Friday, September 28, 2018

एक्स वाई फैक्टर

"एक्स वाई फैक्टर "
प्रसूतिगृह में  परबतिया पलंग पर लेटी हुई थी, मुँह सूखा हुआ था, क्या करे कि सास का ताना न सुनना पड़े, क्योंकि तीसरी भी बेटी हुई है। बड़ी आस थी इस बार सास और पति को, कि इस बार तो बेटा ही होगा,  अब ?
दोनों का ताना सुनने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी, यहाँ दहेज वहेज का चक्कर नहीं था कि सास उसके लिए चिंता करे पर खानदान चलाने वाला तो होना ही चाहिए,
कुछ बातें अनायास दिमाग में कौंध गईं,
अचानक ही चेहरे पर एक स्मित मुस्कान छा गई, आने दो,
ताना तो अब वे सुनेंगे ।
तभी सास कमरे में फटर-फटर चप्पल बजाते हुए प्रविष्ठ हुईं,  अरी फिर आ गई मुँहझौसी,
हाँ अम्मा, फिर आ गई मुँहझौसी,  अब हम तुम्हारे बेटे के संग नहीं  रहेंगे, एक बेटा पैदा करने की भी औकात नहीं,
लगा दी है बेटियों की लाइन,  कितना सोचे थे, कि इस बार तो बेटा होगा, पर ऐसे आदमी से ये सुख कहाँ कि बुढ़ापे को संभालने वाला कोई आ जाये, संभालो अपनी बेटियों को, अब हम नहीं रहेंगे यहाँ,  मायके जाकर दूसरा लगन करेंगे ।
सास अवाक ! , काहे उल्टी गंगा बहा रही है, बिटिया तू पैदा कर रही है, और दोष हमारे बेटवा पर, पगलाय गई है क्या ?
वाह, तो का हम झूठ कह रहीं हैं अम्मा, भूल गईं वो डाक्टर वाली बात, जो वो गांव के शिविर में बता कर गईं थीं, वोई एक्स औऊर वाई वाली बात कि मरद पर ही होता है कि औरत क्या जनेगी, बेटा या बेटी?
अब हम काहे सहे जे तीन-तीन बिटियन का बोझ।
का फायदा ऐसे मरद का जो एक बेटा भी न दे सके ?
सास माथे पर हाथ रख धम्म से वहीं बैठ गई, और परबतिया की मुस्कान छत्तीस इंच वाली,
बेटी को प्यार से देखा, मुस्कायी और मन ही मन कहा,
अभी तुम्हरी अम्मा जिंदा है बिटिया,  अब देखे कोई ताना मार कर
Source - facebook /साधना मिश्रा समिश्रा 

1 comment:

  1. जी, कहखनी पसंद करने के लिए आभार, पर फेसबुक में यह लेखिका के नाम सहित प्रकाशित हुआ है। यह मेरी अर्थात साधना मिश्रा समिश्रा के द्वारा रचित कहानी है। आशा अपेक्षा यही है कि आप कहानी के साथ लेखिका का नाम भी प्रकाशित करेंगे।धन्यवाद

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