अँधेरा -09

फ़िर वह सचमुच ही ज्यों का त्यों उस चक्रवाती तूफ़ान का वर्णन । और उसमें खुद के भागने की बात । उस टार्जन लुक युवा लङके को देखने की बात । और दरिया में अपने डूबने तक बताती चली गयी । बस उसने अपनी नग्नता की स्थिति में खामखाह का मिर्च मसाला जोङा था । जो प्रसून को स्पष्ट ही बनाबटी लगा । और एकदम झूठा लगा । पर करमकौर को इसकी कोई परवाह नहीं थी । उसे झूठा सच्चा कुछ भी लगे । उसे अपनी तरफ़ आकर्षित करना ही उसका एकमात्र लक्ष्य था ।
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सोचिये प्रसून जी सोचिये । वह होठ दबाकर रोमांचित हुयी सी बोली - मैं बेचारी यह सोच सोचकर मरी जा रही हूँ । यदि बह नाविक मछुआरा मेरी पुकार सुन लेता । और मेरे पास आता । तब वह मेरे साथ क्या बिहेव करता । ध्यान रहे । मैं बिना कपङों में थी ।
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बही । प्रसून उसकी भावनाओं को मनो सन्तुष्टि देने के ख्याल से बोला - वही करता । जो ऐसी स्थिति में एक पुरुष एक खूबसूरत भरपूर जवान स्त्री के साथ करता है । वैसे मैं उसकी नहीं जानता । पर मैं तो निश्चय ही यही करता ।
तब करमकौर के गाल शर्म से लाल हो उठे । उसे पहली बार लज्जा सी आ गयी । उसे पहली बार मानों ख्याल आया । वह अभी भी नग्न सी ही है । और तब उसने नकली हङबङाहट के साथ अपने स्तनों को कुर्ती के अन्दर कर लिया । प्रसून ने चेहरे पर आती रहस्यमय मुस्कराहट को फ़ौरन रोका । और बहुत हल्का सा सामान्य मुस्कराया ।
आसान नहीं होता । ऐसी परिस्थितियों में ठीक से काम करना । सबको सब कुछ समझा पाना भी आसान नहीं है । किसी विदेशी फ़्री सेक्स धरती की तरह पंजाब में भी काम भावना की लहरें सी बह रही थीं । और सबसे बङी बात थी कि वह इस केस में एकदम से कोई प्रभाव भी नहीं छोङ सकता था । कोई झूठे तन्त्र मन्त्र का दिखावा करने से तो उसे वैसे ही नफ़रत थी । फ़िर वह दामाद की तरह इस घर में कब तक ठहरा रह सकता था । जबकि निजी तौर पर उसकी भारी दिलचस्पी इस केस में थी ।
जस्सी उसे खुद को आकर्षित करती थी । गगन कौर बस उसके साथ सेक्स करने के ख्वाव देखती रहती थी । करम कौर तो बस मौका मिलते ही उस पर टूट पङना चाहती थी । हाँ राजवीर बेकरारी से उस पल के इन्तजार में थी । जब प्रसून इस रहस्य पर से कोई परदा उठायेगा । या कहेगा । तुम्हारी लाङली अब ठीक हो गयी । और जाने किस अज्ञात भावना से उसको ऐसी ही उम्मीद भी थी ।
सिर्फ़ बराङ साहब के लिये उसे लगा था कि वह कोई फ़ालतू का बखेङा खङा कर सकते है । और उसके काम में विघ्न पैदा कर सकते है । उन्होंने एक जवान बेटी का पिता होने के नाते प्रसून को संदेह की नजर से देखा भी था । पर यह क्षणिक भावना ही साबित हुयी थी । प्रसून की किसी को भी सम्मोहित कर देने वाली जादुई पर्सनालिटी से अगले दो मिनट में ही वह खुद को उसके आगे बौना महसूस करने लगा । उसकी अमीरी का रौब पल भर में चूर चूर हो गया । जब उसे इस लङके की हस्ती पता लगी ।
वैसे भी व्यक्ति का व्यक्तित्व उसके बताने से नहीं स्वयँ उसकी आभा से झलकता है । जब उसे पता लगा । प्रसून कीट बैज्ञानिक है । और उसका एक पाँव रूस में तो दूसरा योरोप में अक्सर रहता है । जब उसने औपचारिकता वश ही अपने शेयर बिजनेस और रिसर्च वर्क के बारे में बहुत संक्षिप्त सा परिचय दिया । तो बराङ साहब को हिसाब लगाना मुश्किल हो गया । इसकी आमदनी कितनी हो सकती है ।
उसने उसकी आलीशन कोठी और वैभव पर एक मामूली सी निगाह डालना भी उचित नहीं समझा था । उसने उसकी आलीशान बेटी को भरपूर देखना तो दूर अभी देखने की ही कोई कोशिश नहीं की । जबकि वह दस बार उसके सामने आ चुकी थी । यह सब अनुभव किसी इंसान के प्रति होना बराङ की जिन्दगी में पहला वाकया था ।
बह कुछ ही देर पहले आया था । और औपचारिक रूप से भावहीन हल्लो बोलकर अपने पास से एक मैगजीन निकालकर उसे पढने लगा था । क्योंकि अभी बातचीत शुरू नहीं हुयी थी । और राजवीर उसके स्वागत में नाश्ता आदि इन्तजाम में लगी हुयी थी । और ये सब घोर अहंकारी बराङ साहब के जीवन में पहली बार हो रहा था । जब वह अपने ही घर में अपने तमाम रौब दाब के बाबजूद भी उस लङके के आगे खुद को बेहद छोटा महसूस कर रहा था । और उससे कोई बातचीत कर पाने में उसकी खुद की जबान ही अटक जाती थी । शब्द बाहर नहीं आते थे । मगर प्रसून को जैसे उसकी उपस्थिति का अहसास तक नहीं था ।
और फ़िर वही हुआ । अहंकारी बराङ तब तक उससे बात करने की हिम्मत नहीं जुटा पाया । जब तक चाय नाश्ता आ जाने पर प्रसून सबके बैठ जाने पर स्वयँ ही उनकी और आकर्षित नहीं हुआ । और बातचीत शुरू हुयी । उसकी शिष्टता शालीनता और मामूली से मामूली गतिविधि से स्वाभाविक ही झलकता राजसी अन्दाज देखकर दोनों पति पत्नी मानों आकाश में उङने लगे । और मानवीय स्वभाव वश सुन्दर जस्सी के साथ उसकी सुन्दर जोङी की कल्पना करने लगे ।
यहाँ तक तो सामान्य बात थी । दोनों को बेहद खुशी इस बात की हुयी थी कि जबसे तीन चार दिन से वह उनके घर रुका था । जस्सी एकदम नार्मल हो गयी थी । उसे रात या दिन में कोई अज्ञात बाधा नहीं हुयी थी । उनकी फ़ूल सी बच्ची बिलकुल ठीक सी हो गयी लगती थी । जबकि उसका इलाज करने आये उस जादूगर ने किसी पूजा रचा के नाम पर एक अगरबत्ती भी नहीं सुलगाई थी । मुँह से ॐ टायप या किसी गुरु या भगवान या ग्रन्थ का ना नाम लिया था । ना कोई पन्ना खोला था । जिसकी वे आम कल्पना कर रहे थे । उससे भी बङी हैरत उन्हें इस बात की थी कि वे उसके सामान में किसी तान्त्रिकी मान्त्रिकी हड्डियाँ माला गुटके आदि की अपेक्षा कर रहे थे । जबकि उसके पास एक उच्च शिक्षित और उच्च पदाधिकारी वाला ही सामान था । कुछ भी हो । उसने उनकी बेटी को बिना किसी तामझाम के जादुई तरीके से ठीक किया था । यही उनके लिये बहुत बङी राहत थी ।
और जो उनके लिये सबसे बङी राहत थी । दरअसल वही प्रसून के लिये सबसे बङी आफ़त थी । वह चाह रहा था कि बाधा हो । और फ़ुल्ली अटैक हो । जो वह उसका कोई सिरा सूत्र पकङ सके । अगर वह वीडियो क्लिप ना होते । तो खुद वह मानने को तैयार नहीं होता । जस्सी किसी गम्भीर भाव से पीङित है । यह बाधा उसके आने से क्यों नहीं हो रही थी । यह वह भली प्रकार जानता था । दरअसल उसके ध्यानी शरीर से निकलने वाली योग तरंगे ऐसे किसी बाह्य तरंग को पहुँचने से पहले ही नष्ट कर देती थी ।
अब तक बस वह इतने ही निर्णय पर पहुँचा था । ये किसी तरह की सामान्य प्रेत बाधा नहीं थी । नींद में चलने का रोग भी नहीं था । उसके दिमाग में किसी तरह की कोई ऐसी मेमोरी भी उसे नहीं मिली थी । जो ऐसे अटैक का कारण हो सकती थी । और तब बहुत बार सोचने के बाद वह इस निष्कर्ष पर पहुँचा था कि जस्सी के कारण शरीर में कोई ऐसा संस्कार जमा है । जो उसके पूर्व जन्म से संबन्धित है । और जब वह किसी विशेष बिन्दु पर पहुँचकर उस संस्कार से जुङती है । तब उसके साथ वो चक्रवाती घटना घटित होती है । और वो विशेष बिन्दु कुछ भी हो सकता है । उसी तरह का कोई दृश्य । कोई सोच । कोई चीज । कोई भावना । कोई इंसान आदि कुछ भी । ये पेशेंट की तरफ़ का एक पक्ष था । और इसमें कोई चिन्ता जैसी बात कम से कम उसके लिये नहीं थी । वह थोङे प्रयास से योग द्वारा जस्सी को उस कारण संस्कार से जोङकर उस कारण को ही जला देता । और जस्सी हमेशा के लिये मुक्त होकर ठीक हो जाती ।
और तब उसे इसके दूसरे पक्ष दूसरी संभावना का ख्याल आया । और उसके बारे में सोचते ही वह काँप गया । अगर वह बात थी । तो सिर्फ़ खतरनाक ही नहीं । बेहद खतरनाक थी । कम से कम इतनी खतरनाक कि उसे भी एक युद्ध सा लङना पङता । और उस युद्ध का अंजाम कुछ भी हो सकता है । स्वयँ उसकी मौत । या फ़िर जस्सी की भी ।
उसने ड्राइव करते हुये बगल में बैठी उस अप्सरा को देखा । जो ऐसी किसी भी सोच से बेपरवाह सी अधमुँदी आँखों से कहीं खोयी हुयी थी । और तब ही प्रसून को पहली बार अहसास हुआ कि उसने किसी प्रेमिका की भांति अपना सिर उसके कन्धे से टिका रखा था । वह उससे एकदम सटकर बैठी थी । और उसका मरमरी गोरा हाथ उसकी गोद में रखा हुआ था । कमाल था । वह अपनी भावनाओं में इस कदर खो गया था कि उसे एक जवानी की गरमाहट भी महसूस नहीं हुयी थी ।
सङक पर काफ़ी अंधेरा फ़ैल गया था । वह बिना किसी उद्देश्य के जस्सी के साथ ड्राइव पर था । बराङ दम्पत्ति ने उसके जेंटलमेनी नेचर और उससे जस्सी की शादी की कल्पना करके उसे खुली छूट दे रखी थी । और स्वयं जस्सी भी किसी प्रेमिका की भांति अधिकतर उसके आसपास ही रहती थी । बस दोनों की सोच में भिन्नता थी । प्रसून उस अज्ञात रहस्य की खोज में उसके नजदीक था । जबकि जस्सी और बराङ दम्पत्ति उसे लङका लङकी का प्रेम आकर्षण समझते हुये मुग्ध हो रहे थे ।
उसका ध्यान फ़िर से दूसरे पक्ष पर गया । और वो दूसरा पक्ष ये था कि किसी अज्ञात भूमि से यह संस्कार आ रहा हो । जिसमें कनेक्टविटी उल्टी यानी उधर से होती हो । और ऐसा सम्पर्क होते ही जस्सी के साथ वह चक्रवाती घटना होती हो । और शायद इसीलिये उसके पास इसका कोई रिकार्ड नहीं था । तब ये दिमाग की मेमोरी का मामला नहीं था । यह किसी ऊँचे नीचे लोक से जुङा मामला था । जो करोंङों इंसानी ग्रन्थियों में से किसी एक से जुङता हो । तब ये बहुत कठिन बात थी । और यही वो बात थी कि प्रसून की पूरी पूरी दिलचस्पी इस केस में थी । जब किसी जीवित इंसान को कहीं अज्ञात भूमि में बैठा हुआ कोई शख्स प्रभावित कर रहा हो । वह क्यों प्रभावित कर रहा है । क्या चाहता है ? उसके इरादे क्या हैं ? ऐसे अनेक प्रश्न उसके दिमाग में तैर रहे थे । और इसके लिये उसे फ़िर से एक बार सूदूर अंतरिक्ष के किसी अज्ञात से लोक में जाना पङ सकता था । पर कहाँ । ये अभी उसे खुद भी पता नहीं था ।
रहस्यमय अस्तित्व का मालिक अंधेरा पूरे यौवन पर था । प्रथ्वी के इस हिस्से पर उसका साम्राज्य कायम हो चुका था । इस अंधेरे शान्त शीतल माहौल में जस्सी के दिल में प्रेम भावनाओं का संचार हो रहा था । वह रह रहकर कंपित सी होती प्रसून के शरीर पर हाथ फ़िरा रही थी । और प्रसून की कोहनी से अपने स्तन को दबा रही थी । ये अंधेरा उसे फ़िर से सब कुछ वही बा होश पाने को उकसा रहा था । जो चिकन वाली के अनुसार प्रसून ने उसके साथ बेहोश किया था ।
जबकि प्रसून के दिलोदिमाग में इस अंधेरे को लेकर बार बार एक ही बात आ रही थी । जस्सी को ज्यादातर अटैक रात यानी अंधेरे में ही होते थे । और स्वयँ उसके सामने वाला अटैक भी अंधेरे में ही हुआ था । या कहना चाहिये । उसकी बहुतेरी कोशिश से किसी तुक्के के समान तीर निशाने पर जा लगा था । बस उसी तुक्के की उसे दोबारा तलाश थी । बो प्वाइंट जिससे जस्सी अज्ञात भूमि से जुङती थी । वो सूत्र । वो सिरा । जो कहीं न कहीं उसे शायद उसके गुजरे अतीत से जोङ देता था । वो क्या था ?
और तब उसे उस टार्जन लुक नाविक मछुआरे का ध्यान आया । जिसे जस्सी दरिया में डूबने से पहले पुकारती थी । क्या वह उसका पूर्व जन्म का प्रेमी था । क्या मन में सेक्स भावना उठने पर उसे वह अटैक होता था । या प्रेमी की अचेतन में दवी याद की वजह से । प्रेमी । एक तरह से अभी वह भी उसका प्रेमी था ।
उसने गाङी साइड में लेकर रोक दी । और कार के स्टीरियो में कार से ही लेकर शकीरा की सीडी प्ले कर दी । बहुत हल्की आवाज में गूँजती शकीरा की मादक सेक्सी आवाज जस्सी के दिल में चाहत की हिलोरें सी पैदा करने लगी । प्रसून उसकी तरफ़ सरक आया । और उसने सिगरेट सुलगा ली । ऐसा लग रहा था । वह कुछ टाइम शान्ति से सुस्ताने के मूड में हो । उसने गाङी की सीट को भी पीछे सरका दिया था । और फ़ैला दिया था । जस्सी को मानों ये भगवान ने वरदान दिया हो । वह उसकी गोद में लेट गयी । और उसके हाथ अपने सीने पर रख लिये । प्रसून हौले
हौले उसके स्तनों को सहलाने लगा । वह अन्दर ब्रा नहीं पहने थी । उसके रेशमी वस्त्र के ऊपर से फ़िसलन भरा सा हाथ जस्सी के बदन में काम तरंगे तेजी से फ़ैला रहा था । एक समझदार प्रेमिका की भांति इसी बीच उसने अपनी शर्ट के दो बटन खोल दिये । तब उसका अभिप्राय समझकर प्रसून ने उसकी शर्ट के अन्दर हाथ डाल दिया ।
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आपको ! वह मादकता से भरपूर लरजते स्वर में बोली - मेरे ये अच्छे लगते हैं ।
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अगर ना कहूँ । वह उसका स्तन मसलता हुआ बोला - तो यह एकदम झूठ होगा । ये एक दूध पीते बच्चे से लेकर शक्तिशाली देवताओं को भी आकर्षित करते हैं । और सर्वाधिक प्रिय होते हैं । ये एक सम्पूर्ण नारी का सौन्दर्य आधार है । खुद नारी इनको मनोहर रूप में पाकर स्वयँ को गौरवान्वित महसूस करती है । ये किसी नारी की खूबसूरती के सबसे महत्वपूर्ण बिन्दुओं में से एक हैं ।
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आप जादूगर हो प्रसून जी ! वह उसकी छाती पर हाथ फ़िराती हुयी बोली - आपकी बातों में जादू है । व्यक्तित्व में जादू है । आपकी निगाहों में जादू है । आप एक पूर्ण पुरुष हो । कोई भी लङकी आपको देखने के बाद सिर्फ़ आपको ही पाने की तमन्ना करेगी । वह अपने आपको आप पर कुरवान कर देगी । प्लीज आपने मुझे इनके बारे में बताया । ये सबकी पसन्द होते हैं । पर वो ?
प्रसून ने फ़ौरन अपनी मुस्कराहट को निकलने से रोका । एक लङका । एक लङकी । एक पुरुष । एक स्त्री । एक आदमी । एक औरत । जब अपनी तमाम सामाजिक बेङियों मर्यादाओं को हटाकर जवां तन्हाई के एकान्तमय सामीप्य में होते हैं । तब वे सिर्फ़ प्रेमी होते हैं । इसके अलावा कुछ नहीं होते । उसके पूछते ही प्रसून को किसी विदेशी लेखक की यह महत्वपूर्ण सूक्ति याद हो आयी - यह कोई ऐसी चीज नहीं । जिसको यूज न करने से इस पर सोने की फ़सल उगने लगेगी ।
पर वह अपनी शिष्टता के चलते इस पर कोई कमेंट नहीं कर पाया । जस्सी की बङी बङी आँखों में चाहत भरे मौन आमन्त्रण के साथ हल्की सी शरारत चंचलता झलक रही थी । जैसे ही प्रसून का हाथ सामान्य होकर उसके शरीर से अलग ठहर जाता । वह फ़िर से उसे थामकर अपने सीने से लगा लेती ।
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मुझे ये वो का तो पता नहीं । वह उसके रेशमी बालों में उँगलिया घुमाता हुआ बोला - पर ये सच है । मुझे तुम बहुत अच्छी लगती हो । सच तुम हो भी बहुत अच्छी । एक पूर्ण प्रेमिका ।
जस्सी फ़ौरन उठकर बैठ गयी । उसके अधरों मे तेज कंपकंपाहट हो रही थी । उसका सारा शरीर कंपित हो रहा था । तेज भावावेश में उसने अपने होंठ प्रसून के होठों से चिपका दिये । बस यही तो वह योगी चाहता था । उसका अब तक का सारा प्रयास इसी के लिये था । उसकी तरफ़ से काम गति का बहना । यही बात यही पहल । वो अपनी तरफ़ से भी कर सकता था । पर वो काम गति की विपरीत धारा होती । तब वह सिर्फ़ समर्पण की मुद्रा में हो जाती । बहाव उसकी तरफ़ से ही होना जरूरी था । क्रिया एक ही थी । खेल एक ही था । पात्र भी एक ही थे । पर घटना में बहुत अन्तर था । उसके परिणामों में बहुत अन्तर था । अब वह किसी उन्मुक्त नदी की तरह बाँध तोङती हुयी बहने लगी थी ।
योगी के सधे संतुलित संगीतमय हाथ उसके बदन पर घूमने लगे । उसका योग शरीरी काम व्यवहार जस्सी को मानों अनन्त आकाश में उङाकर बादलों के बीच ले गया । वह खुली सङक की परवाह किये बिना जोर से कराह रही थी । सीत्कारें भर रही थी । प्रसून उसके स्तनों को बेतरह मसल रहा था । उसके मोटे होठों में दबे उसके सुर्ख रसीले अधर उत्तेजना से फ़ङफ़ङा रहे थे । वह काँटे में फ़ँसी मछली की तरह तङफ़ रही थी । पर उसकी मजबूत पकङ से छूट नहीं पा रही थी । और वह छूटना भी नहीं चाहती थी । उसकी संकरीली संकुचित दरार यौवन रस से पूर्णतः नहा गयी थी । उसमें किसी प्यासी झील के समान तूफ़ान सा मचल रहा था । इस तूफ़ान को परास्त कर देने वाले किसी साहसी नाविक की उसे तीवृ जरूरत हो रही थी । वह मानों आधी रोती हुयी सी सिर्फ़ प्रसून ..ओ प्रसून..क्विक..किल मी.. डियर ही मुश्किल से कह पा रही थी ।
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