बिना प्रतिक्रिया दिए वह तेज़ी से अपने अपार्टमेंट की ओर बढ़ गई. बैठक का दरवाज़ा अभी भी अधखुला था. जिस तरह से वह छोड़ गई थी, बिल्कुल वैसे यानी कि नील ने सर उठाकर देखने की ज़हमत भी नहीं उठाई कि उसकी बीवी उसे छोड़कर मायके चली गई थी. नील आंखें मूंदे गिटार के तारों को छेड़ रहा था और वह सामने खड़ी उसे घूर रही थी. 

हैरानी हुई कि कोई इस दर्जे तक असंवेदनशील कैसे हो सकता है. वह दो किलोमीटर दूर स्थित अपने मायके भी हो आई और वह अभी भी उसी मुद्रा में बैठा गिटार के तारों को टुनटुना रहा था. गिटार की धुन में ये भी नहीं जान सका कि वह चार घंटे से घर पर नहीं है. डायनिंग टेबल के पास ‘मैं मम्मी के घर जा रही हूं’ की पर्ची उसे मुंह चिढ़ा रही थी यानी कि इस पर्ची को अभी तक नील ने देखा भी नहीं. नैना ने पर्ची निकालकर उसके टुकड़े कर दिए, फिर ग्लास से पानी भरकर पीया और ग्लास ज़ोर से टेबल पर पटक दिया. आवाज़ सुनकर गिटार पर फिरती उंगलियां रुक गईं. 

आंखें खोलकर उसने नैना को देखा और बड़े इत्मीनान से बोला, “चाय लाओ, थक गया हूं... बदन अकड़-सा गया है.” उसने अंगड़ाई ली. अपना मोबाइल डायनिंग टेबल पर छोड़कर नैना दनदनाती हुई बेडरूम में चली आई. बाहर से आकर अपना मोबाइल डायनिंग टेबल पर छोड़ना उसकी आदत में शुमार था. नैना ने झटके से अपना वॉर्डरोब खोला. एक सरसरी नज़र डालकर पट बंद करके वहीं बैठ गई. दिल धड़का. वह तो नील को छोड़कर मम्मी के घर जाने के लिए कपड़े लेने आई है. 

इन सबसे बेख़बर वह गिटार की धुन में खोया हुआ है. सोच के तो आई थी कि अपना सामान पैक करके उसके मुंह पर सीधा बोलूंगी, ‘लो, जा रही हूं मायके, अब तुम गिटार के साथ फुर्सत में दिल बहलाओ,’ पर यहां आकर महसूस हुआ कि परले दर्जे के लापरवाह के ऊपर पूरा घर कैसे छोड़ जाए. वह तो गिटार में डूब जाएगा और चोर घर साफ़ कर जाएंगे. “नैना, मम्मीजी का फोन आ रहा है.” नील की आवाज़ से वह चौंकी, वह उसका मोबाइल लिए खड़ा था.

नैना ने जैसे ही फोन पर ‘हेलो’ कहा, रागिनी की उत्तेजना भरी आवाज़ आई, “सुन, इस बार उसकी भोली शक्ल पर तरस मत खाना. ग़लती सुधारने का मौक़ा मिला है, तो उसे गंवाना ठीक नहीं.”

“मम्मी, मैं आपको बाद में फोन करती हूं.” अचरज हुआ कि उसकी मम्मी उसका घर तुड़वाने में इतनी हड़बड़ी क्यों कर रही हैं. और ये ग़लती सुधारने की क्या बात कर रही हैं, कहीं उसकी शादी तुड़वाकर अपनी सहेली के देवर के बेटे से करने की तो नहीं सोच रही हैं? हे ईश्‍वर! उसकी मम्मी नील की फिल्मी खड़ूस सास निकली. उसने अपना सर पकड़ लिया. नील उसे यूं परेशान देखकर उसके क़रीब बैठ गया. फिर उसका हाथ सहलाते हुए कहने लगा, “क्या हुआ, मम्मी का फोन क्यों आया था? वहां सब ठीक तो है न?” “हां, सब ठीक है. 

तुम जाओ और गिटार बजाओ.” यह सुनकर वह उसके क़रीब बैठ गया और उसके हाथों को सहलाते हुए बोला, “मैं जानता हूं कि इन दिनों मैं तुम्हें ज़रा भी समय नहीं दे पाया, पर यकीन मानो, इस बार कुछ ऐसा बजाना चाहता हूं, जो लोगों के मन को छू जाए. कल का दिन बहुत ख़ास है. कल मेरे गिटार ने मिस्टर थॉमस को इम्प्रेस कर दिया, तो वो यूरोप जानेवाले वेव्ज़ ग्रुप के लिए मुझे सिलेक्ट कर सकते हैं. यूरोप ट्रिप मेरी तरफ़ से तुम्हारे लिए जन्मदिन का तोहफ़ा होगा.” उसकी बात पर नैना ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी, तो वह बोला, “तुम बहुत थकी लग रही हो. चाय बनाकर लाता हूं.”

“नहीं, मैं बनाती हूं.” कहते हुए वह उठ गई. नील की बातों और भावनाओं से वाकिफ़ होकर सहसा उसे ग्लानि हुई. चाय के खदबदाते पानी के साथ एक चलचित्र-सा घूम गया. आज रविवार का दिन- सुबह छह बजे से लेकर दोपहर तीन बजे तक नील गिटार में खोया रहा. ऊबी हुई-सी पहलू बदलते उसने नील को आवाज़ लगाई, पर नील के कानों तक उसकी आवाज़ मानो पहुंची ही नहीं. पिछले दो हफ़्तों से नील गिटार पर किसी ख़ास धुन को निकालने की कोशिश कर रहा है, पर आज तो हद ही हो गई. नैना की अप्रत्याशित प्रतिक्रिया के पीछे पिछले कई दिनों से नील का अपने गिटार के प्रति अति समर्पण भाव और उसके प्रति उदासीनता थी. वह चिल्लाई, “नीलाक्ष, सुन भी रहे हो, मैं दीवारों से बात नहीं कर रही हूं.” नैना की तेज़ आवाज़ पर वह निस्पृह भाव से उस पर सरसरी दृष्टि डालकर गिटार के तारों में उलझ गया. चिढ़कर नैना ने उसके हाथों से गिटार लगभग छीना, तो नील बौखलाकर अपने गिटार को उसकी गिरफ़्त से बचाता हुआ झल्लाया, “नैना प्लीज़, बिहेव. ये कोई तरीक़ा है. अभी इसे कुछ हो जाता तो.”   
उसने गिटार को अपने सीने से यूं लगाया मानो उसमें उसकी जान बसती हो. यह देखकर नैना क्रोध से जल उठी. आंखों में आंसू डबडबा आए. नील की जिस कला पर मोहित होकर उसने कई रिश्ते ठुकराकर उसका हाथ थामा था, आज वही कला उन दोनों के बीच दीवार बन गई थी. नैना के आंसुओं को देखने की नील को फुर्सत कहां थी. वह तो अपने गिटार के तारों को छेड़कर देख रहा था कि कहीं वो ढीले तो नहीं हो गए. गिटार के प्रति नैना का शत्रुभाव देखकर वह हैरानी और तनावग्रस्त भाव लिए बैठक में चला आया और कानों में ईयरप्लग लगाकर आंखें मूंदे गिटार की धुन में फिर खो गया. ‘मैं मम्मी के घर जा रही हूं.’ वह अपने कमरे से चिल्लाई पर कोई जवाब नहीं मिला. नील के लिए उसका होना, न होना एक बराबर था, यह जान उसका सर्वांग जल उठा. एक पर्ची पर ‘मैं मम्मी के घर जा रही हूं’ लिखकर डायनिंग एरिया में छोड़कर वह उसके सामने से घर से निकली. बंद आंखों और कानों में लगे ईयरप्लग के कारण वह जान ही नहीं पाया कि नैना घर से बाहर निकल गई है. मायके में उसके सहसा यूं तनावग्रस्त दाख़िल होते देखकर हरीश-रागिनी समझ गए कि नील से कोई अनबन हुई है. ऐसा पहली बार नहीं था, पहले भी तीन-चार बार वह रूठकर मायके आ चुकी है. अमूमन मनमुटाव की वजह गिटार ही होता. ऐसे में रागिनी-हरीश नैना को समझाते-बुझाते कि नील के गिटार पर फ़िदा होकर उसने शादी का निर्णय लिया. वह एक कलाकार है. ऐसे में उसकी कला और रियाज़ का मान-ध्यान रखना उसका कर्त्तव्य है. नैना का कहना था कि कलाकार के अलावा अब वो उसका पति भी है. उसके गिटार ने सौतन बनकर सारे सुख-चैन हर लिए हैं.
आज नाराज़ नैना से जब हरीश ने पूछा, “तुम घर छोड़कर आई हो, ये बात नील को पता है क्या?” यह सुनकर कंधे उचकाती हुई वह बोली, “क्या जानूं... उस व़क्त तो कान में ईयरप्लग लगाए, आंखें मूंदे पता नहीं कौन-सा सुर साध रहा था.”
“फोन किया उसने...?”
“पता नहीं, मैंने स्विच ऑफ कर दिया.” उसके मुंह से यह सुनकर हरीश नाराज़गी भरे स्वर में बोले, “बचपना छोड़ो, सबसे पहले मोबाइल ऑन करो. गिटार उसकी ज़िंदगी है, उसकी रोज़ी-रोटी है. तुम क्या चाहती हो, शादी के बाद वो उसे छोड़ दे.” यह सुनकर नैना चिढ़कर बोली, “पापा, आप समझ नहीं रहे हैं. गिटार के प्रति उसकी दीवानगी इस कदर है कि मैं सामने बैठी हूं, नहीं हूं, उसे कोई फ़र्क़ ही नहीं पड़ता है.”
“सही कह रही है नैना, मैंने भी देखा है. वह घंटों बैठा तार टुनटुनाता रहता है.” अचानक रागिनी नैना के पाले में खड़ी हो गई, तो हरीश और नैना दोनों ही चौंके.
“क्या करूं? बोलो तो कुछ दिनों के लिए उसे अकेला छोड़कर अपने कपड़े लेकर यहां आ जाऊं.” नैना के मुंह से निकला, तो रागिनी कठोर वाणी में बोली, “कुछ दिन के लिए क्यों? अब तू यहीं रहेगी. पहले ही कहा था इस नील के चक्कर में मत पड़. अरे! शादी ही करनी थी, तो मेरी सहेली के देवर के बेटे से कर लेती. कम से कम यूरोप तो घुमाता.” अपनी शादी के एक साल बाद आज अचानक सहेली के देवर के बेटे की याद मम्मी को आना विस्मयजनक था यानी आज भी मम्मी को नैना का सहेली के देवर के बेटे से शादी न करने की बात सालती है. इस बात से चिढ़ी नैना बोली, “मम्मी प्लीज़, ओवर रिएक्ट मत करो.”
“अरे! अभी भी ओवर रिएक्ट न करूं? तुम परेशान हो नीलाक्ष से.”
“मम्मी प्लीज़, मैं नीलाक्ष से नहीं, उसके गिटार से परेशान हूं.” “हां-हां, एक ही बात है. मुआ गिटार हो या नीलाक्ष, परेशान तो है न तू.”
“मम्मी, गिटार मुआ नहीं है, वो नीलाक्ष का काम है, उसकी कला है.” भुनभुनाती हुई नैना को हैरानी से देखते हुए रागिनी बोली, “बड़ी अजीब है रे तू, न इस करवट चैन है, न उस करवट. ख़ुद शिकायत करती है और ख़ुद ही तरफ़दारी. हम क्या बेवकूफ़ लगते हैं तुझे. एक डिसीज़न लो. ये क्या कि ज़रा-सी बात हुई और दौड़ी आई मायके.”

“आप इस तरह की फ़ालतू बात करोगी, तो मैं यहां नहीं आऊंगी. मायका है, अपना हक़ समझती हूं, इसलिए चली आती हूं. मुझे लगता था आप लोग मुझे समझोगे.”
“अरे! तो समझ ही रही हूं, तभी तो उस कमबख़्त को गालियां दे रही हूं.”
“थोड़ा तो लिहाज़ करो, दामाद हैं नीलाक्ष तुम्हारे. मैं घर जाकर अपने कपड़े ले तो आऊं, पर उससे पहले घर का कुछ इंतज़ाम भी करना होगा. वो तो इतना लापरवाह है कि उसे ख़ुद का होश नहीं रहता, घर क्या खाक संभालेगा.”

“सब संभालेगा, क्यों नहीं संभालेगा? अब उसकी चिंता छोड़कर आगे की सोच. हम भी चलते हैं साथ.” रागिनी के कहने पर नैना एकदम बिदककर बोली, “नहीं, आप बिल्कुल नहीं चलेंगी और नील से तो कुछ भी नहीं कहेंगी.”
“ठीक है, नहीं कहूंगी, पर साथ चलूंगी. मैं नीचे पार्क में इंतज़ार करूंगी. तुम अपने कपड़े ले आना.” रागिनी की ज़िदभरी योजना और व्यवहार से हरीश नाख़ुश थे. बेटी को समझा-बुझाकर घर भेजने की जगह आग में घी डालने की चेष्टा उन्हें बिल्कुल पसंद नहीं आई. लेकिन रागिनी पर तो आज जैसे कोई भूत सवार था. नील से उसे अलग करने का भूत..

मोबाइल की घंटी से फिर विचार बाधित हुए, रागिनी का नंबर देखकर उसने संभलते हुए कहा, “हेलो मम्मी, मैं घर से बाहर थी, यह बात नील को पता ही नहीं चली. वो बेचारा सुबह से रियाज़ कर रहा है. कल एक कॉन्सर्ट है, इसलिए आज मैं उसे कोई झटका नहीं देना चाहती हूं, उसकी परफॉर्मेंस बिगड़ जाएगी.” इस पर रागिनी तेज़ स्वर में बोली, “बिगड़ती है तो बिगड़ने दे और हां, उसका दिमाग़ कहां रहता है. बीवी तीन घंटे से घर में नहीं थी और उसे पता नहीं चला, किस दुनिया में रहता है नील?”

“ओफ़्फ़ो मम्मी! आप क्या जानो आर्टिस्ट क्या होता है? सुर साधना किसे कहते हैं? पिछले एक हफ़्ते से उसने ढंग से कुछ खाया-पीया भी नहीं है. सब मेरी ग़लती है. मुझे ही घर छोड़ने की जल्दबाज़ी नहीं करनी चाहिए.” उसने भुनभुनाते हुए फोन काट दिया. रागिनी को अकेले ही घर आया देख हरीश अपनी प्रसन्नता छिपा नहीं पाए, “अरे! नैना नहीं आई, वहां सब ठीक तो है न?” यह सुनकर रागिनी शांत भाव से बोली, “उम्मीद तो है सब ठीक हो जाएगा और तुम्हारी अधैर्य बेटी को कुछ सद्बुद्धि आएगी. वैसे भी उसे कब यहां आना था. वो तो बस ये चाहती है कि वो नील को बुरा-भला कहे और हम नील को भला कहकर उसके चुनाव पर सही की मोहर लगाकर उसे आत्मतुष्टि पहुंचाएं.” 

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हरीश रागिनी के खुलासे पर हैरान थे, “जानते हो हरीश, नैना के जाने के बाद नील ने उसकी लिखी पर्ची पढ़ ली थी. नैना का फोन स्विच ऑफ आने पर उसने मुझे फोन करके सारी बात बताई. वह बेचारा सॉरी बोलते हुए उसे मनाने आ रहा था, पर मैंने ही मना कर दिया. अभी जब नैना घर गई, तो मैंने नील को कॉल करके सतर्क कर दिया. हमारी योजना के आधार पर ही उसने ऐसे दर्शाया कि नैना के जाने का उसे पता ही नहीं चला. हर बार वह तिल का ताड़ बनाती है, मैंने सोचा इस बार मैं ही तिल का ताड़ बना दूं.”

“अब समझा, तुम यहां पर ओवर रिएक्ट करके नैना के मन में नील की उपस्थिति को टटोल रही थी.”

“क्या करती, समझाकर तो देख लिया. नैना हमेशा से ही ऐसी रही है कन्फ्यूज़-सी. याद करो, बचपन में जब वह अपनी पसंद का कोई खिलौना लेकर घर आती थी, तब उसमें बुराई निकालती थी. हम उसका आत्मविश्‍वास बढ़ाने के लिए उसके चुने खिलौने की जितनी ख़ूबियां गिनाते थे, वो उतनी बुराई खोजती थी. उसकी इस आदत से परेशान होकर जब मैं भी उसकी हां में हां मिलाकर खिलौने की बुराई करती, तब वह अपने खिलौने में ख़ूबियां ढूंढ़कर उसकी प्रशंसा करती. उसकी यह आदत अभी भी नहीं बदली. 

मानती हूं कि नील मुझे शुरू में नहीं पसंद था, पर उसका सादापन, उसकी कला और नैना के प्रति उसके समर्पण को मैंने भांपकर ही हामी भरी. ऐसे में नैना जब-तब उसकी आलोचना करती, तो मुझे उसके व्यवहार में उसका वही बचपना दिखता.” हरीश ने पत्नी के इस पक्ष को समझकर प्रशंसाभरी नज़रों से देखा, तो वह भावुक होकर बोली, “हर मां चाहती है कि उसकी बेटी मायके हंसी-ख़ुशी आए... नील सीधा-सादा लड़का है. उसे गिटार का पैशन है, यह कितनी अच्छी बात है... वरना तो लोगों को लड़कियां, शराब और न जाने कैसे-कैसे व्यसन होते हैं. अपना नील तो गिटार में व्यस्त रहता है. कलाकार है, उसमें भी इस बेवकूफ़ लड़की को आपत्ति है.” बातों-बातों में हरीश-रागिनी घर आए.

दो दिन तक न उन्होंने नैना को फोन किया और न ही नैना ने उन्हें. तीन दिन बाद नैना का रागिनी के मोबाइल पर फोन आया. “मम्मी आज का अख़बार देखा आपने? आप जिसे कोस रही थीं, वो यूरोप जा रहा है. उसकी परफॉर्मेंस को देखते हुए उसे ‘वेव्स ग्रुप’ में गिटार बजाने का मौक़ा मिला है. इस दिन का नील को कब से इंतज़ार था, और हां... नील कह रहे थे यूरोप ट्रिप उनकी तरफ़ से मेरे जन्मदिन का उपहार है. सोचो, मैं अपना जन्मदिन यूरोप में सेलिब्रेट करूंगी. क्या हुआ, अब आप चुप क्यों हैं? आपकी सहेली के देवर का बेटा ही अपनी बीवी को यूरोप नहीं घुमा सकता, नील जैसा एक आम इंसान भी अपनी बीवी को यूरोप घुमाने के लिए दिन-रात एक कर सकता है.” नील ‘आम’ कहां है, वो तो कलाकार है. रागिनी कहना चाहती थी, पर चुप रही फिर ठंडी सांस लेकर बोली, “मेरी सहेली के देवर के बेचारे बेटे की शादी तो खटाई में पड़ गई है, उसके शराब पीने की लत को देखकर एक लड़की ने उसे रिजेक्ट कर दिया.”

“हे भगवान! और आप उससे मेरी शादी करवा रही थीं. थैंक गॉड कि नील को गिटार का नशा है. कम से कम उसका नशा हमें प्राउड मोमेंट तो देगा. कम से कम अब तो मान लो कि नील से अच्छा जीवनसाथी कोई हो ही नहीं सकता.”

"हां भई, मान लिया तेरा नील हज़ारों में एक है.” कहे बिना रागिनी रह नहीं पाई, तो नैना बोली, “देखा, इसमें भी कंजूसी, ‘लाखों में एक’ नहीं कह सकती थीं.” रागिनी फोन रखकर एक बार फिर अपने प्यारे दामाद का मैसेज पढ़कर मुस्कुराने लगी, जिसमें उसने अपने दांपत्य के ‘तारनहार’ अर्थात् मां समान सास के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हुए कोटिश: धन्यवाद लिखा था. - मीनू त्रिपाठी

कलेक्टर बेटी

एक फटी धोती और फटी कमीज पहने एक व्यक्ति अपनी 15-16 साल की बेटी के साथ एक बड़े होटल में पहुंचा। उन दोंनो को कुर्सी पर बैठा देख एक वेटर ने उनके सामने दो गिलास साफ ठंडे पानी के रख दिए और पूछा- आपके लिए क्या लाना है? 

उस व्यक्ति ने कहा- "मैंने मेरी बेटी को वादा किया था कि यदि तुम कक्षा दस में जिले में प्रथम आओगी तो मैं तुम्हे शहर के सबसे बड़े होटल में एक डोसा खिलाऊंगा।
इसने वादा पूरा कर दिया। कृपया इसके लिए एक डोसा ले आओ।"वेटर ने पूछा- "आपके लिए क्या लाना है?" उसने कहा-"मेरे पास एक ही डोसे का पैसा है।"पूरी बात सुनकर वेटर मालिक के पास गया और पूरी कहानी बता कर कहा-"मैं इन दोनो को भर पेट नास्ता कराना चाहता हूँ।अभी मेरे पास पैसे नहीं है,इसलिए इनके बिल की रकम आप मेरी सैलेरी से काट लेना।"मालिक ने कहा- "आज हम होटल की तरफ से इस होनहार बेटी की सफलता की पार्टी देंगे।" 

होटलवालों ने एक टेबल को अच्छी तरह से सजाया और बहुत ही शानदार ढंग से सभी उपस्थित ग्राहको के साथ उस गरीब बच्ची की सफलता का जश्न मनाया।मालिक ने उन्हे एक बड़े थैले में तीन डोसे और पूरे मोहल्ले में बांटने के लिए मिठाई उपहार स्वरूप पैक करके दे दी। इतना सम्मान पाकर आंखों में खुशी के आंसू लिए वे अपने घर चले गए।      

समय बीतता गया और एक दिन वही लड़की I.A.S.की परीक्षा पास कर उसी शहर में कलेक्टर बनकर आई।उसने सबसे पहले उसी होटल मे एक सिपाही भेज कर कहलाया कि कलेक्टर साहिबा नास्ता करने आयेंगी। होटल मालिक ने तुरन्त एक टेबल को अच्छी तरह से सजा दिया।यह खबर सुनते ही पूरा होटल ग्राहकों से भर गया।

कलेक्टर रूपी वही लड़की होटल में मुस्कराती हुई अपने माता-पिता के साथ पहुंची।सभी उसके सम्मान में खड़े हो गए।होटल के मालिक ने उन्हे गुलदस्ता भेंट किया और आर्डर के लिए निवेदन किया।उस लड़की ने खड़े होकर होटल मालिक और उस बेटर के आगे नतमस्तक होकर कहा- "शायद आप दोनों ने मुझे पहचाना नहीं।मैं वही लड़की हूँ जिसके पिता के पास दूसरा डोसा लेने के पैसे नहीं थे और आप दोनों ने मानवता की सच्ची मिसाल पेश करते हुए,मेरे पास होने की खुशी में एक शानदार पार्टी दी थी और मेरे पूरे मोहल्ले के लिए भी मिठाई पैक करके दी थी।
       🎈आज मैं आप दोनों की बदौलत ही कलेक्टर बनी हूँ।आप दोनो का एहसान में सदैव याद रखूंगी।आज यह पार्टी मेरी तरफ से है और उपस्थित सभी ग्राहकों एवं पूरे होटल स्टाफ का बिल मैं दूंगी।कल आप दोनों को "" श्रेष्ठ नागरिक "" का सम्मान एक नागरिक मंच पर किया जायेगा।  

 शिक्षा-- किसी भी गरीब की गरीबी का मजाक बनाने के वजाय उसकी प्रतिभा का उचित सम्मान करें।
बेटी बचाओ।
बेटी पढाओ

असीम शांति

"असीम शांति....

बुजुर्ग राजेश जी छत पर जमीन पे बिछाये गददे पर लेटे ...
आसमान मे चांद और तारो को देख रहे थे उम्र दराज हो गए थे और वैसे भी ऐसी अवस्था मे कुछ घंटो की नींद, मुश्किल से आती थी ....
पास मे उनकी धर्मपत्नी सुमनजी का भी रोज यही हाल रहता था...
खुद का बनाया मकान था रिटायरमेंट के सभी पैसे लगाकर एक अपना घर बनाया  था....ताकि बुढापे मे पत्नी और बच्चों सहित चैन से बचा जीवन व्यतीत करेंगे मगर.....
दोनों बेटे कुछ ज्यादा ही समझदार निकले ....
जैसे ही दोनो बेटों की शादी हुई ...दोनों का व्यवहार बदलने लगा...दोनों के दो-दो बच्चे हो गये ....
और हालत घर के कमरे ही नही हर जगह जैसे बंट गयी हो....तभी पत्नी सुमन का हाथ गाल पर महसूस हुआ...
सोने की कोशिश कीजिए.....
आज फिर बच्चो ने कुछ अपमानजनक कह दिया क्या... बुजुर्ग राजेश जी बोले  -नही....
पर आंसुओं ने सुमन के हाथ को गीला कर दिया ...
एक ने छुपाया तो दूसरे ने समझ लिया...
सुमन बोली -सुनो .....कई दिन से चारों बेटे बहूऐ... 
पता नही देर तक  चुपचाप क्या बातें करते रहते है... 
कुछ पता है आपको....
राजेश जी -हूं..... सो जाओ .....
सुमन जबतक मे हूं तुम मत घबराओ .....
दो दिन बाद ... 
दोपहर में दोनों बेटे  राजेश जी से बोले ....
पापा..... हम सभी ने काफी दिनों से सोचने के बाद फैसला किया है कि यह मकान बेच देंगे... 
अब छोटा पडता है और बच्चे बडे हो रहे है ... 
पुराना सा भी है ...
हम दोनो भाई, रकम बांट कर , कुछ लोन , अरेंजमेंट करके अपने फ्लैट ले लेंगे....
राजेश जी और सुमन जी एकदम चुप होकर दोनों बेटों को देख रहे थे....
ओह ....तो ये विचार विमर्श चल रहा था कई दिन से ...
बेटे और बहुऔ ने एक दूसरे को देखा ...
बडी बहू जो बडे और अमीर घर से आयी थी ...
बडे स्कूल कालेज मे पढी थी ने बात आगे बढाई....
 पापा....आजकल प्रोफेशनल ओल्ड एज होम का कांसेप्ट है ...
एक दम पांच सितारा होटल जैसे कमरे और सहूलियतें मिलती है  बस हर महीने कुछ किराया देना होता है आपके चार -पांच साल के पैसे मकान बेचने से जो मिलेंगे, आप के खाते में जमा कर देंगे... 
और कभी कुछ चाहिए होगा तो हमसे मांग लेना ...
आखिर हम आपके ही तो बच्चे है...
राजेश जी और सुमन ने बच्चों को देखा और फिर उनके चेहरों को जो बता रहे थे सबकी यही इच्छा है .... फिर भी दोनों खामोश रहे...
इस बीच छोटा बोला -भाभी ठीक कह रही है पापा ....हमारे परिवार के ही खर्चे बहुत ज्यादा हो गये है और बच्चो की पढाई, शादी वगैरह पर भी खर्चे होंगे पैसा अभी से जमा करने शुरू करेंगे तभी कुछ बनाएंगे ...
राजेश जी ने सुमन जी को बहुत देर तक देखा ...
वह भी उनको देख रही थी उनके चेहरे पर वही जिंदगी साथ गुजारने के भाव थे  जब फेरे ले रहे थे ...
चेहरे पर अब भी वही समर्पण के भाव थे ,जब पहली बार राजेश जी ने उनकी मांग भरी थी ....
बुजुर्ग राजेश जी सोचा और बोले - बच्चो, तुम्हारा आइडिया तो बहुत अच्छा है....
मैं सहमत हूं तुम्हारे आइडिया से....
चारों बेटे-बहुओ ने विजयी मुसकान और घोर सफल चाल पर एक दूसरे को देखा....
राजेश जी ने आगे कहा - मुझे पांच सितारा ओल्ड एज हाउस का आइडिया बहुत बढिया लगा ....
सुमन के गहने बेचकर , कुछ रकम लगाकर इसी घर में खोल दूंगा ....
आमदनी भी होगी  हमारे जैसो बूढो को सहारा भी....
एक काम करो तुम सब  कल यह मकान छोडकर चले जाना....
कया .....चारों एकसाथ बोले.....
हां ...सही सुना.... ये घर मेरी और सुमन की मेहनत से बना है ये हमारा घर है ....
तुम नालायकों का नही ....और हां अपनी स्वेच्छा से मे इसमें एक आश्रम खोल रहा हूं हमारे जैसे बूढो के लिए जिनकी औलाद तुम्हारे जैसी निकम्मी होती है ....मैंने पहले ही वसीयत बनावा ली थी जानता था तुम्हारी नजर इस घरपर है .....
तुम्हारे वर्ताव और बदले हुए रुख से जान गया था मगर एक उम्मीद थी शायद तुम सुधर जाओ मगर .....
जो बच्चे इस घर को बेचने के बाद भी अपने मां बाप को ओल्ड एज होम मे अकेले मरने को छोडने पर आमदा हो वो इस लायक नहीं की हमारे इस घर मे रहे ...
वकील द्वारा नोटिस भी तुम्हें जल्द ही मिल जाएगा ......
कलतक तुम्हें ये घर खाली करना होगा समझे.....
अब चारों बेटे बहुऐ शर्मिंदगी से सिर झुकाए खडे थे ....

उस रात दोनों बुजुर्ग राजेश जी और सुमन जी रात को हाथ में हाथ डाले  चांद की रोशनी में, गहरी नींद में सोये...
दोनो के चेहरे पर पहली बार असीम शांति थी......
एक सुन्दर और प्ररेणादायक रचना...
#दीप..🙏🙏🙏

Wednesday, May 11, 2022

कम्बोडिया के प्राचीन मंदिर (VEDIC Science)

 चित्र में आप जिस मंदिर को देख रहे है, यह कंबोडिया का #Banteay_Srei मंदिर है, जो कि भगवान शिव को समर्पित एक मंदिर है.







 ।। इस मंदिर का निर्माण 22 अप्रेल 967 ईस्वी को पूर्ण हुआ था, ऐसा इतिहासकारो का मानना है । इस मंदिर में रामायण की घटनाओं को भी पत्थर पर तराशा गया है ।।


कंबोडिया भारत का हिस्सा आज नही है । कंबोडिया में अब तो हिन्दू नामलेवा भी नही है । लेकिन विश्व का सबसे बड़ा हिन्दू मंदिर कंबोडिया में है ।। ब्रह्माजी के दुनिया मे केवल 2 मंदिर है , एक पुष्कर में , दूसरा कंबोडिया में ।। 

यह कहानी सिर्फ कंबोडिया की नही है । आज से मात्र 3,000 साल पहले विश्व का प्रत्येक व्यक्ति हिन्दू ही था । महाभारत युद्ध बीत जाने के 2000 साल बाद ही घोर कलयुग आया है ।। जिसमे हिन्दू धर्म का पतन होना शुरू हुआ ।।


खुद भारत के हाल यह है की इस्लाम के आगमन से पहले भारत मे ( 1 ) भागवत , ( 2 ) वर्णी , ( 3 ) जैनश्वेताम्बर , ( 4 ) पंचाग्नितायन , शैव ) , ( 5 ) शाब्दा ( वैयाकरण लोग ) , ( 6 ) पाण्डरीभिक्षु , ( 7 ) जैन साधु यापनीय ( 8 ) दिगम्बर जैन , ( 9 ) कपिल मतानुयायी , ( 10 ) पाशुपत शैव ( 11 ) बौद्ध मतानुयायी , ( 12 ) वैखानस , ( 13 ) पाराशदी , ( 14 ) पांचरात्रिक , ( 15 ) नैयायिक , ( 16 ) धर्मशास्त्री , ( 17 ) यज्ञवादी मीमांसक , ( 18 ) मस्करी , ( 19 ) लोकायत , ( 20 ) ब्रहावादी और ( 21 ) पौराणिक , इतने प्रकार की मान्यता के लोग हुआ करते थे । इनमें से ज़्यादातर तो नामशेष हो चुके है ।। 🙏साभार🙏


चित्र - कंबोडिया का शिवमंदिर 

नाम - banteay srei Temple 

स्थान - अंकोर ( कंबोडिया)

निर्माण वर्ष - आज से लगभग 1000 वर्ष पूर्व

VEDIC Science के फेसबुक पेज से उद्धत।


Friday, November 5, 2021

Time Dialation Theory

 रात्रि के अंतिम प्रहर में एक बुझी हुई चिता की भस्म पर अघोरी ने जैसे ही आसन लगाया, 

       एक प्रेत ने उसकी गर्दन जकड़ ली और बोला- मैं जीवन भर विज्ञान का छात्र रहा और जीवन के उत्तरार्ध में तुम्हारे पुराणों की विचित्र कथाएं पढ़कर भ्रमित होता रहा। यदि तुम मुझे पौराणिक कथाओं की सार्थकता नहीं समझा सके तो मैं तुम्हे भी इसी भस्म में मिला दूंगा।


अघोरी बोला-

 एक कथा सुनो, रैवतक राजा की पुत्री का नाम रेवती था। वह सामान्य कद के पुरुषों से बहुत लंबी थी, राजा उसके विवाह योग्य वर खोजकर थक गये और चिंतित रहने लगे। थक-हारकर वो योगबल के द्वारा पुत्री को लेकर ब्रह्मलोक गए। राजा जब वहां पहुंचे तब गन्धर्वों का गायन समारोह चल रहा था, राजा ने गायन समाप्त होने की प्रतीक्षा की।


गायन समाप्ति के उपरांत ब्रह्मदेव ने राजा को देखा और पूछा- कहो, कैसे आना हुआ?


राजा ने कहा- मेरी पुत्री के लिए किसी वर को आपने बनाया अथवा नहीं?


ब्रह्मा जोर से हंसे और बोले- जब तुम आये तबतक तो नहीं, पर जिस कालावधि में तुमने यहाँ गन्धर्वगान सुना उतनी ही अवधि में पृथ्वी पर २७ चतुर्युग बीत चुके हैं और २८ वां द्वापर समाप्त होने वाला है, अब तुम वहां जाओ और कृष्ण के बड़े भाई बलराम से इसका विवाह कर दो, अच्छा हुआ की तुम रेवती को अपने साथ लाए जिससे इसकी आयु नहीं बढ़ी।


इस कथा का वैज्ञानिक संदर्भ समझो- *आर्थर सी क्लार्क ने आइंस्टीन की थ्योरी ऑफ़ रिलेटिविटी की व्याख्या में एक पुस्तक लिखी है- मैन एंड स्पेस,*

   उसमे गणना है की यदि 10 वर्ष का बालक यदि प्रकाश की गति वाले यान में बैठकर एंड्रोमेडा गैलेक्सी का एक चक्कर लगाये तो वापस आनेपर उसकी आयु ६६ वर्ष की होगी पर धरती पर 40 लाख वर्ष बीत चुके होंगे। यह आइंस्टीन की time dilation theory ही तो है जिसके लिए जॉर्ज गैमो ने एक मजाकिया कविता लिखी थी-


There was a young girl named Miss Bright,


Who could travel much faster than light


She departed one day in an Einstein way


And came back previous night


प्रेत यह सुनकर चकित था, बोला- यह कथा नहीं है, यह तो पौराणिक विज्ञान है, हमारी सभ्यता इतनी अद्भुत रही है, अविश्वसनीय है। 

तभी तो आइंस्टीन पुराणों को अपनी प्रेरणा कहते थे।


अघोरी मुस्कुराता रहा और प्रेत वायु में विलीन हो गया।


"हम विश्व की सबसे उन्नत संस्कृति हैं यह विश्वास मत खोना"

🌻💐

जय श्री कृष्ण। 🙏🙏🙏🙏

महालक्ष्मी पूजन

 "महालक्ष्मी पूजन"


"पंडित जी ने गोदाम पर दीपावली पूजा का सुबह 6:00 बजे का मुहूर्त बताया है! तुम सारी तैयारी अभी से कर लो"

द्वारका जी दुकान से घर आते ही अपनी पत्नी से बोले।


"अरे वाह !!आज तो आप बड़ी जल्दी  घर आ गए!"


"हां भई! सारा काम काज मुनीम जी के भरोसे छोड़ कर आया हूं। आखिर कल की महालक्ष्मी पूजा की तैयारियां भी तो करनी है।"

"पूजा की बाकी सामग्री तो घर पर ही उपलब्ध हो जाएगी। आप अभी घूमने जाओ तो मालाएं ले आना।"


द्वारका जी ने तुरंत वस्त्र बदले और पड़ोसी शर्मा जी को आवाज लगा शाम की सैर पर निकल गए।


"द्वारका जी, आज पैर बाजार की तरफ कैसे मोड़ लिए?"

भिन्न रास्ते की ओर बढ़ते देख शर्मा जी ने पूछा।

"बस जरा यूं ही, कुछ मालाएं खरीदनी हैं।"


बाजार में फूल मालाओं की स्थाई दुकानों के साथ-साथ जमीन पर टोकरिया लिए अस्थाई विक्रेता भी बैठे थे।


दो तीन जगह माल मोलभाव करने के बाद द्वारका जी को निगाह एक कोने में बैठी छोटी सी टोकरी लिए चौदह पंद्रह साल की लड़की पर पड़ी ‌।


जमी जमाई दुकान वाले एक रुपया भी कम नहीं कर रहे। यही सोच कर वह उस लड़की के पास पहुंचे।


उस की टोकरी में गिनती की मालाएं और फूल थे। शायद आसपास की दुकानों से ही सस्ते भाव में खरीद लाई थी।

"यह हजारे की माला कितने की दी?"

बाबूजी ₹20 की है।

"और गुलाब की माला?"

"₹50 की है।"

"इतना महंगा लगा रही है!  देखती नहीं ऐसी मालाएं 10 10 रुपए में मिल रही है। सही लगा , सारी खरीद लूंगा।" उन्होंने आंखों ही आंखों में बची हुई मालाओं को गिनते हुए कहा।


द्वारका जी को स्वयं की ओर आते देख लड़की की आंखों में आई चमक अब बुझ गई।


"बाबूजी ₹15 की तो मेरी खरीद ही है गुलाब की माला 40 में लाई हूं। कुछ तो मेरे लिए भी बचना चाहिए ना।" उसके शब्दों में बेबसी थी।

"रहने दे! रहने दे! झूठ मत बोल।" कहते हुए द्वारका जी ने पन्द्रह हजारे की मालाएं और तीन गुलाब की मालाएं अलग की‌। अब टोकरी में मात्र दो हजारे की और एक गुलाब की माला ही शेष बची थी।

"बाबूजी यह तीनों मालाएं भी ले लीजिए।"


"देखती नहीं? उनके फूल मुरझा गए हैं !इन्हें लेकर क्या करूंगा?"

और फिर द्वारका जी ने हिसाब करते हुए ₹15 हजारे की माला और ₹40 गुलाब की माला लगाकर रुपए पकड़ाए।


वह कुछ देर इधर-उधर देखती रही । फिर गहराते अंधेरे का आभास  कर और किसी अन्य ग्राहक को न आते देख भरे मन से मालाएं कागज में पैक करने लगी।


"हम थोड़ी देर में घूम कर आते हैं ‌फिर यह मालाऐं तुझ से ले लेंगे । कहते हुए द्वारका जी शर्मा जी का हाथ पकड़ आगे बढ़ लिए।

"इतनी मालाओं का क्या करोगे द्वारका जी?"


"शर्मा जी ! कल तीन जगह पूजा होनी है और इससे सस्ती मालाएं मुझे कहीं नहीं मिलने वाली।"


लौटते वक्त बातों में दोनों मित्र ऐसा लगे की मालाएं लेना भूल गए। खाना खाने के बाद पत्नी ने द्वारका जी को उलाहना दिया।

"मैंने तो पूजा की सारी तैयारी कर ली किंतु कहने के बावजूद आप माला लेकर नहीं आए।"

*क्या मालाएं?? अरे बाप रे!!"


और उन्होंने पत्नी को सारा किस्सा बताया। फिर गाड़ी लेकर तुरंत रवाना होने लगे ।


"रहने दो ! अब तुम्हें वहां कौन मिलेगा? कल सुबह जल्दी ही मंदिर से मालाएं खरीद लेंगे।" पत्नी ने उन्हें रोका।


"उम्मीद तो मुझे भी बिल्कुल नहीं है किंतु एक बार प्रयास तो करके देख लेता हूं‌।" कहते हुए द्वारका जी रवाना हुए।


रात के 9:00 बज चुके थे। बाजार में कुछ दुकानें अभी भी खुली थी किंतु फूल माला लेकर बैठने वाले जा चुके थे।


द्वारका जी ने गाड़ी रोकी और उस अंधेरे कोने की ओर बढ़े जहां से उन्होंने मालाएं खरीदी थी।

वह अभी भी टोकरी लेकर वहीं बैठी थी।

"बाबूजी आप इतनी देरी से आए हैं! आपको पता भी है मेरा घर कितनी दूर है। मेरी मां घर पर भूखी होगी। और पता है यहां पर पुलिसवालों और बदमाशों ने मुझे कितना परेशान किया।" द्वारका जी को देखते ही वह फूट पड़ी।


"मुझ पर चिल्ला रही हो। इतना ही था तो चली जाती।"


"ऐसे कैसे चली जाती? आखिर आपकी अमानत मेरे पास थी।"

द्वारका जी स्तब्ध रह गए। कुछ क्षण बाद शब्द बटोर कर बोले।

"तो क्या हुआ? अगर मालाऐं ले भी जाती तो मेरे क्या फर्क पड़ता ?"

"आपके फर्क नहीं पड़ता, बाबूजी! हमारे फर्क पड़ता है। अगर मैं आपको यहां पर नहीं मिलती तो क्या आप कभी सड़क पर बैठकर धंधा करने वाले हम जैसे छोटे लोगों का विश्वास करते? आप हमें चोर समझते और फिर कभी हमसे नहीं खरीदते। मां ने सिखाया है ग्राहक का विश्वास ही हमारी सबसे बड़ी पूंजी है।"

"और अगर मैं रात भर नहीं आता तो?"

"मैं घंटे भर और इंतजार करती फिर आपके नाम से मंदिर में मालाएं चढ़ा देती।"

द्वारका जी के शब्द  अब कहीं खो गए थे। वे कुछ देर उसकी ओर अपलक देखते रहे।

फिर उन्होंने एक माला  निकालकर उसके गले में डाली, हाथ में पांच सौ का नोट पकड़ाया फिर शेष मालाएं गाड़ी की पिछली सीट पर रखीं, टोकरी डिक्की में रखी और उसका हाथ पकड़ सामने स्थित रेस्तरां में ले गए और खाना पेक करवाने का आदेश दिया।

उसने विरोध किया किंतु द्वारका जी के आगे उसकी एक न चली।

"चल मैं तुझे घर तक छोड़ कर आता हूं।" खाना पैक होते होते उन्होंने कहा।

"बाबूजी !आप यह क्या कर रहे हैं? मैं अपने आप चली जाऊंगी।" उसने फिर विरोध किया।

"बेटा साक्षात लक्ष्मी को भोग लगा रहा हूं। मना मत कर। मेरी लक्ष्मी पूजा तो आज ही हो गई है।"

समाप्त

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राह मिल गई

#कहानी- राह मिल गई सामान से लदे थैलों के साथ रितु हांफने लगी थी, लेकिन रिक्शा था कि मिलने का नाम ही नहीं ले रहा था. थक-हारकर रितु पास ही के ...