अंगिया वेताल-03

चोखा भगत पंजामाली के शमसान में पहुँचा । आज वह सिद्धि हेतु आया था । चोखा कई दिनों से इसके लिये चक्कर काट रहा था । तब रात दस बजे के करीब उसे दाह के लिये जाती लाश मिली थी । वह एक हंडिया और चावल साथ ले आया था । यह सिद्धि उसे लपटा बाबा ने बतायी थी । चोखा खुद क्योंकि अनपढ टायप इंसान था । और शौकिया ही तांत्रिक बना था । इसलिये उसने इधर इधर बाबाओं के पास बैठकर कुछ छोटे मोटे मन्त्र तन्त्र जन्त्र आदि सीख लिये थे । और इन्ही से काम करता हुआ वह अंधविश्वासी टायप मूढ औरतों में खासा लोकप्रिय था । मन्त्र तन्त्र से आकर्षित औरतें अक्सर उससे प्रभावित हो जाती थी । तब वह साधारण बातों में नमक मिर्च लगाकर उसमें भय पैदा करते हुये उनका मनमाना इस्तेमाल करता था ।
इसके अलावा एक कारण और भी था । हराम की खाने के हुनर में उस्ताद चोखा शरीर से बलिष्ठ था । अतः जब वह औरत को अनोखी तृप्ति का अहसास कराता था । तब वे वैसे ही उसकी गुलाम हो जाती थी । और अपनी ऐसी ही खूबियों के चलते चोखा मानता था कि उस पर भगवान की खासी कृपा है । और इसलिये उसकी पाँचों उंगलियाँ घी में और सर कङाही में है । पर जैसे कहा जाता है ना - अन्त बुरे का बुरा ।
उसके भी बुरे दिन शुरू हो चुके थे ।
चोखा की अपेक्षा लपटा बाबा जिगरवाला और बृह्मचारी था । लपटा वास्तव में संयोगवश इस लाइन में आ गया था । दरअसल लपटा की एक पुरानी पैत्रक जमीन नदी के किनारे पर थी । जिसको बहुत लम्बे समय से लावारिस पङी होने के कारण लोगों ने कब्रिस्तान बना लिया था ।
जब लपटा को अपनी जमीन की हकीकत का पता चला । तब उसने इसका विरोध करते हुये वहीं कब्रिस्तान में अपनी झोंपङी बना ली । और शवों को दफ़नाने से मना करने लगा । तब झगङे की नौबत आ गयी । और लोग जबरदस्ती शब को दफ़ना जाते थे । इसका उपाय लपटा ये करता था कि दफ़नाये गये शवों को रात में खोदकर नदी में बहा देता था । अतः अपनी इसी जिद के कारण और दिन रात शवों के सम्पर्क में रहने के कारण उसके चेहरे पर भयानकता और स्वभाव में बेहद निडरता आ गयी थी । फ़िर कालांतर में वह कुछ शव साधना वाले साधकों के सम्पर्क में आया । और इस तरह लपटा बाबा बन गया । बस उसकी खासियत ये थी कि वह लंगोट का पक्का था । और औरतों को कतई लिफ़्ट नहीं देता था । चोखा अक्सर लपटा के पास आता जाता था । और कुछ प्रयोग उसने लपटा से सीखे थे ।
रात के लगभग ग्यारह बज चुके थे । और शव को जलाने आये लोग वहाँ से जा चुके थे । चिता की आग अभी भी धधक रही थी । उनके जाते ही पेङों के पीछे छिपा चोखा निकल आया । और सावधानी से इधर उधर देखता हुआ जलते मुर्दे के पास आकर बैठ गया ।
उसने सिर्फ़ एक लंगोट पहना हुआ था । और सांवली बलिष्ठ कसरती देह से जिन्दा भूत ही लग रहा था । चोखा पहले भी शव के पास रात गुजारने के अनुभवों से गुजर चुका था । अतः उसके मन में नाम मात्र का भी भय न था । हाँ दूसरी बातों को लेकर भय था । क्या थी वे बातें ?
तब स्वतः ही उसके दिमाग में लपटा बाबा के बोल गूँजे - मगर सावधान चोखे ! सिद्धि के दौरान कोई रूपसी नग्न अर्धनग्न अवस्था में आकर तुझे काम निमन्त्रण दे । उसको स्वीकार नहीं करना । कोई डाकिनी शाकिनी डायन चुङैल तुझे भयभीत करे । करने देना । तू शान्त होकर अपना काम करना । अगर तू किसी भी तरह बहका । तो तेरी मौत निश्चित है । हाँ मौत । वो भी अकाल मौत ।
चोखा के भय से रोंगटे खङे हो गये । शमसान और तामसी शक्तियों की इस तरह की निकृष्ट साधना जिसमें डाकिनी शाकिनी प्रकट होने वाली थी । से रूबरू होने का उसका पहला ही चांस था । पर यह वह भी नहीं जानता था कि यह पहला चांस ही उसका आखिरी चांस होने वाला था ।
चोखा ने हंडिया मुर्दे के पास ही रख दी । और उसके पानी में चावल और कुछ अन्य चीजे डाल दी । फ़िर उसने अपने सामान की पोटली से तेल निकाला । और सारे बदन पर मलने लगा । पूरे बदन को तेल से तर बतर करने के बाद उसने चिता की गर्म गर्म राख को बदन पर मलना शुरू किया । और कुछ ही देर में भयानक काले जिन्न के समान नजर आने लगा । उसकी लाल लाल आँखे चिता के मद्धिम प्रकाश में खूंखार चीते की भांति चमकने लगी ।
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खुश हो कालका ! कहते हुये उसने चावल की हंडिया चिता पर पकने के लिये रख दी । और फ़िर गांजे से भरी चिलम को चिता की आग से जलाकर पीने लगा । निकृष्ट डरावनी साधनाओं में नशा भय को बहुत कम कर देता है । ये उसका माना हुआ अनुभव था । अतः उसने आज भी वही काम किया था ।
नशीली चिलम का सुट्टा जैसे ही उसके दिमाग में चङता । वह और भयंकर सा हो उठता । पूरी चिलम पीते पीते उसकी आँखे इस तरह लाल हो गयीं । मानों उनसे खून छलक रहा हो ।
फ़िर उसने चिता से काफ़ी गर्म राख उठायी । और जमीन पर एक बिछावन के रूप में बिछा दी । फ़िर उस पर बैठकर वह मन्त्र पढने में तल्लीन हो गया । क्लीं क्लीं जैसे बीज मन्त्रों के साथ डाकिनी शाकिनी कालका आदि शब्द बीच बीच में उसके मुँह से धीरे धीरे निकलने लगे । और वह झूमने सा लगा ।
उसके आसपास शमशान में विचरने वाले गण एकत्र होने लगे । मगर तांत्रिक से कुछ अनजाना भय सा खाते हुये वे उससे एक निश्चित दूरी पर ही रहे । तब कुछ बङे गण आये । और चोखा को अपने बदन पर प्रेत वायु के झोंको जैसा अहसास होने लगा ।
(
यह अहसास इस तरह होता है । जैसे एक इंसान दूसरे इंसान की गरदन आदि पर हल्की सी फ़ूँक मारे । और ये अहसास अक्सर कान के पास ही गरदन तक अधिक होता है )
फ़िर उसके सामने शाकिनी आदि प्रत्यक्ष होने लगी । हड्डियों के कंकाल सी और कभी काली गन्दी सी वे स्थूल शरीरी सी भी दिखती औरतें निर्वस्त्र थी । उनके उलझे हुये बाल बहुत गन्दे और हवा में उङते थे । उनकी कमर पर नीच देवियों की भांति हड्डियों की मालायें भी बँधी थी । उनके काले स्तन नोकीले और तने थे । ऐसे बहुत से अन्य अनुभव चोखे को होते रहे । पर लपटा की बात को ध्यान रखता हुआ बहुत हल्का सा ही विचलित होता हुआ वह अपने काम में ही लगा रहा ।
यकायक ।
तभी मानों पंजामाली में बहार उतरी ।
छन छन छन छन..की मधुर लय ताल के साथ एक अनिद्ध सर्वांग सुन्दरी ने वहाँ कदम रखा । और चहलकदमी सी करते हुये मानों शमसान का निरीक्षण करने लगी । सारी प्रेतनियाँ अपनी जगह स्तब्ध खङी रह गयी । और सब कुछ भूलकर बस इस अदभुत नायिका को देखने लगी । जो मानों किसी परीलोक से परी की भांति अचानक उतर आयी हो । उसके जगमग जगमग करते सौन्दर्य से मानों अँधेरे में भी प्रकाश फ़ैल गया हो । शमशान जैसा स्थान भी स्वर्ग के उपवन में बदल गया हो ।चोखा भगत आँखे बन्द किये तेजी से मन्त्र का जाप कर रहा था । किसी औरत के पायलों के नूपुर की मधुर छन छन छन उसे भी सुनायी दी थी । पर लपटा की चेतावनी को ध्यान रखता हुआ वह आँखे बन्द किये बैठा ही रहा । और सावधानी से मन्त्र का जाप करता रहा । प्रेतनियाँ उसकी साधना में विघ्न डालने की बात भूलकर उस दिव्य सुन्दरी को ही देखने लगी । छोटे प्रेतों के दिल में अपने जीवित होने के समय जैसी हिलोरे उठने लगी । सभी गण आपस में यही खुसर पुसर कर रहे थे कि - आखिर ये देवी जैसी कौन है ?
ये मनुष्य ही लग रही है । पर मनुष्य जैसे डरपोक प्राणी का इस समय शमशान में उपस्थित होना असंभव था । फ़िर आखिर ये कौन है ? वह प्रेत समुदाय से नहीं थी । यह भी निश्चित ही था ।लेकिन इन सबकी हालत से बेखबर एक पेङ की डाली से लटकी हुयी रहस्यमय शख्सियत बङे गौर से इस दिलचस्प नजारे को देख रही थी । और बेसब्री से आने वाले पलों का इंतजार कर रही थी ।
मगर इस सबसे बेपरवाह वह रूपसी धीरे धीरे चहलकदमी सी करती हुयी चोखा के आसपास चक्कर काटती रही । उसने उस मुर्दा ग्राउंड के चारों तरफ़ टहलते हुये कुछ चक्कर से लगाये । और फ़िर आकर ठीक चोखा के सामने खङी हो गयी । उसने किसी मुजरा नायिका की तरह पाँवों की ऐडी हिलाकर घुँघरू छनकाये । फ़िर हाथों की चूङियों को भी खनकाया ।
और बेहद सावधान सधे स्वर में बोली - चोखा भगत ! आँखे खोल । देख मैं आ गयी ।
इस मधुर और धीमी झनकार युक्त आवाज ने भी चोखा को मानों बिजली सा करेंट मारा । और उसने हङबङाकर आँखे खोल दी । फ़िर मानों उसके होश ही उङ गये ।
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रूपा..तू ! वह एकदम उछलते हुये बोला ।
वास्तव में उसके सामने रूपा ही खङी थी । इस धरती पर किसी गलती से शाप भोगने आयी मनुष्य रूपिणी अप्सरा । पीले रंग की कढी हुयी साङी और काला ब्लाउज पहने काली लिपिस्टक लगाये वह दूध जैसी गोरी.. गोरी एकदम उसके सामने ही खङी थी । एक मधुर मोहक और आमन्त्रण भरी मुस्कान के साथ ।
चोखा मानों होश ही खो बैठा । वह भूल ही गया कि किसलिये यहाँ आया है ? वह भूल ही गया कि जिस आधी साधना को वह जागृत कर चुका है । उसे बीच में छोङने का परिणाम क्या होगा ? वह भूल ही गया । लपटा बाबा की वह चेतावनी - आँधी आये या तूफ़ान । साधना बीच में छोङने का मतलब सिर्फ़ मौत । कारण कोई भी हो । मगर परिणाम एक ही मौत । खिलखिलाती हुयी । सीने पर चङकर मारने वाली खुद बुलायी मौत । वास्तव में इसीलिये कहा है - क्या देव । क्या दानव । क्या मनुष्य़ । क्या अन्य । कामवासना ने सबको मुठ्ठी में किया हुआ है । फ़िर भला चोखा कैसे बच सकता था ।
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हाँ भगत ! रूपा किसी देवी के समान मधुर मुस्कान के साथ बोली - मैं तेरी चाहत में यहाँ तक भी खिंची चली आयी । यही चाहता था न तू ।
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मगर..तेरे घर के लोग..तू.. मतलब..! वह अटक अटक कर बोला - इस समय यहाँ आ कैसे गयी ।भगत ! वे सब सोये पङे हैं । जिस तरह इंसान सदियों से अग्यान की मोह निद्रा में सोया हुआ है । फ़िर तूने सुना नहीं है कि - प्यार अँधा होता है भगत । फ़िर मैं तेरे सपनों की रानी भी हूँ । तू कल्पना में मुझे भोगता था । आज इस देवी ने तेरी सुन ली । तेरी मनोकामना पूर्ण हुयी । आज तेरे ख्वावों की मलिका तेरे सामने खङी है । आखिर कब तक मैं तेरा प्यार कबूल न करती ।
चोखा को कहीं न कहीं किसी गङबङ का किसी धोखे का अहसास हो रहा था । और वह एकदम किसी जादुई तरीके से आसमान से उतरी हुयी इस मेनका के रूपजाल से बचना भी चाहता था । पर जाने क्यों अपने आपको असमर्थ सा भी महसूस कर रहा था । उसकी छठी इन्द्रिय बारबार उसे खतरे का अहसास करा रही थी । पर जैसे ही वह रूपा को देखता । उसका दिमाग मानों शून्य 0 हो जाता ।
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लेकिन..। वह हकलाता हुआ सा बोला - तुझे यहाँ आने में डर..?




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