अंगिया वेताल-02

छह महीने बाद ।
चोखेलाल भगत 40 साल का हट्टा कट्टा आदमी था । और जवान औरतों का बेहद रसिया था । वह अपने परिचितों में भगत जी के नाम से मशहूर था । वास्तव में वह एक छोटा मोटा तांत्रिक था । पर यह बात अलग है । वह अपने आपको बहुत बङा सिद्ध समझता था ।
चोखा भगत दीनदयाल शर्मा के घर अक्सर ही आता जाता रहता था । जहाँ उसके भगत होने के कारण अच्छा खासा सम्मान मिलता था । भगत की बुरी निगाह दीनदयाल की अप्सरा सी बेटी रूपा के ऊपर लगी हुयी थी । पर उसे पाने की कोई कामयाबी उसे अब तक न मिली थी । और न ही मिलने की आशा थी । क्योंकि रूपा एकदम नादान और भोले स्वभाव की थी । और अगर वह मनचले स्वभाव की होती भी । तो भी आधे बुढ्ढे भगत के प्रति उसके आकर्षित होने का कोई प्रश्न ही न था । लिहाजा चोखा मन मार कर रह जाता था । चोखा ने अपने जीवन में कई औरतों को भोगा था । और वास्तव में वह भगत गीरी में आया ही इसी उद्देश्य से था । पर रूपा जैसा रूप यौवन आज तक उसकी निगाहों में न आया था ।
तब अपनी इसी बेलगाम हसरत को लिये वह रूपा के घर आँखों से ही उसका सौन्दर्यपान करने हेतु आ जाता था । और यदाकदा झलक जाते उसके स्तन आदि को देखता हुआ सुख पाता था ।
रूपा की भाभी मालती चोखा भगत से लगी हुयी थी । मालती का पति भी आधा सन्यासी हो चुका था । और घर में उमंगों से उफ़नती हुयी बीबी को छोङकर फ़ालतू में इधर उधर घूमता रहता था । मालती दबी जबान में उसके पुरुषत्व हीन होने की बात भी कहती थी । चोखा मालती से रूपा को पाने के लिये उसे बहकाने फ़ुसलाने के लिये अक्सर जोर देता था । पर अब तक कोई बात बनी नही थी ।
आज ऐसे ही ख्यालों में डूबा हुआ चोखा फ़िर से रूपा के घर आया था । और आँगन में बिछी हुयी चारपायी पर बैठा हुआ था । मालती उसको उत्तेजित कर सुख पहुँचाने हेतु जानबूझ कर ऐसे बैठकर काम कर रही थी कि घुटने से दबे हुये उसके स्तन आधे बाहर को आ गये थे ।
दोपहर के तीन बजने वाले थे । रूपा कुछ ही देर पहले स्कूल से लौटी थी । और कपङे आदि बदलकर वह मालती के पास ही आकर बैठ गयी ।
भगत की नजरें मालती से हटकर स्वतः ही रूपा के सुन्दर मुखङे पर जम गयी । और एकदम वह बुरी तरह चौंक गया ।
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मसान ! उसके मुँह से निकला । और वह गौर से रूपा के माथे पर देखने लगा ।
पर उसके मुँह से निकले शब्द को यकायक न कोई समझ पाया । न सुन पाया । भगत ने इधर उधर देखा । सब अपने काम में लगे हुये थे । और रूपा की माँ सामने ही कुछ दूर रसोई की तरफ़ मुँह किये चाय पी रही थी । दीनदयाल घर पर नही थे । बस कुछ बच्चे ही मौजूद थे ।
तब भगत ने रूपा की माँ को आवाज दी - ओ पंडितानी सुनियो तो सही । तनिक गंगाजल लाओ ।
उसने रूपा की माँ से गंगाजल मँगाया । पंडितानी हैरत से उसको देखते हुये गंगाजल ले आयी थी । भगत ने थोङा सा गंगाजल अंजुली में लिया । और मन्त्र पढकर गंगाजल रूपा की ओर उछाल दिया । गंगाजल के बहुत से छींटे रूपा के सुन्दर मुख पर जाकर गिरे । और वह बेपेंदी के लोटे की तरह लुढकती हुयी भगत की तरफ़ आ गयी ।
उसका चेहरा एकदम अकङने लगा । और आँखें खूँखार होती बिल्ली की तरह चमकने लगी । पंडितानी और मालती के मानों छक्के छूट गये । उनकी समझ में ही नहीं आया कि अचानक यह क्या होने लगा ।
आज मानों भगत को मौका ही मिल गया । भगताई के बहाने वह उसको छूने का सुख भी हासिल करना चाहता था ।
रूपा जलती हुयी आँखों से भगत को ही घूर रही थी । दो मिनट के अन्दर ही भगत सावधान हो गया । उसने रूपा के लम्बे बाल पकङ लिये । और खींचते हुये एक भरपूर चाँटा उसके गाल पर मारा । रूपा ने घृणा से उसके मुँह पर थूक दिया ।
पर उसकी कोई परवाह न करते हुये भगत ने उसे ठीक से बैठा दिया । और तुरन्त उसके चारों ओर एक लाइन खींच दी । कसमसाती हुयी सी रूपा उस घेरे में मचलती रही ।
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भगत जी ! पंडितानी घवराई सी बोली - बिटिया को क्या हुआ ?
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मसान ! भगत भावहीन स्वर में बोला - इस पे मसान सवार हो गया है ।
फ़िर वह रूपा की ओर मुढा । और सख्त स्वर में बोला - बता कौन है तू ?
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वो तू ! रूपा उच्च स्वर में हँसते हुये बोली - खुद ही बता चुका । मैं मसान हूँ ।
भगत के मन में इस समय भयंकर वबंडर जारी था । वह कामचलाऊ गद्दी लगाये अवश्य था । पर उसके दिलो दिमाग में निर्वस्त्र रूपा घूम रही थी । यह रूपा के बेहद सौन्दर्य का ही जादू था । वह रूपा जिसको पाने के वह जागते हुये सपने देखता था । कितनी आसानी से पके फ़ल की तरह टपक कर उसकी गोद में आ गिरी थी । अव वह एक बार क्या बीसियों बार उसको भोगने वाला था । और पंडितानी खुद उसे रूपा के साथ किसी दामाद की तरह अन्दर कमरे में बन्द करने वाली थी । मालती पहले ही उसकी मुठ्ठी में थी । दो दो औरतें एक साथ । वह उसी क्षण की कल्पना में डूबा हुआ था । आज उसे भगत होने का असली लाभ मिला था ।
जितना ही वह इस विचार को निकालने की कोशिश करता । उतना ही दोगुनी ताकत से वह विचार उसके दिमाग पर हावी हो जाता । वास्तव में वह सामने बैठी हुयी रूपा से मानसिक सहवास कर रहा था ।
इसीलिये उसने गद्दी का काम आधे में ही छोङ दिया । और काला कपङा आदि मंगाकर ताबीज बनाने लगा । वह इस मरीज को आसानी से ठीक होने देने का इच्छुक नही था ।
उसके द्वारा गद्दी से हटाते ही रूपा अन्दर कमरे में जाकर लेट गयी । और घवराई हुयी पंडिताइन भगत से मसान के बारे में विस्तार से बात करने लगी ।
भगत ने उन्हें बताया । घबराने की कोई बात नहीं । कुछ ही गद्दी लगाकर वह रूपा को मसान से हमेशा के लिये छुटकारा दिला देगा । यह बताते हुये भगत ने अतिरिक्त रूप से बङा चङाकर पंडिताइन को पूरा पूरा आतंकित करने की कोशिश की । जिसमें वह कामयाब भी रहा । भगत ने यह भी कह दिया । अभी वह इस बात का जिक्र किसी से न करे । यहाँ तक कि पंडित जी से भी नहीं ।
खामखांह सयानी लङकी थी । अगर बात फ़ैल जाती । तो उसके शादी ब्याह में और दिक्कत आ सकती थी । यह कहते हुये उसने ऐसा अभिनय किया । मानों उसे कुछ याद आ गया हो । और वह फ़िर से खिंचा सा रूपा के कमरे में आ गया । मालती भी उसके पीछे पीछे ही चली आयी । भगत को देखते ही रूपा ने जान बूझकर आँखे बन्द कर ली । भगत ने भगतई अन्दाज में बेखटक उसके चेहरे पर हाथ फ़िराया । और फ़िर घुमाते हुये सीने पर ले आया । रूपा का दिल तेजी से धङकने लगा । वह आँखे बन्द किये चुपचाप लेटी रही ।
भगत का दिल अभी का अभी अपने सुलगते अरमान को पूरा करने का हो रहा था । पर फ़िर संभलते हुये उसने अपनी इस बलबती इच्छा को रोका । पर काम तो उस हावी हो ही चुका था । तब उसके दिमाग में एक विचार आया । और उसने पंडितानी को बुलाते हुये खुद जाकर ऐसा सामान दुकान से लाने को बोल दिया । जिसे लाने में आधा घण्टा आराम से लगना था । पंडितानी के कमरे से निकलते ही भगत ने मालती का हाथ पकङकर अपने अंग पर रख दिया ।
उसका इशारा समझते ही मालती ने दरबाजा लगा दिया । वह आश्चर्यचकित थी । भगत क्या करने वाला था । भगत ने उसके ब्लाउज से हाथ डाल दिया । और उसका मुँह बिस्तर की तरफ़ घुमाते हुये उसने मालती को झुकाया । रूपा अधमुंदी आँखों से दम साधे यह सब देखती रही । और यही भगत उसे दिखाना भी चाहता था । आज उसने एक तीर से दो शिकार किये थे ।
वास्तव में वह रूपा के अरमान भङकाने में कामयाब रहा था । रूपा के मन में कामनाओं का तूफ़ान सा उमङ रहा था ।
जैसे ही घङी ने रात के ग्यारह बजाये । रूपा एक झटके से बिस्तर से उठकर खङी हो गयी । अभी वह पहले के दिनों की तरह चुपचाप पंजामाली जाने के लिये निकलने ही वाली थी कि उसे अपने पीछे वही चिर परिचित स्पर्श का अहसास हुआ । और इसके साथ ही उसके शरीर में खुशी की लहर सी दौङ गयी । स्पर्श वहीं आ चुका था । और हमेशा की तरह पीछे उसके साथ सटा हुआ था ।
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र र रू प पा ! वह उसके दिमाग में बोला - तुम्हारी याद मुझे फ़िर से खींच लायी ।
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अ अ आज मैं भी ! वह थरथराती आवाज में बोली - बैचेन हूँ । उस कमीने भगत ने आज मेरे सामने ही भाभी को..
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मैं जानता हूँ । स्पर्श उसी तरह धीरे धीरे बोला - और खास इसीलिये आया हूँ । वह आधा भगत मुझे मसान समझता है । और सोचता है कि वह मुझे काबू में कर लेगा । पर उसके लिये ऐसा करना संभव नहीं है । उल्टे मैं उसे तिगनी का नाच नचाने वाला हूँ । बस तुम गौर से मेरी बात सुनो । रूप मेरी रानी मैं तुम्हें बहुत चाहता हूँ ।
रूपा ध्यान से उसकी बात सुनने लगी । ज्यों ज्यों स्पर्श उसको बात बताता जा रहा था । उसके चेहरे पर अनोखी चमक बङती जा रही थी । एक नये रोमांच का पूर्व काल्पनिक अनुभव करते हुये उसकी आँखे नशे से बन्द होने लगी ।
स्पर्श ! वह फ़िर मदहोश होकर बोली - मैं प्यासी हूँ । बहुत प्यासी..
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हाँ रूप ! स्पर्श लरजते स्वर में बोला ।
फ़िर वह बिस्तर पर गिरती चली गयी । और कुछ ही क्षणों में उसके कपङे तिरस्कृत से अलग पङे हुये थे ।
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हा..! अचानक रूपा मानों सोते से जागी । यह सब क्या हो रहा है उसके साथ ? वह मानों गहन अँधकार में गिरती ही चली जा रही हो । चारों तरफ़ गहरा अँधकार । और वह बिना किसी आधार के नीचे गिरती ही चली जा रही थी । कहीं कोई नहीं था । बस अँधेरा ही अँधेरा । फ़िर वह अँधेरे की एक लम्बी सुरंग में स्वतः गिरती चली गयी । पता नहीं कब तक । गिरती रही । गिरती रही । और अन्त में उस सुरंग का मुँह योनि के समान दरबाजे में खुला । तुरन्त दो पहलवान जैसे लोगों ने उसे अपने पीछे आने का इशारा किया । और वह मन्त्रमुग्ध सी उनके पीछे चलती गयी ।
एक अंधेरे से ही घिरी पीली सी बगिया में वे दोनों उसे छोङकर गायव हो गये । वह ठगी सी खङी रह गयी । बगिया के पेङ बँधे हुये प्रेतों की तरह शाँत से खङे मानों उसी को देख रहे थे । कहीं कोई नहीं था । रूपा को ऐसा लगा । मानों प्रलय के बाद धरती पर विनाश हो गया हो । और समस्त धरती जनजीवन से रहित हो गयी हो । फ़िर वह कैसे जीवित बची रह गयी ? बहुत दूर कुछ आवादी जैसे मकान नजर आ रहे थे ।
उसे बहुत कोशिश करने पर अपना घर हल्का सा याद आता था । और तुरन्त ही भूल जाता था । उसे अन्दर से लग रहा था कि वह डरना चाह रही थी । पर डर भी नहीं पा रही थी । उसे कभी कभी दिल में रोने जैसी हूक भी उठ रही थी । पर वह रो भी नहीं पा रही थी । उसकी समस्त इच्छायें भावनायें एक अदृश्य जादुई नियंत्रण में थी । जिससे वह बाहर निकलना चाहती थी । पर निकल नहीं पा रही थी ।
फ़िर अचानक रूपा को कुछ इच्छा हुयी । और वह खिंचती हुयी सी बस्ती की तरफ़ चलने लगी ।
तभी उसकी गरदन पर गर्म गर्म सांसो जैसी हवा का स्पर्श हुआ । सांसो जैसा । मगर कुछ और ही तरह का ।
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र र र रूप ! उसे वही परिचित आवाज सुनाई दी । और उसके जिस्म में अनजानी खुशी की लहर सी दौङ गयी । इस अपरिचित बियावान जगह पर स्पर्श के मिलने से उसे बहुत राहत मिली ।
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स्पर्श हम कहाँ है ? वह सहमी सी बोली - ये प्रथ्वी तो नहीं मालूम होती ।
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हाँ रूपा ! तुम सच कह रही हो । ये प्रथ्वी नहीं हैं । बल्कि ये अतृप्त और अकाल मृत्यु को प्राप्त इंसानों के रहने का प्रेतलोक है । तुम यहाँ अपने आंतरिक शरीर से आयी हो । तुम्हारा स्थूल शरीर तुम्हारे कमरे में मृतक के समान ही पङा है । क्या तुम्हें भय लग रहा है रानी ?
उसने न में सिर हिलाया । और अपने बदन पर स्पर्श की छुअन महसूस करने लगी ।



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