Thursday, June 10, 2021

सफलता सूत्र

सफलता सूत्र
- सीए सुधीर कुमार वार्ष्णेय 
राज एक मजदूर का बेटा था और कस्बे के सरकारी स्कूल में पढ़ता था। सरकारी स्कूल और राज के घर के बीच में एक पब्लिक स्कूल था जिसमे शहर के धनाढ्य लोगों के बच्चे पढ़ने आते थे। राज अपने स्कूल जाते अक्सर उन बच्चों को स्कूल आते देखता था। चमचमाती ड्रेस पहने अपनी गाड़ियों से आते बच्चों को देख कर उसे अपने आप पर और अपने भाग्य पर गुस्सा आता था और उन अमीर बच्चों के भाग्य से ईर्ष्या। राज वैसे तो पढ़ाई में अच्छा था लेकिन उसे लगता था कि सरकारी स्कूल में पढ़ कर आप उतने सफल नहीं हो सकते जितने प्राइवेट स्कूल में पढ़ कर। इसी विचार की वजह से उसका मन पढ़ाई से उचटता जा रहा था। हालात ये हो गए की उसने अपने पिता से उसे प्राइवेट स्कूल में पढ़ाने की बात कही बरना पढ़ाई न करने की धमकी दी। 
उसके मजदूर पिता ने ऐसा करने में असमर्थता जताई क्योंकि उसके आय के स्रोत बहुत सीमित थे जिसमे वो उसे सरकारी स्कूल में जैसे तैसे पढ़ा सकता था। पिता ने उस से इस जिद की वजह पूछी तो उसने बताने से इंकार कर दिया और अपनी बात पर अड़ा रहा। अपनी बात न मानते देख राज विद्रोह पर उतर आया और उसने स्कूल जाना बंद कर दिया। उसके पिता राज के व्यवहार से और उसकी जिद से परेशान थे। उसके पिता चाहते थे की जब वो बड़ा हो तो पढ़ लिख कर कोई सही सी नौकरी करे और उसकी तरह जिंदगी भर मजदूरी न करे। दो चार दिन उसके पिता ने उसे मनाने की कोशिश की लेकिन राज अपनी जिद पर अड़ा रहा। हारकर उसके पिता ने उसके कक्षाध्यापक से बात कर राज की जिद के बारे बताया और कोई हल निकालने को कहा। कक्षाध्यापक ने उसके घर आकर राज से बात करने का अश्वासन दिया। 
एक दिन कक्षाध्यापक राज के घर पर पहुंचे और उस से स्कूल न आने का कारण जानना चाहा। राज ने बताया कि वो सरकारी स्कूल में नहीं पढ़ना चाहता। कक्षाध्यापक ने इसका कारण जानना चाहा तो राज ने कहा कि वो पढ़ने में ठीक है और उसे लगता है कि प्राइवेट स्कूल में पढ़ कर उसका भविष्य ज्यादा उज्जवल होगा। कक्षाध्यापक ने उसे समझाया – ‘ऐसा मानना सही नहीं है कि पढ़ने की जगह आपका भविष्य तय करती है। आपका भविष्य आपके दिमाग और उसके ज्ञान को ग्रहण करने की क्षमता एवं ग्रहण किये गए ज्ञान को सही तरह से उपयोग करने पर निर्भर करता है। यह ठीक है कि समाज में प्राइवेट स्कूलों में पढने वाले बच्चों को ज्यादा स्मार्ट माना जाता है लेकिन यह मानना तो सरासर गलत है कि सरकारी स्कूलों के बच्चों में प्रतिभा नहीं होती या वो स्मार्ट नहीं होते। दिमाग के दरवाजे अगर खुले रखो तो ज्ञान कहीं से भी अर्जित किया जा सकता है। क्या एकलव्य ने द्रोणाचार्य के द्वारा धनुर्विद्या देने से मना करने पर अभ्यास करना छोड़ दिया था? ये जो ज्ञान ग्रहण करने की, सीखने की प्यास जगह देख कर नहीं वरन आपके इरादों से पूरी होती है। अगर आप सही स्रोत से, सही तरीके से ज्ञानार्जन करेंगे और उपार्जित ज्ञान को सही तरीके से उपयोग करना सीखा जायेंगे तो आपको सफल होने से कोई नहीं रोक सकता। इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुम गरीब हो या अमीर अथवा तुम सरकारी स्कूल में पढ़ते हो या प्राइवेट स्कूल में। तुम्हारे पिता एक मजदूर है लेकिन वो नहीं चाहते की तुम भी उनके तरह मजदूर बनो। वो तुम्हे आगे बढ़ता हुआ देखना चाहते है और तुम अपनी जिद में अपना भविष्य बर्बाद करने पर तुले हो जो कतई सही नहीं है। आशा है तुम्हे मेरी बातें समझ आ गयी होंगी। अगर हाँ तो कल से नियमित स्कूल आना शुरू करो और अपना पूरा दिमाग पढ़ाई में लगाओ जिस से तुम्हारा भविष्य उज्जवल हो सके।' राज ने सहमति में अपना सर हिलाया तो कक्षाध्यापक ने उसके सर पर हाथ रखा और विदा ली।
फेज - 2, श्री अक्रूर जी पुरम, रामबाग रोड, चंदौसी - 244412 जिला संभल (उत्तर प्रदेश)

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