क्या
अजीव बात थी । उसे घर की देखभाल
के लिये छोङ गयी राजवीर के
बारे में सोचना चाहिये था ।
उसकी बेटीजस्सी के बारे में
सोचना चाहिये था । उसे एक पराये
पुरुष से अनैतिक पाप संबन्ध
के पाप के बारे में सोचना चाहिये
था । पर ये सभी सोच गायब हो चुकी
थी ।उसके अन्दर की करम कौर मर
चुकी थी । और मुक्त भोग की
अभिलाषी स्त्री जाग उठी थी ।
वासना से भरी हुयी स्त्री ।
जिसे सम्बन्ध नहीं । पुरुष
नजर आता है । और ये पुरुष आज
किस्मत की देवी ने मेहरबान
होकर उसे उपलब्ध कराया था ।
अगर ये बेशकीमती पल वह पाप
पुण्य को सोचने में गुजार देती
। तो ना जाने ये पल फ़िर कब उसकी
जिन्दगी में आते । आते भी या
ना आते । इसलिये वह किसी भी
हालत में इसको गंवाना नहीं
चाहती थी ।
सतीश अनाङी था । औरत से उसका पहले वास्ता नहीं था । पर वह हेविच्युल थी । मेच्योर्ड थी । एक अनाङी था । एक खिलाङिन थी । और ये संयोग बङा अनोखा और दिलचस्प अनुभव वाला था । अभी अभी बीते क्षणों को सोचकर ही उसका बदन रोमांचित होता था । अब उसे कुछ लज्जा सी आ रही थी । और कुछ वह त्रिया चरित्र करना चाहती थी । इस तन्हाई के एक एक पल को सजाने के लिये ।
वह कपङे पहनने लगी । तब सतीश चौंककर बोला - नहाओगी नहीं..भ भाभी ?
- यू नाटी.. ब्वाय ! वह उसका कान पकङकर बोली - दर्द बेदर्द हो रही हूँ मैं । हिम्मत नहीं हो रही । पर नहाना भी चाहती हूँ ।
सतीश के मुँह से चाहत के आवेग में भरी भावना निकल गयी । मैं नहला देता हूँ । वह मसाज से ज्यादा आसान है । वह भौंचक्का रह गयी । स्त्री पुरुष का सामीप्य अनोखी स्थितियों को जन्म देता है । किसी खिलती कली के समान तमाम अनजान कलायें पंखुरियों के समान खुलने लगती है । उसने कोई ना नुकुर नहीं की । वे दोनों बाथरूम में आ गये । सतीश की उत्तेजना वह जान रही थी । ये कभी न समाप्त होने वाली भूख थी । अगले ही क्षणों में फ़िर से बह आनन्दित होकर सिसकियाँ भर रही थी । और अब रात के नौ बज चुके थे । वह टीवी के सामने बैठी हुयी फ़िल्मी सांग देख रही थी । कितनी अदभुत बात थी । पर्दे पर रोमांटिक भंगिमायें करते हर नायक नायिका में उसे अपनी और सतीश की ही छवि नजर आ रही थी । आज रात को भी वह भरपूर जीना चाहती थी ।शायद ऐसी गोल्डन नाइट जिन्दगी में फ़िर से नसीब न हो । अतः उसने अपने पुष्ट बदन पर सिर्फ़ एक गाउन पहना हुआ था । और उसका भी एक बन्द ही लगाया हुआ था । एक बन्द ।
- ये स्त्री भी अजीब पागल ही होती है । उसने सोचा - सदियों से इसने व्यर्थ ही खुद को अनेक बन्दिशों की बन्द में कैद किया हुआ है । ये एक बन्द काफ़ी है । जब दिल अन्दर । जब दिल बाहर ।
सतीश अभी काम में लगा हुआ था । तब उसे एक कल्पना हुयी । काश वह राजवीर की जगह होती । और सतीश
उसका सर्वेंट होता । तो वह उसका भरपूर यूज करती । जवानी का एक एक क्षण । एक एक एनर्जी बिट । वह स्त्री पुरुष के अभिसारी रंग से रंग देती । शायद आगे भी ऐसा मौका मिले ।पर आगे की बात आगे थी । आज की रात तो निश्चय उसके हाथ में थी । और यकीनन गोल्डन थी ।
अभिसार युक्त स्नान के बाद दोनों ने लंच किया था । और फ़िर दोपहर तीन बजे थककर चूर होकर सो गये थे । करमकौर रात में भी जागने और जगाने की ख्वाहिशमन्द थी । अतः उसने भरपूर नींद ली थी । और शाम छह बजे उठी थी । वैसे भी मुक्त और सन्तुष्टिदायक यौनाचार के बाद तृप्ति की नींद आना स्वाभाविक ही थी । सो जागने के बाद वह खुद को एकदम तरोताजा महसूस कर रही थी । महज तीन घण्टे पूर्व के वासनात्मक क्षण उसे गुजरे जमाने के पल लगने लगे थे । और वह फ़िर से अभिसार के लिये मानसिक रूप से तैयार थी ।
- कमाल की होती है । औरत के अन्दर छिपी औरत । उसने सोचा -वाकई यह अलग होती है । बाहर की औरत नकली और दिखाबटी होती है । सामाजिक रूढियों परम्पराओं के झूठे आभूषणों से लदी हुयी । बोगस दायरों में कैद । बेबसी की सिसकियाँ लेती हुयी । मुक्ति और मुक्त औरत के अहसास ही जुदा होते हैं । और वे अहसास फ़िर से जागने लगे थे ।
यही सब सोचते सोचते उसे दस बज गये । सतीश फ़ारिग होकर उसी कमरे में आ गया । पर वह उससे अपरिचित सी टीवी ही देखती रही । उसका बच्चा सो चुका था । सतीश सोफ़े पर बैठा हुआ था । वह उसकी तरफ़ से किसी पहल का इन्तजार कर रही थी । पर उसे उदासीन समझकर जब वह भी टीवी देखने में मशगूल हो गया । तब वहखुद ही उसके पास जाकर गाउन समेटकर उसकी गोद में बैठ गयी । ऐसी ही किसी पूर्व कल्पना से आभासी सतीश सिर्फ़ लुंगी में था ।
सो उसका कठोर स्पर्श महसूस करती हुयी वह आनन्द के झूले में झूलने लगी । एक कसमसाहट के बीच दोनों ने खुद को एडजस्ट किया । और फ़िर वे आन्तरिक रूप से बेपर्दा अंगो केस्पर्श को महसूस करने लगे । सतीश ने उसके गाउन में हाथ डाल दिया । और गोलाईयों को सहलाने लगा ।
पर अब उसकी इच्छा प्राकृतिकता से विपरीत अप्राकृतिक हो चली थी । जो पंजाबी पुरुषों का खास शौक था । और पंजाबन औरतों की एक अजीव लत । जिसकी वे पागल हद तक दीवानी थी । अतः इस खेल के अनाङी सतीश को वह भटकाती हुयी वासना की भूलभुलैया युक्त अंधेरी सुरंगों में ले गयी ।
और तब रात के बारह बज चुके थे । अभी अभी सोई करम कौर की अचानक किसी वजह से नींद खुल गयी थी । उसे टायलेट जाने की आवश्यकता महसूस हो रही थी । सतीश अपने कमरे में जा चुका था । उसने एक नजर अपने बच्चे पर डाली । और बाहर निकल गयी । सब कुछ सामान्य था । रात भरपूर जवान नायिका की भांतिअंगङाईयाँ लेती हुयी मुक्त भाव से विचर रही थी । और खुद अनावृत सी होकर उसने अपना आवरण चारों और फ़ैला दिया था । एक जादू से सब सम्मोहित हुये से नींद के आगोश में थे । और निशा अंधेरे से आलिंगन सुख प्राप्त कर रही थी । अंधेरा । राजवीर के घर में भी अंधेरा फ़ैला हुआ था। वह टायलेट से फ़ारिग हो चुकी थी । और अचानक ही बिना किसी भावना के खिङकी के पास आकर खङी हो गयी । तब अक्समात ही उसे हल्का हल्का सा चक्कर आने लगा । पूरा घर उसे गोल गोल सा घूमता हुआ प्रतीत हुआ । कमरा । बेड । टीवी । सोफ़ा । उसका बच्चा । स्वयँ वह सभी कुछ उसे घूमता हुआ सा नजर आने लगा । सव कुछ मानों एक तूफ़ानी चक्रवात में घिर चुका हो । और अपने ही दायरे में गोल गोल घूम रहा हो । फ़िर उसे लगा । एक तेज तूफ़ान भांय भांय सांय सांय करता हुआ आ रहा है । और फ़िर सब कुछ उङने लगा । घर । मकान । दुकान । शहर । धरती । आसमान । लोग । वह । राजवीर । सभी तेजी से उङ रहे हैं । और बस उङते ही चले जा रहे हैं ।
और फ़िर यकायक उसकी आँखों के सामने दृश्य बदल गया । वह भयंकर तेज तूफ़ान उसे उङाता हुआ एक भयानक जंगल में छोङ गया । फ़िर एक गगनभेदी धमाका हुआ । और आसमान में जोरों से बिजली कङकी । इसके बाद तेज मूसलाधार बारिश होने लगी ।घबराकर वह जंगल में भागने लगी । पर क्यों और कहाँ भाग रही हैं । ये उसको मालूम न था । बिजली बारबार जोरों से कङकती थी । और आसमान में गोले से दागती थी । हर बार पानी दुगना तेज हो जाता था । भयानक मूसलाधार बारिश हो रही थी ।
और फ़िर वह एक दरिया में फ़ँसकर उतराती हुयी बहने लगी । तभी उसे उस भयंकर तूफ़ान में बहुत दूर एक साहसी नाविक मछुआरा दिखायी दिया । वह उसकी ओर जोरजोर से बचाओ कहती हुयी चिल्लाई । और फ़िर गहरे पानी में डूबने लगी । फ़िर उसका सिर बहुत जोर से चकराया । और वह बचाओ बचाओ चीखती हुयी लहराकर गिर गयी । - क्या ! राजवीर उछलकर बोली - क्या कह रही है तू ? क्या सच में ऐसा हुआ था ?
- मेरा यकीन कर । राजवीर तू मेरा यकीन कर ।करमकौर घबराई हुयी सी बोली - मुझे तो तेरे इसी घर में कोई भूत प्रेत का चक्कर मालूम होता है । समझ ले । मरते मरते बची हूँ मैं । तेरे जाने के बाद सारा दिन मैं तेरे लिये दुआयें ही करती रही । पूजा पाठ के अलावा किसी बात में मन ही नहीं लगा । रात बारह बजे तक मुझे चैन नसीब नहीं हुआ । जिन्दगी में इतना दर्द एक साथ मैंने पहले कभी महसूस नहीं किया ।पर नींद ऐसी होती है । सूली पर लटके इंसान को भी आ ही जाती है । सो दिन भर की सूली चढी हुयी मैं बेचारी करमकौर अभी ठीक से नींद की झप्पी ले भी नहीं पायी थी कि अचानक मेरी आँख खुल गयी ।और मुझे टायलेट जाना हुआ । बस उसके बाद मैं यहाँ खिङकी से आयी ..तू यकीन कर राजवीर । तब यहाँ खिङकी के बाहर तेरा । उसने उँगली दिखाई - ये घर नहीं था । कोई दूसरी ही दुनियाँ थी । भयानक जंगल था । एक ऐसा जादुई जंगल । जिसमें जाते ही मैं नंगी हो गयी । और किसी अज्ञात भय से भाग रही थी ।
पर राजवीर को अब उसकी बात सुनाई नहीं दे रही थी । वह उठकर खिङकी के पास पहुँची । और बाहर देखने लगी । जहाँ लान में लगे पेङ पौधे नजर आ रहे थे । वहाँ कुछ भी असामान्य नहीं था ।
राजवीर
जैसे ही वापिस लौटी । उस समय
तो वह घर चली गयी थी । फ़िर उसने
पहली फ़ुरसत में ही दोपहर को
आकर उसे सव बात बताई । जस्सी
अभी घर नहीं थी ।सतीश अनाङी था । औरत से उसका पहले वास्ता नहीं था । पर वह हेविच्युल थी । मेच्योर्ड थी । एक अनाङी था । एक खिलाङिन थी । और ये संयोग बङा अनोखा और दिलचस्प अनुभव वाला था । अभी अभी बीते क्षणों को सोचकर ही उसका बदन रोमांचित होता था । अब उसे कुछ लज्जा सी आ रही थी । और कुछ वह त्रिया चरित्र करना चाहती थी । इस तन्हाई के एक एक पल को सजाने के लिये ।
वह कपङे पहनने लगी । तब सतीश चौंककर बोला - नहाओगी नहीं..भ भाभी ?
- यू नाटी.. ब्वाय ! वह उसका कान पकङकर बोली - दर्द बेदर्द हो रही हूँ मैं । हिम्मत नहीं हो रही । पर नहाना भी चाहती हूँ ।
सतीश के मुँह से चाहत के आवेग में भरी भावना निकल गयी । मैं नहला देता हूँ । वह मसाज से ज्यादा आसान है । वह भौंचक्का रह गयी । स्त्री पुरुष का सामीप्य अनोखी स्थितियों को जन्म देता है । किसी खिलती कली के समान तमाम अनजान कलायें पंखुरियों के समान खुलने लगती है । उसने कोई ना नुकुर नहीं की । वे दोनों बाथरूम में आ गये । सतीश की उत्तेजना वह जान रही थी । ये कभी न समाप्त होने वाली भूख थी । अगले ही क्षणों में फ़िर से बह आनन्दित होकर सिसकियाँ भर रही थी । और अब रात के नौ बज चुके थे । वह टीवी के सामने बैठी हुयी फ़िल्मी सांग देख रही थी । कितनी अदभुत बात थी । पर्दे पर रोमांटिक भंगिमायें करते हर नायक नायिका में उसे अपनी और सतीश की ही छवि नजर आ रही थी । आज रात को भी वह भरपूर जीना चाहती थी ।शायद ऐसी गोल्डन नाइट जिन्दगी में फ़िर से नसीब न हो । अतः उसने अपने पुष्ट बदन पर सिर्फ़ एक गाउन पहना हुआ था । और उसका भी एक बन्द ही लगाया हुआ था । एक बन्द ।
- ये स्त्री भी अजीब पागल ही होती है । उसने सोचा - सदियों से इसने व्यर्थ ही खुद को अनेक बन्दिशों की बन्द में कैद किया हुआ है । ये एक बन्द काफ़ी है । जब दिल अन्दर । जब दिल बाहर ।
सतीश अभी काम में लगा हुआ था । तब उसे एक कल्पना हुयी । काश वह राजवीर की जगह होती । और सतीश
उसका सर्वेंट होता । तो वह उसका भरपूर यूज करती । जवानी का एक एक क्षण । एक एक एनर्जी बिट । वह स्त्री पुरुष के अभिसारी रंग से रंग देती । शायद आगे भी ऐसा मौका मिले ।पर आगे की बात आगे थी । आज की रात तो निश्चय उसके हाथ में थी । और यकीनन गोल्डन थी ।
अभिसार युक्त स्नान के बाद दोनों ने लंच किया था । और फ़िर दोपहर तीन बजे थककर चूर होकर सो गये थे । करमकौर रात में भी जागने और जगाने की ख्वाहिशमन्द थी । अतः उसने भरपूर नींद ली थी । और शाम छह बजे उठी थी । वैसे भी मुक्त और सन्तुष्टिदायक यौनाचार के बाद तृप्ति की नींद आना स्वाभाविक ही थी । सो जागने के बाद वह खुद को एकदम तरोताजा महसूस कर रही थी । महज तीन घण्टे पूर्व के वासनात्मक क्षण उसे गुजरे जमाने के पल लगने लगे थे । और वह फ़िर से अभिसार के लिये मानसिक रूप से तैयार थी ।
- कमाल की होती है । औरत के अन्दर छिपी औरत । उसने सोचा -वाकई यह अलग होती है । बाहर की औरत नकली और दिखाबटी होती है । सामाजिक रूढियों परम्पराओं के झूठे आभूषणों से लदी हुयी । बोगस दायरों में कैद । बेबसी की सिसकियाँ लेती हुयी । मुक्ति और मुक्त औरत के अहसास ही जुदा होते हैं । और वे अहसास फ़िर से जागने लगे थे ।
यही सब सोचते सोचते उसे दस बज गये । सतीश फ़ारिग होकर उसी कमरे में आ गया । पर वह उससे अपरिचित सी टीवी ही देखती रही । उसका बच्चा सो चुका था । सतीश सोफ़े पर बैठा हुआ था । वह उसकी तरफ़ से किसी पहल का इन्तजार कर रही थी । पर उसे उदासीन समझकर जब वह भी टीवी देखने में मशगूल हो गया । तब वहखुद ही उसके पास जाकर गाउन समेटकर उसकी गोद में बैठ गयी । ऐसी ही किसी पूर्व कल्पना से आभासी सतीश सिर्फ़ लुंगी में था ।
सो उसका कठोर स्पर्श महसूस करती हुयी वह आनन्द के झूले में झूलने लगी । एक कसमसाहट के बीच दोनों ने खुद को एडजस्ट किया । और फ़िर वे आन्तरिक रूप से बेपर्दा अंगो केस्पर्श को महसूस करने लगे । सतीश ने उसके गाउन में हाथ डाल दिया । और गोलाईयों को सहलाने लगा ।
पर अब उसकी इच्छा प्राकृतिकता से विपरीत अप्राकृतिक हो चली थी । जो पंजाबी पुरुषों का खास शौक था । और पंजाबन औरतों की एक अजीव लत । जिसकी वे पागल हद तक दीवानी थी । अतः इस खेल के अनाङी सतीश को वह भटकाती हुयी वासना की भूलभुलैया युक्त अंधेरी सुरंगों में ले गयी ।
और तब रात के बारह बज चुके थे । अभी अभी सोई करम कौर की अचानक किसी वजह से नींद खुल गयी थी । उसे टायलेट जाने की आवश्यकता महसूस हो रही थी । सतीश अपने कमरे में जा चुका था । उसने एक नजर अपने बच्चे पर डाली । और बाहर निकल गयी । सब कुछ सामान्य था । रात भरपूर जवान नायिका की भांतिअंगङाईयाँ लेती हुयी मुक्त भाव से विचर रही थी । और खुद अनावृत सी होकर उसने अपना आवरण चारों और फ़ैला दिया था । एक जादू से सब सम्मोहित हुये से नींद के आगोश में थे । और निशा अंधेरे से आलिंगन सुख प्राप्त कर रही थी । अंधेरा । राजवीर के घर में भी अंधेरा फ़ैला हुआ था। वह टायलेट से फ़ारिग हो चुकी थी । और अचानक ही बिना किसी भावना के खिङकी के पास आकर खङी हो गयी । तब अक्समात ही उसे हल्का हल्का सा चक्कर आने लगा । पूरा घर उसे गोल गोल सा घूमता हुआ प्रतीत हुआ । कमरा । बेड । टीवी । सोफ़ा । उसका बच्चा । स्वयँ वह सभी कुछ उसे घूमता हुआ सा नजर आने लगा । सव कुछ मानों एक तूफ़ानी चक्रवात में घिर चुका हो । और अपने ही दायरे में गोल गोल घूम रहा हो । फ़िर उसे लगा । एक तेज तूफ़ान भांय भांय सांय सांय करता हुआ आ रहा है । और फ़िर सब कुछ उङने लगा । घर । मकान । दुकान । शहर । धरती । आसमान । लोग । वह । राजवीर । सभी तेजी से उङ रहे हैं । और बस उङते ही चले जा रहे हैं ।
और फ़िर यकायक उसकी आँखों के सामने दृश्य बदल गया । वह भयंकर तेज तूफ़ान उसे उङाता हुआ एक भयानक जंगल में छोङ गया । फ़िर एक गगनभेदी धमाका हुआ । और आसमान में जोरों से बिजली कङकी । इसके बाद तेज मूसलाधार बारिश होने लगी ।घबराकर वह जंगल में भागने लगी । पर क्यों और कहाँ भाग रही हैं । ये उसको मालूम न था । बिजली बारबार जोरों से कङकती थी । और आसमान में गोले से दागती थी । हर बार पानी दुगना तेज हो जाता था । भयानक मूसलाधार बारिश हो रही थी ।
और फ़िर वह एक दरिया में फ़ँसकर उतराती हुयी बहने लगी । तभी उसे उस भयंकर तूफ़ान में बहुत दूर एक साहसी नाविक मछुआरा दिखायी दिया । वह उसकी ओर जोरजोर से बचाओ कहती हुयी चिल्लाई । और फ़िर गहरे पानी में डूबने लगी । फ़िर उसका सिर बहुत जोर से चकराया । और वह बचाओ बचाओ चीखती हुयी लहराकर गिर गयी । - क्या ! राजवीर उछलकर बोली - क्या कह रही है तू ? क्या सच में ऐसा हुआ था ?
- मेरा यकीन कर । राजवीर तू मेरा यकीन कर ।करमकौर घबराई हुयी सी बोली - मुझे तो तेरे इसी घर में कोई भूत प्रेत का चक्कर मालूम होता है । समझ ले । मरते मरते बची हूँ मैं । तेरे जाने के बाद सारा दिन मैं तेरे लिये दुआयें ही करती रही । पूजा पाठ के अलावा किसी बात में मन ही नहीं लगा । रात बारह बजे तक मुझे चैन नसीब नहीं हुआ । जिन्दगी में इतना दर्द एक साथ मैंने पहले कभी महसूस नहीं किया ।पर नींद ऐसी होती है । सूली पर लटके इंसान को भी आ ही जाती है । सो दिन भर की सूली चढी हुयी मैं बेचारी करमकौर अभी ठीक से नींद की झप्पी ले भी नहीं पायी थी कि अचानक मेरी आँख खुल गयी ।और मुझे टायलेट जाना हुआ । बस उसके बाद मैं यहाँ खिङकी से आयी ..तू यकीन कर राजवीर । तब यहाँ खिङकी के बाहर तेरा । उसने उँगली दिखाई - ये घर नहीं था । कोई दूसरी ही दुनियाँ थी । भयानक जंगल था । एक ऐसा जादुई जंगल । जिसमें जाते ही मैं नंगी हो गयी । और किसी अज्ञात भय से भाग रही थी ।
पर राजवीर को अब उसकी बात सुनाई नहीं दे रही थी । वह उठकर खिङकी के पास पहुँची । और बाहर देखने लगी । जहाँ लान में लगे पेङ पौधे नजर आ रहे थे । वहाँ कुछ भी असामान्य नहीं था ।
- सच्ची ! मैं एकदम सच बोल रही हूँ । वह फ़िर से बोली - मुझे एकदम ठीक ठीक याद है । टायलेट जाते समय मैंने घङी देखी थी । उस समय बारह बजे थे ।फ़िर मैं चकराकर यहाँ । उसने जमीन की तरफ़ उँगली से इशारा किया - यहाँ गिर पङी थी । और जब मुझे होश आया । मैं संभली । मैंने फ़िर घङी देखी थी । तब तीन बज चुके थे । पूरे तीन घण्टा मैं बेहोश सी पङी रही ।
- ठहर । ठहर । राजवीर ने उसे टोका - जब तू बेहोश सी हो गयी । उस टाइम क्या हुआ ?
- अरी पागल है क्या । करम कौर झुँझलाकर बोली - बेहोश मतलब बेहोश । उस टाइम का भी कुछ पता रहता हैक्या ? क्या हुआ । क्या नहीं हुआ । वैसे हुआ हो । तो मुझे पता नहीं । मैं तो मानों आपरेशन से पहले वाले नींद के इंजेक्शन के समान नशे में थी । और पूरे तीन घण्टे रही ।
- नहीं नहीं ! राजवीर बोली - मेरा मतलब था ।वो नाविक मछुआरा..कहीं उसने तेरी बेहोशी का..कोई फ़ायदा तो नहीं उठाया । ऐसा कुछ तुझे फ़ील हुआ हो । जैसे भूत बूत । वह भय से जस्सी की कल्पना करती हुयी बोली - अक्सर जवान औरत का फ़ायदा उठा लेते हैं । नहीं मैंने ऐसा पढा है । फ़िल्मों में भी देखा है ।
- अरे नहीं । वो सालिआ ऐसा कुछ करता । करमकौर अपने स्तन पर हाथ रखकर बोली - फ़िर मैं तीन घण्टे नहीं । तीन दिन बेहोश रहने वाली थी । एकदम टार्जन लुक ।..पर अपनी किस्मत में तो ये दाढी वाले सरदार ही लिखे हुये हैं । हिन्दू आदमी की बात ही अलग होती है ।
अजीव होती है ये औरत भी । शायद इसको समझना बहुत मुश्किल ही है । वह भयभीत थी । आशंकित थी । पर रोमांचित थी । वह सब क्या था । जस्सी के साथ क्या हुआ था ? क्या वही टार्जन लुक नौजवान उसका प्रेमी था ।बकौल राजवीर जिससे वह बात करती रहती थी । वह उस दृश्य में पहुँचकर नंगी कैसे हो गयी थी । तब जस्सी के साथ क्या होता था । क्या वह उसके साथ काम सुख प्राप्त कर चुकी थी । भय की इन परिस्थितियों में भी ये विचार एक साथ दोनों के दिमाग में आ रहे थे । और भारी हलचल मचाये हुये थे ।दूसरे राजवीर इस मामले की खेली खायी औरत थी । उसे साफ़ साफ़ लग रहा था । आज करमकौर उससे कुछ छुपा रही है । उसके चेहरे पर भय के वे रंग ही नहीं थे । जो होने चाहिये थे । बस एक क्षण को जब वह रहस्यमय चक्रवात की बात करती थी । तब वाकई लगता था कि वह सच बोल रही है । बाकी और बात करते समय तो यही लगता था कि वह ****न की सैर करके आयी हो । भरपूर रंगरेलियाँ मनायी हों । पर बात इण्डियन कल्चर की कररही हो । जाने क्यों राजवीर को दाल में कुछ काला सा नजर आया । बल्कि उसे पूरी दाल ही काली नजर आ रही थी । दाल दाल तो सिर्फ़ उतनी ही थी । जब वह खिङकी के पार टार्जन लुक मछुआरे की बात करती थी । दाता ! क्या माजरा था । क्या बलाय घुस गयी थी घर में ।उसकी खासमखास भी झूठ बोल रही थी । उसके मन में ये भी आया । काश ! वह जस्सी या करम कौर की जगह होती । तो ये अनुभव उसके साथ भी होता । तब उसने मन ही मन तय किया । रात बारह बजे वह खुद भी खिङकी के पास आकर जादू देखेगी कि आखिर सच क्या है ?
************************
 
No comments:
Post a Comment