डायन -09


साक्षी ने गहन संतुष्टि से नेत्र बन्द कर लिये । और यमदूतों को इशारा सा किया । फ़िर वह पुनः बोली -
न त्वेवाहं जातु नासं न त्वं नेमे जनाधिपाः । न चैव न भविष्यामः सर्वे वयमतः परम । न तुम्हारा । न मेरा । और न ही यह सब दूसरे अन्य । जो दिख रहे हैं । इनका कभी नाश होता है । और यह भी नहीं कि हम भविष्य मे नहीं रहेंगे । अव्यक्तादीनि भूतानि व्यक्तमध्यानि भारत । अव्यक्तनिधनान्ये� � तत्र का परिदेवना ।देही नित्यमवध्योऽयं देहे सर्वस्य भारत । तस्मात्सर्वाणि भूतानि न त्वं शोचितुमर्हसि । हे योगी ! हर देह में जो आत्मा है । वह नित्य है । उसका वध नहीं किया जा सकता । इसलिये किसी भी जीव के लिये तुम्हें शोक नहीं करना चाहिये ।
..और फ़िर वह निर्जीव हो गयी । एकाएक बिजली सी चमकी । और यमदूत उसका प्राणीनामा लेकर उत्तर दिशा स्थिति यमपुरी चले गये । जो अब उसकी तय मंजिल थी ।
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अलविदा प्रियतम ! अचानक साक्षी किसी नृत्यांगना की तरह झुककर नीलेश का अभिवादन करती हुयी बोली - अब मैं भी चलूँ ।
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बस एक बात और । वह अचानक ही बौखलाकर बोला - अब इसके मृत शरीर का क्या होगा ? इसका पुत्र बहुत दूर है । और शायद ही कोई इसका दाह संस्कार करे ।




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कुछ भी करो ! वह बोली - जो इसके नसीव में हो । और जो आपको उचित लगे ।
कहकर वह भी अदृश्य में अदृश्य हो गयी । और नीलेश को भी दिखना बन्द हो गयी ।
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दाता ! नीलेश के मुँह से कराह निकली - तेरे रंग न्यारे ।
दो मिनट तक वह किंकर्तव्यविमूढ सा कुछ सोचता रहा । पर उसे कोई उपाय समझ न आया । तब वह मकान में जमा सूखे छोटे छोटे पेङ और बोरा बोरी टायप कूङा कागज को इकठ्ठा करता हुआ उस कमरे में लाने लगा । जलवा भी उसका मतलव समझ गया था । वह तेजी से उसका सहयोग करने लगा । मौलश्री के कपङे बिस्तर और अन्य कूङा मिलाकर इतना जलावन था । जो उसका अंतिम संस्कार करने के लिये पर्याप्त था । नीलेश ने आग के प्रति संवेदनशील अपने दोनों स्लीपिंग बैग भी उसकी चिता को यथास्थान समर्पित किये । फ़िर उसने एक बार सब कुछ को अंतिम बार देखा । और जलती हुयी मोमबत्ती को उठाकर चिता को अग्नि दी । कुछ ही देर में चिता धू धू कर जलने लगी । और अब पूरा जलने से पहले बुझने वाली नहीं थी । उसने जलवा का हाथ पकङा । और थके कदमों से बाहर आ गया । जलवा की आँखों में आँसू तैर रहे थे । खुद नीलेश भी उदास था ।
खामोश सुनसान सङक पर वे किसी रहस्यमय साये की भांति होटेल की तरफ़ बङे जा रहे थे ।
अगले दिन के अखवार पर जैसे ही नीलेश की नजर गयी । वह खबर पढकर मुस्कराया ।
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और हुयी रहस्यमय बुङिया की रहस्यमय मौत । डायन का अन्त ।
हमारे विशेष संवाददाता के अनुसार - शहर में आतंक का पर्याय मानी जाने वाली रहस्यमय डायन के नाम से प्रसिद्ध वह बूङी औरत आखिरकार रहस्यमय तरीके से ही मृत्यु को प्राप्त हुयी । ऐसा अनुमान लगाया लगाया जाता है कि उसके घर में किसी तरह आग लग गयी । और वह जल मरी । डायन के नाम से प्रसिद्ध यह औरत अपने बेहद टूटे फ़ूटे पुश्तैनी मकान में अकेली रहती थी । उसके रिश्तेदारों सम्बन्धियों के बारे में भी उसके आसपास रहने वालों को कुछ पता नहीं है । कुछ बुजुर्ग लोगों ने बताया कि उसका एक पुत्र है । पर वह कहाँ है । किसी को कुछ पता नहीं । डायन के नाम से प्रसिद्ध उस औरत का दाह संस्कार करने की भी आवश्यकता नहीं आयी । क्योंकि उससे पहले ही वह जल चुकी थी । उसकी आधे से अधिक जली लाश को पोस्टमार्टम हेतु ले जाया गया है ।
इसके कुछ ही देर में पीताम्बर का फ़ोन आ गया - हाँ नीलेश जी ! आपको एक खुशखबरी सुनाता हूँ । डायन मर गयी । आखिर भगवान भी कोई चीज है भाई । मेरा तो यही मानना है । भक्ति में बङी शक्ति है । देखो आप माइंड मत करना । पर ..पर क्योंकि अभी आप सीख ही रहे हो । मुझे नहीं लगता आप कुछ कर पाते ।
और मुझे नहीं लगता । वो आपके प्रसून जी भी कुछ ज्यादा कर पाते । वो कोई छोटी मोटी चीज नहीं थी । वो डायन थी । डायन । आखिर हम लोगों ने कहाँ कहाँ नहीं मन्नत माँगी थी । उससे छुटकारे के लिये । अब छुटकारा हो गया । हमेशा के लिये हो गया । अब हमारे बच्चे निर्भय होकर खेल सकते हैं । हम बहुत सुखी हो गये ।
इसके तीन बाद जलवा का फ़ोन आया - हाँ दादा ! वो रामू जी शूटिंग कबसे कर रहे हैं ? अगर वो लोकेशन पसन्द ना हो । तो फ़िर मेरे गाँव में आपको एक साथ 40 भूत मिल जायेंगे । हमारे खेत में बम्बे के पास जो बगिया में बरी ( बरगद का पेङ ) है ना । उस पर 40 भूत रहते हैं ।
अरे तो तुम लोग क्या । नीलेश अजीब से स्वर में बोला - हनुमान चालीसा की जगह भूत चालीसा पढते हो ।
-
मतलव ? जलवा उलझकर बोला ।
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मतलव यही हनुमान चालीसा पढने से 40 भूत भाग जाते हैं । और तेरे गाँव में 40 भूत रहते हैं । फ़िर इसका मतलब तो यही हुआ । लोग जरूर भूत चालीसा पढते होंगे ।
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सही बोला दादा । मुझे लगता है । जलवा आश्चर्य से बोला - आप सच ही कह रहे हो । इस प्वाइंट पर तो मैंने आज तक सोचा ही नहीं । कभी गौर ही नही किया । लेकिन दादा ! आपसे एक ही रिकवेस्ट है । रामू जी की फ़िल्म में किसी छोटे मोटे भूत का रोल मुझे जरूर दिलवाना ।
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ओके..जलवा.. ओके ! कहकर नीलेश ने फ़ोन काट दिया ।
दरअसल अलौकिक घटनाओं के समय जलवा शून्यवत ही हो जाता था । और जो बाह्य घटनायें उसने देखी भी थी । वह मृत्युकन्या का मामला अलौकिक प्रसंग होने से उसे किसी भूले हुये आधे अधूरे भृमित सपने की तरह ही याद रहना था । क्योंकि उस पूरा समय वह नीदं स्वपन जागृति से हटकर तन्द्रा अवस्था में रहा था ।


|| समाप्त ||
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