अँधेरा -04


सम्पूर्ण सृष्टि का आधार ही है काम वासना । अगर ये काम वासना न होती । स्त्री पुरुष के दैहिक आकर्षण और लैंगिक मिलन की एक अजीव सी और सदा अतृप्त रहने वाली प्यास सभी के अन्दर प्रबल न होती ।तो कभी समाज का निर्माण संभव ही नही था । और वास्तव में आदि सृष्टि के समय जब ज्ञान और आत्मभाव की प्रबलता थी । उस समय की आत्मायें काम से बिलकुल मोहित नहीं थी । और हद के पार उदासीन थीं । देवी तुल्य नारियों से भी पुरुष कामभावना के धरातल पर कतई आकर्षित नहीं होते थे । उनके उन्नत गोल स्तन और थिरकते नितम्बों की मादक लय पुरुषों में एक चिनगी पैदा नहीं कर पाती थी ।
जबकि नारी की बात कुछ अलग थी । उसका निर्माण ही प्रकृति रूपा हुआ था । वह पुरुष के अर्धांग से विचार रूप उत्पन्न हुयी थी । और बारबार उसको आत्मसात करती हुयी आलिंगित भाव से उसमें ही समाये रहना चाहती थी । बस उसकी सिर्फ़ यही मात्र एक ख्वाहिश थी। पर आदि संतति प्रबल थी । और इस प्रकृति भाव के अधीन नहीं थी । अतः वे तप को प्रमुखता देते थे । उस माहौल के प्रभाव से देवी नारी भी तब पुरुष के सामीप्य की एक अजीव सी चाहत लिये तप में ही तल्लीन हो जाती थी । पर इस तप का सर्वागीण उद्देश्य यही था । पूर्ण चेतन पुरुष को प्राप्त होना ।
कालपुरुष और दुर्लभ सौन्दर्यता की स्वामिनी अष्टांगी कन्या जीवों के इस काम विरोधी रवैये से बङे हैरान थे । सृष्टि का मूल काम उन्हें कतई आकर्षित नहीं कर रहा था । तब उन्होंने एक निर्णय लेते हुये विष के समान इसकाम विषय वासना को अति आकर्षण की मीठी चाशनी में लपेट दिया । ये हथियार कारगर साबित हुआ । और जीव काम मोहित होने लगे । पुरुष को स्त्री हर रूप में आकर्षित करने लगी । उसके हर अंग में एक प्रबल सम्मोहन और जादुई प्रभाव उत्पन्न हो गया । उसकी काली घटाओं सी लहराती जुल्फ़ें । गुलावी लालिमा से दमकते कोमल गाल । रस से भरे हुये अधर ।और विभिन्न आकारों से सुशोभित गोल गोल दो स्तन मानों पुरुष के लिये खजाने से भरपूर कलश हो गये । उसकी हरे पेङ की डाली सी लचकती । किसी मदमस्त नागिन की तरह बलखाती कमर पुरुषों के दिल को हिलाने लगी । उसकी कटावदार नाभि में एक उन्मादी सौन्दर्य झलकने लगा । उसकी गोरी गोरी चिकनी जंघायें तपस्वियों के दिल में तूफ़ान उठाने लगी । उसके नितम्बों की चाल से संयमी पुरुषों के दिल भी बेकाबू होने लगे ।
महामाया ने बङा विचित्र खेल खेला । उसने नारी की वाणी में सुरीली कोयल की कूक सी पैदा कर दी । और उसकी वाणी तक में काम को लपेट दिया । उसकी हर क्रिया को उसने काम पूर्ण कर दिया । और इस तरह ये पुरुष जीव भाव में नारी के वशीभूत होता गया । और आज तक हो रहा है ।
और तब ये ठीक उल्टा हो गया । नारी जो वास्तव में पुरुष से उत्पन्न हुयी थी । पुरुष अपने को उसी नारी से उत्पन्न मानने लगा । और उसे ही प्रमुख आदि शक्ति मानता हुआ माया के पूर्ण अधीन हो गया । महामाया । अच्छे अच्छे देव पुरुषों ।योग पुरुषों को अपने इशारों पर सदा नचाने वाली महामाया । तब करम कौर में भी उसका ही अंश था
 
रात के नौ बज चुके थे । करमकौर आज राजवीर के घर रुकी हुयी थी । मनदीप जस्सी और राजवीर किसी सिद्ध मठ पर जस्सी की कुशलता हेतु मन्नत माँगने बाहर गये हुये थे । राजवीर ने उन दोनों को स्पष्ट कुछ नहीं बताया था । बस इतना कहा कि बाबा के दरबार में जाने से ऐसी कोई अज्ञात बाधा कष्ट दूर हो जाता है । करमकौर भी ये उपाय ठीक ही लगा । तब मनदीप को इसमें कोई बुराई नजर नहीं आयी । और वे तीनों करमकौर को अपने घर रोककर दर्शन हेतु चले गये थे ।
स्थिति कोई भी मानुष देही में कामकीङा सदा रेंगता ही रहता है । और अवसर मिलते ही इसके कीटाणु सक्रिय हो उठते हैं ।करम कौर को भी आज ये कीङा बार बार काटता हुआ उसके अंगों में प्यास उत्पन्न कर रहा था । एक हिन्दू पुरुष की प्यास । जो सभी सरदार औरतों की विशेष चाहत थी । दिल का हमेशा का अरमान था । और वह पुरुष एक आसान विकल्प के रूप में उसके पास था । बेहद पास । वह अपने मामूली से प्रयास से इस रात को यादगार बना सकती थी ।बनाना चाहती थी । और उसने हर हालत में बनाने की ठान ली थी ।
वह दोपहर ग्यारह बजे ही राजवीर के घर आ गयी थी । और उसी समय वे लोग गाङी से निकल गये थे । बस तभी से उसके अंगों में बैचेनी सी समायी हुयी थी । जवानी के पहाङ की तरह खङा सतीश उसे भावना मात्र से दृवित कर रहा था । पर पराये शहर और परायी जाति का बोध उस पर हावी था । नौकर होने की हीन भावना भी उसे मर्यादा में रहने को विवश कर रही थी । और इस तरह करम कौर का बेशकीमती वक्त फ़िजूल जा सकता था । जा रहा था । इसलिये उसने बखूबी समझ लिया था कि पहल उसे ही अपनी तरफ़ से करनी होगी । इसलिये उसने किसी न किसी बहाने से सतीश को अपने पास ही रखा । और किसी अभिसार इच्छुक प्रेमिका की भांति उसे अपने स्तनों की बार बार झलक दिखाते हुये अपने कटाक्षों और वाणी से भरपूर उत्तेजित करती रही । और यही सोचती रही कि अब वह उसे बाहों में भरने ही वाला है ।पर सतीश जैसे किसी सीमा रेखा में कैद था । और उसे ललचायी नजरों से देखने के बाद भी कुछ कर नहीं पा रहा था ।
सुबह राजवीर का फ़ोन जाते ही उसने यह सब हसरत पूरी करने को तय कर लिया था । और इसीलिये वह अपने घर से बिना वाथ के ही चली आयी थी । बारह बजे वह बाथरूम में थी । और सभी कपङे उतार चुकी थी । उसने अभी वाथ लेना शुरू भी नहीं किया था कि तभी उसका बच्चा अचानक रोने लगा । जिसे संभालने ले लिये तुरन्त सतीश आ गया । पर वह चुप नहीं हो रहा था ।
करमकौर ने तुरन्त एक बङा टावल लपेटा । और बाहर आ गयी । सतीश उसको देखकर हैरान ही रह गया । सिर्फ़एक टावल में भरपूर जवानी । वह तेजी से पलटकर बाहर जाने को हुआ । पर करमकौर ने उसे अभी रुक कहते हुये रोक दिया । वह चोर निगाहों से उसे देखने लगा । उसकी मोटी मोटी चिकनी जाँघे आधे से अधिक खुल रही थी उसने टावल को ही उठाकर अपना गोल स्तन बाहर निकाल लिया था। और बच्चे को दूध पिला रही थी ।
-
बेबी भूखा था । वह उसे देखती हुयी बोली - दूध पी लेगा । फ़िर तंग नहीं करेगा । और सुन । तेरी मालकिन राजवीर है । मैं करम कौर नहीं । तू मुझे भाभी बोल सकता है । आखिर परदेस में तुझे भी कोई अपना लगने वाला होना चाहिये ना । वैसे तेरी शादी हुयी या नहीं ।
सतीश ने झेंपते हुये ना में सिर हिलाया । कितनी अजीब बात थी । अपने एकान्त क्षणों में वह हमेशा जिस औरत के निर्वस्त्र बदन की कल्पना करता था ।वह साक्षात ही लगभग निर्वस्त्र बैठी थी । पर वह एकदम नर्वस हो रहा था ।
-
फ़िर तू किसकी लेता है । वह शरारात से बोली - पप्पी झप्पी । कोई कुङी फ़िट की हुयी है । कोई प्रेमिका । कोई मेरे जैसी भाभी भाभी वगैरह ।
उसने फ़िर से इंकार में सिर हिलाया । करम कौर उत्तेजित हो रही थी । उसने बच्चे को दूसरे स्तन से लगाने के बहाने से टावल को खुल जाने दिया । सतीश का दिल तेजी से धक धक करने लगा । एक लगभग आवरण रहित सम्पूर्ण नायिका उसके सामने थी ।
करमकौर छुपी निगाह से उसके बैचेन उठान को महसूस कर रही थी । उसने बच्चे को दूध पिला दिया था । फ़िर उसने टावल को ठीक कर लिया । 

- अरे लल्लू ! वह प्यार से उसका हाथ पकङकर बोली - अब मैं तेरी भाभी हुयी । फ़िर मुझसे क्या शर्म करता है । चल कोई बात नहीं । पर तूने सच बताना । कभी अपनी किसी भाभी को नहाते हुये चुपचाप देखा है । कोई तांक झांक टायप । कभी कुछ ।
सतीश कुछ बोल न सका । बस हल्के से मुस्कराकर रह गया । करम कौर को अजीव सी झुँझलाहट हुयी । पर आज मानों उसने भी सभी दीवार गिरा देने की ही ठान ली थी । उसने उसके पास जाकर उसके गाल पर एक पप्पी ली ।
और बहाने से उसके पेन्ट से हाथ फ़िराते हुये बोली - यकीन कर मैं तेरी भाभी हूँ । गाड प्रामिस । किसी को कुछ नहीं बोलूँगी । अब बता । तू मेरी एक इच्छा पूरी कर देगा । सिर्फ़ एक । देख ना नहीं करना । वरना इस करमा का दिल ही तोङ दे ।
अब सतीश में हिम्मत जागृत हुयी । उसके होठ सूखने से लगे । फ़िर वह बोला - हाँ । बोलो । आप बोलो ।
करम कौर ने उसे मसाज आयल की बाटल थमा दी । और दीवान पर पेट के बल लेटती हुयी बोली - मैंने आज तक सिर्फ़ पुरुष मसाज के बारे में सुना भर है । कभी कराने का चांस नहीं बना । इसलिये उसकी फ़ीलिंग नहीं जानती । तू मुझे वो मसाज एक्स्पीरियेंस करा । और तुझे फ़ुल्ली छूट है । चाहे मुझे भाभी समझ । वाइफ़ समझ । लवर समझ । या सिर्फ़ औरत समझ ।सिर्फ़ औरत । कुछ भी क्यों न समझ । लेकिन बस ये मसाज फ़ीलिंग । आनन्दयुक्त और यादगार हो । तू यहाँ से चला भी जाय । तो मुझे तेरी बारबार याद आये ।
सतीश के बदन में गरमाहट की तरंगे सी फ़ैलने लगी ।करम कौर दीवान पर लेटी थी । उसने नाम मात्र को तौलिया पीठ पर डाला हुआ था । वह बस एक पल झिझका । आज उसकी सबसे बङी चाहत पूरी होने वाली थी । उसकी हथेलियाँ तेल से भीग चुकी थी । फ़िर वह दीवान पर बैठ गया । और टावल सरका दिया । करम कौर के विशाल दूधिया नितम्ब उसके सामने थे । उसकी वलयाकार पीठ उसके सामने थी । - यादगार मसाज । वह आह सी भरती हुयी बोली - और इसके लिये तू ये शर्ट वगैरह उतार दे । जो कि आराम से हाथ पैर चला सके । आराम से । धीरे धीरे । संगीतमय । कोई जल्दी नहीं । बङे हौले हौले करना ।
सतीश ने वैसा ही किया । फ़िर उसके कठोर हाथों का स्पर्श करम कौर को अपने कन्धों से कमर तक होने लगा । तब उसने और आगे हाथ ले जाने का आदेश दिया । सतीश के हाथ उसके चिकने नितम्बों पर घूमते हुये फ़िसलने लगे । फ़िर वह आनन्द से कराहने लगी ।अब वह अगले क्षणों की बेसब्री से प्रतीक्षा कर रही थी । और तब उसे अपने बदन में किसी उँगली समान प्रवेश की अनुभूति हुयी । लोहा गर्म हो चुका था । वह तुरन्त उठकर बैठ गयी । और सीधा उसके अंग को सहलाने लगी ।
सतीश ने उसके स्तनों को सहलाया । वह उसका अनाङीपना समझ गयी थी । उसने उसे दीवान पर गिरा दिया । और अपनी कलायें दिखाने लगी । तब उसके अन्दर का पुरुष जागा ।
उसने करमकौर को झुका लिया ।और उससे सट गया । वाकई वह मर्द था । अनाङी था । हिन्दू था । और करमकौर का इच्छित अलग टेस्ट था । इधर वह भरपूर पंजाबन औरत थी । वह आनन्द के अतिरेक में कराहती हुयी नितम्ब उछालने लगी । और ढेर होती चली गयी। एक बलिष्ठ पुरुष के समक्ष । एक समर्पित नायिका की भांति । जो उसके अब तक अनुभव से एकदम अलग ही साबित हुआ था ।इसलिये यह वाकई एक यादगार अनुभव था । पर अभी तो बहुत समय बाकी थी । बहुत समय । समय ही समय । समय । समय की इस किताब में सदियों से जाने क्या क्या लिखा जाता रहा है । क्या लिखने वाला है । और आगे क्या लिखा जायेगा ।ये शायद कोई नहीं जानता है । करमकौर को ही सुबह तक ये नहीं मालूम था । आज उसकी जिन्दगी में एक यादगार पुरुष आने वाला है । न सिर्फ़ यादगार पुरुष । बल्कि यादगार एक एक लम्हा भी । जिसको बारबार संजोने का दिल करे ।




01    02    03    04    05    06    07    08    09    10
11    12    13    14    15    16    17    18 19


No comments:

Post a Comment

Featured Post

सिंह और गाय

  एक गाय घास चरने के लिए एक जंगल में चली गई। शाम ढलने के करीब थी। उसने देखा कि एक बाघ उसकी तरफ दबे पांव बढ़ रहा है। वह डर के मारे इधर-उधर भा...