फरीदाबाद की घटना
यह घटना वर्ष 2009 मार्च के महीने की है। होली बीत चुकी थी, और मैं शमा जी के साथ नान करने हेतु हरियाणा गया था। मुझे याद है कि उस साल होली 12 तारीख को थी। हम दोनों हरियाणा 14 तारीख को पहुंचे और अपने गुप्त स्थान पर पहुंचे, जो हरियाणा से 9 किलोमीटर स्थित था। हम शाम को वहाँ पहुंचे थे। खैर, अगले दिन सुबह-सुबह, हमने नान किया और हंसी-ठिठोली की। फिर वहीं से वापस बस अड्डे तक आ गए, दिल्ली की बस पकड़ी और हम शाम तक वापस आ गए।
उस रात मैं शमा जी के निवास स्थान पर ही ठहरा, रात को भोजन किया और सोने चले गए। सुबह-सुबह नानादि पाठ चाय-नाश्ता किया और शमा जी के साथ मैं अपने गंतव्य की ओर रवाना हो गया। तभी शमा के फोन की घंटी बजी। उनके एक परिचित का फोन था। उन्होंने फोन पर बात करनी शुरू की और यही कोई 5-7 मिनट तक बात करते रहे। शमा जी अपनी ही गाड़ी लेकर आए थे, तो फोन करते समय उन्हें अपनी गाड़ी रोकनी पड़ी। अब बात खत्म होते ही उन्होंने गाड़ी आगे बढ़ा दी।
शमा जी ने मुझसे कहा, "गु जी, मेरे एक रिश्तेदार हैं फरीदाबाद में, वही का फोन था। कह रहे थे कि उनकी पत्नी की होली के एक दिन पहले से ही तबियत खराब है। उनके छोटे बेटे ने अपनी माँ को बिस्तर पर बेहोश पाया था। उसने अपने पिता को फोन किया, जब वे आए तो उनकी पत्नी बेहोश पड़ी मिली। उन्होंने तुरंत अपनी गाड़ी से अपनी पत्नी को वहां के एक अस्पताल में पहुंचाया। रात भर वह वहीं रही और सुबह के समय यही कोई 6 बजे उन्हें होश आया, लेकिन अब वह बिल्कुल भावशून्य हैं और न तो किसी को पहचान रही हैं और न ही कुछ बात कर रही हैं। उन्हें लगता है कि कोई ऊपरी चढ़ाई है।"
"डॉक्टर क्या कहते हैं?" मैंने पूछा।
"ये तो मैंने नहीं पूछा, अगर आप कहें तो मैं उनसे पूछूं?" शमा जी ने कहा।
"नहीं, रहने दो। एक काम करते हैं, आप उनसे ये कहो कि हम फरीदाबाद आ रहे हैं, वो हमें कहाँ मिलेंगे, ये बताएं," मैंने बोला।
शमा जी ने फोन पर अपने रिश्तेदार का नंबर डायल किया और बात शुरू कर दी। कोई 2-3 मिनट ही बात हुई होगी, शमा जी बोले, "गु जी, वो अपने घर पर ही हैं और उनकी पत्नी भी घर पर हैं।"
"ठीक है, आप गाड़ी अब फरीदाबाद की तरफ मोड़ लो," मैंने कहा।
और शमा जी ने अपनी गाड़ी फरीदाबाद की तरफ मोड़ ली।
रास्ते में मैंने पूछा, "शमा जी, आपके ये रिश्तेदार क्या करते हैं?"
शमा जी ने जवाब दिया, "पुलिस में इंस्पेक्टर हैं, नाम दिनेश है। रहने वाले तो रोहतक के हैं, लेकिन उनकी पोस्टिंग यहीं है। उन्हें यहाँ कोई 2 साल हो गए हैं।"
"अच्छा, अच्छा," मैंने कहा।
दिल्ली से फरीदाबाद कोई दूर नहीं है, लेकिन सड़क पर इतना यातायात होता है कि आधे घंटे में बामुश्किल 1 किलोमीटर की ही दूरी तय होती है। करीबन 2 घंटे के बाद हम फरीदाबाद में दाखिल हो गए। दिनेश परिवार सहित फरीदाबाद में रहते थे, तो हम उनके पास उनके घर चले गए। घर पर हमें दिनेश नहीं मिले, हाँ उनका छोटा बेटा मिला। पता चला कि उनकी माता जी की तबियत अचानक बिगड़ गई है, खून की उल्टियां हो रही हैं, इसलिए पापा उन्हें अस्पताल ले गए हैं।
"कितनी देर पहले की बात है ये बेटे?" शमा जी ने पूछा।
"कोई 20-25 मिनट ही हुए हैं अंकल जी," वो लड़का बोला।
"कौन से अस्पताल ले गए हैं?" शमा जी ने पूछा।
"भागवती अस्पताल, कोई 1 किलोमीटर दूर होगा यहाँ से," लड़का बोला।
"रास्ता बताओगे बेटे ज़रा?" शमा जी ने पूछा।
और लड़के ने हमें रास्ता बता दिया।
हम उसके बताए हुए रास्ते पर चल पड़े। बेहद भीड़ वाला इलाका था वो। किसी तरह से हम उस अस्पताल के पास पहुंचे, गाड़ी पार्क की और बाहर आ गए। अस्पताल के मेन गेट की तरफ बढ़ने से पहले शमा जी ने दिनेश को फोन लगाया। फोन बजा ज़रूर लेकिन उठाया नहीं गया, तब हमें अस्पताल के अंदर जाना पड़ा।
मैं अमूमन कभी किसी अस्पताल या नर्सिंग होम में नहीं घुसता, लेकिन यह शमा जी के रिश्तेदार की बात थी, तो मुझे जाना ही पड़ा। अंदर जाकर शमा जी रिसेप्शन पर गए, मालूम किया और फिर मेरे पास आए। मैं वहीं रखी कुर्सी पर बैठ गया था। शमा जी ने कहा कि वो अभी दिनेश जी के पास जा रहे हैं और अभी थोड़ी देर में आते हैं, ऐसा कहकर वो चले गए।
करीबन 20 मिनट के बाद शमा जी दिनेश के साथ आए। दिनेश ने नमस्कार किया और बाहर आने का आमंत्रण दिया। मैं उठकर बाहर आ गया। दिनेश ने बताया कि डॉक्टर ने उन्हें दिमागी बुखार बताया है और अब वो उनकी पत्नी को 3-4 दिन के लिए एडमिट रखेंगे, और कोई खास बात नहीं है। और न ही मैं उनकी पत्नी को देख सका। जो कुछ मालूम पड़ता, दिनेश ने बताया कि वो इंटेंसिव केयर यूनिट में हैं, मिलना संभव नहीं है।
और फिर हमारे पास वापस आने का कोई चारा शेष नहीं बचा था। शमा जी ने दिनेश से कुछ देर बात की और मेरी तरफ आए। गाड़ी पार्किंग में से निकाली और मैं गाड़ी में बैठ गया। शमा जी बोले, "दिनेश कह रहा था, कि जैसे ही उनकी पत्नी को छुड़ती है वो फोन पर इत्तला दे देंगे।"
"ठीक है, कोई बात नहीं, वो ठीक हो जाए, यही बेहतर है," मैंने सिगरेट का धुआं छोड़ते हुए ऐसा कहा।
और फिर शमा जी और मैं अपने गंतव्य की ओर निकल पड़े।
अभी 2 ही दिन बीते थे, कि शमा जी के पास दिनेश का फोन आया कि उनकी पत्नी को छुड़ती मिली थी और वो उन्हें अपने घर ले आए थे। लेकिन अब उनकी पत्नी वैसे तो ठीक थी लेकिन अस्पताल से आने के बाद लगातार रो रही थी, कभी-कभार अपने पति को भी गाली देकर बात कर रही थी, यहाँ तक कि अपने दोनों बेटों को भी गाली दे रही थी। यह बात विचित्र थी, ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था। वहाँ अवश्य कुछ गड़बड़ थी। शमा जी लगभग 2 बजे मेरे पास आ गए, और मुझे सब कुछ विस्तार से बता दिया।
हम आज ही निकलना था। शमा जी गाड़ी लेकर आए थे, सो हमने देर नहीं की और फरीदाबाद की तरफ चल दिए। साढ़े 4 बजे हम वहाँ पहुँच गए। दिनेश बेचैनी से हमारा इंतज़ार कर रहे थे। वो हमें वहीं बाहर खड़े ही मिले गए। 1-2 पुलिस वाले भी वहाँ खड़े थे। खैर, मैंने कहा कि दिनेश और शमा जी मेरे साथ उनकी पत्नी के कमरे में चलें, और कोई भी न हो। उन्होंने ऐसा ही किया। अब कमरे में उनकी पत्नी अकेले ही लेटी हुई थी। सर पर हाथ रखे वो रो रही थी। हमारे कमरे में जाते ही वो चुप हो गई और आँख फाड़ के कभी मेरी तरफ और कभी दिनेश की तरफ देखने लगी। उन्होंने चिल्लाकर दिनेश से कहा, "कमीने, मुझे मरवाने के लिए इसे यहाँ लेके आया है?" और ये कहते हुए वो बिस्तर से उठी और दिनेश की तरफ बढ़ी। मैं समझ गया कि वो दिनेश पर वार करने वाली है, मैंने तुरंत हस्तक्षेप किया, मैंने पढ़ा और उनकी पत्नी को वापस धक्का देकर बिस्तर पर गिरा दिया, दिनेश के तो होश उड़ गए!
मैंने दिनेश को समझाया, "घबराओ मत," और उन्हें पीछे खड़े होने को कहा।
"ओये सुन, तू क्या करने आया है यहाँ? मैं इसको नहीं छोड़ूँगी, इस हरामजादे को नहीं छोड़ूँगी, सबको मार दूँगी," ये कहकर वो हंसने लगी।
मैं आगे बढ़ा और एक जोर का थप्पड़ उसके मुँह पर दे मारा, वो चुप हो गई। मैंने मंत्रणा शुरू की, और उसके बाल पकड़ लिए, और मैंने पूछा, "कौन है तू? कहाँ से आई है? इसको यूँ तंग कर रही है?"
उसने कोई जवाब नहीं दिया, चुप बैठी रही। मैंने एक और थप्पड़ दिया, अब वो बोली, "पहले मारना तो बंद कर, तब बताऊँगी।"
मैंने छोड़ दिया, अब भी वो चुप ही बैठी थी। मैंने चिल्लाया, "बोलना शुरू अब।"
उसने अब बोलना शुरू किया, "इस हरामजादे को यहाँ बुलाओ, कमीना कहकर।"
उसने दिनेश की तरफ इशारा करते हुए कहा।
मैंने और शमा जी ने दिनेश को देखा, वो डर गया था बहुत। शमा जी ने उसका हाथ पकड़ा और उसे आगे लाए। उनकी पत्नी भी बिस्तर पर आगे बढ़ी और बोली, "मुझे जानता है मैं कौन हूँ?"
"आप मेरी पत्नी हो, मैं तो यही कांटा हूँ," कांपते कांपते वो बोला।
वो जोर से हंसी, और बोली "कमीने, मैं बताती हूँ कि मैं कौन हूँ!"
अब उनकी पत्नी ने पछाड़ खाई और दुबारा उठकर खड़ी हो गई। अबकी उसकी आवाज़ बदल गई थी, "पहचाना मुझे?" वो चिल्लाई।
"नहीं, मैं नहीं पहचानता," दिनेश बोला।
"सितंदर यादव को जानता था तू?" ये सुनकर दिनेश थर-थर कांपने लगा!
"बोल????????? जानता था?" वो गुर्राकर बोली।
"हाँ, हाँ...............मैं...........जानता........था," दिनेश के गले से लार सी फूटने लगी थी अब, वो घबरा के बोला।
"अब तू बतायेगा आगे की कहानी या मैं बताऊँ इनको?" वो चिल्लाई।
दिनेश के मुँह से शब्द नहीं निकल पा रहे थे, लेकिन मैं और शमा जी वो 'कहानी' सुनने को उत्सुक थे, बहुत उत्सुक!
"ये कम की औलाद या बताएगा? मैं बताती हूँ," उसने मुझे घूरते हुए कहा।
मैंने कहा, "हाँ बोल, मैं भी सुनूँगा।"
दिनेश की पत्नी ने कहना शुरू किया, "मेरा नाम गीता है, मेरे पिता का नाम सितंदर यादव था। मेरे पिता का व्यवसाय प्रॉपर्टी डीलिंग का था। उन्होंने यह व्यवसाय अपने एक रिश्तेदार के साथ मिलकर किया था। एक बार एक ज़मीन पर मेरे पिता का अपने पार्टनर से किसी विषय पर विवाद हो गया। यह विवाद आपसी झगड़े में और बाद में रंगदारी में बदल गया। ये दोनों अलग-अलग हो गए थे, लेकिन मेरे पिता के अनुसार उनके उस रिश्तेदार में मुनाफे की वो रकम जो 10 लाख रुपए बनती थी, मेरे पिता को अदा नहीं की थी। यही नहीं, वो ज़मीन जो इन दोनों ने मिलकर खरीदी थी, वो ज़मीन भी मेरे पिता के रिश्तेदार ने जाली हस्ताक्षर द्वारा अपने नाम करा ली थी, जिसकी कीमत 60 लाख से ऊपर थी। जब मेरे पिता को यह पता चला तो उन्होंने अपने रिश्तेदार से इस बाबत पूछा, उसने आनाकानी की और बात बढ़ते-बढ़ते झगड़े तक आ गई। दोनों अलग हो गए। मेरे पिता का सारा पैसा उसी ज़मीन में लग चुका था।
एक दिन ऐसा आया कि हमारे पास खाने के लाले तक पड़ गए। मेरे एक बेटी है, राधिका, वो अपनी पढ़ाई पूरी कर चुकी थी, और हम उसके रिश्ते की बात चला रहे थे, रिश्ता भी हो गया था। और फिर एक दिन ये दिनेश हमारे घर पर आया। इनके रिश्तेदार का कह मर्डर हो गया था। उसी सिलसिले में ये दिनेश मेरे पिता को घर से उठा के ले गया। आनन-फानन में केस बनाया और मेरे पिता को जेल भेज दिया। इस दिनेश ने इसके एवज में दूसरी पार्टी से 5 लाख रुपए लिए थे। मुझ पर तो जैसे पहाड़ टूट पड़ा था। मैं लगातार थाने और कोर्ट के चक्कर लगा रही थी। मेरे भाई मेरी मदद कर रहे थे, उन्होंने एक वकील किया और मेरे पिता की जमानत के लिए अर्जी दी। उसी सिलसिले में मेरे भाई की मुलाकात इसी दिनेश से कोर्ट में हुई। इस दिनेश ने कहा कि अगर तुम 3 लाख रुपए खर्च कर सको तो जमानत हो जाएगी। मेरे पास तो पैसा था भी नहीं, और मेरे भाई भी इतना पैसा नहीं इकट्ठा कर सकते थे। फिर भी मैंने अपने जेवर आदि बेचकर 3 लाख रुपए इकट्ठा कर लिए। इस कमीने ने वो पैसा भी खा लिया लेकिन जमानत नहीं हो सकी। आखिर 6 महीने बाद मेरे पिता की जमानत मंजूर हुई और वो जेल से बाहर आए। मैंने सारी बात उन्हें बताई, उन्होंने माथा पीट लिया और बोले कि अब ये पैसा भी वापस नहीं आएगा। मेरे पिता टूट चुके थे, हिम्मत हार चुके थे। बेटी की शादी सर पर थी, एक तो वैसे ही कर्ज़ चुकाने हो रही थी, लेकिन मेरी बेटी के ससुराल वाले समझदार थे। वो समझ रहे थे कि आखिर ऐसा यूँ हुआ था। एक तो इसने मेरे पिता को झूठे केस में फंसाया, हमारा पैसा भी खा लिया, ऊपर से बेटी की शादी की चिंता। जमा-पूंजी खर्च हो चुकी थी, सब कुछ इसकी वजह से हुआ था। और फिर आज से 22 दिन पहले मेरी मौत बीमारी के चलते हो गई। मैंने अपने पिता का बदहवास चेहरा देखा था, वो बेचारा बिना किए सजा पा रहा है, सिर्फ इस कमीने की वजह से। इसने हमें बर्बाद कर दिया, और अब मैं इसको बर्बाद कर दूँगी," वो दिनेश की तरफ इशारा करते हुए बोली।
ये सुनकर मुझे बेहद अफसोस हुआ। मैंने दिनेश को अपने पास बुलाया और पूछा, "क्या ये सच कह रही है?"
दिनेश के होश उड़ चुके थे, वो अब थर-थर कांप रहा था। "उसने रोते हुए कहा कि हाँ ये सच कह रही है," वो सिसकियाँ ले रहा था।
मेरा मन तो कर रहा था कि मैं गीता को जो वो करने जा रही है, वो करने दूँ, लेकिन इससे न तो गीता का भला होगा, न दिनेश का, न सितंदर का और न ही उस लड़की राधिका का, जिसकी शादी होने में अब 3 महीने बाकी थे। एक घटिया इंसान के ज़रा से लालच ने एक परिवार पूरी तरह से तबाह कर दिया था।
मैंने गीता से कहा, "गीता, अगर 3 लाख रुपए वो और 5 लाख रुपए वो और 2 लाख अगर ये खुद दे, कुल रकम 10 लाख, अगर ये रकम तुम्हारे पिता सितंदर को दी जाए, और साथ ही साथ तुम्हारे पिता की बेगुनाही साबित करने के लिए अगर दिनेश मदद करने का वादा करे तो क्या ये संभव है? क्या तुम इसको माफ कर दोगी? अब जो होना था वो हो चुका है, वो वापस नहीं आ सकता।"
"ये कमीने ऐसा करेगा क्या?" उसने गुस्से से पूछा।
अब एक बार मैंने सवाल शमा जी से पूछा, "बोलो शमा जी? क्या ये दिनेश को मंजूर है?"
शमा जी मुड़े और दिनेश से बोले, "बोल भाई, मंजूर है ये?"
"जी हाँ, मुझे मंजूर है, मैं ऐसा कर दूँगा।"
"सुना गीता, ये ऐसा कर देगा," मैंने गीता से कहा।
"कब तक, मुझे इस पर यकीन नहीं है," वो फिर चिल्लाई और रोने लगी।
शमा जी ने कहा, "देख भाई दिनेश, अब एक बात साफ है, तुमने गलती की, अब सजा भुगतो। अब तुम ऐसा कब तक करोगे?"
"मैं आज ही कर दूँगा," दिनेश बोला।
"ठीक है, तुम पैसा इकट्ठा कर और यहाँ ला," शमा जी थोड़ा जोर से बोले।
दिनेश थोड़ी ही देर में कुल रकम ले आया, मैंने वो रकम गीता के हाथ में रख दी, और कहा, "ले गीता, ये ले रकम, मैं आज ही ये रकम सितंदर तक पहुंचा दूँगा, और वादा करता हूँ वो केस भी खत्म करवा दूँगा।"
"ठीक है, अगर ये ज़रा सा भी अपनी बात से फिर, तो वादा कर तू यहाँ नहीं आएगा, मैं जो करूँगी तू नहीं रोकेगा," वो ऊँची गली दिखाकर बोली।
"मैं नहीं रोकूँगा, मैं वादा करता हूँ। अब तुम ये बताओ कि सितंदर कहाँ है? पता बताओ?" मैंने पूछा।
गीता ने पता बता दिया, शमा जी और दिनेश तुरंत ही गाड़ी लेकर वहाँ चल दिए। मैं वहाँ से उठा और गीता का दरवाजा बाहर से बंद कर दिया, और दूसरे कमरे में आकर सारे घटना पर विचार करने लगा। कितना गलत हुआ था सितंदर पर, इस पैसे के लालच ने इंसानियत को खत्म कर दिया है। बेहद अफसोस की बात है। कोई और होता तो दिनेश से मोटी रकम वसूलता और गीता को कैद करके बांध देता, और ये नाइंसाफी ऐसे ही ज़िंदा रहती। इंसाफ का गला घोट दिया जाता, लेकिन मैंने अपने दादा जी, मेरे गुरु जी को दिया हुआ वचन निभाया था। मैंने वही किया जो उचित था। मैंने मन से अपने दादा जी का धन्यवाद किया और सादर नाम भी!
करीब डेढ़ घंटे के बाद शमा जी और दिनेश जी वापस आ गए थे, साथ में सितंदर भी आया था। ये और अच्छा हुआ था। आगे की कहानी मैं आपको बता नहीं सकता। दिनेश की पत्नी बिलकुल ठीक हो गई थी और गीता हमेशा के लिए विदा हो चुकी थी।
इंसाफ हो गया था।
 
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