जून 1988
शाम का अंधेरा तेजी से गहराता जा रहा था । आजकल कृष्ण पक्ष होने से अंधेरे की कालिमा और भी अधिक होती थी । चलते चलते अचानक रूपा ने कलाई घङी में समय देखा । सुई आठ के नम्बर से आगे सरकने लगी थी । पर कोई चिन्ता की बात नहीं थी । उसे सिर्फ़ दो किमी और जाना था ।
भले ही यह रास्ता वीरान सुनसान छोटे जंगली इलाके के समान था । पर उसका पूर्व परिचित था । अनेकों बार वह अपनी सहेली बुलबुल शर्मा के घर इसी रास्ते से जाती थी । इस रास्ते से उसके और बुलबुल के घर का फ़ासला सिर्फ़ चार किमी होता था । जबकि सङक के दोनों रास्ते 11 किमी दूरी वाले थे । अतः रूपा और बुलबुल दोनों इसी रास्ते का प्रयोग करती थी ।
यह रास्ता पंजामाली के नाम से प्रसिद्ध था । पंजामाली एक पुराने जमाने की विधि अनुसार ईंटो का भट्टा था । जिसमें कुम्हार के बरतन पकाने की विधि की तरह ईंटों को पकाया जाता था । इसी भट्टे के मालिक से पंजामाली कहा जाता था । और इसी भट्टे के कारण इस छोटे से वीरान क्षेत्र को पंजामाली ही कहा जाता था । पंजामाली भट्टे से डेढ किमी आगे नदी पङती थी । और उससे एक किमी और आगे रूपा का घर था ।
हांलाकि बरसात का मौसम शुरू हो चुका था । पर पार उतरने वाले घाट पर अभी नदी में घुटनों तक ही पानी था । नदी के पानी को लेकर रूपा को कोई चिंता नहीं थी । क्योंकि वह भली भांति तैरना जानती थी ।
खेतों के बीच बनी पगडण्डी पर लम्बे लम्बे कदम रखती हुयी रूपा तेजी से घर की ओर बङी जा रही थी । उसे घर पहुँचने की जल्दी थी । तेज अंधेरे के बाबजूद स्थान स्थान पर लगे बल्ब उसको रास्ता दिखा रहे थे । हालांकि चलते समय बुलबुल ने उसे टार्च दे दी थी । पर रूपा को उसकी कोई आवश्यकता महसूस नहीं हो रही थी ।
अचानक रूपा का दिल धक से रह गया । उसकी कल्पना के विपरीत लाइट चली गयी । और तेजी से बादल के गङगङाने की आवाज सुनाई दी । लाइट के जाते ही चारों तरफ़ घुप अंधेरा हो गया ।
01 02 03 04 05 06
समाप्त
by Rajeev shreshtha
 
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