टेलीफोन की घन्टी घनघना उठी।
राज ने हाथ बढाकर रिसीवर उठा लिया । "हैलो ।" - वह माउथपीस में बोला ।
“मिस्टर राज !" - लगभग फौरन उसे दूसरी ओर से एक सशंक ब्रिटिश स्वर सुनाई दिया । “
यस ?" - राज बोला।
"मैं लन्दन में आपका स्वागत करता हूं।" - दूसरी ओर से आवाज आई।
राज के कान खड़े हो गये । कनर्ल मुखर्जी ने भारत में उसे जिस संभावित वार्तालाप के विषय में बताया था, वह उस वार्तालाप का प्रथम वाक्य था।
"धन्यवाद ।" - राज भावहीन स्वर से बोला - "लेकिन लन्दन में मेरा स्वागत करने के अतिरिक्त
और क्या कर सकते हो?"
"मैं बहुत कुछ कर सकता हूं, सर ।" –उत्तर मिला - "जैसे मैं आपको लन्दन का वह चेहरा दिखा सकता हूं जो बहुत कम लोगों ने बहुत कम बार देखा है।"
वार्तालाप ठीक उसी ढंग से चल रहा था जैसा
कर्नल मुखर्जी ने उसे संकेत दिया था ।
"बदले में मुझे क्या करना होगा ?" - राज ने पूछा । उसका वह प्रश्न भी कोडवर्ड की तरह इस्तेमाल होने वाले उस वार्तालाप का एक अंश
था
।
"कुछ भी नहीं ।" - उत्तर मिला - "आप केवल आज की रात कुछ समय के लिये लन्दन में अपने आपको मेरे हवाले कर दीजिये । अगर आप जो सोच रहे हैं, वही न हुआ तो मैं समझंगा कि मुझ में एक अच्छा अभ्यागत बनने का गुण नहीं है और मैं आपका वक्त बरबाद करने के लिये आपसे माफी मांग लूंगा।"
"ठीक है | आ जाओ।"
"सॉरी, सर । आप आ जाइये ।"
"कहां?"
"आप अपने होटल से बाहर निकलिये और दायीं ओर फुटपाथ पर रवाना हो जाइये । सौ कदम आगे फुटपाथ पर एक टेलीफोन बूथ है । आप वहां मेरी प्रतीक्षा कीजिये, मैं कार लेकर हाजिर हो जाऊंगा।"
“मैं तुम्हें पहचानूंगा कैसे?"
"मेरी काले रंग की फोर्ड गाड़ी से और मेरे हैट के लाल रंग के रिबन से जिसमें एक पंख खुंसा होगा
"ओके । मैं आता हूं।"
“थैक्यू, सर ।"
सम्बन्ध विच्छेद हो गया ।
राज ने रिसीवर क्रेडल पर रख दिया ।
राज ने हाथ बढाकर रिसीवर उठा लिया । "हैलो ।" - वह माउथपीस में बोला ।
“मिस्टर राज !" - लगभग फौरन उसे दूसरी ओर से एक सशंक ब्रिटिश स्वर सुनाई दिया । “
यस ?" - राज बोला।
"मैं लन्दन में आपका स्वागत करता हूं।" - दूसरी ओर से आवाज आई।
राज के कान खड़े हो गये । कनर्ल मुखर्जी ने भारत में उसे जिस संभावित वार्तालाप के विषय में बताया था, वह उस वार्तालाप का प्रथम वाक्य था।
"धन्यवाद ।" - राज भावहीन स्वर से बोला - "लेकिन लन्दन में मेरा स्वागत करने के अतिरिक्त
और क्या कर सकते हो?"
"मैं बहुत कुछ कर सकता हूं, सर ।" –उत्तर मिला - "जैसे मैं आपको लन्दन का वह चेहरा दिखा सकता हूं जो बहुत कम लोगों ने बहुत कम बार देखा है।"
वार्तालाप ठीक उसी ढंग से चल रहा था जैसा
कर्नल मुखर्जी ने उसे संकेत दिया था ।
"बदले में मुझे क्या करना होगा ?" - राज ने पूछा । उसका वह प्रश्न भी कोडवर्ड की तरह इस्तेमाल होने वाले उस वार्तालाप का एक अंश
था
।
"कुछ भी नहीं ।" - उत्तर मिला - "आप केवल आज की रात कुछ समय के लिये लन्दन में अपने आपको मेरे हवाले कर दीजिये । अगर आप जो सोच रहे हैं, वही न हुआ तो मैं समझंगा कि मुझ में एक अच्छा अभ्यागत बनने का गुण नहीं है और मैं आपका वक्त बरबाद करने के लिये आपसे माफी मांग लूंगा।"
"ठीक है | आ जाओ।"
"सॉरी, सर । आप आ जाइये ।"
"कहां?"
"आप अपने होटल से बाहर निकलिये और दायीं ओर फुटपाथ पर रवाना हो जाइये । सौ कदम आगे फुटपाथ पर एक टेलीफोन बूथ है । आप वहां मेरी प्रतीक्षा कीजिये, मैं कार लेकर हाजिर हो जाऊंगा।"
“मैं तुम्हें पहचानूंगा कैसे?"
"मेरी काले रंग की फोर्ड गाड़ी से और मेरे हैट के लाल रंग के रिबन से जिसमें एक पंख खुंसा होगा
"ओके । मैं आता हूं।"
“थैक्यू, सर ।"
सम्बन्ध विच्छेद हो गया ।
राज ने रिसीवर क्रेडल पर रख दिया ।
उसने ओवरकोट पहना, सिर पर फैल्ट हैट जमाया और कमरे से बाहर निकल आया ।
वह डोवर स्ट्रीट पर स्थित होटल क्राउन में ठहरा हुआ था।
वह होटल से बाहर निकल आया और दायीं ओर फुटपाथ पर आगे बढा । लन्दन में कामनवैल्थ के प्रधानमन्त्रियों की कान्फ्रेंस जारी थी और राज उसी कान्फ्रेंस को कवर करने के लिये अपने अखबार ब्लास्ट द्वारा भेजा गया था । वह प्रेस के अन्य प्रतिनिधियों के समूह में प्रधानमंत्री के साथ ही लन्दन आया था । भारतीय न्यूज एजेन्सियों और अन्य अखबारों के लगभग सभी प्रतिनिधि होटल क्राउन में ही ठहरे हुये थे।
भारत से रवानगी से केवल एक घण्टा पहले राजनगर एयरपोर्ट पर राज की सी आई बी की ब्रांच स्पेशल इन्टेलीजेंस के डायरेक्टर कर्नल मखर्जी से भेंट हई थी । कर्नल मखर्जी ने उसे बताया था कि लन्दन में उसके प्रवास के दौरान शायद सी आई बी के कुछ ऐसे एजेन्ट उससे सम्पर्क स्थापित करें जो काफी अरसे से लापता थे और जिनके बारे में यह धारणा बनाई जा रही थी कि या तो वे शत्रुओं की कैद में थे और या मर चुके थे। लेकिन हाल ही में उन्हें ऐसा संकेत मिला था कि लापता एजेन्टों में से छ: लन्दन में मौजूद थे । राज के लिये सम्पर्क सूत्र वह वार्तालाप था जो वह कुछ क्षण पहले टेलीफोन पर एक अजनबी के साथ कर चुका था ।
वह सौ कदम आगे फुटपाथ पर बने टेलीफोन बूथ के सामने रुक गया । उसने एक सिगरेट सुलगा लिया और प्रतीक्षा करने लगा।
आधा सिगरेट समाप्त हो चुकने के बाद एकाएक एक फोर्ड उसके सामने आकर रुकी । फोर्ड का राज की ओर का दरवाजा खुला । भीतर डोम लाइट जल रही थी । उसके प्रकाश में राज को ड्राइविंग सीट पर एक युवक बैठा दिखाई दिया जो अपने सिर पर लाल रिबन वाली फैल्ट लगाये हुये था और जिसके रिबन में एक पंख खुंसा हुआ था।
राज कार में प्रविष्ट हो गया । उसने द्वार बन्द कर लिया।
“मिस्टर राज ?" - युवक ने प्रश्न किया ।
"यस ।"
"मैं आपका पासपोर्ट देख सकता हूं?"
राज ने प्रश्नसूचक नेत्रों से युवक की ओर देखा
"मैं आपको पहचानता नहीं, सर ।" - युवक जल्दी से बोला –"मैंने जिन्दगी में कभी आपकी सूरत नहीं देखी । मुझे यह विश्वास तो होना चाहिए कि मैं इस समय सही आदमी से बात कर रहा हूं।"
राज ने बिना बोले अपनी जेब से अपना पासपोर्ट और प्रेस कार्ड निकाला और उसे युवक की ओर बढा दिया।
युवक की दक्ष उंगलियों ने पासपोर्ट को वहां से खोला जहां पासपोर्ट होल्डर की तस्वीर लगी होती है । वह कुछ क्षण गौर से पासपोर्ट पर लगी तस्वीर को देखता रहा, फिर उसने राज की सूरत पर दृष्टिपात किया । उसके चेहरे पर सन्तुष्टि के भाव झलकने लगे ।
उसने प्रेस कार्ड खोलकर उस पर भी राज की तस्वीर देखी और उसका नाम पढा ।
"थैक्यू, सर ।" - वह राज का पासपोर्ट और प्रेस कार्ड लौटाता हुआ सन्तुष्ट स्वर में बोला ।
राज ने चुपचाप दोनों चीजें वापिस अपनी जेब में रख लीं।
युवक ने डोम लाइट बुझा दी। कार के भीतर अन्धेरा हो गया।
उसने इग्नीशन ऑन किया और कार को गियर में डाल दिया ।
कार कर के साथ आगे बढ गई।
कार लन्दन के कृत्रिम प्रकाश से आलोकित रास्तों से गुजरने लगी।
राज ने एक नया सिगरेट सुलगा लिया ।
रास्ता कटता रहा।
"हमारा पीछा किया जा रहा है ।" - एकाएक युवक बोला।
वह डोवर स्ट्रीट पर स्थित होटल क्राउन में ठहरा हुआ था।
वह होटल से बाहर निकल आया और दायीं ओर फुटपाथ पर आगे बढा । लन्दन में कामनवैल्थ के प्रधानमन्त्रियों की कान्फ्रेंस जारी थी और राज उसी कान्फ्रेंस को कवर करने के लिये अपने अखबार ब्लास्ट द्वारा भेजा गया था । वह प्रेस के अन्य प्रतिनिधियों के समूह में प्रधानमंत्री के साथ ही लन्दन आया था । भारतीय न्यूज एजेन्सियों और अन्य अखबारों के लगभग सभी प्रतिनिधि होटल क्राउन में ही ठहरे हुये थे।
भारत से रवानगी से केवल एक घण्टा पहले राजनगर एयरपोर्ट पर राज की सी आई बी की ब्रांच स्पेशल इन्टेलीजेंस के डायरेक्टर कर्नल मखर्जी से भेंट हई थी । कर्नल मखर्जी ने उसे बताया था कि लन्दन में उसके प्रवास के दौरान शायद सी आई बी के कुछ ऐसे एजेन्ट उससे सम्पर्क स्थापित करें जो काफी अरसे से लापता थे और जिनके बारे में यह धारणा बनाई जा रही थी कि या तो वे शत्रुओं की कैद में थे और या मर चुके थे। लेकिन हाल ही में उन्हें ऐसा संकेत मिला था कि लापता एजेन्टों में से छ: लन्दन में मौजूद थे । राज के लिये सम्पर्क सूत्र वह वार्तालाप था जो वह कुछ क्षण पहले टेलीफोन पर एक अजनबी के साथ कर चुका था ।
वह सौ कदम आगे फुटपाथ पर बने टेलीफोन बूथ के सामने रुक गया । उसने एक सिगरेट सुलगा लिया और प्रतीक्षा करने लगा।
आधा सिगरेट समाप्त हो चुकने के बाद एकाएक एक फोर्ड उसके सामने आकर रुकी । फोर्ड का राज की ओर का दरवाजा खुला । भीतर डोम लाइट जल रही थी । उसके प्रकाश में राज को ड्राइविंग सीट पर एक युवक बैठा दिखाई दिया जो अपने सिर पर लाल रिबन वाली फैल्ट लगाये हुये था और जिसके रिबन में एक पंख खुंसा हुआ था।
राज कार में प्रविष्ट हो गया । उसने द्वार बन्द कर लिया।
“मिस्टर राज ?" - युवक ने प्रश्न किया ।
"यस ।"
"मैं आपका पासपोर्ट देख सकता हूं?"
राज ने प्रश्नसूचक नेत्रों से युवक की ओर देखा
"मैं आपको पहचानता नहीं, सर ।" - युवक जल्दी से बोला –"मैंने जिन्दगी में कभी आपकी सूरत नहीं देखी । मुझे यह विश्वास तो होना चाहिए कि मैं इस समय सही आदमी से बात कर रहा हूं।"
राज ने बिना बोले अपनी जेब से अपना पासपोर्ट और प्रेस कार्ड निकाला और उसे युवक की ओर बढा दिया।
युवक की दक्ष उंगलियों ने पासपोर्ट को वहां से खोला जहां पासपोर्ट होल्डर की तस्वीर लगी होती है । वह कुछ क्षण गौर से पासपोर्ट पर लगी तस्वीर को देखता रहा, फिर उसने राज की सूरत पर दृष्टिपात किया । उसके चेहरे पर सन्तुष्टि के भाव झलकने लगे ।
उसने प्रेस कार्ड खोलकर उस पर भी राज की तस्वीर देखी और उसका नाम पढा ।
"थैक्यू, सर ।" - वह राज का पासपोर्ट और प्रेस कार्ड लौटाता हुआ सन्तुष्ट स्वर में बोला ।
राज ने चुपचाप दोनों चीजें वापिस अपनी जेब में रख लीं।
युवक ने डोम लाइट बुझा दी। कार के भीतर अन्धेरा हो गया।
उसने इग्नीशन ऑन किया और कार को गियर में डाल दिया ।
कार कर के साथ आगे बढ गई।
कार लन्दन के कृत्रिम प्रकाश से आलोकित रास्तों से गुजरने लगी।
राज ने एक नया सिगरेट सुलगा लिया ।
रास्ता कटता रहा।
"हमारा पीछा किया जा रहा है ।" - एकाएक युवक बोला।
 
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