-
क्योंकि
। प्रसून मनोहर को गौर से देखता
हुआ बोला -
रुपाली
शर्मा अगिया वेताल से ही पीङित
है ।
चोखा भगत के छक्के छूट गये । उसके चेहरे पर भय साफ़ नजर आने लगा । दरअसल अब तक वह अगिया वेताल जैसी किसी वायु से परिचित नहीं था । उसके उपचार के बारे में उसे कुछ मालूम नहीं था । और वैसी हालत में उसे लेने के देने पङ सकते थे ।
- महाराज ! अचानक उसके दिल में स्वतः प्रसून के लिये श्रद्धा हुयी - आप मेरी कुछ सहायता कर सकते हो ।
- नहीं । प्रसून दो टूक लहजे में बोला - मैं नहीं । लेकिन मैं इसी काम के उस्ताद को भेज दूँगा ।
- आपसे भी बङा ? चोखा हैरानी से बोला ।
- हाँ । प्रसून सौम्य मुस्कराहट से बोला - मुझसे भी बङा ।
फ़िर वह एक नम्बर सेल पर डायल करने लगा ।नीलेश रूपा के शहर पहुँचा । जलवा उसके साथ था । जलवा के साथ उसकी अच्छी टयूनिंग बन गयी थी । जलवा एक सम्पन्न रईस किसान पुत्र था । और 10+2 के बाद उसने पढना ही छोङ दिया था । इसके बाद वह अपनी खेती की देखभाल करता था । और यही काम उसके लिये बहुत था । मस्तमौला जलवा को दो ही शौक थे । एक फ़िल्मों में हीरो बनने का । जिसके लिये वह अपनी तमाम खेती बेचकर भी खुद ही फ़िल्म बनाकर भी हीरो बनना चाहता था । और दूसरा भूतों को देखने का । तथा उनका किसी तरह फ़ोटो खींचने का । इसके पीछे उसका एक खास लालच भी था । उसने किसी चैनल में सुन रखा था कि भूतों के रियल फ़ोटो या वीडियोज आज तक कोई शूट नहीं कर पाया । जिस किसी ने किया भी । वह अन्त में फ़्राड ही साबित हुये । अतः वह सोचता था कि नीलेश भाई के साथ किसी तरह फ़ोटो वीडियो शूट हो जायँ । तो न सिर्फ़ उसके रोकङे से वारे न्यारे हो जायँ । बल्कि वह इंटरनेशनल नेम फ़ेम पर्सन ही हो जाय । इसलिये खास वह नीलेश भाई की जबरदस्त चमचागिरी करता था । क्योंकि नीलेश भाई तो उसने सुना था कि भूतों का बास ही था । अपनी इसी खास ख्वाहिश को पूरा करने हेतु उसने एक विशेष कैमरा भी खरीदा था ।जबकि नीलेश अपने ही जैसे उसके मजाकिया स्वभाव और उसके ( नीलेश के ) मन की बात को बोलने से पहले ही समझकर उसको क्रियान्वित करने लगने की समझदारी से प्रभावित था । जलवा की अभी शादी नहीं हुयी थी । और वह करना भी नहीं चाहता था । इस मामले में उसका दर्शन था - दूध पीने के लिये जरूरी नहीं भेंस खरीद कर बाँधी ही जाय ।
इसलिये कल जब उसके गुरुभाई प्रसून का फ़ोन आया । तो पूरी बात सुनकर वह बोला - समझ गया भाई । अंगिया वेताल ना । देख लेंगे साले को ।
- अंगिया नहीं ! प्रसून हँसते हुये बोला - अगिया वेताल । फ़िर दूसरी तरफ़ की कोई बात सुने बिना ही उसने हँसते हुये ही फ़ोन काट दिया ।
चलते चलते अचानक नीलेश बोला ।
- जलवा ! तूने अंगिया वेताल के बारे में सुना है ?
- भाई अंगिया के बारे में तो सुना है । वही माधुरी दीक्षित वाली पुक पुक पुक अंगिया के पीछे क्या है ? लेकिन ये साला अंगिया वेताल क्या होवे ?
- अंगिया वेताल ! नीलेश मन ही मन मानसी की मधुर कल्पना करता हुआ बोला - वास्तव में एक श्रंगारिक भाव का महत्वपूर्ण शब्द है । जब किसी युवा होती अल्हङ लङकी के स्तन तेजी से विकास करते हैं । उसको भी अंगिया वेताल कहा जाता है । जब किसी प्रेमिका को उसका प्रेमी बाहों में लेकर चुम्बन आलिंगन सहलाना आदि करता है । इसके फ़लस्वरूप उसका सीना तेजी से धक धक करता ऊपर नीचे होता है । इसको भी अंगिया वेताल कहते हैं । और जब कोई नायिका ( प्रेमिका ) अपने प्रेमी को विरहा में याद करती हुयी उससे काल्पनिक अभिसार करती है । और तब उसके नारी अंग रोमांच की अधिकता से भर उठते हैं । उसको भी अंगिया वेताल कहते हैं ।एकदम समझ गया भाई ! धक धक करने लगा । जिया मोरा अब तो डरने लगा । सैंया बहियाँ छोङ ना । कच्ची कलियाँ तोङ ना । अंगिया वेताल बा । का कही का हाल बा । अमिया से आम हुयी । मुन्नी बदनाम हुयी । मेरी पहले ही तंग थी चोली । ऊपर से आ गयी वैरन होली ।
- बस बस ! नीलेश घवराकर बोला - एक ही उदाहरण काफ़ी है ।
- वैसे एक बात बोलूँ भाई ! आपने अंगिया पर पूरी Phd ही की हुयी है । पता नहीं हम जैसे ग्यानियों की कदर वैल्यू ये साली दुनियाँ कब समझेगी ? समझेगी कि नहीं भी समझेगी ।
वे रूपा के घर पहुँचे । मनोहर ने उनके आगमन के बारे में पहले ही बता दिया था । अतः तुरन्त उनका भावपूर्ण स्वागत हुआ । लेकिन अपनी अपेक्षा अनुसार किसी बूङे दाङी वाले तांत्रिक की जगह दो युवा लङकों को देखकर पंडितानी को कुछ आश्चर्य सा हुआ । और वह बोलीं - लेकिन बेटा आपके गुरुजी ।
- माँ जी ! नीलेश बेहद सभ्यता से बोला - वे प्लेन से । और फ़िर गाङी से आयेंगे । शायद रात तक पहुँचे । शायद कल तक भी पहुँचे । तब तक हम उनके चेले चपाटे आ गये ।
- और शायद कभी न पहुँचें । जलबा धीरे से अंग्रेजी में बोला ।
पंडितानी को बात मानों समझ आ गयी । उसने तुरन्त सीधा ही उन्हें रूपा के कमरे में ले जाकर बैठा दिया ।
रूप सौन्दर्य की इस अदभुत मल्लिका को देखकर एक बार को नीलेश भी जहाँ का तहाँ खङा रह गया । उफ़ ! जैसे साक्षात रूप की देवी आसमान से धरती पर उतर आयी हो । लङकी थी । या जीती जागती कयामत । ऐसा लगता था । बनाने वाले ने बङी फ़ुरसत में एक एक अंग को बङी सूझबूझ के साथ गढा था ।सुन्दर मुखङा । माथा । नाक । होठ । मृगनयनी जैसी आँखे । अप्सराओं जैसे पुष्ट उरोज । मादक नितम्ब । कटि । कदली स्तम्भ जैसी जंघायें । मरमरी हाथों में पतली लम्बी उँगलियाँ । और निगाह में एक खास सम्मोहन । वह एक पूर्ण औरत थी । वह एक पूर्ण सुन्दरी थी ।
- अंगिया वेताल ! नीलेश धीरे से फ़ुसफ़ुसाया । लङकी पर वेताल की ही छाया थी ।
उसको देखते ही रूपा बङी शालीनता से उठी । और दोनों को अभिवादन कर बिस्तर पर ही सिमटकर बैठ गयी । जलवा की निगाह स्वाभाविक ही उसके छलकते स्तनों पर गयी ।
- भाई ! जलवा अपने ही अनुसार फ़ुसफ़ुसाते हुये अंग्रेजी में बोला - इसकी अंगिया वाकई वेताल है ।
मगर उसकी बकबास पर ध्यान न देकर नीलेश मानों रूपा के रूप सम्मोहन से बाहर आता हुआ बोला - क्या नाम है आपका ?
- र र रूप..पा.। वह धीमे मधुर स्वर में बोली ।नीलेश के कानों में मानों जल तरंग बज उठी हो । वह समझ रहा था । जलवा को खुद को कंट्रोल रखना मुश्किल हो रहा है । वह मन ही मन रूपा पर टूट पङने की ख्वाहिश सी कर रहा था ।
अभी नीलेश आगे कुछ बोलने ही वाला था कि तभी मालती चाय की ट्रे लिये आ गयी । उसने ट्रे एक तरफ़ रखी । और एक कुर्सी पर बैठ गयी । मालती की इस घर में शायद अच्छी चलती थी । सो पंडितानी उसके बैठते ही बाहर निकल गयी । लेकिन जब मालती ने - माँजी दुकान से आलू चावल भी ले आना । कहा तो नीलेश को उनके जाने का मतलब समझ में आ गया ।
तब मालती ने भूखी बिल्ली के समान उन दो मोटे पुष्ट चूहों को देखा । और होठों पर जीभ फ़ेरी । फ़िर वह अपना आँचल उतारकर उसके पल्लू से अपने चेहरे पर हवा सी करती हुयी बोली - घर गृहस्थी भी हम औरतों के लिये जंजाल है । दिन भर खटो । रात भर खटो । खटो खटो बस खटो ।
- भाई ! जलवा मालती को चोर दृष्टि से देखता हुआ अंग्रेजी में बोला - इसकी अंगिया डबल वेताल मालूम होती है । मेरी लुंगिया वेताल होने लगी । चोली तो इसकी रूमाल से बनी मालूम होती है ।
- शटअप ! नीलेश सख्ती से अंग्रेजी में ही बोला - मेरे को नया बिजनेस मत बता । इधर प्राफ़िट ज्यादा है ।
- भाई ! फ़िर वह रिरियाकर बोला - मैं भी थोङा पार्ट टाइम जाब कर लूँ ।
नीलेश ने मानों किसी शहंशाह के से अन्दाज में उसे स्वीकृति दे दी । और स्वयँ रूपा से बात करने लगा ।
जलवा ने अपनी कुर्सी मालती की तरफ़ घुमायी । और बोला - हाँ तो भाभीजी आप क्या कह रही थी ?देखो ना जी ! मालती बुरा सा मुँह बनाकर बोली - आप मर्द लोग हर तरह से फ़ायदे ही फ़ायदे में हो । गर्मी का मौसम । आप लोग आराम से चड्ढी में घूमते हो । आपको चूल्हा भी नहीं फ़ूँकना । बस लुँगी समेटी । और खाना शुरू । खोला मुँह और गप्प गप्प खाना शुरू । सारी परेशानी तो हम औरतें ही सहती हैं । आप मर्दों को नहाना हो । आप सङक पर भी नहा लेते हो । औरत को चार चार कपङा पहनना ही जरूरी है ।
जलवा ने हर बात पर हूँ हूँ करते हुये मानों उससे भारी सहानुभूति जतायी । फ़िर वह बोला - पर एक बात में तो भगवान ने आपको खासा बख्शा है । क्यूँ ठीक है न ?
- किस बात में ? मालती उत्सुकता से बोली ।
- आपको । जलवा मासूमियत से बोला - रोज रोज शेव तो नहीं करनी होती ना । आपके गाल भी एकदम चिकने रहते हैं ।
- अरे भाईसाहब ! वह चंचलता से बोली - बिलकुल लल्लू मालूम होते हो आप । लगता है अभी शादी नहीं हुयी आपकी ?
उनकी बातों से नीलेश का ध्यान उन दोनों की तरफ़ घूम गया । और फ़िर मासूम से चेहरे से जलवा को मालती की बात का मतलव समझने की कोशिश करते देख उसकी जोरदार हँसी निकल गयी । नीलेश को हँसता देखकर रूपा की भी हँसी निकल गयी । अभी भी बात का कोई मतलब न समझते हुये जलवा उनके साथ यूँ ही हँसने लगा । फ़िर न चाहते हुये भी उस सीरियस माहौल में कमरे में ठहाके गूँजने लगे । मालती उन्मुक्त ढंग से हँस रही थी । उसकी तरफ़ देखता हुआ जलवा आउट आफ़ कन्ट्रोल होने लगा ।
हँसते हँसते नीलेश को समझ में नहीं आया कि जलवा को काम का इंसान समझे । या एकदम का फ़ालतू । वो हमेशा ही किसी भी माहौल को अपने ही स्टायल का बना देता था । जो भी हो वह नीलेश को पसन्द था । और उसकी रिक्वायर मेंट पर खरा उतरता था ।पंजामाली के घाट से आगे निकल कर नीलेश उसी तरफ़ बढता चला गया । जहाँ नीलेश रूपा को पहली बार नदी के गहरे पानी में ले गया था । और देर तक नदी की जलधारा के बीच उन्मुक्त काम किल्लोल करता रहा था । इस तरह का डेरा ( प्रेतवासा ) कहाँ हो सकता है । यह पहचानना उसके लिये कोई मुश्किल काम नहीं था । आखिरकार एक जगह पहुँचकर वह रुक गया । यहाँ बङी संख्याँ में विलायती बबूल के पेङ और ढेरों अन्य झाङियाँ थी । यहाँ पर नदी ने वलयाकार मोङ लिया था । और काफ़ी बङा ऊसर टायप स्थान खाली पङा हुआ था । आयताकार जमीन पर जले के निशान और खास आकृति में काली रेख के निशान एकदम स्पष्ट बता रहे थे कि वहाँ मुर्दे जलाये जाते थे । कुछ निशान दो चार दिन ही पुराने मालूम होते थे ।
जलवा ने अपने दिल को कङा करने की काफ़ी कोशिश की । फ़िर भी उसके शरीर का एक एक रोयाँ खङा हो गया । नीलेश उसकी हालत समझ रहा था । भूतिया क्षेत्र में रोंये खङे रहना एक सामान्य बात थी । पर यह बात उस पर लागू नहीं होती थी ।नीलेश ने उसे बताया नहीं था कि वह यहाँ क्यों आया है । उसने रिस्टवाच में टाइम देखा । आठ बजने वाले थे । फ़िर वह मुर्दों के दाहकर्म स्थान के सामने एक पेङ के नीचे खङा हो गया । उसने सिगरेट सुलगायी ।
और बोला - यहाँ ठीक है ।
उसका मतलब समझते ही जलवा ने तुरन्त एक बङा कपङा वहाँ बिछाया । और उसका बैग वगैरह रखकर बैठ गया । फ़िर बैग से निकाल कर उसने एक चार्जिंग टार्च जलाकर रख दी । नीलेश के इशारे पर जलवा बबूल की एक पतली सी टहनी तोङ लाया था । जिसे छीलता हुआ नीलेश अपने हिसाब से नोकीली कर रहा था । फ़िर वह उस नुकीली लकङी से जमीन पर इस तरह आङी तिरछी रेखायें बनाने लगा । जैसे चित्रकारी कर रहा हो ।
जलवा गौर से उसके क्रियाकलाप देख रहा था । पर नीलेश को मानों इसकी कोई परवाह ही नहीं थी । कुछ ही देर में उन लाइनों को देखता हुआ जलवा समझ गया कि नीलेश इसी स्थान का स्केच बना रहा था । जहाँ वह इस वक्त मौजूद थे । उसने बीचो बीच में नदी बनायी । उसके दोनों किनारे के पार का स्थान बनाया । फ़िर कुछ खास स्थानों का चयन करते हुये उसने कुछ आयत और वृत भी बनाये । और उनमें इंसानों जैसी आकृतियाँ भी बनायी ।
चोखा भगत के छक्के छूट गये । उसके चेहरे पर भय साफ़ नजर आने लगा । दरअसल अब तक वह अगिया वेताल जैसी किसी वायु से परिचित नहीं था । उसके उपचार के बारे में उसे कुछ मालूम नहीं था । और वैसी हालत में उसे लेने के देने पङ सकते थे ।
- महाराज ! अचानक उसके दिल में स्वतः प्रसून के लिये श्रद्धा हुयी - आप मेरी कुछ सहायता कर सकते हो ।
- नहीं । प्रसून दो टूक लहजे में बोला - मैं नहीं । लेकिन मैं इसी काम के उस्ताद को भेज दूँगा ।
- आपसे भी बङा ? चोखा हैरानी से बोला ।
- हाँ । प्रसून सौम्य मुस्कराहट से बोला - मुझसे भी बङा ।
फ़िर वह एक नम्बर सेल पर डायल करने लगा ।नीलेश रूपा के शहर पहुँचा । जलवा उसके साथ था । जलवा के साथ उसकी अच्छी टयूनिंग बन गयी थी । जलवा एक सम्पन्न रईस किसान पुत्र था । और 10+2 के बाद उसने पढना ही छोङ दिया था । इसके बाद वह अपनी खेती की देखभाल करता था । और यही काम उसके लिये बहुत था । मस्तमौला जलवा को दो ही शौक थे । एक फ़िल्मों में हीरो बनने का । जिसके लिये वह अपनी तमाम खेती बेचकर भी खुद ही फ़िल्म बनाकर भी हीरो बनना चाहता था । और दूसरा भूतों को देखने का । तथा उनका किसी तरह फ़ोटो खींचने का । इसके पीछे उसका एक खास लालच भी था । उसने किसी चैनल में सुन रखा था कि भूतों के रियल फ़ोटो या वीडियोज आज तक कोई शूट नहीं कर पाया । जिस किसी ने किया भी । वह अन्त में फ़्राड ही साबित हुये । अतः वह सोचता था कि नीलेश भाई के साथ किसी तरह फ़ोटो वीडियो शूट हो जायँ । तो न सिर्फ़ उसके रोकङे से वारे न्यारे हो जायँ । बल्कि वह इंटरनेशनल नेम फ़ेम पर्सन ही हो जाय । इसलिये खास वह नीलेश भाई की जबरदस्त चमचागिरी करता था । क्योंकि नीलेश भाई तो उसने सुना था कि भूतों का बास ही था । अपनी इसी खास ख्वाहिश को पूरा करने हेतु उसने एक विशेष कैमरा भी खरीदा था ।जबकि नीलेश अपने ही जैसे उसके मजाकिया स्वभाव और उसके ( नीलेश के ) मन की बात को बोलने से पहले ही समझकर उसको क्रियान्वित करने लगने की समझदारी से प्रभावित था । जलवा की अभी शादी नहीं हुयी थी । और वह करना भी नहीं चाहता था । इस मामले में उसका दर्शन था - दूध पीने के लिये जरूरी नहीं भेंस खरीद कर बाँधी ही जाय ।
इसलिये कल जब उसके गुरुभाई प्रसून का फ़ोन आया । तो पूरी बात सुनकर वह बोला - समझ गया भाई । अंगिया वेताल ना । देख लेंगे साले को ।
- अंगिया नहीं ! प्रसून हँसते हुये बोला - अगिया वेताल । फ़िर दूसरी तरफ़ की कोई बात सुने बिना ही उसने हँसते हुये ही फ़ोन काट दिया ।
चलते चलते अचानक नीलेश बोला ।
- जलवा ! तूने अंगिया वेताल के बारे में सुना है ?
- भाई अंगिया के बारे में तो सुना है । वही माधुरी दीक्षित वाली पुक पुक पुक अंगिया के पीछे क्या है ? लेकिन ये साला अंगिया वेताल क्या होवे ?
- अंगिया वेताल ! नीलेश मन ही मन मानसी की मधुर कल्पना करता हुआ बोला - वास्तव में एक श्रंगारिक भाव का महत्वपूर्ण शब्द है । जब किसी युवा होती अल्हङ लङकी के स्तन तेजी से विकास करते हैं । उसको भी अंगिया वेताल कहा जाता है । जब किसी प्रेमिका को उसका प्रेमी बाहों में लेकर चुम्बन आलिंगन सहलाना आदि करता है । इसके फ़लस्वरूप उसका सीना तेजी से धक धक करता ऊपर नीचे होता है । इसको भी अंगिया वेताल कहते हैं । और जब कोई नायिका ( प्रेमिका ) अपने प्रेमी को विरहा में याद करती हुयी उससे काल्पनिक अभिसार करती है । और तब उसके नारी अंग रोमांच की अधिकता से भर उठते हैं । उसको भी अंगिया वेताल कहते हैं ।एकदम समझ गया भाई ! धक धक करने लगा । जिया मोरा अब तो डरने लगा । सैंया बहियाँ छोङ ना । कच्ची कलियाँ तोङ ना । अंगिया वेताल बा । का कही का हाल बा । अमिया से आम हुयी । मुन्नी बदनाम हुयी । मेरी पहले ही तंग थी चोली । ऊपर से आ गयी वैरन होली ।
- बस बस ! नीलेश घवराकर बोला - एक ही उदाहरण काफ़ी है ।
- वैसे एक बात बोलूँ भाई ! आपने अंगिया पर पूरी Phd ही की हुयी है । पता नहीं हम जैसे ग्यानियों की कदर वैल्यू ये साली दुनियाँ कब समझेगी ? समझेगी कि नहीं भी समझेगी ।
वे रूपा के घर पहुँचे । मनोहर ने उनके आगमन के बारे में पहले ही बता दिया था । अतः तुरन्त उनका भावपूर्ण स्वागत हुआ । लेकिन अपनी अपेक्षा अनुसार किसी बूङे दाङी वाले तांत्रिक की जगह दो युवा लङकों को देखकर पंडितानी को कुछ आश्चर्य सा हुआ । और वह बोलीं - लेकिन बेटा आपके गुरुजी ।
- माँ जी ! नीलेश बेहद सभ्यता से बोला - वे प्लेन से । और फ़िर गाङी से आयेंगे । शायद रात तक पहुँचे । शायद कल तक भी पहुँचे । तब तक हम उनके चेले चपाटे आ गये ।
- और शायद कभी न पहुँचें । जलबा धीरे से अंग्रेजी में बोला ।
पंडितानी को बात मानों समझ आ गयी । उसने तुरन्त सीधा ही उन्हें रूपा के कमरे में ले जाकर बैठा दिया ।
रूप सौन्दर्य की इस अदभुत मल्लिका को देखकर एक बार को नीलेश भी जहाँ का तहाँ खङा रह गया । उफ़ ! जैसे साक्षात रूप की देवी आसमान से धरती पर उतर आयी हो । लङकी थी । या जीती जागती कयामत । ऐसा लगता था । बनाने वाले ने बङी फ़ुरसत में एक एक अंग को बङी सूझबूझ के साथ गढा था ।सुन्दर मुखङा । माथा । नाक । होठ । मृगनयनी जैसी आँखे । अप्सराओं जैसे पुष्ट उरोज । मादक नितम्ब । कटि । कदली स्तम्भ जैसी जंघायें । मरमरी हाथों में पतली लम्बी उँगलियाँ । और निगाह में एक खास सम्मोहन । वह एक पूर्ण औरत थी । वह एक पूर्ण सुन्दरी थी ।
- अंगिया वेताल ! नीलेश धीरे से फ़ुसफ़ुसाया । लङकी पर वेताल की ही छाया थी ।
उसको देखते ही रूपा बङी शालीनता से उठी । और दोनों को अभिवादन कर बिस्तर पर ही सिमटकर बैठ गयी । जलवा की निगाह स्वाभाविक ही उसके छलकते स्तनों पर गयी ।
- भाई ! जलवा अपने ही अनुसार फ़ुसफ़ुसाते हुये अंग्रेजी में बोला - इसकी अंगिया वाकई वेताल है ।
मगर उसकी बकबास पर ध्यान न देकर नीलेश मानों रूपा के रूप सम्मोहन से बाहर आता हुआ बोला - क्या नाम है आपका ?
- र र रूप..पा.। वह धीमे मधुर स्वर में बोली ।नीलेश के कानों में मानों जल तरंग बज उठी हो । वह समझ रहा था । जलवा को खुद को कंट्रोल रखना मुश्किल हो रहा है । वह मन ही मन रूपा पर टूट पङने की ख्वाहिश सी कर रहा था ।
अभी नीलेश आगे कुछ बोलने ही वाला था कि तभी मालती चाय की ट्रे लिये आ गयी । उसने ट्रे एक तरफ़ रखी । और एक कुर्सी पर बैठ गयी । मालती की इस घर में शायद अच्छी चलती थी । सो पंडितानी उसके बैठते ही बाहर निकल गयी । लेकिन जब मालती ने - माँजी दुकान से आलू चावल भी ले आना । कहा तो नीलेश को उनके जाने का मतलब समझ में आ गया ।
तब मालती ने भूखी बिल्ली के समान उन दो मोटे पुष्ट चूहों को देखा । और होठों पर जीभ फ़ेरी । फ़िर वह अपना आँचल उतारकर उसके पल्लू से अपने चेहरे पर हवा सी करती हुयी बोली - घर गृहस्थी भी हम औरतों के लिये जंजाल है । दिन भर खटो । रात भर खटो । खटो खटो बस खटो ।
- भाई ! जलवा मालती को चोर दृष्टि से देखता हुआ अंग्रेजी में बोला - इसकी अंगिया डबल वेताल मालूम होती है । मेरी लुंगिया वेताल होने लगी । चोली तो इसकी रूमाल से बनी मालूम होती है ।
- शटअप ! नीलेश सख्ती से अंग्रेजी में ही बोला - मेरे को नया बिजनेस मत बता । इधर प्राफ़िट ज्यादा है ।
- भाई ! फ़िर वह रिरियाकर बोला - मैं भी थोङा पार्ट टाइम जाब कर लूँ ।
नीलेश ने मानों किसी शहंशाह के से अन्दाज में उसे स्वीकृति दे दी । और स्वयँ रूपा से बात करने लगा ।
जलवा ने अपनी कुर्सी मालती की तरफ़ घुमायी । और बोला - हाँ तो भाभीजी आप क्या कह रही थी ?देखो ना जी ! मालती बुरा सा मुँह बनाकर बोली - आप मर्द लोग हर तरह से फ़ायदे ही फ़ायदे में हो । गर्मी का मौसम । आप लोग आराम से चड्ढी में घूमते हो । आपको चूल्हा भी नहीं फ़ूँकना । बस लुँगी समेटी । और खाना शुरू । खोला मुँह और गप्प गप्प खाना शुरू । सारी परेशानी तो हम औरतें ही सहती हैं । आप मर्दों को नहाना हो । आप सङक पर भी नहा लेते हो । औरत को चार चार कपङा पहनना ही जरूरी है ।
जलवा ने हर बात पर हूँ हूँ करते हुये मानों उससे भारी सहानुभूति जतायी । फ़िर वह बोला - पर एक बात में तो भगवान ने आपको खासा बख्शा है । क्यूँ ठीक है न ?
- किस बात में ? मालती उत्सुकता से बोली ।
- आपको । जलवा मासूमियत से बोला - रोज रोज शेव तो नहीं करनी होती ना । आपके गाल भी एकदम चिकने रहते हैं ।
- अरे भाईसाहब ! वह चंचलता से बोली - बिलकुल लल्लू मालूम होते हो आप । लगता है अभी शादी नहीं हुयी आपकी ?
उनकी बातों से नीलेश का ध्यान उन दोनों की तरफ़ घूम गया । और फ़िर मासूम से चेहरे से जलवा को मालती की बात का मतलव समझने की कोशिश करते देख उसकी जोरदार हँसी निकल गयी । नीलेश को हँसता देखकर रूपा की भी हँसी निकल गयी । अभी भी बात का कोई मतलब न समझते हुये जलवा उनके साथ यूँ ही हँसने लगा । फ़िर न चाहते हुये भी उस सीरियस माहौल में कमरे में ठहाके गूँजने लगे । मालती उन्मुक्त ढंग से हँस रही थी । उसकी तरफ़ देखता हुआ जलवा आउट आफ़ कन्ट्रोल होने लगा ।
हँसते हँसते नीलेश को समझ में नहीं आया कि जलवा को काम का इंसान समझे । या एकदम का फ़ालतू । वो हमेशा ही किसी भी माहौल को अपने ही स्टायल का बना देता था । जो भी हो वह नीलेश को पसन्द था । और उसकी रिक्वायर मेंट पर खरा उतरता था ।पंजामाली के घाट से आगे निकल कर नीलेश उसी तरफ़ बढता चला गया । जहाँ नीलेश रूपा को पहली बार नदी के गहरे पानी में ले गया था । और देर तक नदी की जलधारा के बीच उन्मुक्त काम किल्लोल करता रहा था । इस तरह का डेरा ( प्रेतवासा ) कहाँ हो सकता है । यह पहचानना उसके लिये कोई मुश्किल काम नहीं था । आखिरकार एक जगह पहुँचकर वह रुक गया । यहाँ बङी संख्याँ में विलायती बबूल के पेङ और ढेरों अन्य झाङियाँ थी । यहाँ पर नदी ने वलयाकार मोङ लिया था । और काफ़ी बङा ऊसर टायप स्थान खाली पङा हुआ था । आयताकार जमीन पर जले के निशान और खास आकृति में काली रेख के निशान एकदम स्पष्ट बता रहे थे कि वहाँ मुर्दे जलाये जाते थे । कुछ निशान दो चार दिन ही पुराने मालूम होते थे ।
जलवा ने अपने दिल को कङा करने की काफ़ी कोशिश की । फ़िर भी उसके शरीर का एक एक रोयाँ खङा हो गया । नीलेश उसकी हालत समझ रहा था । भूतिया क्षेत्र में रोंये खङे रहना एक सामान्य बात थी । पर यह बात उस पर लागू नहीं होती थी ।नीलेश ने उसे बताया नहीं था कि वह यहाँ क्यों आया है । उसने रिस्टवाच में टाइम देखा । आठ बजने वाले थे । फ़िर वह मुर्दों के दाहकर्म स्थान के सामने एक पेङ के नीचे खङा हो गया । उसने सिगरेट सुलगायी ।
और बोला - यहाँ ठीक है ।
उसका मतलब समझते ही जलवा ने तुरन्त एक बङा कपङा वहाँ बिछाया । और उसका बैग वगैरह रखकर बैठ गया । फ़िर बैग से निकाल कर उसने एक चार्जिंग टार्च जलाकर रख दी । नीलेश के इशारे पर जलवा बबूल की एक पतली सी टहनी तोङ लाया था । जिसे छीलता हुआ नीलेश अपने हिसाब से नोकीली कर रहा था । फ़िर वह उस नुकीली लकङी से जमीन पर इस तरह आङी तिरछी रेखायें बनाने लगा । जैसे चित्रकारी कर रहा हो ।
जलवा गौर से उसके क्रियाकलाप देख रहा था । पर नीलेश को मानों इसकी कोई परवाह ही नहीं थी । कुछ ही देर में उन लाइनों को देखता हुआ जलवा समझ गया कि नीलेश इसी स्थान का स्केच बना रहा था । जहाँ वह इस वक्त मौजूद थे । उसने बीचो बीच में नदी बनायी । उसके दोनों किनारे के पार का स्थान बनाया । फ़िर कुछ खास स्थानों का चयन करते हुये उसने कुछ आयत और वृत भी बनाये । और उनमें इंसानों जैसी आकृतियाँ भी बनायी ।
 
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