डायन -07


दूसरा दिन ।
नीलेश सुबह मुँह अंधेरे ही उठ गया । और जलवा के साथ बाहर टहलने चला गया । क्या करे । क्या न करे । जैसा कोई सवाल उसके सामने नहीं था । वह डायनी महल से कुछ ही दूर बने खण्डहर किले के आसपास भी घूमता रहा । उसने वहाँ की मलिन बस्ती का भी जायजा लिया । उसे कहीं भी कैसा भी खौफ़ नहीं नजर आया । कोई उसे डायन की बात करता नहीं मिला । इसका मतलब डायन शायद उस बस्ती पर मेहरबान थी । उसका खौफ़ इस बस्ती से बाहर शहर के लोगों पर ही था ।
वह घूमता हुआ एक खाली मैदान में बने मन्दिर के पास से गुजरा । मौलश्री कुँए के पाट पर बैठी हुयी मुँह से मिट्टी उगल रही थी । गीली गीली पीली मिट्टी लार रूप में उसके मुँह से टपक रही थी । मौलश्री ने उसे नहीं देख पाया था । और उसने भी उसके सामने जाने की कोई कोशिश नहीं की ।
वह दूसरी गली से होकर घूमता हुआ निरुद्देश्य ही एक अन्य गली में आ गया । तब उसे कुछ कुछ बात समझ में आयी । वह गौर से प्रत्येक दरबाजे को देखने लगा । वहाँ हर दरबाजे पर तांत्रिक इंतजाम था । किसी ने अपने दरबाजे को कीलवाया हुआ था । किसी ने तन्त्र टाँगा हुआ था । किसी ने वास्तु आदि के द्वारा बुरी आत्माओं से बचने का इंतजाम किया हुआ था ।
अचानक उस स्थान का निरीक्षण करता हुआ नीलेश चौंका । और उस आवाज के सहारे बच्चे को देखने लगा । जो उसे अभी अभी सुनाई दी थी ।
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शक्तिमान.. शक्तिमान ! अपने घर की छत पर खङा वह बच्चा आसमान की तरफ़ देखता हुआ कह रहा था - हमें इस डायन से बचाओ । प्लीज शक्तिमान हमें इस डायन से बचाओ ।
नीलेश ने हैरत से जलवा की तरफ़ देखा । पर वह खुद उसी की तरफ़ देख रहा था ।
तब नीलेश ने बच्चे का ध्यान अपनी तरफ़ खींचने के लिये मुँह से सीटी बजायी । बच्चे ने चौंककर सहमकर उसकी तरफ़ देखा । नीलेश ने उसे नीचे आने का इशारा किया । पर बच्चा मुँह फ़ेरकर परे देखने लगा ।
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मैं ! नीलेश थोङा उच्च स्वर में बोला - शक्तिमान का दोस्त हूँ । क्या आप उससे मिलोगे ?
बच्चे ने चौंककर अविश्वसनीय भाव से उसकी तरफ़ देखा । और बोला - आप सच कह रहे हो अंकल ?
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हाँ बेटा ! नीलेश मुस्कराकर बोला - और तुम्हें चाकलेट भी दिलवाऊँगा ।
कुछ सोचता हुआ असमंजस के भाव में बच्चा नीचे आने को मुङा । और फ़िर तीन मिनट में नीलेश के सामने था । लगभग चार साल का यह बच्चा गोरा गोल मटोल तंदुरस्त और सुन्दर था । अभी वह उससे कुछ बात कर पाता कि तभी एक युवती उस तरफ़ आती दिखाई दी ।
उसने बच्चे को आवाज दी - मोनू क्या हो रहा है वहाँ ? और ये अंकल कौन है ?
आँखों पर काले रंग का बङे ग्लास वाला गागल लगाये वह शायद मन्दिर से वापिस आ रही थी । उसने मोनू की उंगली पकङी । और असमंजस से बोली - आप लोग ?
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जी मेरा नाम राजीव भाटिया है । नीलेश विनमृता से बोला - मेरी यहाँ नयी पोस्टिंग हुयी है । अभी कुँआरा हूँ । यहाँ रूम की तलाश में आया हूँ । पर...? उसने " कुँआरा " शब्द पर विशेष जोर देकर कहा ।
दादा ! जलवा मन ही मन में बोला । सीधा अक्षय कुमार बोलते ना । नहीं तो अक्की ही बोल देते । वैसे ये कुङी भी ट्विंकल खन्ना से कम नहीं हैं ।
रूम की तलाश । और सरकारी आदमी । और उस पर कुँआरा भी । फ़िर फ़िल्मी हीरो सा हेंडसम । युवती के चेहरे पर तुरन्त अनोखी चमक पैदा हुयी । उसने ऊपर से नीचे तक नीलेश को " बकरा " अन्दाज में देखा । और बोली - प्लीज कम ।
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खेली खायी लगती है । जलवा अपने ही अन्दाज में उसके निर्वस्त्र शरीर की कल्पना करते हुये मन ही मन बोला ।
वे दोनों उसके पीछे पीछे चलते हुये उसके घर में घुस गये । अन्दर एक आदमी बैठा हुआ गाल फ़ुलाये शेव कर रहा था । उसके इशारे पर दोनों सोफ़े पर बैठ गये ।
मेरा नाम रश्मि है । वह उसके सामने बैठती हुयी बोली - मैं भी एक क्लर्क हूँ । आपको रूम की तलाश है..?
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पर..रश्मि जी...पर..! वह शालीनता से बोला - लगता है । आपने मेरे " पर " पर ध्यान नहीं दिया । यहाँ मैं एक घन्टे से घूम रहा हूँ । और मैंने हर दरबाजे " पर " कुछ ना कुछ टोना टोटका गंडा ताबीज लटकता हुआ देखा है । ऐसा लगता है । यहाँ इंसान कम प्रेत बहुत ज्यादा रहते हों । और ऐक्चुअली मैं प्रेतों से बहुत डरता हूँ । ये सब क्या है ?
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और मेरी तो निकल ही पङती है । जलवा भयभीत सा बोला - आय मीन यूरिन ।
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ओफ़ ! राजीव जी ! रश्मि अदा से लट को झटकती हुयी बोली - आप भी पढे लिखे होकर इन मनगढंत अंधविश्वासों में यकीन करते हैं । भूत प्रेत नाम की कोई चीज दुनियाँ में नहीं होती । बल्कि दुनियाँ में छोङिये । मैं तो कहती हूँ । कहीं भी नहीं होती । ये सब ठगों और अग्यानी लोगों द्वारा फ़ैलायी गयी अफ़वाहें हैं । जिनमें कोई दम नहीं । आप मुझे कहिये राजीव जी । मैं आधी रात को आपके साथ कही भी.. चलने को तैयार हूँ । आधी रात को आप जो बतायें.. करने को तैयार हूँ । आप एक बार कह के.. तो देखिये ..?
उसके आदमी ने चौंककर घूरकर उसकी तरफ़ देखा । पर रश्मि ने उधर देखा तक नहीं ।
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सारे काम आधी रात को ही करती है क्या ? जलवा आदतानुसार मन में बोला ।
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बिलकुल जी बिलकुल । नीलेश उसका भरपूर समर्थन करता हुआ बोला - आपने तो मेरा आधा डर ही खत्म कर दिया । आधा क्या पूरा ही खत्म कर दिया । जो थोङा सा शेष है । वो आधी रात को ..? उसने जानबूझ कर बात अधूरी छोङ दी ।.. लेकिन कुछ अनपढ गंवार टायप लोग मुझसे कह रहे थे कि - यहाँ कमरा भूलकर मत लेना । यहाँ डायन का इलाका है ।
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मैं नहीं मानती । उसने मानों जिद की - वो एक बेचारी बूङी औरत है । जो अपने ससुराल पक्ष के मकान में रहती है । उसका दुनियाँ में कोई नहीं है । बेचारी भीख वगैरह मांगकर गुजर बसर करती है । अच्छी भली बूङी काकी को लोगों ने डायन बना दिया । मैं तो अक्सर




उसके घर भी हो आती हूँ । अब उसके पास खाने को कुछ नहीं है । तो वह रोटी प्याज माँग लेती है । आप बताईये । इसमें गलत क्या है ? और आप मीडिया के पढे लिखे लोगों की मानसिकता देखिये । उसे रोटी प्याज माँगने वाली डायन चुङैल के नाम से मशहूर कर दिया । राजीव जी..आप ही बताईये । प्याज के साथ रोटी खाना क्या चुङैल होने की निशानी है । मैं खुद प्याज के साथ रोटी खाती हूँ ।
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ना जी ना । नीलेश ने उसके समर्थन में ना ना करते हुये सिर हिलाया - मैं खुद रोटी के साथ प्याज खाता हूँ । ऐसे तो लोग फ़िर मुझे भी जिन्न बोलेंगे ।
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राजीव जी ! आप बेशक मेरी बात पर विश्वास करिये । आप मेरे यहाँ रूम में रहिये । बतौर पेइंग गेस्ट रहिये । अगर डायन चुङैल आपके पास भी फ़टक जाये । तो आप जो कहें..?
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वो आप आधी रात को भी.. करने को तैयार हैं । जलवा ने मानों उसका समर्थन करते हुये बात पूरी की ।
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देखिये राजीव जी ! वह जलवा की बात को अनसुना करते हुये बोली - ये गंडा तन्त्र वगैरह मेरे दरवाजे पर भी बंधा है । आपको मोनू के हाथ पर और मेरे मिस्टर के हाथ पर भी बंधा दिखेगा । पर वह मेरे हसबेंड का ख्याल है । हम एक दूसरे की सोच का सम्मान करते हैं । वे मेरे " काम " में दखल नहीं देते । मैं उनके काम में । मेरी सोच है । इंसान ही इंसान के काम आता है । इसलिये जरूरत पङने पर आधी रात को..
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भी एक दूसरे के काम आना चाहिये । जलवा ने ग्यानियों के अन्दाज में बात पूरी की ।




नीलेश उठ खङा हुआ । और दो मिनट तक कमरा बाथरूम आदि देखने का बहाना करता रहा । रश्मि ने उसे लैट्रीन तक दिखायी । और काफ़ी जोर देकर बताया कि वह सफ़ाई में खास रुचि रखती है । उसे सफ़ाई बेहद पसन्द है । इस दौरान उसने नीलेश से सटने का कोई मौका हाथ से नहीं जाने दिया ।
नीलेश ने मोनू को एक चाकलेट थमायी । और एक सप्ताह बाद आने को कहकर बाहर आ गया ।
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दादा ! जलवा फ़ुसफ़ुसाकर बोला - ये मेरे कू डायन से भी ज्यादा चुङैल लगती है । नहीं मानों तो आप देख लेना आधी रात को..?
नीलेश कुछ न बोला । अब तक का समय बेकार गया । कोई खास महत्व की बात पता नहीं चली । बात पता करनी भी नहीं थी । वह इस क्षेत्र पर डायन का प्रभाव भय और उससे हुयी हानि का आंकलन करना चाहता था ।
जब मोनू ने डायन से बचाने का जिक्र किया । तो उसे लगा कि यहाँ कुछ पता लगे । पर सब बेकार गया ।
अभी वह ऐसी ही सोचों में चला जा रहा था कि तभी पीछे से आवाज आयी - मि. राजीव ! रुकिये प्लीज ।
वह रुक गया । पीछे रश्मि का पति था । वह बिना स्टार्ट बाइक को तेजी से उसकी तरफ़ ला रहा था । पास आकर उसने दोनों को बाइक पर बैठने का इशारा किया । और बाइक स्टार्ट कर दौङा दी ।
करीब पन्द्रह मिनट बाद वे तीनों एक पार्क की बेंच पर बैठे हुये थे ।
उस आदमी का नाम नीलकांत था । नीलकांत समझदार था । पर गम्भीर और दब्बू स्वभाव का था ।
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देखिये राजीव जी ! वह मानों भूमिका बनाता हुआ बोला - मैं आपको यही राय दूँगा कि आप इस क्षेत्र में बिलकुल न रहें । अब हम लोग तो अपना मकान होने से मजबूरी में फ़ँसे ही हुये हैं । पर आप क्यों बेकार में किसी चक्कर में फ़ँसे । वह बुङिया हंड्रेड परसेंट डायन है । नो डाउट । शीज रियल विच ।
और ऐसा मेरा ही नहीं । यहाँ के भुक्तभोगी हजारों लोगों का यही मानना है । डायन ने उन्हें बहुत नुकसान पहुँचाया है । बहुत डराया है । पर लोग आखिर करें । तो करें भी क्या ? हाँ सरकार को इस मामले में कोई उचित कदम उठाना चाहिये । एंटी टेरिरिस्ट की तरह कोई एंटी घोस्ट टायप यूनिट वगैरह ।
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क्या नुकसान ? नीलेश को उत्सुकता हुयी ।
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यही तो अजीब बात है कि हम ये कह भी नहीं सकते कि ये नुकसान या हादसे उसी की वजह से होते हैं । पर जाने क्यों दिल को ऐसा लगता है कि इसके पीछे उसी का हाथ है । वह हमारे दरबाजे पर आकर खाना माँगती है । और न देने पर हमारे बच्चे के मर जाने की बात कहती है । पुरुष के मर जाने की बात कहती है । स्त्री को रांड होने की दुआयें देती है । यदि हम खाना दे भी देते हैं । तो कभी आधा ऊधा खाकर हमारे ही दरबाजे पर डाल जाती है । वह हमारे घर के आगे हड्डियाँ बिखेर जाती है । कोयले ईंट आदि से विचित्र सा कुछ लिख जाती है । वह पीने को शराब भी माँगती है । कभी कहती है । उसे श्रंगार का सामान दो । उसे श्रंगार करना है । और जब भी वह ऐसा करती है । हमारे घर कोई न कोई हादसा घटित होता है ।
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पर ये तो एक पागल औरत के लक्षण हुये । नीलेश दार्शनिक अंदाज में बोला ।
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यही तो । यही तो । लगता यही है कि यह पागल औरत के लक्षण हैं । पर हमारे बुजुर्ग बताते हैं । ये सब डायन के लक्षण हैं । वह रात को यकायक हमारे घर के बाहर खङी मिलती है । बच्चों को दूध पिलाने या गोद में खिलाने की बात भी करती है आदि...
कुछ देर बाद इस तरह समझाकर वह हाथ मिलाकर विदा हो गया ।
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दादा इसको । जलवा कान खुजाकर बोला - डायन की कम इस बात की ज्यादा फ़िक्र लगती है कि कहीं आप इसके किरायेदार न बन जाओ । फ़िर आधी रात को..
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शटअप ! नीलेश बनाबटी गम्भीरता से बोला - किसी का मजाक बनाना अच्छी बात है क्या ।
और एक तरफ़ चल दिया । अब तक कोई खास बात नहीं बनी थी ।
शाम घिरने लगी थी । अंधेरा फ़ैलता जा रहा था । नीलेश को मालूम था । मौलश्री दिन के समय अपने निवास पर ना के बराबर ही जाती है । अतः वह पूरा दिन शहर में ही घूमता रहा । उसने मौलश्री के पीछे जाने की कोई कोशिश न की कि दिन में वह कहाँ जाती है । और क्या करती है ? एक बार को उसके दिमाग में आया कि वह पीताम्बर या हरीश से सम्पर्क करे । फ़िर अपने इस विचार को उसने दिल से निकाल दिया । ऐसा करना उसकी योजना में बाधक हो सकता था । अतः वह उस कालोनी में जाने से भी बचा । जो पीताम्बर की कालोनी थी ।
वास्तव में वह अकेले ध्यान में बैठना चाहता था । जो इस समय उसके लिये बेहद जरूरी था । और बेहद सहायक हो सकता था । पर जलवा नाम की मुसीबत उसके साथ थी । इसलिये ऐसा कर पाना मुश्किल हो रहा था ।
रात नौ बजे के करीब खाना वाना खाकर वह डायनी महल पहुँचा । मौलश्री अपने कमरे में ही मौजूद थी । और जारजार आँसुओं से रो रही थी । उन दोनों को देखकर भी उस पर कोई असर नहीं हुआ । और वह काफ़ी देर तक रोती रही । नीलेश ने उसे रोकने की कोई कोशिश नहीं की ।
फ़िर जब उसने आँसू पोंछे । तो नीलेश बोला - क्या हुआ तायी ?
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कुछ नहीं बेटा ! वह शून्य में देखती हुयी मरी मरी आवाज में बोली - कुछ नहीं । इस दुनियाँ में कोई किसी का नहीं होता । मैं बूङी अकेली असहाय औरत इस क्रूर दुनियाँ से थक गयी । लङते लङते थक गयी । पर जाने क्यों मुझे मौत नहीं आती । दूध पीते बच्चे मर जाते है । जवान मर जाते हैं । पर मैं बूङी ज्यों की त्यों बैठी हुयी हूँ ।
हे भगवान ! उसने अचानक जोर जोर से छाती पीटी - किसी और की मौत आती हो । वो मुझे आ जाये । मेरी बन के आ जाये । क्यूँ मुझ बुङिया को घसीट रहा है ।
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ये तेरा कैसा इंसाफ़ है । ऊपर वाले । लोग मुझे डायन कहते हैं । अपने बच्चों को मेरी नजर से बचाते हैं । किसी के दरबाजे पर जाऊँ । तो डर से उसके प्राण ही सूख जाते हैं । मेरी औलाद तक मुझे छोङ गयी । फ़िर भी तूने मुझे क्यों जिन्दा रखा हुआ है ।
कहकर उसने चाकू उठा लिया । और अपने सीने को लक्ष्य करते हुये बोली - लगता है । अब तू मुझे मुक्ति नहीं दे पायेगा । मैं खुद ही..?
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तायी ! नीलेश ने झपटकर उसका चाकू छीना - क्या करती है ?
मौलश्री का चेहरा सख्त हो गया । उसकी आँखे लाल लाल होकर खूनी भेङिये के समान चमकने लगी । नीलेश को वनखण्डी मन्दिर के पीछे लङते सूक्ष्म शरीरी बनाबटी जीवों की याद हो आयी । बुङिया के हाथों में गजब की ताकत आ गयी । उसने नीलेश को मारने के लिये हाथ ऊँचा किया ।
जिसे नीलेश ने हवा में ही थाम लिया । और बुङिया की खूनी आँखों में आँखें डाल दी ।
योगी ! वह गुर्राई - मेरे काम में दखल न दे । यह सृष्टि का नियम है । यह सत्ता का खेल है । इसको कोई रोक नहीं सकता ।
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चंडूलिका साक्षी ! नीलेश गम्भीर स्वर में बोला - तूने वह कहानी नहीं सुनी । मारने वाले से बचाने वाला अधिक बङा होता है । और तन्त्र ( सिस्टम ) उसका ही मददगार होता है । यह ठीक है । तू नियम के अंतर्गत ही मारती है । पर यह भी उतना ही ठीक है कि मैं नियम के अंतर्गत ही बचाता हूँ । तेरा काम मारना है । तो मेरा काम बचाना है । अगर रोग होता है । तो दवा भी होती है । समस्या होती है । तो समाधान भी होता है । क्या तू मुझे बतायेगी । इस लङकी ( मौलश्री ) की क्या गलती थी ? जो इसे जीती जागती डायन बना दिया गया ।
वह अचानक कसमसाई । उसने अपने मुँह पर वृताकार हाथ घुमाया । और शरीर परिवर्तन करने लगी । कुछ ही देर में बूङी मौलश्री की जगह पूर्ण युवती नजर आने लगी । पैर के नाखून से लेकर सिर तक वह भरपूर शरीर वाली सौंदर्य की देवी में बदल गयी । उसने बेहद कामुक नजरों से नीलेश को देखा ।
मैंने ! वह बिना विचलित हुये बोला - तुमसे कुछ पूछा है । इस लङकी की क्या गलती थी ? जो इसे जीती जागती डायन बना दिया गया ।
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ये मैं नहीं जानती । वह पूर्ण निर्भीकता से बोली - किसी को कुछ भी क्यों बनाया जाता है । कोई भी कुछ क्यों बनता है । इससे हमें कोई मतलब नहीं । किसी को क्यों मारा जाता है । इससे हमें कोई मतलब नहीं । किसी को क्यों छोङ भी दिया जाता है । इससे भी हमें कोई मतलब नहीं । हमारा काम देवी मृत्युकन्या के आदेश का पालन करना भर है बस ।
वह सही कह रही थी । एकदम सही कह रही थी । नीलेश को लगा । वह कच्चा पङने वाला है । तभी उसके दिमाग में गूँजा - सर्वत्र ।
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तो फ़िर ! वह खोखले स्वर में बोला - फ़िर इसका जबाबदेह कौन है ? कौन होगा ।
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स्वयँ मृत्युकन्या ! वह बोली - या फ़िर स्वयँ भगवान ।
नीलेश ने उसका हाथ छोङ दिया । चंडूलिका को मानों अपने वस्त्रों से खासी परेशानी हो रही थी । उसने सभी वस्त्र निकालकर एक ओर उछाल दिये । जलवा चोर नजरों से उसकी देहयष्टि को देख रहा था । और वह भी प्यासी नायिका की तरह उन्हें ही देखे जा रही थी । तब नीलेश को अचानक एक ख्याल आया ।
प्रसून भाई का सफ़ल फ़ार्मूला । देख साक्षी ! वह बोला - माध्यम शरीर ही सही । पर तू अभी का अभी स्वर्ग का मजा लूट सकती है । दो जवान लङके तुझे तृप्त करने हेतु काफ़ी हैं । फ़िर हम लम्बी रेस के घोङे भी हैं । क्या ख्याल है तेरा ?
उसने दाँतो से होठ काटा । उसकी आँखों में पल भर के लिये चमक सी लहरायी । फ़िर वह बोली - कहो । मगर वादा याद रखना ।
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पहले ही कह चुका । वह फ़िर से बोला - इस लङकी की क्या गलती थी ? जो इसे जीती जागती डायन बना दिया गया ।
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ये अभी डायन नहीं है । वह बोली - ये अभी सिर्फ़ निमित्त है । यह अभी सिर्फ़ उपकरण मात्र है । वास्तव में इसका नियंत्रण मेरे हाथ में है । और इसका निमित्त होना इसकी संस्कार फ़ल से बनी किस्मत का खेल ही है । सुनो योगी । ये कहानी वहीं से शुरू हो गयी थी । जब ये बहुत छोटी थी । और इसकी माँ मन्दिर परिसर में कामभोग करती थी । ये छुपकर छुपकर उसको देखती थी । अभी ये रजस्वला भी नहीं हुयी थी । और काम इसके शरीर में जागृत होने लगा । तुम्हें मालूम होगा । रजस्वला होने से कुछ पहले तक लङकी देवी रूपा होती है । आगे अगर वह कायदे से इस रज को तपाती हुयी अपने पति को ही समर्पित होने को तैयार होती है । और समय आने पर उसको अर्पित करती है । तब वह महान पतिवृता होती है । इसके बाद जब वह पति को ही अपनी देह अर्पित करती है । और पर पुरुष का ख्याल तक नहीं लाती । तब वह सत को साधने वाली सती और फ़िर से देवी रूप होने लगती है । इसके बाद अपने से पहले पति की मौत हो जाने पर उसके विछोह को अनुभव करते हुये नहीं जीती । अर्थात पति के साथ ही प्राण त्याग देती है । और एक ही चिता पर दोनों का दाहकर्म होता है । वे पति पत्नी हजारों वर्ष स्वर्गिक भोग का आनन्द लेते हैं । ठीक यही नियम पुरुष पर भी लागू होता है ।
नीलेश ने उसे टोकना चाहा ।
पर वह उससे पहले ही बोली - मैं वह भी बता रही हूँ । लेकिन मौलश्री कन्या पन में ही अछूत हो चुकी थी । कच्चा काम इसके शरीर में जागृत हो चुका था । ऐसा पात्र या तो रोगी होकर मृत्यु को प्राप्त होता है । या फ़िर अदम्य शक्तिशाली काम नायिका के रूप में उसका रूपांतरण हो जाता है । केवल वस्त्रों को रंगे मगर अन्दर से काम भावना के भूखे भेङिये रूपी साधु इसको बेटी पुत्री कहकर जब दुलारते थे । सहलाते थे । वे अपनी वासना की ही पूर्ति करते थे । उन सभी के द्वारा आरोपित कामभावना रूपी काम कीङे मौलश्री के बदन में बेतहाशा रेंगने लगे । और ये वर्जित फ़ल के लिये व्याकुल होने लगी । उधर काने साधु ने इसके रजस्वला होने से पहले ही इसका शीलभंग कर दिया । और आप गलती पूछ रहे हो ।
मन्दिर में कामवासना का खेल । रजस्वला होने से पूर्व कामसेवन । अवैध कामभोग । कई पुरुषों की कामिनी नायिका । तरह तरह के तांत्रिक मांत्रिक कापलिकों आदि से से इसने मुक्त भोग किया है । फ़िर भी तृप्त नहीं हुयी । तब बताईये । कितनी देर ये पापिन बच सकती थी । नियम अनुसार तो कच्चा काम सेवन करने से ही यह घोर पापिन हो गयी थी । उसी समय तय हो गया था कि इसको मृत्युकन्या की गण बनना होगा । क्योंकि अतृप्त भोग की अवैध अदम्य चाह ही हम जैसी डायनों चुङैलों यक्षणियों निम्न देवियों आदि का निर्माण करती है । और आप कह रहे हो । इसकी क्या गलती थी ।
नीलेश को यकायक कोई बात न सूझी । वह अक्षरशः सच कह रही थी ।
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