अँधेरा -06

 - ओये बेबे ! सच मैं साफ़ साफ़ देख रहा हूँ । गुरुदेव सिंह दोनों के स्तनों का दृष्टिक रसपान करता हुआ बोला - तेरे घर में बङी तगङी बलाय घुसी हुयी है । चार बङे बङे जिन्नात तो मेरे कू साफ़ साफ़ दिख रहे हैं । बस थामने की देर है । फ़िर देखना । इस बाबे दा हुनर ।
गुरुदेव सिंह चौहान एक हरामी बाबा था । साधुओं के नाम पर कलंक था । दाग था । और अपनी हरामगीरी के चलते ही साधु बना था । वास्तव में उसने बाबाओं की संगति में दो चार जन्तर मन्तर सीख लिये थे । जिन्हें पढकर वो किसी के लिये ताबीज बना देता था ।किसी को गण्डा बँधवा देता था । साधुओं की संगति में ही वह
वास्तविकता रहित नकली पूजा पाठ करना सीख गया था । और तांत्रिक गद्दी लगाने के थोथे आडम्बर सीख गया था । जिनसे न किसी को फ़ायदा होना था । और न ही कोई नुकसान । यह कुछ कुछ मनोबैज्ञानिक रूप से उन भृमित लोगों के लिये डिस्टल वाटर के डाक्टरी इंजेक्शन जैसा था ।जिसे डाक्टर कोई भी बीमारी न होने पर सिर्फ़ इसलिये लगाते हैं कि उस मरीज को सीरियसली लगता है कि वो बीमार है । और पानी के इसी रंगीन इंजेक्शन के वह खासे पैसे वसूल करता है । और मरीज मनोबैज्ञानिक प्रभाव से ठीक होने लगता है ।यही हाल बाबा गुरुदेव सिंह का था । उसका सिर्फ़ दिखावे का भेस था । जो अक्सर ही ज्यादातर पंजाब के नकली बाबाओं की खासियत थी । वो कोई प्रेत बाधा ठीक करना नहीं जानता था । और न ही उसे इन बातों की कोई समझ थी । पर इस बाबागीरी में उसे हर तरफ़ मौज मलाई मिली थी । सो चैन की छानता हुआ वह इसी में रम गया था । कोई न कोई अक्ल का अंधा अंधी उससे टकरा ही जाता था । और फ़िर उसकी बल्ले बल्ले ही हो जाती थी ।
विधवा हो जाने के बाद कुछ दिनों तक इधर उधर टाइम पास करती करम कौर को किसी औरत के माध्यम से गुरुदेव सिंह का पता चला था । और तब वह उससे मिली थी । अपनी विधवा स्थितियों में वह मानसिक टेंशन में आ गयी थी । और शान्ति के लिये । अपने आगे के अच्छे दिनों की जानकारी के लिये वह बाबाओं के पास घूमती फ़िरी थी । तब से वह गुरुदेव सिंह से परिचित थी ।
गुरुदेव सिंह ने उसकी झाङ फ़ूँक शान्ति के नाम पर पूरा ऊपर से नीचे तक टटोल लिया था । यहाँ तक कि वह बहकने लगी थी । और खुद उसका दिल होने लगा कि बाबा को स्वयँ बोल दे । मन्तर बाद में चलाना । पहले उसकी बचैनी दूर कर दे । और अभी कल से सतीश से जिस्मानी परिचय होने के बाद उसकी भावनायें अलग ही हो गयी थीं । जिन्दगी का जितना मजा लूट सकते हो लूटो । कल का कोई भरोसा नहीं । और स्वर्ग नरक किसने देखा है ।
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क्या ? वे दोनों सचमुच उछलकर बोली - क्या बाबाजी । चार चार जिन्नात । हाय रब्ब । ये क्या मुसीबत है । बाबाजी आप कुछ करो ना । हमें इस मुसीबत से निकालने के लिये ।
गुरुदेव सिंह की बिल्लौरी आँखों में एक भूखी चमक उभरी । पर इस मामले में वह खासा समझदार था । उसने राजवीर को कमरे से बाहर जाने को कहा । और करम कौर को अन्दर ही रोक लिया । फ़िर उसने एक भभूति जैसी राख और कुछ मोरपंखी झाङन जैसा थैले से निकाला ।
कोई बीस मिनट बाद उसने राजवीर को अन्दर बुलाया । और करमकौर को बाहर जाने को कहा । अन्दर आते समय राजवीर ने देखा । करमकौर के चेहरे पर अजीव से रोमांच के भाव थे । क्या हुआ था । इसके साथ । उसने धङकते दिल से सोचा । और डरते डरते अन्दर आ गयी । गुरुदेव सिंह ने उसे दरबाजा बन्द करने का आदेश दिया ।कमरे में अजीव सी कसैली और मिश्रित दारू की सी गन्ध आ रही थी । जब वह गुरुदेव सिंह के पास आयी । तो उसे वैसी ही गन्ध उसके मुँह से महसूस हुयी । कमरे में सिगरेट का धुँआ अलग से भरा हुआ था । उस पर कमराबन्द और होने से दमघोंटू वातावरण था । यह फ़र्जी साधुओं का औरतों को चक्कर में डालकर घनचक्कर बनाने का पुराना साधुई नुस्खा था । जिसे वह बेचारी नहीं जानती थी ।
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देख बेबे ! वह चेतावनी सी देता हुआ कठोर स्वर में बोला - तूने इलाज कराना हो । तो वैसा सोचना । ये जिन्नात का मामला बहुत बुरा होता है । ये औरत को सिर्फ़ औरत के तौर पर देखते हैं ।तू समझ गयी ना । अगर तेरी सेवा के बदले राजी होकर तेरी छोरी को छोङ दे । तो उसके देखे । ये ज्यादा बुरा नहीं है । इसलिये तू पहले सोच ले । फ़िर तू सोचे । इसमें मेरा कोई दोष है । मुझे तो दूसरे का दुख दूर करना ही ठीक लगता है । बाकी हम बाबाओं को दुनियाँदारी से क्या लेना ।
कुछ कुछ समझती हुयी । कुछ कुछ ना भी समझती हुयी राजवीर ने सहमकर उसके समर्थन में सिर हिलाया । जिन्नात का नाम सुनकर ही उसकी हवा खराब हो उठी थी । वो भी उसकी बेटी पर । वो भी उसके घर में । वह पूरा सहयोग करने को तैयार हो गयी ।
तब गुरुदेव सिंह ने उसे कमरे के बीचोबीच खङा कर दिया । और अगरबत्तियाँ सुलगा दी । फ़िर वह राजवीर के पास आया । और कोई तीखी गन्ध वाली जङी सी उसे सुंघाई । राजवीर हल्के हल्के नशे का सा अनुभव करने लगी । पर वह पूरे होश में थी ।
उसने सिन्दूर मिली भभूत उसके माथे पर लगा दी । फ़िर उसके ठीक पीछे आकर खङा हो गया । वह भभूत की बिन्दियाँ सी उसके गाल पर लगा रहा था । वह राजवीर से एकदम सटकर खङा था । और उसके विशाल नितम्बों से लगा हुआ था ।
उसकी तरफ़ से कोई विरोधी प्रतिक्रिया न पाकर गुरुदेव सिंह ने उसकी कुर्ती में हाथ डाल दिया । और भभूत उसके स्तनों पर मलने लगा । राजवीर उत्तेजित होने लगी । पर क्या हो सकता था । चुप रहना उसकी मजबूरी थी । बाबाउसके पूरे बदन पर हाथ फ़िरा रहा था । और फ़िर वह उसको बहकाता हुआ सा कमर के पास ले आया । पैरों के बीच उसका हाथ जाते ही राजवीर कसमसाने लगी । बाबा ने उसका बन्द खोल दिया ।- चिन्ता न कर । वह फ़ुसफ़ुसाया - वह खुश हो जायेगा । फ़िर नुकसान नहीं करेगा । ठीक है ।
राजवीर ने समर्थन में सिर हिला दिया । बाबा ने उसको झुका दिया । और उसके नितम्बों के करीब हुआ । राजवीर ने भय से आँखे बन्द कर ली । फ़िर उसे अपने अन्दर कुछ सरकने का सा आभास हुआ । एक गरमाहट सी उसके अन्दर भरती जा रही थी । रोकते रोकते भी उसके मुँह से आह निकल गयी । फ़िर उसके विशाल अस्तित्व पर चोटों की बौछार सी होने लगी । और वह बेदम सी होती चली गयी ।
क्या अजीब बात थी । वह भूल गयी थी । किसलिये आयी है । क्या परेशानी है । और उस नयी स्थिति को अनुभव करती हुयी पूर्णतया आत्मसात करने लगी । एक ऊँची हाँफ़ती सी चढाई चढती हुयी । वह गहरी गहरी सांसे लेने लगी । तब बाबा उसके ऊपर ढेर हो गया । राजवीर के अन्दर गर्म लावा सा बहने लगा ।
खिङकी की झिरी से आँख लगाये खङी करम कौर अलग हट गयी । उसके चेहरे पर अजीव सी मुस्कराहट थी । राजवीर ने कोई विरोध नहीं किया । इस बात की उसे बङी हैरत हुयी । उसे लगने लगा । उसकी तरह शायद राजवीर भी बहुभोग की अभ्यस्त थी । या फ़िर औरत होती ही ऐसी हैकि जल्दी समर्पण कर देती है । कुछ भी हो । इस बात के लिये वह किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुँची ।
आखिर इस जिन्दगी का ही क्या निष्कर्ष है ? शायद कोई नहीं जानता । एक विशाल तूफ़ानी सैलाव की तरह जिन्दगी सबको बहाये ले जा रही है । कल जो अच्छा बुरा हुआ था ।उस पर हमारा कोई वश नहीं था । आगे भी जो होगा । उस पर भी कोई वश नहीं होगा । बच्चों की टाय ट्रेन की सीट पर बैठे किसी नादान बच्चे के समान ही इंसान जिन्दगी की इस रेल में गोल गोल घूम रहा है ।
रोज दिन होता है । रोज फ़िर वही रात होती है । रोज वही निश्चित दिनचर्या । कोई मरता है । कोई जीता है । कोई सुखी है । कोई दुखी है । कोई अरमानों की सेजपर मिलन के फ़ूल चुन रहा है । कोई विरहा के कांटों से घायल दिन गिन रहा है । पर जिन्दगी मौत को इस सबसे कोई मतलब नहीं ।उसका काम निरन्तर जारी ही रहता है ।
जस्सी की समस्या का भी कोई हल अभी समझ में नहीं आया था । बल्कि अभी समस्या ही समझ में नहीं आयी थी । बल्कि कभी कभी ये भी लगता था कि उसे दरअसल कोई समस्या ही नहीं थी । उसकी सभी मेडिकल रिपोर्ट नार्मल आयी थी । उनमें वीकनेस जैसा कुछ शो करने वाला भी कोई प्वाइंट नहीं था । तब डाक्टरों ने वैसे ही उसे टानिक टायप सजेस्ट कर दिया था ।
और वह पहले की तरह आराम से कालेज जाती थी । हाँ बस इतना अवश्य हुआ था कि राजवीर ने अब मनदीप से छुपाना उचित नहीं समझा था । और उसे सब कुछ न सिर्फ़ बता दिया था । बल्कि मौके पर दिखा भी दिया था । तब बराङ पहली बार चिंतित सा नजर आया ।और गम्भीरता से इस पर सोचने लगा । पर वह बेचारा क्या सोचता । ये तो उसके पल्ले से बाहर की बात थी । वह सिर्फ़ महंगे से महंगा इलाज करा सकता था । किसी की ठीकठाक राय पर अमल कर सकता था । या फ़िर शायद वह कुछ भी नहीं कर सकता था । और कुदरत का तमाशा देखने को विवश था । और तमाशा शुरू हो चुका था ।

सुबह के नौ बज चुके थे । जस्सी स्कूटर से कालेज जा रही थी । हमेशा की तरह उसके पीछे चिकन वाली उर्फ़ गगन कौर बैठी हुयी थी । और वह रह रहकर जस्सी के नितम्बों पर हाथ फ़िराती थी ।
जस्सी को उसकी ऐसी हरकतों की आदत सी पङ चुकी थी । बल्कि अब ये सब उसे अच्छा भी लगता था । गगन इस मामले में बहुत बोल्ड थी । जब क्लासरूम में टीचर ब्लेक बोर्ड पर स्टूडेंट की तरफ़ पीठ किये कुछ समझा रहा होता था । वह जस्सी को शलवार के ऊपर से ही सहलाती रहती थी । और जब तब उसके स्तन को पकङ लेती थी । उत्तेजित होकर मसल देती थी ।
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जस्सी । ख्यालों में डूबी गगन बोली - काश यार क्लासरूम की सीट पर कोई ब्वाय हमारे बीच में बैठा होता । तो मैं उसका हैंडिल ही घुमाती रहती । और वह बेचारा चूँ भी नहीं कर पाता ।
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क्यों ! जस्सी मजा लेती हुयी बोली - वो क्यों चूँ नहीं कर पाता । क्या वो टीचर को नहीं बोल सकता । तू उसका पाइप उखाङने पर ही तुली हुयी है ।
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अरे नहीं यार । वह बुरा सा मुँह बनाकर बोली - ये लङके बङे शर्मीले होते हैं । वो बेचारा कैसे बोलता । मैं उसके साथ क्या कर रही हूँ । देख तू कल्पना कर । तू किसी भीङभाङ वाले शाप काउंटर पर झुकी हुयी खङी है । अबाउट45 डिगरी । फ़िर पीछे से तुझे कोई फ़िंगर यूज करे । अपना हैंडिल टच करे । बोल तेरा क्या रियेक्ट होगा ।
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मैं चिल्लाऊँगी । शोर मचाऊँगी । उसको सैंडिल से मारूँगी ।
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ओह शिट यार । ये सब फ़ालतू के ख्यालात है ।कोई भी ऐसा नहीं कर पाता । देख मैं बताती हूँ । क्या होगा । तू यकायक चौंकेगी । सोचेगी । ये क्या हुआ । और फ़िर तेरा माउथ आटोमैटिक लाक्ड हो जायेगा । तू सरप्राइज्ड फ़ील करेगी । एक्साइटिड फ़ील करेगी । अब 1% को मान ले । तू चिल्लायेगी । उसको सैंडिल से मारेगी । मगर जमा पब्लिक को क्या बोलेगी । उसने तुझे सेक्सुअली टच किया । कहाँ किया । कैसे किया । बता सकेगी । साली इण्डियन लेडी । भारतीय नारी । घटिया सोच ।
जस्सी भौंचक्का रह गयी । वह चिकन वाली को बे अक्ल समझती थी । पर वह तो गुरुओं की भी गुरु थी । पहुँची हुयी थी । नम्बर एक कमीनी थी । टाप की नालायक थी ।
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एम आई राइट ! गगन फ़िर से बोली - वो मुण्डा कुछ नहीं कह सकता ।मानती हैं ना । और फ़िर वो सालिआ क्यों कहने लगा । स्टडी और रोमेंस एक साथ । एक टाइम । किसी नसीब वाले को ही नसीब हो सकते हैं ।
जस्सी को लगा । वह एकदम सही कह रही है । हकीकत और कल्पना में जमीन आसमान का अन्तर होता है । एक बार उसको भी एक आदमी ने उसके नितम्ब पर चुटकी काटी थी । पर तब वह सिटपिटा कर भागने के अलावा कुछ नहीं कर पायी थी ।- जस्सी । गगन फ़िर बोली - तुझे मालूम है । मेरी वर्जिनिटी ब्रेक हो चुकी है । मैंने बहुत बार एंजाय किया है ।
जस्सी लगभग उछलते उछलते बची ।
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हाँ यार । वो साला मेरा एक ब्वाय फ़्रेंड था । मेरे पीछे ही पङ गया सालिआ । एक दिन वो मेरे को अपने दोस्त के खाली के मकान में ले गया । और मेरे लेप डाउन में अपना पेन ड्राइव इनसर्ट कर दिया । सालिआ अपना पूरा डाटा ही डाउनलोड करके उसने मुझे छोङा ।अभी मोटी अक्ल की भैंस । ये मत बोलने लगना कि - ये लेप डाउन क्या
होता है ? लेप टाप साले गंवार बोलते हैं । अभी तू बोल । लेपी कम्प्यूटर गोद में नीचे रखते हैं । या ऊपर ? जब गोद ही नीची हुयी । तो लेपी टाप कैसे हुआ । तब डाउन ही बोलो ना उसको ।
जस्सी के मुँह से जोरदार ठहाका निकला । क्या फ़िलासफ़ी थी साली की । एकदम सेक्सी बिच । इसको हर जगह हर समय एक ही बात नजर आती थी । हर डण्डे में अपनी झण्डी फ़ँसाना । क्या कुङी थी ये चिकन वाली भी ।
उसका अच्छा खासा सुबह सुबह का पढाई का मूड कमोत्तेजना में परिवर्तित हो गया था । एक तो वैसे ही सुन्दर और सेक्सी लङकी हर विपरीत लिंगी नजर के बर्ताव से सेक्सी फ़ीलिंग महसूस करती है ।उस पर गगन जैसी सहेली हो । फ़िर तो क्या बात थी । उसके बदन में चीटियाँ सी रेंगने लगी । एक भीगापन सा उसे साफ़ साफ़ महसूस हो रहा था । उसका दिल करने लगा था । गगन उससे किसी ब्वाय फ़्रेंड सा बर्ताव करे । और उसके जजबातों को दरिया खुलकर बहे । फ़िर उसने अपने आपको कंट्रोल किया ।
लेकिन अब नियन्त्रण करना मुश्किल सा हो रहा था । इस उत्तेजना को चरम पर पहुँचाये बिना रोका नहीं जा सकता था ।इच्छाओं का बाँध पूरे वेग से टूटने वाला था । सो उसने स्कूटर को कालेज की बजाय एक कच्चे रास्ते पर उतार दिया । जहाँ झूमती हुयी हरी भरी लहराती फ़सलों के खेतों का सिलसिला सा था । गगन एक पल को चौंकी । पर कुछ बोली नहीं । वे दोनों खेत में घुस गयी ।और एक दूसरे से खेलती हुयी सुख देने लगी ।
और तब जब जस्सी निढाल सी थकी हुयी सी सुस्त पङी थी । उसका दिमाग शून्य होने लगा । उसे तेज चक्कर से आने लगे । उसकी आँखे बन्द थी । पर उसे सब कुछ दिख रहा था । पूरा खेत मैदान उसे गोल गोल घूमता सा प्रतीत हुआ । खेतों में खङी फ़सल । आसपास उगे पेङ । उसका कालेज । सभी कुछ उसे घूमता हुआ सा नजर आने लगा । फ़िर उसे लगा । एक भयानक तेज आँधी सी आ रही है । और सब कुछ उङने लगा । घर । मकान । दुकान । लोग । वह । गगन । सभी तेजी से उङ रहे हैं । और बस उङते ही चले जा रहे हैं ।
और फ़िर यकायक जस्सी की आँखों के सामने दृश्य बदल गया । वह तेज तूफ़ान उन्हें उङाता हुआ एक भयानक जंगल में छोङ गया । फ़िर एक गगनभेदी धमाका हुआ । और आसमान में जोरों से बिजली कङकी । इसके बाद तेज मूसलाधार बारिश होने लगी । वे दोनों जंगल में भागने लगी ।पर क्यों और कहाँ भाग रही हैं । ये उनको भी मालूम न था । बिजली बारबार जोरों से कङकङाती थी । और आसमान में गोले से दागती थी । हर बार पानी दुगना तेज हो जाता था ।
फ़िर वे दोनों बिछङ गयीं । और जस्सी एक दरिया में फ़ँसकर उतराती हुयी बहने लगी । तभी उसे उस भयंकर तूफ़ान में बहुत दूर एक साहसी नाविक मछुआरा दिखायी दिया । जस्सी उसकी ओर जोर जोर से बचाओ कहती हुयी चिल्लाई । और फ़िर गहरे पानी में डूबने लगी ।
और तब जस्सी का सिर बहुत जोर से चकराया । और वह बचाओ बचाओ चीखती हुयी बेहोश हो गयी । अपनी धुन में मगन गगन कौर के मानों होश ही उङ गये । उसकी हालत खराब हो गयी । अचानक उसे कुछ नहीं सूझ रहा था । कुछ भी तो नहीं ।




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