खजाने
की
तलाश
उन
तीनों के बीच उस वक्त से गहरी
दोस्ती थी जब वे लंगोटी भी
नही पहनते थे.उनमें
से शमशेर सिंह अपने नाम के
अनुरूप भारी भरकम था.
लेकिन
दिल का उतना ही कमज़ोर था.
कुत्ता
भी भौंकता था तो उसके दिल की
धड़कनें बढ़ जाया करती थीं.
हालांकि
दूसरों पर यही ज़ाहिर करता था
जैसे वह दुनिया का सबसे बहादुर
आदमी है.
बाप
मर चुके थे और ख़ुद बेरोजगार
था.
यानि
तंगहाल था.
दूसरा
दुबला पतला लम्बी कद काठी का
रामसिंह था.
इनके
भी बाप मर चुके थे.
और
मरने से पहले अपने पीछे काफी
पैसा छोड़ गए थे.
जिन्हें
जल्दी ही नालाएक बेटे ने
दोस्तों में उड़ा दिया था.
यानी
इस वक्त रामसिंह भी फटीचर था.
और
तीसरा दोस्त देवीसिंह,
जिसके
पास इतना पैसा रहता था कि वह
आराम से अपना काम चला सकता
था.
लेकिन
वह भी अपनेशौक के कारण हमेशा
फक्कड़ रहता था.
उसे
वैज्ञानिक बनने का शौक था.
अतः
वह अपना सारा पैसा लाइब्रेरी
में पुराणी और नई साइंस की
किताबें पढने में और तरह तरह
के एक्सपेरिमेंट पढने में
लगा देता था.
वह
अपने को प्रोफ़ेसर देव कहलाना
पसंद करता था.
यह
दूसरी बात है कि उसके एक्सपेरिमेंट्स
को अधिकतर नाकामी का मुंह
देखना पड़ता था.
मिसाल
के तौर पर एक बार इन्होंने
सोचा कि गोबर कि खाद से अनाज
पैदा होता है जिसे खाकर लोग
तगडे हो जाते हैं.
क्यों
नडायरेक्ट गोबर खिलाकर लोगों
को तगड़ा किया जाए.
एक्सपेरिमेंट
के लिए इन्होंने मुहल्ले के
एक लड़के को चुना और उसे ज़बरदस्ती
ढेर साराभैंस का गोबर खिला
दिया.
बच्चा
तो बीमार होकर अस्पतालपहुँचा
और उसके पहलवान बाप ने प्रोफ़ेसर
को पीट पीट कर उसी अस्पताल
में पहुँचा दिया.
प्रोफ़ेसर
देव उर्फ़देवीसिंह को एक शौक
और था.
लाइब्रेरी
में ऐसी पुरानी किताबों की
खोज करना जिससे किसी प्राचीन
छुपे हुए खजाने का पता चलता
हो.
इस
काम में उनके दोनों दोस्त भी
गहरी दिलचस्पी लेतेथे.
कई
बार इन्हें घरके कबाड़खाने
से ऐसे नक्शे मिले जिन्हें
उनहोंने किसी पुराने गडे हुए
खजाने का नक्शा समझा.
बाद
में पता चला कि वह घर में बिजली
की वायेरिंग का नक्शा था.
एक दिन शमशेर सिंह और रामसिंह बैठे किसी गंभीर मसले पर विचार विमर्श कर रहे थे. मामले की गंभीरता इसी से समझी जा सकती थी की दोनों चाये के साथ रखे सारे बिस्किट खा चुके थे लेकिन प्यालियों में चायेज्यों की त्यों थी. उसी वक्त वहां देवीसिंह ने प्रवेशकिया. उसके चेहरे से गहरी प्रसन्नता झलकरही थी."क्या बात है प्रोफ़ेसर देव, आज काफी खुश दिखाई दे रहे हो. क्या कोई एक्सपेरिमेंट कामयाब हो गया है?" रामसिंह ने पूछा."शायेद वो वाला हुआ है जिसमें तुम बत्तख के अंडे से चूहे का बच्चा निकालने की कोशिश कर रहे हो." शमशेर सिंह ने अपनी राय ज़ाहिर की."ये बात नहीहै. वो तो नाकाम हो गया. क्योंकि जिस चुहिया को अंडा सेने के लिए दिया था उसने उसको दांतों से कुतर डाला. अब मैंने उस नालायेक को उल्टा लटकाकर उसके नीचे पानी से भरी बाल्टी रख दी है. क्योंकि मैं ने सुना है कि ऐसा करने पर चूहे एक ख़ास एसिड उगल देते हैं जिसको चांदी में मिलाने पर सोना बन जाता है."
"फिर
तुम दांत निकालनिकाल कर इतना
खुश क्यों हो रहे हो?"
शमशेर
सिंह ने पूछा.
"बात ये है कि इस बारमैं ने छुपा खजाना ढूंढ लिया है."
"क्या?" दोनों ने उछालने की कोशिश में प्यालियों कि चाए अपने ऊपर उँडेल ली. अच्छा ये हुआ कि चाए अब तक ठंडी हो चुकी थी.
"हाँ. मैं ने एक ऐसा खजाना ढूँढ लिया है जो आठ सौ सालों से दुनिया की नज़रों से ओझल था. अब मैं उसको ढूँढने का गौरव हासिल करूंगा." प्रोफ़ेसर अपनी धुन में पूरे जोश के साथ बोल रहा था.
"करूंगा? यानी तुमनेअभी उसे प्राप्त नही किया है." शमसेर सिंह ने बुरा सा मुंह बनाया.
"समझो प्राप्त कर हीलिया है. क्योंकि मैं ने उसके बारे में पूरी जानकारी नक्शे समेत हासिल कर ली है."
"कहीं वह शहर के पुराने सीवर सिस्टमका नक्शा तो नही है?"रामसिंह ने कटाक्ष किया.
"ऐसे नक्शे तुम ही को मिलते होंगे." प्रोफ़ेसर ने बुरा मानकर कहा, "यह नक्शा मुझे एक ऐसी लाइब्रेरी से मिला है जहाँ बहुत पुरानी किताबें रखीहैं. पहले तुम ये किताब देख लो, फिर आगे मैं कुछ कहूँगा."कहते हुए देवीसिंह ने एक किताब उसकी तरफ़ बढ़ा दी. किताब बहुत पुरानी थी. उसके पन्ने पीले होकर गलने की हालत में पहुँच गए थे.
"यह किताब तो किसी अनजान भाषा में लिखी है."
"बात ये है कि इस बारमैं ने छुपा खजाना ढूंढ लिया है."
"क्या?" दोनों ने उछालने की कोशिश में प्यालियों कि चाए अपने ऊपर उँडेल ली. अच्छा ये हुआ कि चाए अब तक ठंडी हो चुकी थी.
"हाँ. मैं ने एक ऐसा खजाना ढूँढ लिया है जो आठ सौ सालों से दुनिया की नज़रों से ओझल था. अब मैं उसको ढूँढने का गौरव हासिल करूंगा." प्रोफ़ेसर अपनी धुन में पूरे जोश के साथ बोल रहा था.
"करूंगा? यानी तुमनेअभी उसे प्राप्त नही किया है." शमसेर सिंह ने बुरा सा मुंह बनाया.
"समझो प्राप्त कर हीलिया है. क्योंकि मैं ने उसके बारे में पूरी जानकारी नक्शे समेत हासिल कर ली है."
"कहीं वह शहर के पुराने सीवर सिस्टमका नक्शा तो नही है?"रामसिंह ने कटाक्ष किया.
"ऐसे नक्शे तुम ही को मिलते होंगे." प्रोफ़ेसर ने बुरा मानकर कहा, "यह नक्शा मुझे एक ऐसी लाइब्रेरी से मिला है जहाँ बहुत पुरानी किताबें रखीहैं. पहले तुम ये किताब देख लो, फिर आगे मैं कुछ कहूँगा."कहते हुए देवीसिंह ने एक किताब उसकी तरफ़ बढ़ा दी. किताब बहुत पुरानी थी. उसके पन्ने पीले होकर गलने की हालत में पहुँच गए थे.
"यह किताब तो किसी अनजान भाषा में लिखी है."
--------समाप्त----------
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