आखिरी शिकार-05



कुझ क्षण राज के मुंह से बोल नहीं फूटा । फिर वह गुस्से से फट पड़ा।

"तो आप" - वह चिल्लाकर बोला - "यह कहना चाहते हैं कि मैं झूठ बोल रहा हूं?"

"मैंने ऐसा कुछ नहीं कहा है ।" - दूसरी ओर से हाई कमीशन के अधिकारी का शान्त स्वर सुनाई दिया - "मैं तो आप पर केवल अपनी तफ्तीश का नतीजा जाहिर कर रहा हूं । सम्भव है जो आप कह रहे हैं वह सच हो लेकिन हालात इसी ओर संकेत कर रहे हैं । आप चूंकि यह स्वीकार नहीं करना चाहते कि आपने प्रधानमन्त्री की प्रेस पार्टी का सदस्य होते हुए इतनी गैरजिम्मेदाराना हरकत की है यानी आप शराब पीकर एक एक्सीडेन्ट का शिकार हो गये हैं और उसी का वजह से इस वक्त अस्पताल में पड़े हैं। हालात से यह जाहिर होता है कि आपने अपने सम्मान की रक्षा की खातिर एक कहानी गढ ली है कि यहां कि पुलिस वाले आपको खामखाह फंसा रहे हैं । मेरे कहने का मतलब यह है कि वर्तमान स्थिति में हम कोई ऐसी आफिशियल शिकायत यहां की पुलिस में दर्ज नहीं करवा सकते कि
आपके साथ यहां की पुलिस द्वारा कोई ज्यादती की गई है।"
राज चुप रहा।

"और आप की सूचनार्थ इस सारी घटना की सूचना प्रधानमन्त्री के निजी सचिव तक पहुंच गई है । उनकी निगाह में आपने एक निहायत गलत हरकत की है और आपने अपने देश और देश के प्रधानमन्त्री के सम्मान को ठेस पहुंचाई है । इस विषय में शायद प्रधानमन्त्री के निजी सचिव
आपसे बात करें।"
सम्बन्ध विच्छेद हो गया ।

राज हताशापूर्ण नेत्रों के हाथ में थमे रिसीवर को देखता रहा । फिर उसने रिसीवर को क्रेडल पर पटक दिया ।
आर्डरली ने टेलीफोन प्लग साकेट में से निकाला और टेलीफोन लेकर कमरे से निकल गया ।

फिर एक नर्स कमरे में प्रविष्ट हुई।

"रात के दो बज गये हैं, मिस्टर राज ।" - वह अपने व्यवसाय सुलभ मधुर स्वर से बोली - "अब आपको आराम करना चाहिये ।" राज बिना प्रतिवाद किये पलंग पर लेट गया ।
नर्स ने उसे कम्बल ओढाया और बिजली का स्विच ऑफ करके कमरे से बाहर निकल गई।

राज ने नेत्र बन्द कर लिये ।
***


अगली कुछ घटनायें बड़ी तेजी से घटीं।

सुबह छः बजे ही प्रधानमन्त्री का निजी सचिव अस्पताल में पहुंच गया। आते ही उसने दो टूक बात की। "तबीयत कैसी है ?" - उसने पूछा।

"ठीक ही मालूम होती है ।" - राज बोला ।

"चल फिर सकते हैं आप?"

"चल फिर कर देखा तो नहीं मैंने लेकिन मेरा ख्याल है कि मैं चल फिर सकता हूं।"

"प्रधानमन्त्री जी आपकी पिछली रात की गैरजिम्मेदाराना हरकत से बहुत नाराज हैं । एक तो आप शराब पी कर कहीं एक्सीडेन्ट कर बैठे
और दूसरे आपने यहां की पुलिस फोर्स को बदनाम करने की कोशिश की । मेरा इतनी सुबह यहां आने का मतलब यह है कि मैं नहीं चाहता कि बात तूल पकड़े, यहां के अखबारों के लिये

आप एक स्कैण्डल बन जायें और आपकी वजह से अन्य भारतीय प्रतिनिधियों पर छींटाकशी हो । आपका सामान आपके होटल के कमरे से एयरपोर्ट पर पहुंचा दिया गया है । एयर इन्डिया की फ्लाइट नम्बर 110 आठ बजे लन्दन से मुम्बई के लिये रवाना हो रही है । मैंने उसमें
आपकी सीट बुक करवा दी है । हाई कमीशन की एक गाड़ी आपको अभी एयरपोर्ट ले जायेगी और मैंने इस बात का इन्तजाम कर दिया है कि प्लेन रखना होने तक अखबार वालों की आप तक पहुंच न हो सके । बाकी बातें भारत पहुंचकर होंगी।"
राज को यूं लगा जैसे सचिव ने आखिरी वाक्य एक धमकी के तौर पर कहा हो ।

राज चुप रहा । कुछ कह पाने की गुंजाइश नहीं थी । प्रधानमन्त्री का निजी सचिव उसे एक अन्य आदमी के हवाले करके वहां से विदा हो गया ।

दूसरे आदमी ने राज को अस्पताल के कपड़े उताकर, अपने कपड़े पहनने में सहायता की। नर्स ने गीले तौलिये से उसका थोड़ा-बहुत हुलिया सुधार दिया, उसे एक इन्जेक्शन दे दिया और कुछ कैप्सूल और गोलियां उसके कोट की जेब में डाल दीं।
"दुर्घटना में मेरे सूट की हालत नहीं बिगड़ी ?" - एकाएक राज बोला । "बिगड़ी थी।" - नर्स बोली- “यह तीन जगह से रफू करवाया गया है और इसे झाड़-पोंछ कर फिर प्रेस किया गया है।"
राज चुप हो गया।

वह दूसरे आदमी के साथ अस्पताल से विदा हो गया।

दूसरा आदमी हाई कमीशन की एक बन्द गाड़ी में उसे एयरपोर्ट पर ले आया ।

प्लेन चलने के समय से केवल पन्द्रह मिनट पहले उसने राज का टिकट उसके हाथ में रखा और गाड़ी का दरवाजा खोल दिया ।
राज चुपचाप कस्टम के बैरियर की ओर बढ़ गया।

उसने अपना फैल्ट हैट अपने सिर पर इस प्रकार जमाया था कि सिर पर बन्धी पट्टी छुप गई।
उसने अपना पासपोर्ट वगैरह चैक करवाया और आगे बढा ।

एकाएक उसकी दृष्टि हवाई पट्टी को एयरपोर्ट की इमारत से अलग करने वाले लोहे के रेलिंग पर पड़ी।

वहां वह आदमी खड़ा था जिसने पिछली रात को अपना नाम इन्सपेक्टर क्राफोर्ड बताया था। उसकी निगाह राज से मिली और उसके चेहरे पर एक इत्मीनान भरी मुस्कराहट उभर आई । उस समय वह एक ट्वीड का सूट
और उसके ऊपर एक लम्बा ओवरकोट पहने था जिसके सामने के सारे बटन खुले हुये थे । उसकी मोटी उंगलियों में एक सिगार बना हुआ था ।
राज को अपनी ओर देखते पाकर उसने अभिवादन के रूप में अपना हाथ हिलाया ।

राज अंगारों पर लोट गया ।

उसने उस ओर से दृष्टि फिरा ली और सीधा प्लेन की ओर बढा।
वह प्लेन में जा बैठा।

ठीक आठ बजे प्लेन हवाई पट्टी पर दौड़ने लगा।

आखिरी क्षण में राज ने प्लेन की खिड़की से बाहर झांका।

वह आदमी अभी भी बैरियर के पास खड़ा सिगार पी रहा था । शायद उसे शक था कि कहीं आखिरी क्षण पर राज प्लेन से उतर न आये |
प्लेन टेक ऑफ कर गया ।

राज ने हैट उतार कर अपनी गोद में रख लिया
और अपनी सीट की पीठ से अपना सिर टिका दिया।


"प्लेन का अगला स्टापेज कौन-सा है ?" - राज ने गैंगवे से गुजरती एयर होस्टेस से हिन्दोस्तानी में पूछा।

"पेरिस ।" - उत्तर मिला।

ठीक नौ बजकर पांच मिनट पर प्लेन पेरिस के ओरली एयरपोर्ट पर उतरा ।

एयर होस्टेस से ही उसे मालूम हुआ था कि वहां प्लेन चालीस मिनट रुकने वाला था ।

पेरिस से प्लेन में कितने ही और यात्री सवार हो गये । एयर होस्टेस उन्हें विभिन्न सीटों की ओर निर्देशित करती रही।

वहां उतरने वाला कोई नहीं था ।

एकाएक राज अपने स्थान से उठा और एयर होस्टेस के समीप पहुंचा।

"आई एम सारी टु बादर यू" - वह बोला - "लेकिन मुझे यहीं उतरना पड़ेगा।"

"लेकिन आप तो हमारे साथ मुम्बई तक जाने वाले थे?" - एयर होस्टेस बोली ।

"जाने वाला था लेकिन अब नहीं जा पाऊंगा।" - राज खेदपूर्ण स्वर से बोला - "मेरे कुछ बहुत महत्वपूर्ण कागजात लन्दन में ही रह गये हैं । मुझे यहीं से फौरन वापिस जाना होगा | भारत के लिये मैं शाम तक कोई दूसरी फ्लाइट पकड़ लूंगा

"ऐज यू विश ।"

"मैं कस्टम पर जा रहा हूं मेरा सामान उतरवा दीजिये ।"

"ओके।"

राज अपना हैट दुबारा अपने सिर पर जमा लिया और एयरपोर्ट की इमारत की ओर बढा । कस्टम से निपटने के बाद वह एयपोर्ट से बाहर निकल गया।

वह ओरली एयरपोर्ट से टैक्सी पर सवार हुआ और सेन्ट्रल बस टरमिनल पर पहुंच गया । वहां से वह एक बस में सवार हो गया । बस नारमंडी के समुद्र तट पर स्थित इलाके शेरबोर्ग तक जाती थी।

लगभग साढे बारह बजे वह शेरबोर्ग पहुंचा । अपना सूटकेस उसने बस टरमिनल के क्लाकरूम में जमा करवा दिया । और ब्रीफकेस हाथ में लटकाये समुद्र तट की ओर बढा ।

अगले दो घन्टों में उसने एक ऐसा मछियारा खोज निकाला जो एक स्टीमर का स्वामी था और जो रात के अन्धकार में इंगलिश चैनल पार करके उसे इंगलैंड के किसी सुनसान समुद्र तट पर छोड़
आने के लिये तैयार था बशर्ते कि उसे एक मोटी रकम एडवांस में दे दी जाती ।

राज ने ऐसा ही किया ।

उसने भोजन किया, बस टरमिनल से अपना सूटकेस लिया और वापिस मछियारे के स्टीमर में पहुंच गया । दिन भर वह स्टीमर में सोया रहा ।
रात के लगभग सात बजे मछियारे ने स्टीमर को पायर से खोला और उसे समुद्र की छाती पर दौड़ा दिया । इंग्लैंड और फ्रांस दोनों देशों की पैट्रोल पुलिस से बचता हुआ वह मछियारा राज को इंग्लैंड में साउथेम्पटन के एक उजाड़ समुद्र तट पर छोड़ गया ।
राज फिर इंग्लैंड में था ।

अपना सूटकेस और ब्रीफकेस सम्भाले लोगों की निगाहों से बचता-बचाता वह रेलवे स्टेशन पर पहुंच गया । वहां वह लन्दन की ओर जाती एक ट्रेन पर सवार हो गया ।

लन्दन रेलवे स्टेशन पर उतर कर वह एक टैक्सी पर सवार हुआ और वोरचेस्टर स्क्वायर पर स्थित कैलवर्ली गैस्ट हाउस के सामने टैक्सी से उतर गया । गैस्ट हाउस में उसे बड़ी सहूलियत से एक कमरा मिल गया । उसने ब्रीफकेस और सूटकेस कमरे में रखा और लगभग फौरन ही बाहर निकल आया।
उसने एक टैक्सी पकड़ी और उस पते पर पहुंच गया जहां पिछली रात वह मिलर के साथ गया था।

राज गली से बाहर ही टैक्सी से उतर गया ।

उसने घड़ी पर दृष्टिपात किया। साढे ग्यारह बज चुके थे।

पथरीले रास्ते से होता हुआ वह उस पुरानी-सी इमारत के सामने पहुंच गया जहां पिछली रात उसे मिलर लाया था ।

उसने धीरे से कालबैल का पुश दबाया और प्रतीक्षा करने लगा। भीतर से कोई उत्तर नहीं मिला। राज ने फिर घन्टी बजायी।
भीतर से किसी प्रकार की आवाज नहीं आई।

राज ने द्वार को धीरे से धक्का दिया।

द्वार थोड़ा-सा खुल गया । वह भीतर से बन्द नहीं था ।

राज सावधानी से भीतर प्रविष्ट हो गया । उसने पीछे द्वार बन्द कर दिया ।
भीतर एकदम अन्धेरा था ।

उसने द्वार के समीप की दीवार को टटोला । शीघ्र ही उसका हाथ बिजली के स्विच से जा टकराया । उसने स्विच ऑन किया लेकिन बिजली नहीं जली।

राज के कोट की जेब में एक फाउन्टेन पैन के आकार की टार्च थी जो वह सदा अपनी जेब में रखता था । उसने टार्च निकाली और उसका स्विच ऑन किया ।

लम्बे गलियारे के निपट अन्धकार में पेन्सिल टार्च का सीमित प्रकाश भी बहुत ज्यादा मालूम हो रहा था ।

राज पेन्सिल टार्च के प्रकाश में सावधानी से गलियारे में आगे बढा ।

वह गलियारे के सिर पर स्थित उस बड़े कमरे में पहुंच गया जहां वह पिछली रात को जान फ्रेडरिक, अनिल साहनी और रोशनी से मिला था | उसने पेन्सिल टार्च के प्रकाश की सहायता से द्वार के बगल में लगा बिजली का स्विच बोर्ड तलाश किया और बारी-बारी उसके सारे स्विच ऑन कर दिये।

कमरे में प्रकाश नहीं हुआ।

शायद मेन स्विच ऑफ था ।

राज कुछ क्षण उलझन में पड़ा अपने स्थान पर खड़ा रहा फिर उसने टार्च का प्रकाश उस बड़े कमरे में चारों ओर घुमाया।
कमरा खाली था।

राज ने कमरे के फर्श पर प्रकाश डाला और फिर उसका मुंह सूखने लगा।

जिन कुर्सियों पर पिछली रात जान फ्रेडरिक, अनिल साहनी और रोशनी बैठे थे उनके पीछे एक मानव शरीर पड़ा था ।

राज सावधानी से आगे बढा ।

कुर्सियों के पीछे पहुंचकर उसने शरीर के चेहरे पर प्रकाश डाला।
वह मिलर था।

मोजर रिवाल्वर की जबरदस्त गोली उसकी छाती को फाड़ती हुई गुजर गई थी। उसी क्षण राज के कानों में किसी की हल्की सी आवाज पड़ी। राज ने फौरन टार्च बुझा दी और एक कुर्सी के पीछे छुपकर द्वार की ओर देखने लगा।
आवाज गलियारे से आई थी।

राज सांस रोके प्रतीक्षा करने लगा।

एक बार फिर खट की आवाज हुई और साथ ही उसे किसी के धीरे-धीरे सांस लेने का स्वर सुनाई दिया।
फिर धीरे से कमरे का द्वार खुला ।

"फ्रेडरिक !" - फिर उसके कानों में एक भर्राया हुआ धीमा लेकिन स्पष्ट विदेशी स्वर पड़ा - "इज दैट यू फ्रेडरिक ?"

"कौन है ?" - राज धीरे बोला । '

आवाज उसके मुंह से निकलने की देर थी कि अन्धकार में एक शोला-सा लपका । साथ ही गोली चलने की आवाज से कमरा गूंज गया । गोली सनसनाती हुई राज के कान के पास से गुजर गई और पीछे दीवार के साथ जा टकराई।

फिर राज को गलियारे में भागते कदमों कीआवाज सुनाई दी।

कुछ क्षण राज स्तब्ध-सा कुर्सी के पीछे छुपा रहा फिर वह बिजली की फुर्ती से अपने स्थान से
उठा और कमरे से बाहर की ओर भागा ।

उसी क्षण उसे बाहर का दरवाजा खुलने और भड़ाक से बंद होने की आवाज सुनाई दी ।

राज तेजी से गलियारे में दौड़ा ।

वह गलियारे के सिर पर पहुंचा और दरवाजा खोलकर बाहर गली में आ गया । '

दूर गली के सिर पर राज को एक साया-सा दिखाई दिया । उसके भागते कदम गली के पथरीले रास्ते से टकराकर रात के सन्नाटे में काफी आवाज पैदा कर रहे थे ।
राज उसके पीछे भागा ।


आखिरी शिकार

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