डायन -02


हाँ तो मैं कह रहा था । पीताम्बर घङी पर निगाह डालता हुआ बोला - कि बीस बाइस साल पहले जब उस बुढिया ने अपने ही नाती को मार डाला । और उसका खून पी गयी । तभी हमें पता चला कि...!
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ड डायन...! पुनः नीलेश के दिमाग में गूंजने लगा - ड डायन डायन...!
उसकी निगाह फ़िर से स्वतः खिङकी पर गयी । डायन पहली की तरह ही खौफ़नाक मधुर मुस्कान में हँस रही थी ।
दरअसल नीलेश चाह रहा था कि किसी तरह पीताम्बर कंपनी को समझ आ जाता कि डायन बाकायदा मौजूद ही है । तो वह कुछ मन्त्र सन्त्र चलाता भी । पर पीताम्बर और उसके साथी न सिर्फ़ अपनी धुन में थे । बल्कि उन्हें अब ये भी लग रहा था कि नीलेश कुछ घबरा सा रहा है ।
उधर नीलेश ये सोच रहा था कि ये उसके लिये एकदम नया मामला था । और वह ये भी नहीं चाहता था कि नीचे बदरी बाबा और अन्य बाबाओं को खबर लगे कि मंदिर में डायन मौजूद है ।
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दाता ! उसके मुँह से निकल ही गया ।
खिङकी पर बैठी सुन्दरी ने उसे उपहासी भाव से अँगूठा दिखाया । और न चाहते हुये भी फ़िर से वह ध्वनि नीलेश के दिमाग में गूँजने लगी -ड डायन डायन...!
पीताम्बर बारबार घङी देख रहा था । वह सोच रहा था कि नीलेश कुछ हाँ ना करे । तो वह समय रहते घर वापस पहुँच जाये । पर उसे ऐसे लग रहा था कि इस " लङके " की हवा खुद ही खराब हो रही है । ये भला क्या हाँ ना करेगा । छोटे मोटे भूत सूत उतार लेता होगा । छोटे मोटे टोने टोटके वाला बाबा ।
दरअसल भेजने वाले ने उन्हें किन्ही प्रसून जी का नाम बताया था । पर पिछले एक साल से प्रसून से मिलने के लिये उन्होंने जितनी जद्दोजहद की । उतने में तो शायद लादेन भी मिल जाता । पर प्रसून जी नहीं मिले । हाँ ये नया लिंक मिल गया कि - आप इनसे बात करिये ।
ये सोचते ही पीताम्बर के दिमाग में तुरन्त एक बात आयी । और वह बोला - माफ़ करिये । नीलेश जी ! ये प्रसून जी इस समय कहाँ हैं ?
नीलेश ने एकदम चौंककर उसकी तरफ़ देखा । और उसका दिल हुआ । जबरदस्त ठहाका लगाये । उसने सोचा - कह दे । शरीर किसी काटेज में । गुफ़ा में । और बन्दा । दो आसमान बाद किसी अग्यात लोक में । जाओ ..मिल आओ ।
पर वह शिष्टाचार के नाते संयमित स्वर में बोला - बहुत दिनों से उनसे मिला नहीं । शायद अपनी कीट बिग्यानी रिसर्च के चलते कहीं विदेश में हैं ।
फ़िर उनके अन्दरूनी भाव और सभी स्थितियों पर तेजी से विचार करता हुआ वह निर्णय युक्त स्वर में बोला - हाँ अब बताईये ?
पीताम्बर मानों चौंककर पूर्व स्थिति में आया । और बोला - बुढिया का बेटा उन दिनों पढाई कर रहा था । उसकी शादी हो चुकी थी । बहू के दो साल से छोटा एक बच्चा था । जिसे बुढिया ने कुँए के पत्थर पर पटक पटककर मार डाला । यह घटना शाम आठ बजे की है । तब मंदिर की तरफ़ जाते कुछ लोगों ने उसे बच्चे का खून पीते भी देखा । और तब पहली बार लोगों को पता चला कि..?
ड डायन डायन...! नीलेश के दिमाग में फ़िर से गूँजने लगा - ड डायन डायन डायन...!
एक मिनट ! नीलेश खिङकी पर बैठी बुढिया को एक निगाह देखता हुआ बोला - आप संक्षेप में एक तरफ़ से बात शुरू करें । ताकि बात कुछ समझ में आये । रहस्यमय बुङिया की पूरी कहानी बतायें ।
पीताम्बर संभला । और बोला - बुढिया का पूरा इतिहास तो मुझे पता नहीं हैं । पर बुजुर्ग लोग बताते हैं । उसका आदमी उसी राजभवन की किसी खानदानी परम्परा से ताल्लुक रखता था । और इसलिये वह मकान और आसपास की और भी जगह का पुराना मालिक था । इस रहस्यमय औरत से कैसे उसकी शादी हुयी ? कहाँ की थी ? आदि शायद कोई नहीं जानता । बुढिया का पति और बुढिया का श्वसुर इन्ही दोनों के बारे में लोगों को जानकारी है । बुढिया का पति शादी के दस साल बाद रहस्यमय हालातों में मर गया । इसके दो साल बाद उसका ससुर भी चल बसा । तब बुढिया अपने एकलौते तीन साल के बेटे के साथ इस असार संसार में अकेली रह गयी । वह अपने बेटे को बहुत प्यार करती थी । यहाँ तक कि उसके बेटे को कोई एक चाँटा झूठमूठ भी मार दे । तो बुढिया उसकी जान लेने पर उतारू हो जाती थी । तब लोगों को पता चला कि ये औरत अबला नहीं बल्कि बला है । और बहुत ताकतवर है ।
एक्सक्यूज मी ! नीलेश ने टोका - बुढिया का लङका अब कहाँ है ?
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वो इस समय डी एम है । डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट ।
नीलेश उछलते उछलते बचा ।
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आपको इस बात पर हैरानी हो रही होगी । पर वह और उसकी नयी बहू अब बुङिया से कोई सम्बन्ध नहीं रखते । और किसी पहाङी जगह पर रहते हैं । सामंत साहब की वाइफ़ भी प्रशासनिक सेवा में है ।
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ओह गाड ! हठात नीलेश के मुँह से निकला - और उसकी पहली बहू को भी बुढिया ने मार डाला ।
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नहीं । पीताम्बर बोला - दरअसल धीरज सामंत साहब की पहली शादी बुढिया ने छोटी उमर में ही कर दी थी । उस समय धीरज बाबू पढ रहे थे । उसी समय उनको एक पुत्र भी हुआ था । जिसे कि जैसा कि मैंने बताया । बुढिया ने कुँए के पत्थर पर पटक पटककर मार डाला । इस घटना के बाद वह बहू पागल सी हो गयी । और यूँ ही इधर उधर घूमती रहती थी । वह बेहद गंदी हालत में रहती थी । इसके बाद एक दिन वह शहर छोङकर कहीं चली गयी । उसके बाद उसका कोई पता न लगा
बाद में धीरज साहब पढाई के लिये बाहर चले गये । और उसी दौरान उन्होंने नौकरी लगते ही दूसरी शादी कर ली थी । वह उनकी लव मैरिज हुयी थी । इसके बाद धीरज साहब एक दो बार ही शहर में आये । और फ़िर कभी नहीं आये । इस तरह वह बुढिया काफ़ी समय से उस विशाल मकान में अकेली रहती है ।
नीलेश ने एक निगाह पूर्ववत ही खिङकी पर बैठी बुढिया पर डाली । और जानबूझ कर मूर्खतापूर्ण प्रश्न किया - फ़िर बुडिया का खाना वाना कौन बनाता है । और उसका खर्चा वर्चा ?
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आप भी कमाल करते हो नीलेश जी ! पीताम्बर हैरत से बोला - शेर की गुफ़ा में जाकर कोई बकरा उसके हालचाल जानेगा कि वह ब्रेकफ़ास्ट कर रहा है । या डिनर खा रहा है ? कौन मरने जायेगा भाई जी ।
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जब बुढिया ने । नीलेश बोला - अपने अबोध नाती को मारा । तब आप लोगों ने पुलिस को इंफ़ार्म किया । या सोसायटी के लोगों ने कोई एक्शन लिया ?
अब पीताम्बर और उन तीनों को साफ़ साफ़ समझ में आ गया कि यहाँ आकर उनसे भारी गलती हुयी । इस बन्दे के वश का कुछ भी नहीं है । और फ़ालतू में किसी टीवी अखवार वाले की तरह इंटरव्यू कर रहा है ।
फ़िर भी एकदम अशिष्टता वे कैसे प्रदर्शित कर सकते थे ।
इसलिये वह बोला - नीलेश जी ! पुलिस वालों के बाल बच्चे नहीं होते क्या ? जो वह अपनी और अपने घर वालों की जान जोखिम में डालेंगे । ये किसी क्रिमिनल का मामला नहीं बल्कि..!
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ड डायन डायन डायन डायन...! एकदम उसके बोलने से पहले ही नीलेश के मष्तिष्क में एक शब्द ईको साउंड की तरह गूँजने लगा
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बल्कि..! नीलेश को उसकी फ़िर से आवाज सुनाई दी - एक डायन का मामला है । कोई उस क्षेत्र में फ़टकने भी नहीं जाता । वह डायन और डायनी महल पूरे शहर में प्रसिद्ध है ।
इस बार डायन मधुर स्वर में हँसी । उसके घुँघरू बजने जैसी ध्वनि सिर्फ़ नीलेश को सुनाई दी । लेकिन उसने खिङकी की तरफ़ देखने की कोई कोशिश नहीं की ।
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खैर..! नीलेश फ़िर से एक सिगरेट सुलगाता हुआ बोला - उस बुङिया से आपको क्या कष्ट है ? वह तो आपसे दो फ़र्लांग दूर रहती है । और फ़िर आपने कहा कि उसकी बस्ती में बहुत से अन्य लोग भी रहते हैं । पीताम्बर का मन हुआ अपने बाल नोच ले । भेजने वाले ने क्या सोचकर इसके पास भेजा ।
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आप कष्ट पूछ रहे हो । पीताम्बर बोला - ये पूछिये । क्या कष्ट नहीं हैं ? हम सब लोग बेहद सतर्कता से ब्लैक आउट स्थिति में रहते हैं । डायन ने कितने ही घर वीरान कर दिये । कितने ही लोगों को खा गयी । यानी मार डाला । वो बहुत दूर से खङी भी किसी को देखे । तो बदन में जलन होने लगती है । कभी किसी के घर के आगे रोटी का टुकङा फ़ेंक जाती है । किसी के घर के आगे हड्डियाँ फ़ेंक जाती है । किसी के दरबाजे पर खङी होकर रोटी प्याज भी माँगती है ।
ओह..आई सी ! नीलेश गोल गोल होठ करते हुये सीरियस होकर बोला - फ़िर तो यह वही मालूम होती है । जिसकी प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रोनिक मीडिया में भी काफ़ी चर्चा हुयी थी । वह आपके शहर में रहती है । खैर..जब वह आपके यहाँ से रोटी प्याज माँगती है । तब आप उसको देते हो ।
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हमारा बाप भी देगा । पीताम्बर झुंझलाकर बोला - देना पङता है साहब । अपने घर को किसी आपत्ति से बचाने के लिये ।
किसी बिन बुलायी मुसीबत से बचाने के लिये ।
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अंधेरा... कायम रहेगा ! डायन उसे अँगूठा दिखाती हुयी बोली - प्फ़ावर !
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ड डायन डायन...! एकदम उसके बोलने के साथ ही नीलेश के मष्तिष्क में गूँजने लगा
दरअसल नीलेश आज से पहले ऐसी विचित्र स्थिति में कभी न फ़ँसा था । इसलिये न तो वह कोई बात का तारतम्य ही बना पा रहा था । न ठीक से बात समझ पा रहा था । और न ही उनको समझा पा रहा था । कोई सामान्य स्थिति होती । तो बात के मेन मेन प्वाइंट वो हूँ हाँ के अन्दाज में सुनकर स्थिति की गम्भीरता समझ जाता । और फ़िर आगे उन्हें भी कुछ बताता ।
अब बात एकदम उल्टी थी । पीताम्बर एन्ड कंपनी उसे कहानी सुना रही थी । और उस कहानी सुनाने के रिजल्ट जानना चाहती थी । पर नीलेश कैसे उन्हें बताता कि कहानी खुद ही खिङकी पर बैठी है ।
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प्फ़ावर ! जैसे ही नीलेश के दिमाग में यह विचार आया । डायन अंगूठा दिखाती हुयी बोली - अँधेरा ..कायम रहेगा ।
किलविश की अम्मा ! झुँझलाहट में नीलेश के मुँह से निकल ही गया ।
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क्या ? वे सब एकदम चौंककर बोले - इसका क्या मतलब हुआ ?
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अभी आपको क्या मतलब बोलूँ ? वह परेशान होकर बोला - मुझे अपना ही कोई मतलब समझ में नहीं आ रहा ।
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ओके..सारी बाय ! अचानक पीताम्बर निर्णयात्मक स्वर में बोला - हम चलते हैं । हमें वापस लौटना भी है ।
उनके चेहरे पर अब तक आने से बचे रहे उपहास के भाव अब साफ़ नजर आने लगे । और वे एक झटके से उठ खङे हुये । पीताम्बर ने जल्दी से उससे हाथ मिलाया । वे सीङियों की तरफ़ लपके । और तेजी से उतरते चले गये ।
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प्फ़ावर ! जैसे ही नीलेश के दिमाग में यह विचार आया । डायन अंगूठा दिखाती हुयी बोली - अँधेरा ..कायम रहेगा ।
ऐसा लग रहा था । मानों नीलेश के दिमाग ने काम करना ही बन्द कर दिया हो । लोग पता नहीं क्या क्या सोचते हैं । वह उन्हें सही स्थिति कैसे समझा सकता था । जो कहानी वह सुना रहे थे । उस कहानी की कोई आवश्यकता ही नहीं थी । जिसे वह फ़रार मुजरिम समझ रहे थे । वह छुपी हालत में अदालत में ही मौजूद था । और मुद्दई की नादानी पर हँस रहा था । बल्कि वह तो वादी क्या मानों स्वयँ जज की हँसी उङा रहा था ।
उसने एक सिगरेट सुलगायी । और अपसेट से हो गये दिमाग को दुरुस्त करते हुये मुँह से ढेर सारा धुँआ छोङते हुये खिङकी की तरफ़ देखा । डायन पूर्ववत मौजूद थी । और बेहद उत्सुकता से उसी को देख रही थी ।
उसने नीलेश को डन का अंगूँठा दिखाया । और बोली - नहीं जा सकते । मुझे उनमें से आज रात एक को ठिकाने लगाना है । उसको तङपा तङपा कर मारना है । बूङा मरे या जवान । मुझे हत्या से काम ।
नीलेश कुछ न बोला । जिस तरह समुद्री तूफ़ान में फ़ँसे आदमी को समझ में नहीं आता । वह क्या करे । और क्या न करे । वह डायन से बात भी करना चाहता था । पर समझ नहीं पा रहा था । क्या करे । और कैसे करे ।
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! फ़िर अचानक वह खिसियाया हुआ सा बोला - क्या बिगाङा है ? इन मासूम लोगों ने तेरा । क्यों नहीं इन्हें चैन से जीने देती । इन हत्याओं से तुझे क्या मिलता है ।
सावधान योगी ! डायन यकायक गम्भीर स्वर में बोली - मैं कोई ऐ..बे..तू..दुष्ट..श्रे णी की छिछोरी महत्वहीन प्रेतात्मा नहीं हूँ । मैं गण श्रेणी में आने वाली नियुक्त डायन हूँ । और मृत्युकन्या के अधीन कार्य करती हूँ ।
यह सब पहले से जानते हुये भी नीलेश को उसके बोलने पर ऐसा लगा । मानों उसके पास बम फ़टा हो । वह अपनी जगह जङवत होकर रह गया । उसके कानों में अग्यात अदृश्य शून्य 0 की सांय सांय गूँजने लगी ।
मृत्युकन्या ! मृत्युकन्या कोई मामूली बात नहीं थी । इसका मतलब साफ़ था । वह डयूटी पर आयी थी । और उसे उसका कार्य करने से कोई भी नहीं रोक सकता था । शायद इसीलिये ये अच्छा ही हुआ था कि पीताम्बर और दूसरों से ने उसे खुद ही नाकाबिल समझ लिया था । वरना ये भयावह स्थिति वह उन्हें एक जन्म में भी नहीं समझा पाता । और अगर समझाने में कामयाब भी हो जाता । तो वह उन्हें कोई दवा देने के स्थान पर उनका दर्द और भी बङाने वाला था । इससे तो वे और भी भयभीत ही हो जाते ।
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प्फ़ावर ! जैसे ही नीलेश के दिमाग में यह विचार आया । डायन अंगूठा दिखाती हुयी बोली - अँधेरा ..कायम रहेगा ।
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