Sunday, September 30, 2018

सोऽहं शिवोहम !!

एक था भिखारी ! रेल  सफ़र  में  भीख़  माँगने  के दौरान  एक  सूट बूट  पहने  सेठ जी  उसे  दिखे। उसने सोचा  कि  यह  व्यक्ति  बहुत  अमीर लगता  है, इससे  भीख़  माँगने  पर यह  मुझे  जरूर  अच्छे  पैसे  देगा। वह उस  सेठ  से  भीख़  माँगने  लगा।

भिख़ारी  को  देखकर  उस  सेठ  ने कहा, “तुम  हमेशा  मांगते  ही  हो, क्या  कभी  किसी  को  कुछ  देते  भी हो ?”

भिख़ारी  बोला, “साहब  मैं  तो भिख़ारी  हूँ, हमेशा  लोगों  से  मांगता ही  रहता  हूँ, मेरी  इतनी  औकात कहाँ  कि  किसी  को  कुछ  दे  सकूँ ?”

सेठ:- जब  किसी  को  कुछ  दे  नहीं  सकते तो  तुम्हें  मांगने  का  भी  कोई  हक़ नहीं  है। मैं  एक  व्यापारी  हूँ  और लेन-देन  में  ही  विश्वास  करता  हूँ, अगर  तुम्हारे  पास  मुझे  कुछ  देने  को  हो  तभी  मैं  तुम्हे  बदले  में  कुछ दे  सकता  हूँ।

तभी  वह  स्टेशन  आ  गया  जहाँ  पर उस  सेठ  को  उतरना  था, वह  ट्रेन से  उतरा  और  चला  गया।

इधर  भिख़ारी  सेठ  की  कही  गई बात  के  बारे  में  सोचने  लगा। सेठ  के  द्वारा  कही  गयीं  बात  उस भिख़ारी  के  दिल  में  उतर  गई। वह सोचने  लगा  कि  शायद  मुझे  भीख में  अधिक  पैसा  इसीलिए  नहीं मिलता  क्योकि  मैं  उसके  बदले  में किसी  को  कुछ  दे  नहीं  पाता  हूँ। लेकिन  मैं  तो  भिखारी  हूँ, किसी  को कुछ  देने  लायक  भी  नहीं  हूँ।लेकिन कब  तक  मैं  लोगों  को  बिना  कुछ दिए  केवल  मांगता  ही  रहूँगा।

बहुत  सोचने  के  बाद  भिख़ारी  ने निर्णय  किया  कि  जो  भी  व्यक्ति  उसे भीख  देगा  तो  उसके  बदले  मे  वह भी  उस  व्यक्ति  को  कुछ  जरूर  देगा।
लेकिन  अब  उसके  दिमाग  में  यह प्रश्न  चल  रहा  था  कि  वह  खुद भिख़ारी  है  तो  भीख  के  बदले  में  वह  दूसरों  को  क्या  दे  सकता  है ?

इस  बात  को  सोचते  हुए  दिनभर गुजरा  लेकिन  उसे  अपने  प्रश्न का कोई  उत्तर  नहीं  मिला।

दुसरे  दिन  जब  वह  स्टेशन  के  पास बैठा  हुआ  था  तभी  उसकी  नजर कुछ  फूलों  पर  पड़ी  जो  स्टेशन  के आस-पास  के  पौधों  पर  खिल  रहे थे, उसने  सोचा, क्यों  न  मैं  लोगों को  भीख़  के  बदले  कुछ  फूल  दे दिया  करूँ। उसको  अपना  यह विचार  अच्छा  लगा  और  उसने  वहां से  कुछ  फूल  तोड़  लिए।

वह  ट्रेन  में  भीख  मांगने  पहुंचा। जब भी  कोई  उसे  भीख  देता  तो  उसके बदले  में  वह  भीख  देने  वाले  को कुछ  फूल  दे  देता। उन  फूलों  को लोग  खुश  होकर  अपने  पास  रख लेते  थे। अब  भिख़ारी  रोज  फूल तोड़ता  और  भीख  के  बदले  में  उन फूलों  को  लोगों  में  बांट  देता  था।

कुछ  ही  दिनों  में  उसने  महसूस किया  कि  अब  उसे  बहुत  अधिक लोग  भीख  देने  लगे  हैं। वह  स्टेशन के  पास  के  सभी  फूलों  को  तोड़ लाता  था। जब  तक  उसके  पास  फूल  रहते  थे  तब  तक  उसे  बहुत  से  लोग  भीख  देते  थे। लेकिन  जब फूल  बांटते  बांटते  ख़त्म  हो  जाते तो  उसे  भीख  भी  नहीं  मिलती थी,अब  रोज  ऐसा  ही  चलता  रहा ।

एक  दिन  जब  वह  भीख  मांग  रहा था  तो  उसने  देखा  कि  वही  सेठ  ट्रेन  में  बैठे  है  जिसकी  वजह  से  उसे  भीख  के  बदले  फूल  देने  की प्रेरणा  मिली  थी।

वह  तुरंत  उस  व्यक्ति  के  पास  पहुंच गया  और  भीख  मांगते  हुए  बोला, आज  मेरे  पास  आपको  देने  के  लिए कुछ  फूल  हैं, आप  मुझे  भीख  दीजिये  बदले  में  मैं  आपको  कुछ फूल  दूंगा।

शेठ  ने  उसे  भीख  के  रूप  में  कुछ पैसे  दे  दिए  और  भिख़ारी  ने  कुछ फूल  उसे  दे  दिए। उस  सेठ  को  यह बात  बहुत  पसंद  आयी।

सेठ:- वाह  क्या  बात  है..? आज  तुम  भी  मेरी  तरह  एक  व्यापारी  बन गए  हो, इतना  कहकर  फूल  लेकर वह  सेठ  स्टेशन  पर  उतर  गया।

लेकिन  उस  सेठ  द्वारा  कही  गई  बात  एक  बार  फिर  से  उस  भिख़ारी के  दिल  में  उतर  गई। वह  बार-बार उस  सेठ  के  द्वारा  कही  गई  बात  के बारे  में  सोचने  लगा  और  बहुत  खुश  होने  लगा। उसकी  आँखे  अब चमकने  लगीं, उसे  लगने  लगा  कि अब  उसके  हाथ  सफलता  की  वह 🔑चाबी  लग  गई  है  जिसके  द्वारा वह  अपने  जीवन  को  बदल  सकता है।

वह  तुरंत  ट्रेन  से  नीचे  उतरा  और उत्साहित  होकर  बहुत  तेज  आवाज में  ऊपर  आसमान  की  ओर  देखकर बोला, “मैं  भिखारी  नहीं  हूँ, मैं  तो एक  व्यापारी  हूँ..

मैं  भी  उस  सेठ  जैसा  बन  सकता हूँ.. मैं  भी  अमीर  बन  सकता  हूँ !

लोगों  ने  उसे  देखा  तो  सोचा  कि शायद  यह  भिख़ारी  पागल  हो  गया है, अगले  दिन  से  वह  भिख़ारी  उस स्टेशन  पर  फिर  कभी  नहीं  दिखा।

एक  वर्ष  बाद  इसी  स्टेशन  पर  दो व्यक्ति   सूट  बूट  पहने  हुए  यात्रा  कर  रहे  थे। दोनों  ने  एक  दूसरे  को देखा  तो  उनमे  से  एक  ने  दूसरे को हाथ  जोड़कर प्रणाम किया और  कहा, “क्या आपने  मुझे  पहचाना ?”

सेठ:- “नहीं तो ! शायद  हम  लोग पहली  बार  मिल  रहे  हैं।

भिखारी:- सेठ जी.. आप याद कीजिए, हम  पहली  बार  नहीं  बल्कि तीसरी  बार  मिल  रहे  हैं।

सेठ:- मुझे  याद  नहीं  आ  रहा, वैसे हम  पहले  दो  बार  कब  मिले  थे ?

अब  पहला  व्यक्ति  मुस्कुराया  और बोला:

हम  पहले  भी  दो  बार  इसी  ट्रेन में  मिले  थे, मैं  वही  भिख़ारी  हूँ जिसको  आपने  पहली  मुलाकात  में बताया  कि  मुझे  जीवन  में  क्या करना  चाहिए  और  दूसरी  मुलाकात में  बताया  कि  मैं  वास्तव  में  कौन  हूँ।

नतीजा यह निकला कि आज मैं  फूलों  का  एक  बहुत  बड़ा  व्यापारी  हूँ  और  इसी व्यापार  के  काम  से  दूसरे  शहर  जा रहा  हूँ।

आपने  मुझे  पहली  मुलाकात  में प्रकृति  का  नियम  बताया  था... जिसके  अनुसार  हमें  तभी  कुछ मिलता  है, जब  हम  कुछ  देते  हैं। लेन  देन  का  यह  नियम  वास्तव  में काम  करता  है, मैंने  यह  बहुत अच्छी  तरह  महसूस  किया  है, लेकिन  मैं  खुद  को  हमेशा  भिख़ारी ही  समझता  रहा, इससे  ऊपर उठकर  मैंने  कभी  सोचा  ही  नहीं  था और  जब  आपसे  मेरी  दूसरी मुलाकात  हुई  तब  आपने  मुझे बताया  कि  मैं  एक  व्यापारी  बन चुका  हूँ। अब  मैं  समझ  चुका  था  कि मैं  वास्तव  में  एक  भिखारी  नहीं बल्कि  व्यापारी  बन  चुका  हूँ।

भारतीय मनीषियों ने संभवतः इसीलिए स्वयं को जानने पर सबसे अधिक जोर दिया और फिर कहा -

सोऽहं
शिवोहम !!

समझ की ही तो बात है...
भिखारी ने स्वयं को जब तक भिखारी समझा, वह भिखारी रहा | उसने स्वयं को व्यापारी मान लिया, व्यापारी बन गया |
जिस दिन हम समझ लेंगे कि मैं कौन हूँ...

फिर जानने समझने को रह ही क्या जाएगा ?

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Friday, September 28, 2018

नारी घर की लक्ष्मी

नारी जो चाहे वो कराये
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एक गांव में एक जमींदार था। उसके कई नौकरों में जग्गू भी था। गांव से लगी बस्ती में, बाकी मजदूरों के साथ जग्गू भी अपने पांच लड़कों के साथ रहता था। जग्गू की पत्नी बहुत पहले गुजर गई थी। एक झोंपड़े में वह बच्चों को पाल रहा था। बच्चे बड़े होते गये और जमींदार के घर नौकरी में लगते गये।
सब मजदूरों को शाम को मजूरी मिलती। जग्गू और उसके लड़के चना और गुड़ लेते थे। चना भून कर गुड़ के साथ खा लेते थे।
बस्ती वालों ने जग्गू को बड़े लड़के की शादी कर देने की सलाह दी। उसकी शादी हो गई और कुछ दिन बाद गौना भी आ गया। उस दिन जग्गू की झोंपड़ी के सामने बड़ी बमचक मची। बहुत लोग इकठ्ठा हुये नई बहू देखने को। फिर धीरे धीरे भीड़ छंटी। आदमी काम पर चले गये। औरतें अपने अपने घर। जाते जाते एक बुढ़िया बहू से कहती गई – पास ही घर है। किसी चीज की जरूरत हो तो संकोच मत करना, आ जाना लेने। सबके जाने के बाद बहू ने घूंघट उठा कर अपनी ससुराल को देखा तो उसका कलेजा मुंह को आ गया। जर्जर सी झोंपड़ी, खूंटी पर टंगी कुछ पोटलियां और झोंपड़ी के बाहर बने छ चूल्हे (जग्गू और उसके सभी बच्चे अलग अलग चना भूनते थे)। बहू का मन हुआ कि उठे और सरपट अपने गांव भाग चले। पर अचानक उसे सोच कर धचका लगा – वहां कौन से नूर गड़े हैं। मां है नहीं। भाई भौजाई के राज में नौकरानी जैसी जिंदगी ही तो गुजारनी होगी। यह सोचते हुये वह बुक्का फाड़ रोने लगी। रोते रोते थक कर शान्त हुई। मन में कुछ सोचा। पड़ोसन के घर जा कर पूछा – अम्मां एक झाड़ू मिलेगा? बुढ़िया अम्मा ने झाड़ू, गोबर और मिट्टी दी। साथ में अपनी पोती को भेज दिया। जग्गू और उसके लड़के जब लौटे तो एक ही चूल्हा देख भड़क गये। चिल्लाने लगे कि इसने तो आते ही सत्यानास कर दिया। अपने आदमी का छोड़ बाकी सब का चूल्हा फोड़ दिया। झगड़े की आवाज सुन बहू झोंपड़ी से निकली। बोली – आप लोग हाथ मुंह धो कर बैठिये, मैं खाना निकालती हूं। सब अचकचा गये! हाथ मुंह धो कर बैठे। बहू ने पत्तल पर खाना परोसा – रोटी, साग, चटनी। मुद्दत बाद उन्हें ऐसा खाना मिला था। खा कर अपनी अपनी कथरी ले वे सोने चले गये।
सुबह काम पर जाते समय बहू ने उन्हें एक एक रोटी और गुड़ दिया। चलते समय जग्गू से उसने पूछा – बाबूजी, मालिक आप लोगों को चना और गुड़ ही देता है क्या? जग्गू ने बताया कि मिलता तो सभी अन्न है पर वे चना-गुड़ ही लेते हैं। आसान रहता है खाने में। बहू ने समझाया कि सब अलग अलग प्रकार का अनाज लिया करें। देवर ने बताया कि उसका काम लकड़ी चीरना है। बहू ने उसे घर के ईंधन के लिये भी कुछ लकड़ी लाने को कहा।
बहू सब की मजूरी के अनाज से एक एक मुठ्ठी अन्न अलग रखती। उससे बनिये की दुकान से बाकी जरूरत की चीजें लाती। जग्गू की गृहस्थी धड़ल्ले से चल पड़ी। एक दिन सभी भाइयों और बाप ने तालाब की मिट्टी से झोंपड़ी के आगे बाड़ बनाया। बहू के गुण गांव में चर्चित होने लगे।
जमींदार तक यह बात पंहुची। वह कभी कभी बस्ती में आया करता था। आज वह जग्गू के घर उसकी बहू को आशीर्वाद देने आया। बहू ने पैर छू प्रणाम किया तो जमींदार ने उसे एक हार दिया। हार माथे से लगा बहू ने कहा कि मालिक यह हमारे किस काम आयेगा। इससे अच्छा होता कि मालिक हमें चार लाठी जमीन दिये होते झोंपड़ी के दायें बायें, तो एक कोठरी बन जाती। बहू की चतुराई पर जमींदार हंस पड़ा। बोला – ठीक, जमीन तो जग्गू को मिलेगी ही। यह हार तो तुम्हारा हुआ।
औरत चाहे घर को स्वर्ग बना दे, चाहे नर्क! मुझे लगता है कि देश, समाज, और आदमी को औरत ही गढ़ती हैh.
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माँ का सूट

🙏🙏 माँ का सूट  🙏🙏

मैं एक घर के करीब से गुज़र रहा था की अचानक से मुझे उस घर के अंदर से एक बच्चे की रोने की आवाज़ आई। उस बच्चे की आवाज़ में इतना दर्द था कि अंदर जा कर वह बच्चा क्यों रो रहा है, यह मालूम करने से मैं खुद को रोक ना सका।b

अंदर जा कर मैने देखा कि एक माँ अपने दस साल के बेटे को आहिस्ता से मारती और बच्चे के साथ खुद भी रोने लगती। मैने आगे हो कर पूछा बहनजी आप इस छोटे से बच्चे को क्यों मार रही हो? जब कि आप खुद भी रोती हो।

उस ने जवाब दिया भाई साहब इस के पिताजी भगवान को प्यारे हो गए हैं और हम लोग बहुत ही गरीब हैं, उन के जाने के बाद मैं लोगों के घरों में काम करके घर और इस की पढ़ाई का खर्च बामुश्किल उठाती हूँ और यह कमबख्त स्कूल रोज़ाना देर से जाता है और रोज़ाना घर देर से आता है।

जाते हुए रास्ते मे कहीं खेल कूद में लग जाता है और पढ़ाई की तरफ ज़रा भी ध्यान नहीं देता है जिस की वजह से रोज़ाना अपनी स्कूल की वर्दी गन्दी कर लेता है। मैने बच्चे और उसकी माँ को जैसे तैसे थोड़ा समझाया और चल दिया।

इस घटना को कुछ दिन ही बीते थे की एक दिन सुबह सुबह कुछ काम से मैं सब्जी मंडी गया। तो अचानक मेरी नज़र उसी दस साल के बच्चे पर पड़ी जो रोज़ाना घर से मार खाता था। मैं क्या देखता हूँ कि वह बच्चा मंडी में घूम रहा है और जो दुकानदार अपनी दुकानों के लिए सब्ज़ी खरीद कर अपनी बोरियों में डालते तो उन से कोई सब्ज़ी ज़मीन पर गिर जाती थी वह बच्चा उसे फौरन उठा कर अपनी झोली में डाल लेता।

मैं यह नज़ारा देख कर परेशानी में सोच रहा था कि ये चक्कर क्या है, मैं उस बच्चे का चोरी चोरी पीछा करने लगा। जब उस की झोली सब्ज़ी से भर गई तो वह सड़क के किनारे बैठ कर उसे ऊंची ऊंची आवाज़ें लगा कर वह सब्जी बेचने लगा। मुंह पर मिट्टी गन्दी वर्दी और आंखों में नमी, ऐसा महसूस हो रहा था कि ऐसा दुकानदार ज़िन्दगी में पहली बार देख रहा हूँ ।

अचानक एक आदमी अपनी दुकान से उठा जिस की दुकान के सामने उस बच्चे ने अपनी नन्ही सी दुकान लगाई थी, उसने आते ही एक जोरदार लात मार कर उस नन्ही दुकान को एक ही झटके में रोड पर बिखेर दिया और बाज़ुओं से पकड़ कर उस बच्चे को भी उठा कर धक्का दे दिया।

वह बच्चा आंखों में आंसू लिए चुप चाप दोबारा अपनी सब्ज़ी को इकठ्ठा करने लगा और थोड़ी देर बाद अपनी सब्ज़ी एक दूसरे दुकान के सामने डरते डरते लगा ली। भला हो उस शख्स का जिस की दुकान के सामने इस बार उसने अपनी नन्ही दुकान लगाई उस शख्स ने बच्चे को कुछ नहीं कहा।

थोड़ी सी सब्ज़ी थी ऊपर से बाकी दुकानों से कम कीमत। जल्द ही बिक्री हो गयी, और वह बच्चा उठा और बाज़ार में एक कपड़े वाली दुकान में दाखिल हुआ और दुकानदार को वह पैसे देकर दुकान में पड़ा अपना स्कूल बैग उठाया और बिना कुछ कहे वापस स्कूल की और चल पड़ा। और मैं भी उस के पीछे पीछे चल रहा था।

बच्चे ने रास्ते में अपना मुंह धो कर स्कूल चल दिया। मै भी उस के पीछे स्कूल चला गया। जब वह बच्चा स्कूल गया तो एक घंटा लेट हो चुका था। जिस पर उस के टीचर ने डंडे से उसे खूब मारा। मैने जल्दी से जा कर टीचर को मना किया कि मासूम बच्चा है इसे मत मारो। टीचर कहने लगे कि यह रोज़ाना एक डेढ़ घण्टे लेट से ही आता है और मै रोज़ाना इसे सज़ा देता हूँ कि डर से स्कूल वक़्त पर आए और कई बार मै इस के घर पर भी खबर दे चुका हूँ।

खैर बच्चा मार खाने के बाद क्लास में बैठ कर पढ़ने लगा। मैने उसके टीचर का मोबाइल नम्बर लिया और घर की तरफ चल दिया। घर पहुंच कर एहसास हुआ कि जिस काम के लिए सब्ज़ी मंडी गया था वह तो भूल ही गया। मासूम बच्चे ने घर आ कर माँ से एक बार फिर मार खाई। सारी रात मेरा सर चकराता रहा।

सुबह उठकर फौरन बच्चे के टीचर को कॉल की कि मंडी टाइम हर हालत में मंडी पहुंचें। और वो मान गए। सूरज निकला और बच्चे का स्कूल जाने का वक़्त हुआ और बच्चा घर से सीधा मंडी अपनी नन्ही दुकान का इंतेज़ाम करने निकला। मैने उसके घर जाकर उसकी माँ को कहा कि बहनजी आप मेरे साथ चलो मै आपको बताता हूँ, आप का बेटा स्कूल क्यों देर से जाता है।

वह फौरन मेरे साथ मुंह में यह कहते हुए चल पड़ीं कि आज इस लड़के की मेरे हाथों खैर नही। छोडूंगी नहीं उसे आज। मंडी में लड़के का टीचर भी आ चुका था। हम तीनों ने मंडी की तीन जगहों पर पोजीशन संभाल ली, और उस लड़के को छुप कर देखने लगे। आज भी उसे काफी लोगों से डांट फटकार और धक्के खाने पड़े, और आखिरकार वह लड़का अपनी सब्ज़ी बेच कर कपड़े वाली दुकान पर चल दिया।

अचानक मेरी नज़र उसकी माँ पर पड़ी तो क्या देखता हूँ कि वह बहुत ही दर्द भरी सिसकियां लेकर लगा तार रो रही थी, और मैने फौरन उस के टीचर की तरफ देखा तो बहुत शिद्दत से उसके आंसू बह रहे थे। दोनो के रोने में मुझे ऐसा लग रहा था जैसे उन्हों ने किसी मासूम पर बहुत ज़ुल्म किया हो और आज उन को अपनी गलती का एहसास हो रहा हो।

उसकी माँ रोते रोते घर चली गयी और टीचर भी सिसकियां लेते हुए स्कूल चला गया। बच्चे ने दुकानदार को पैसे दिए और आज उसको दुकानदार ने एक लेडी सूट देते हुए कहा कि बेटा आज सूट के सारे पैसे पूरे हो गए हैं। अपना सूट ले लो, बच्चे ने उस सूट को पकड़ कर स्कूल बैग में रखा और स्कूल चला गया।

आज भी वह एक घंटा देर से था, वह सीधा टीचर के पास गया और बैग डेस्क पर रख कर मार खाने के लिए अपनी पोजीशन संभाल ली और हाथ आगे बढ़ा दिए कि टीचर डंडे से उसे मार ले। टीचर कुर्सी से उठा और फौरन बच्चे को गले लगा कर इस क़दर ज़ोर से रोया कि मैं भी देख कर अपने आंसुओं पर क़ाबू ना रख सका।

मैने अपने आप को संभाला और आगे बढ़कर टीचर को चुप कराया और बच्चे से पूछा कि यह जो बैग में सूट है वह किस के लिए है। बच्चे ने रोते हुए जवाब दिया कि मेरी माँ अमीर लोगों के घरों में मजदूरी करने जाती है और उसके कपड़े फटे हुए होते हैं कोई जिस्म को पूरी तरह से ढांपने वाला सूट नहीं और और मेरी माँ के पास पैसे नही हैं इस लिये अपने माँ के लिए यह सूट खरीदा है।

तो यह सूट अब घर ले जाकर माँ को आज दोगे? मैने बच्चे से सवाल पूछा। जवाब ने मेरे और उस बच्चे के टीचर के पैरों के नीचे से ज़मीन ही निकाल दी। बच्चे ने जवाब दिया नहीं अंकल छुट्टी के बाद मैं इसे दर्जी को सिलाई के लिए दे दूँगा। रोज़ाना स्कूल से जाने के बाद काम करके थोड़े थोड़े पैसे सिलाई के लिए दर्जी के पास जमा किये हैं।

टीचर और मैं सोच कर रोते जा रहे थे कि आखिर कब तक हमारे समाज में गरीबों के साथ ऐसा होता रहेगा उन के बच्चे त्योहार की खुशियों में शामिल होने के लिए जलते रहेंगे आखिर कब तक।

क्या ऊपर वाले की खुशियों में इन जैसे गरीब का कोई हक नहीं ? क्या हम अपनी खुशियों के मौके पर अपनी ख्वाहिशों में से थोड़े पैसे निकाल कर अपने समाज मे मौजूद गरीब और बेसहारों की मदद नहीं कर सकते।

आप सब भी ठंडे दिमाग से एक बार जरूर सोचना ! ! ! !

अगर हो सके तो इस लेख को उन सभी सक्षम लोगो को बताना ताकि हमारी इस छोटी सी कोशिश से किसी भी सक्षम के दिल मे गरीबों के प्रति हमदर्दी का जज़्बा ही जाग जाये और यही लेख किसी भी गरीब के घर की खुशियों की वजह बन जाये।

Source - facebook

एक्स वाई फैक्टर

"एक्स वाई फैक्टर "
प्रसूतिगृह में  परबतिया पलंग पर लेटी हुई थी, मुँह सूखा हुआ था, क्या करे कि सास का ताना न सुनना पड़े, क्योंकि तीसरी भी बेटी हुई है। बड़ी आस थी इस बार सास और पति को, कि इस बार तो बेटा ही होगा,  अब ?
दोनों का ताना सुनने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी, यहाँ दहेज वहेज का चक्कर नहीं था कि सास उसके लिए चिंता करे पर खानदान चलाने वाला तो होना ही चाहिए,
कुछ बातें अनायास दिमाग में कौंध गईं,
अचानक ही चेहरे पर एक स्मित मुस्कान छा गई, आने दो,
ताना तो अब वे सुनेंगे ।
तभी सास कमरे में फटर-फटर चप्पल बजाते हुए प्रविष्ठ हुईं,  अरी फिर आ गई मुँहझौसी,
हाँ अम्मा, फिर आ गई मुँहझौसी,  अब हम तुम्हारे बेटे के संग नहीं  रहेंगे, एक बेटा पैदा करने की भी औकात नहीं,
लगा दी है बेटियों की लाइन,  कितना सोचे थे, कि इस बार तो बेटा होगा, पर ऐसे आदमी से ये सुख कहाँ कि बुढ़ापे को संभालने वाला कोई आ जाये, संभालो अपनी बेटियों को, अब हम नहीं रहेंगे यहाँ,  मायके जाकर दूसरा लगन करेंगे ।
सास अवाक ! , काहे उल्टी गंगा बहा रही है, बिटिया तू पैदा कर रही है, और दोष हमारे बेटवा पर, पगलाय गई है क्या ?
वाह, तो का हम झूठ कह रहीं हैं अम्मा, भूल गईं वो डाक्टर वाली बात, जो वो गांव के शिविर में बता कर गईं थीं, वोई एक्स औऊर वाई वाली बात कि मरद पर ही होता है कि औरत क्या जनेगी, बेटा या बेटी?
अब हम काहे सहे जे तीन-तीन बिटियन का बोझ।
का फायदा ऐसे मरद का जो एक बेटा भी न दे सके ?
सास माथे पर हाथ रख धम्म से वहीं बैठ गई, और परबतिया की मुस्कान छत्तीस इंच वाली,
बेटी को प्यार से देखा, मुस्कायी और मन ही मन कहा,
अभी तुम्हरी अम्मा जिंदा है बिटिया,  अब देखे कोई ताना मार कर
Source - facebook /साधना मिश्रा समिश्रा 

Wednesday, September 26, 2018

टोटका


"आइ आम नोट कंफर्टबल डूयिंग दिस" साक्षी ने बेचैनी से कहा"ओह कम ऑन" प्रेरणा खड़ी 

होती हुई बोली "फॉर अस?""चल ना यार" प्रेरणा का साथ देती हुईमहक भी उठ खड़ी हुई  

"हम सबने इस पर मिलकर फ़ैसला किया था. अब एंड मोमेंटपे हॅंड मत दे यार""यार मेरी क्या 

ज़रूरत है" साक्षी अब भी तैय्यार नही थी "तुम दोनो मिलकर कर लो ना""नही हो सकता यार"  
प्रेरणा ने कहा"मैने पहले भी बताया था कि इसके लिए 3 लड़कियों का होना ज़रूरी है एल्स 

इट्स नोट गॉना वर्क""यू गाइस हॅव सम्तिंग दट यू रियली वॉंट बट मुझे ऐसा कुच्छ नही चाहिए.  
आइ आम हॅपी आंड कॉंटेंट" साक्षी बोलीमहक : ओह कम ऑन डोंट गिव मी दट क्रॅप.  

एवेरिबडी वांट्स सम्तिंग, वन थिंग ओर अनदरसाक्षी : आइ डोंट

प्रेरणा : ओके फाइन देन डू दिस फॉर अस. ऐसे ही कोई विश कर ले. हम दोनो को जो चाहिए 

वो मिल जाएगा और तेरी विश बोनस हो जाएगीथोड़ी देर के लिए तीनो औरतें चुप हो गयी"कुच्छ 

पैसे ही माँग ले यार" थोड़ी देर बाद प्रेरणा बोली "आती लक्ष्मी किसे बुरी लगती है""ओके"  

आख़िर में साक्षी मान गयी"लेट्स गेट इट ओवर वित देन"वो तीनो इस वक़्त प्रेरणा के घर पे थी

नजरिया

खेत में हल जोतते हुए एक किसान को एक चमकीला कांच का टुकड़ा मिला। उसकी चमक को देख कर किसान ने उसे बैल के गले में लटका दिया।
सन्देश : ज्ञान का न होना अभिशाप है।
कुछ दिन बाद उसका एक मित्र एक पर्चुनिया उसके घर आया। किसान ने उससे कुछ मदद मांगी। लाला दयालु था उसने उसे 500 /- की मदद करदी और जब जाने लगा तो बैल के गले में चमकीला कांच का टुकड़ा देख के बोला ये कितने का है। किसान ने उसे बैल के गले से निकाल कर लाला को देते हुए कहा ....... तेरे अहसान से मंहगा नहीं।
सन्देश : दान या अहसान के बदले प्रभु कब आपको क्या दे दे कोई नहीं जानता पर ये व्यर्थ नहीं जाता।
लाला ने वो कांच का टुकड़ा तराजू में बांध दिया।
एक दिन एक जौहरी वहाँ से गुजरा और उस कांच को देखकर समझ गया की ये तो एक बेशकीमती हीरा है।
उसने लाला से जब उसकी कीमत पूँछी तो लाला ने कहा 500 /-का है 1000 /- में बेच दूंगा।
लाला बोला दिमांग ख़राब है इस कांच के तुझे कौन हज़ार देगा 700 /- लेता हो तो बता। लाला ने भी फिल्मी स्टाइल में कह दिया हाहाहा रंगा जो बोलता है उस से इकन्नी भी कम नहीं करता। जोहरी ऐठ के चला गया सोचा कल ले लूंगा।
सन्देश ज्ञान होने पर भी लालच होना ज्ञान के अस्तित्व को ख़त्म कर देता है।
थोड़ी देर बाद ही एक जोहरी उसे खरीद कर ले गया।जब पहला जोहरी अगले दिन आया तो हीरा न देख कर बेहोश हो गया
हीरा खरीदने वाले जोहरी ने वो हीरा ५६ लाख में बेच दिया और घर पर लक्ष्मी ला कर रख दी। फिर वो सोचने लगा इस पैसे से ये करूँगा  वो करूँगा  यहाँ लगाउँगा वहाँ लगाउँगा और वो परेशान रहने लगा नींद गायब चार दिन तक गोलिया खा खा के भी जब उसे नींद नहीं आई तो उसकी पत्नी ने कहा तुम्हे नींद इसलिए नहीं आ रही की तुम्हारे मन में गिल्टी कॉन्शियस है कि तुमने उस लाला से बेईमानी की। ये खुदा का तोहफा तुम अकेले हज़म नहीं कर पाओगे लिहाज़ा आधा उसे भी देदो। जोहरी ने उसकी बात को सिरे से नकार दिया पर जब उसे दो दिन और नींद नहीं आई तो वो पागल सा हो गया।
संदेश : झटके से आया ज़रूरत से ज्यादा पैसा भी दुखदायी होता है
सुबह होते ही उसने 28 लाख़ बैग में डाले और लाला के घर जा कर बैग पटक दिया। और हाथ जोड़ कर बोला लाला ये तेरा हिस्सा तू रख मुझे मेरी नींद देदे। लाला को गश आने ही वाला था की उसकी पत्नी ने उसे सम्हाला और कहा हम ये पैसे नहीं ले सकती। जौहरी हाथ जोड़ कर बोला मेरी माँ मुझे बचाले और चला गया। ,,,,,,,,,संदेश: सुकून जिस भाव भी मिले खरीद लो।
और अब लाला की हालत ख़राब नींद गायब और चैन हहहहहह पर जौहरी उस रात सच में बहुत गहरी नींद सोया।
लाला ने भी दो दिन बाद दुखी होकर १४ लाख किसान को दे दिए और रो कर बोला मुझे नहीं पता था तुझ पर किये गए अहसान की खुदा मुझे इतनी बड़ी कीमत देगा। ,,,,,
सन्देश: दया धर्म ममता करुणा प्रार्थना इन सब की कब तुम्हे क्या कीमत मिल जाये तुम कभी सोच भी नहीं  सकते
किसान स्थितप्रज्ञ था उसने स्थिर भाव से सब कुछ देखा और अगले दिन उस पैसे से खेत खरीदे बैलो का जोड़ा लिया और दुगनी मेहनत से काम पर लग गया। वो आज भी इसे अपनी मेंहनत का भगवान द्वारा दिया गया प्रसाद समझता है।
शेष अनालसिस आप स्वयं करे .......... क्या सही था क्या गलत था उसे ये करना चाहिए था उसे वो करना चाहिए था आप सब का नज़रिया है।
मोनिका

राह मिल गई

#कहानी- राह मिल गई सामान से लदे थैलों के साथ रितु हांफने लगी थी, लेकिन रिक्शा था कि मिलने का नाम ही नहीं ले रहा था. थक-हारकर रितु पास ही के ...