इस कहानी के सभी पात्र और घटनाये काल्पनिक हैं, जिसका वास्तविक जीवन से कोई सम्बन्ध नहीं है। यह कहानी अंतर्जाल से संकलित है, यदि इसके मूल लेखक को इस रचना को यह प्रकाशित करने पर कोई आपत्ति होगी तो इसे इस ब्लॉग से हटा दिए जायेगा।
टेलीफोन की घन्टी
घनघना उठी।
राज ने हाथ
बढाकर रिसीवर उठा
लिया । "हैलो
।" - वह माउथपीस
में बोला ।
“मिस्टर राज !" - लगभग फौरन
उसे दूसरी ओर
से एक सशंक
ब्रिटिश स्वर सुनाई
दिया । “
यस ?" - राज बोला।
"मैं लन्दन में आपका
स्वागत करता हूं।"
- दूसरी ओर से
आवाज आई।
राज के कान
खड़े हो गये
। कनर्ल मुखर्जी
ने भारत में
उसे जिस संभावित
वार्तालाप के विषय
में बताया था,
वह उस वार्तालाप
का प्रथम वाक्य
था।
"धन्यवाद ।" - राज भावहीन
स्वर से बोला
- "लेकिन लन्दन में मेरा
स्वागत करने के
अतिरिक्त
और क्या कर
सकते हो?"
"मैं बहुत कुछ
कर सकता हूं,
सर ।" –उत्तर
मिला - "जैसे मैं
आपको लन्दन का
वह चेहरा दिखा
सकता हूं जो
बहुत कम लोगों
ने बहुत कम
बार देखा है।"
वार्तालाप ठीक उसी
ढंग से चल
रहा था जैसा
कर्नल मुखर्जी ने
उसे संकेत दिया
था ।
"बदले में मुझे
क्या करना होगा
?" - राज ने पूछा
। उसका वह
प्रश्न भी कोडवर्ड
की तरह इस्तेमाल
होने वाले उस
वार्तालाप का एक
अंश था
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