डायन -05


नीलेश पीताम्बर के शहर पहुँचा ।
आज वह तीसरे दिन आया था । दूसरा दिन भी उसने मन्दिर पर ही गुजारा था । बदरी बाबा के जीवन में उससे जुङी हुयी यह पहली हत्या थी । इसलिये अन्दर ही अन्दर वह बेहद डरा हुआ था । हालांकि नीलेश को एक परसेंट ही किसी बबाल की उम्मीद थी । फ़िर भी वह बदरी का डर समझते हुये रुक गया था ।
गजानन का थैला आदि अन्य सामान उसने दूसरे साधुओं के नोटिस में आने से पहले ही छिपा देने को कह दिया था । इस तरह अपनी समझ से उसने पूरा इंतजाम ही कर दिया था । इसके बाद भी कोई बात होती । तो बदरी के पास उसका नम्बर था । जिससे वह सीधी बात करा सकता था । तब जाकर बदरी को थोङा तसल्ली मिली । नीलेश की ऊँची पहुँच भी उसे काफ़ी हिम्मत बँधा रही थी ।
अब वह सीधा डायन के विशाल निवास में मौजूद था । एक बार को मुम्बई में अमिताभ बच्चन का निवास तलाशने में दिक्कत आ सकती थी । पर डायन का निवास तलाश करने में उसे कोई दिक्कत नहीं आयी । उसने डायन के बारे में सीधा सीधा न पूछकर पीताम्बर द्वारा बताये ब्योरे के आधार पर घुमा फ़िराकर पूछा । और आसानी से यहाँ तक बिना किसी रोक टोक के पहुँच गया । उसने पीताम्बर या हरीश से सम्पर्क करने की कोई कोशिश नहीं की ।
उसके साथ जलवा के नाम से प्रसिद्ध 19 साल का बातूनी बोलने की आदत से मजबूर लङका था । जिसे वह इस पूरे खेल की अहमियत समझते हुये वक्त बेवक्त जरूरत की सोचकर ले आया था । जलवा को भुतहा बातों का बङा शौक था ।
भुतहा स्थानों को देखने का बङा शौक था । भूतों का देखने का बङा शौक था । पर आज तक उसकी भूत देखने की हसरत पूरी नहीं हुयी थी । वह नीलेश की इस योगी रूप वास्तविकता से भी परिचित नहीं था । लेकिन नीलेश से कुछ कुछ अवश्य परिचित था । और उसके धनाङय होने का रौब खाता था । नीलेश ने उसे बताया । रामसे ब्रदर्स और रामगोपाल वर्मा कोई डरावनी फ़िल्म बनाना चाहते हैं । जिसके लिये उन्हें एक हटकर और रियल टायप लोकेशन की तलाश है । उसी को देखने वह जा रहा था । ये जानकर रामू जी नीलेश के दोस्त है । जलवा दंग रह गया । नीलेश के प्रति उसके मन में अतिरिक्त सम्मान बङ गया ।
लेकिन हकीकत और ख्यालात में जमीन आसमान का अन्तर होता है । यह जलवा को आज ही पता चला था ।
डायनी महल में कदम रखते ही वह जहाँ का तहाँ ठिठक कर खङा हो गया । अपने जीवन में इससे अधिक भयानक जगह उसने सपने में भी नहीं देखी थी । सपने में भी नहीं सोची थी । उस पूरे विशाल टूटे फ़ूटे मकान में बेहद गन्दगी और दुर्गन्ध का साम्राज्य कायम था । जगह जगह मरे हुये पक्षियों के सूखे पिंजर और बेतरतीब पंख बिखरे हुये थे । विभिन्न जीवों के मल और बीट की भरमार थी । सैकङों उल्लूओं के घोंसले टूटी दीवालों के मोखों में मौजूद थे । अन्य तरह की चिङियाओं । गिरगिट । छिपकली । चमगादङ । काकरोच । मेंढक । गिलहरियों आदि की भी भरमार थी । उस निवास की सफ़ाई झाङू आदि भी बहुत वर्षों से नहीं हुयी थी । नीलेश वहाँ स्वतः उग आये पेङों की लम्बी घनी पत्तेदार टहनियाँ तोङकर इकठ्ठी करने लगा । एक समान टहनियों को उसने लकङी की छाल उतारकर उसी के रेशों से बाँधकर झाङू का आकार दे दिया । जलवा हैरत से उसकी तरफ़ देख रहा था । पर समझ कुछ भी नहीं पा रहा था ।
दादा ! वह बङे अजीव स्वर में बोला - रामू जी यहाँ शूटिंग करेंगे ?
-
अरे जलवा भाई ! नीलेश उसका हाथ थामता हुआ बोला - यह फ़िल्लम वाले भी खिसके दिमाग के होते हैं । कहाँ शूटिंग करें । क्या पता । बङी जबरदस्त शूटिंग होने वाली है यहाँ । आओ चलते हैं ।
कहकर उसका हाथ थामे वह मकान में प्रवेश कर गया । और यूँ गौर से मकान का एक एक कोना देखने लगा । जैसे गम्भीरता से मकान खरीदने की सोच रहा हो । मकान की दीवालों पर जगह जगह छोटे जीवों और पक्षियों के खून से विचित्र आकृतियाँ बनी हुयी थी । तभी एक कमरे में पहुँचकर दोनों स्वतः ही ठिठक गये । इस कमरे में एक अधखायी नोची हुयी सी सङी हालत में बकरिया पङी हुयी थी । जिससे भयंकर सङांध उठ रही थी
जलवा को पलटी ( उबकायी ) होते होते बची । इसी कमरे में एक तरफ़ पुआल आदि का लत्ते पत्ते बिछाकर बिस्तर बना हुआ था । खाये हुये पक्षियों की हड्डियाँ चारों ओर फ़ैली हुयी थी ।
-
शानदार ! नीलेश बहुत हल्के से ताली बजाकर बोला - रामू जी ग्लैड ग्लैड ही हो जायेंगे । मेरी इस शानदार खोज पर ।
-
दादा ! जलवा अपने आपको रोक न सका - सच बताओ । यहाँ वाकई शूटिंग होगी ?
-
देख नहीं रहा ! नीलेश एक सिगरेट सुलगाकर बोला - कितनी शूटिंग तो पहले ही हो चुकी है । और अभी आगे होने वाली है ।
ग्राउंड फ़्लोर का सम्पूर्ण मुआयना करने के बाद उसने अपना रुख छत की ओर किया । और तेजी से कमजोर हालत में पहुँच चुकी डाट बेस पर बनी सीङियाँ चङता चला गया । मकान के कुछ हिस्सों में छत पर डाट की छत थी । और कुछ कमरे लकङी के पटान वाले थे । पुरानी पकी मजबूत लकङी अभी भी पुख्ता हालत में थी । हाँ लकङी से पटी छत बीच बीच में कुछ स्थानों से गिर चुकी थी । और उनमें छोटी छोटी खिङकियाँ सी खुल गयीं थी । दूसरी मंजिल के ऊपर तिमंजिले पर सिर्फ़ चार पाँच कमरे ही थे । परन्तु नीलेश ने उन्हें देखने की कोई कोशिश तक नहीं की ।
सेकेंड फ़्लोर ग्राउंड फ़्लोर की अपेक्षा अच्छी हालत में था । संभवत डायन ऊपर कभी आती तक नहीं थी । यहाँ हवा का बहाव सही होने से दुर्गन्ध भी उतनी नहीं थी । नीलेश ने रिस्टवाच पर दृष्टि डाली । दोपहर के दो बजने वाले थे । उसने एक ऐसे ठीक हाल कमरे का चयन किया । जिससे डायन का कमरा साफ़ नजर आता था । फ़िर उसने टहनियों वाली झाङू जलवा को थमायी ।
और बोला - झाङू लगाना जानते हो ?
जलवा को फ़िर से बेहद आश्चर्य हुआ । पर वह नीलेश का मतलब समझकर कुछ न बोलता हुआ कमरे को तेजी से साफ़ करने लगा । एक घन्टे में ही कमरा रहने लायक हो चुका था ।
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तुम्हें भूख लगने लगी होगी ! अचानक फ़िर से टाइम देखता हुआ नीलेश बोला - चलो खाना खाने चलते हैं ।
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दादा ! बाहर आकर नीलेश बोला - शूटिंग लोकेशन की तो बात समझ आयी । पर वहाँ रहेगा कौन ? मेरा मतलब । वो साफ़ सफ़ाई ?
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हम लोग ! नीलेश गम्भीरता से बोला ।
जलवा का दिमाग मानों भक से उङ गया । यकायक उसे कोई प्रश्न ही नहीं सूझा ।
-
मगर क्यों ? फ़िर वह बोला ।
-
अरे जलवा ! नीलेश उसके कंधे पर हाथ रखता हुआ बोला - अभी लोकेशन ही तो सैट हो पायी है । अभी कोई भूत
प्रेत जिन्न विन्न टायप हीरो भी चाहिये । कोई चुङैल वुङैल डायन वायन प्रेतनी व्रेतनी टायप हीरोइन भी तो चाहिये । फ़िर कोई पिशाच विशाच टायप खतरनाक विलेन भी चाहिये । फ़िर कोई ओझा मोजा अघोरी गारुङी टायप सिद्ध तांत्रिक बाबा भी चाहिये । छोटे मोटे गण भूत प्रेत कृत्या टायप छोटे कलाकार भी चाहिये । तभी तो खोज पूरी होगी । तुम्हें मालूम नहीं । रामू जी रियल मैटर पर ही फ़िल्म बनाते हैं । और फ़िर भी उनकी खौफ़नाक फ़िल्लम से नहीं डरने वाले बहादुर पर बङा इनाम भी रखते हैं । अब रियल स्टोरी में करेक्टर भी रियल होने चाहिये ना । इसलिये रियल एक्टर की भी खोज अभी होगी । तभी तो फ़िल्म जोरदार होगी ।
वैसे जलवा इस मजाकिया टायप बात को कुछ कुछ समझ तो गया । पर नीलेश का असल उद्देश्य अब भी उसकी समझ से बाहर था । वह वास्तव में यही समझ रहा था कि यहाँ वाकई शूटिंग ही होगी । लोकेशन भी फ़िल्मी ही थी । दूसरे नीलेश कोई मामूली हस्ती नहीं था । जो खामखाह ऐसी फ़ालतू जगहों पर समय बरबाद करता फ़िरे । फ़िर भी असल बात अभी तक उसके समझ में नही आयी थी । वह तो बस इसी में अपने आपको धन्य समझ रहा था कि नीलेश दादा उसे अपने साथ लाया था ।
खाना वाना से निपटते निपटते शाम के पाँच बज गये । नीलेश को अभी दो घन्टे और गुजारने थे । पर इस शहर में ऐसा कौन था । जहाँ वह टाइम पास करता । दूसरे उसे निरा टाइम भी पास नहीं करना था । उसे डायन के बारे में समाचार भी एकत्र करने थे । लोगों का अलग अलग नजरिया भी जानना था । और क्योंकि इस मिशन के हालात समझते हुये वह अपनी कार बाइक आदि नहीं लाया था । इसलिये ऐसा कोई इंतजाम भी करना चाहता था । दूसरे वह जलवा पर वह इम्प्रेस भी कायम करना चाहता था कि जलवा बिना चूँ मूँ किये उसकी हर बात आँख मूँदकर माने । क्योंकि जलवा उसे जानता तो था । मगर बहुत हद एक परसेंट ।
सो उसने सामने से आती हुयी टेक्सी को हाथ देकर रोका । टेक्सी वाले ने उसकी हस्ती से प्रभावित से होकर तुरन्त गेट खोला । और बोला - कहाँ चलूँ सर ?
-
जहाँ तक घटा चले । नीलेश बैठता हुआ बोला - चाँद तारे आसमान स्वर्ग नरक जहाँ तक जा सकते हो । चलो ।
-
समझ गया साहब ! टेक्सी वाला खुश होकर बोला - आपको घूमना है । मैं अच्छे से आपको घुमाता हूँ ।
टेक्सी ड्राइवर समझ गया । मोटा मुर्गा हाथ लगा है । एक ही सवारी से अच्छी झाङी बनने वाली थी ।
पर उसकी ये खुशी अधिक देर तक न रही ।
एक आलीशान होटल पर निगाह पङते ही अचानक नीलेश बोला - जरा रुकना भाई । और यहीं वेट करना ।
फ़िर वह उतरकर सीधा औपचारिकतायें पूरी करता हुआ मैंनेजर के रूम में पहुँचा ।
उसने मैंनेजर से होटल के मालिक के बारे में इस तरह पूछा । मानों खङे खङे ही होटल खरीदना चाहता हो । मगर बेहद विनमृता से । इत्तफ़ाकन मैंनेजर मैंनेजर होने के साथ साथ होटल मालिक का रिश्तेदार ही था । और इस तरह उसकी हैसियत दूसरे मालिक जैसी थी ।
तब नीलेश उसे एक शहर का नाम बताता हुआ बोला - राजनगर में किस किसको बहुत अच्छी तरह जानते हो ?
मैंनेजर ने दो तीन धनाङय उच्च वर्ग लोगों के नाम बताये । नीलेश ने सेलफ़ोन पर उसके बताये नामों में से सबसे प्रभावशाली व्यक्ति चाँदना का चुनाव करके उसका नम्बर मिलाया । जलवा और मैंनेजर दोनों ही हैरत से उसके क्रियाकलाप देख रहे थे । वे दोनों आराम से बातचीत सुन सकें । नीलेश ने इतना वाल्यूम कर दिया ।
तुरन्त दूसरी तरफ़ से फ़ोन उठा - नीलू बाबा । बङे दिनों में याद किया.. इस गरीब को । कहाँ हो आप ।
नीलेश ने बताया । और फ़िर बोला - यह मैंनेजर साहब कह रहे हैं । ये आपको जानते हैं । मगर मुझे नहीं जानते । है ना कमाल । कहकर उसने फ़ोन मैंनेजर को थमा दिया ।
मैंनेजर हक्का बक्का रह गया । दूसरी तरफ़ की बात पूरी होते होते उसके चेहरे के भाव इतनी तेजी से बदलने लगे । मानों नीलेश नीलेश न होकर अमिताभ बच्चन हो । जिसको अचानक सामने प्रकट पाकर उसका जीवन धन्य हो गया हो । उसने बात के बीच में ही वैल बजा दी । और कुछ ही क्षणों में उन दोनों के स्वागत हेतु ड्रिंक आदि आ गये ।
ये सब रामलीला नीलेश ने महज इसलिये की । क्योंकि उसे जरूरत पङने पर गाङी बाइक असलाह आदि किसी भी अप्रत्याशित चीज की आवश्यकता होने पर तुरन्त मुहैया हो जाये । और एन टाइम पर परेशानी न हो । तथा वह जलवा द्वारा भी उन्हें आसानी से मंगा सके । चाँदना साहब उसका मतलब समझ गये थे । और जब वह समझ गये
तो फ़िर मैंनेजर को तो समझ ही जाना था ।
एक घन्टे बाद नीलेश बाहर आया । और अबकी बार उसने ड्राइवर को स्थान बताते हुये टेक्सी चलाने का आदेश दिया ।
डायनी महल से आधा किमी पहले ही उसने टेक्सी छोङ दी । ताकि ड्राइवर को उलझन न हो । और कोई बात न बने । और फ़िर वे दोनों आराम से टहलते हुये डायन के निवास की और जाने लगे ।
इतने आराम से कि डायन निवास पहुँचते पहुँचते उन्हें हल्का सा अंधेरा हो गया । जलवा को अंधेरे में उस खौफ़नाक घर में जाते समय बेहद डर लग रहा था । बाहर की अपेक्षा घर में अधिक अंधेरा था । नीलेश सीधा डायन के कमरे में पहुँचा ।
और सामने लेटी एक बेहद घिनौनी बुङिया को देखकर बोला - ताई राम राम ।
-
..sss ! जलवा के मुँह से डरावनी चीख निकल गयी । इस अनोखी रूपाकृति को देखकर वह इतना घबराया कि उसकी पेशाब निकलते निकलते बची ।
आओ मेरे बच्चो ! बुङिया बङे प्यार से धीमे धीमे मरी आवाज में बोली - बैठ जाओ । आज बङे दिनों बाद इस बरसों से सूनी पङी हवेली में मेरे अलावा भी कोई आया है । जानते हो क्यों ? क्योंकि लोग कहते हैं । मैं एक डायन हूँ । ( कहते कहते वह सुबकने लगी ) एक डायन । क्या तुम लोगों को मैं किसी तरफ़ से भी डायन लगती हूँ ।
-
ये बोल ! जलवा ने बेहद घृणा से मन ही मन में सोचा - किस एंगल से नहीं लगती । तू तो डायन क्या ? डायन की अम्मा नानी दादी चाची सब लगती है । मेरा मूत क्या ऐसे ही निकल गया होता ।
नीलेश ने उसकी कसमसाहट समझते हुये उसकी हथेली दबायी । और वह बैठता तो कहाँ । अतः कमरे में बने आलमारी के गन्दे खानों में ही टेक लेता हुआ टिक गया । नीलेश ने बाजार से खरीदी मोटी और बङी मोमबत्ती से एक मोमबत्ती जलाकर वहाँ चिपका दी । मजबूरी में जलवा ने भी वैसा ही किया । वैसे वह तो इस कमरे से क्या । इस मकान से क्या । इस शहर से ही चला जाना चाहता था । इतनी घिनौनी बूङी औरत से उसका आज तक पाला नहीं पङा था ।
बिलकुल नहीं ! नीलेश सामान्य स्वर में बोला - लोगों के देखने में फ़र्क है । निगाह का अन्तर जिसे कहते है । आप तो एकदम संतोषी माँ लगती हो । यहाँ वहाँ जहाँ तहाँ । मत पूछो कहाँ कहाँ । है संतोषी माँ । अपनी संतोषी माँ ।
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मेरा नाम मौलश्री है । बुङिया कमजोर आवाज में बोली - तुमने कुछ खा पी लिया मेरे बच्चों !
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क्या खिलायेगी पिलायेगी हरामजादी ! जलवा के मन में घिन हुयी - ये सङी हुयी बकरिया । या चमगादढ का खून ।
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ताई ! अचानक नीलेश जलवा की व्यग्रता समझता हुआ बोला - वो हरीश अभी है । या तूने उसे मुक्त कर दिया ? शायद जो काम तू वहाँ न कर पायी हो । वो यहाँ कर दिया हो । क्योंकि आज दो दिन और हो गये ।
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अभी कहाँ ...अभी तो बहुत काम बाकी है रे ! वह कोहनी के बल टिकती हुयी बोली - अभी बहुत काम बाकी है रे । मुझ बूङी को क्या क्या नहीं करना पङता ? क्या क्या नहीं ? 70 लोगों को ले जाने की डयूटी है मेरी । अब तक 56 । ही हुये । 14 अभी भी बाकी हैं ।
-
फ़िर बङा स्लो काम करती है तू । 85 की तो तू हो ही गयी । और 85 में सिर्फ़ 56 । तेरे ऊपर वाले कुछ टोकते नहीं क्या ?
उसने कोई जबाब नहीं दिया । और ब्लाउज में हाथ डालकर बगल खुजाने लगी । उसके बेहद ढीले ब्लाउज के सिर्फ़ दो बटन लगे थे । और इस तरह खुजाने से उसका एक दुही जा चुकी बकरी के थन के समान निचुङा स्तन बाहर आ गया । जलवा को इतनी घिन आयी कि अबकी बार उसने कोई परवाह न करते हुये साइड में ही थूक दिया ।
म ठीक कहते थे ..निगाह का फ़र्क है । वह जलवा को लक्ष्य करती हुयी बेहद धीमें स्वर में बोली - सिर्फ़ निगाह का फ़र्क ?
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एक बात तो है । नीलेश सिगरेट सुलगाता हुआ बोला - खूबसूरत बहुत है तू ! जवानी में तो कयामत ही ढाती होगी ।
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अभी कौन सा कम ढा रही है । जलवा मन ही मन भुनभुनाया - मल्लिका शेरावत भी तो कुछ नहीं इसके सामने । बताओ दोनों को मेरी निगाह ही खराब लग रही है । अभी या तो मैं पागल हूँ । या फ़िर जल्दी ही होने वाला हूँ ।
जलवा को इस सब नौटंकी पर नीलेश का कोई रवैया समझ नहीं आ रहा था । नीलेश जैसी हस्ती इस नरक में क्या और क्यों कर रही थी । दूर दूर तक उसकी समझ में नहीं आ रहा था । पर वह उसका साथ देने के लिये विवश था । जबकि नीलेश बारबार घङी देख रहा था । मानों किसी विशेष समय का इंतजार कर रहा हो । आखिरकार रात के दस बजे उसने मौलश्री से इजाजत ली । और डायनी महल के उसी कमरे में आ गया । जिसको रहने के लिये उसने साफ़ किया था ।
उसने फ़िर से एक मोमबत्ती जलाकर कमरे में रोशनी की । और कीङों मकोङों मच्छरों को भगाने वाले चार क्वाइल सुलगाकर कमरे के चारों कोनों में रख दिये । साथ ही बेहद खुशबूदार धूपबत्ती को सुलगाकर भी उसने रख दिया । और फ़िर दोनों स्लीपिंग बैग बिछाकर उस पर लेट गये ।
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दादा ! अचानक जलवा अपने आपको रोक न सका । और बोला - लोकेशन की तो बात समझ आयी । पर ये हीरोइन अपने को समझ नहीं आयी । और हम लोग यहाँ के बजाय वहाँ होटेल में भी तो रुक सकते थे ।
देख भाई ! नीलेश बिस्तर की तरफ़ आते जा रहे तिलचट्टे को उंगली से दूर छिटकता हुआ बोला - भुतहा फ़िल्म की लोकेशन और उसकी बैक ग्राउंड का सही अंदाजा रात को बारह एक बजे पर ही पता चलता है । जब चाँद एकदम सिर पर होगा । यहाँ ये इधर उधर रेंगते जीव अपने बिलों में घुसे साँप छँछूदर कैसी आवाज करेंगे । चाँदनी रात में यह महल और आसपास का नजारा कैसा होगा । ये सब पहले से कैसे पता चले । और रही बात उस बुङिया की । तो अब मुझे क्या पता था कि यहाँ कोई रहता भी होगा । इसलिये कुछ ले दे के उसको भी निपटा देंगे ।
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अच्छा ! जलवा ने ठंडी सांस भरी - फ़िर ठीक है । बस एक बात और बता दो । शूटिंग तो मैं अभी के अभी ही देख रहा हूँ । फ़िल्म देख पाऊँगा या नहीं ? मतलब तब तक जीता तो रहूँगा ।
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डांट वरी जलवा ! मैं हूँ ना । ज्यूँदा रह पुत्तर ।
नीलेश भी अच्छी तरह से जानता था । जलवा के मन में बहुत सी बातें हैं । जिनको वह कह नहीं पा रहा । पर अगर वह कहता भी । तो नीलेश के पास उसका कोई जबाब ही नहीं था । वह सोच रहा था कि जलवा गहरी नींद में सो जाये । तो ज्यादा अच्छा हो ।
लगभग दो घन्टे से ही थोङा पहले जलवा के खर्राटे गूंजने लगे । नीलेश ने बेहोशी लाने वाली जङी उसे सुंघाने की सोची । फ़िर कुछ सोचकर हाथ हटा लिया । और कमरे से बाहर निकल आया । उसने नीचे झांककर देखा । पर वहाँ सन्नाटा ही था । रात के अंधेरे में डायनी महल में डरावनी सांय सांय ही गूंज रही थी । क्या कर रही होगी डायन इस समय ? उसने सोचा ।
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