फ़िर
वह बोली -
तब
और सब क्यों नहीं देख पाते ?
- शायद इसलिये । वह जल चुकी चिता पर निगाह फ़ेंकता हुआ बुझे स्वर में बोला - क्योंकि इंसान सत्य नहीं । सपना देखना अधिक पसन्द करता है । वह जीवन भर सपने में जीता है । सपने में ही मर जाता है ।
- मेरा नाम रत्ना है । उसके मुर्दानी चेहरे पर बुझी राख में इक्का दुक्का चमकते कणों के समान चमक पैदा हुयी । फ़िर वह वहीं उसके सामने जमीन पर ही बैठ गयी ।
- शायद इसलिये । वह जल चुकी चिता पर निगाह फ़ेंकता हुआ बुझे स्वर में बोला - क्योंकि इंसान सत्य नहीं । सपना देखना अधिक पसन्द करता है । वह जीवन भर सपने में जीता है । सपने में ही मर जाता है ।
- मेरा नाम रत्ना है । उसके मुर्दानी चेहरे पर बुझी राख में इक्का दुक्का चमकते कणों के समान चमक पैदा हुयी । फ़िर वह वहीं उसके सामने जमीन पर ही बैठ गयी ।
प्रसून
ने एक सिगरेट सुलगाई । और गहरा
कश लिया । जाने क्यों दोनों
के बीच एक अजीब सा संकोच हावी
हो रहा था । बहुत दिनों बाद
रत्ना को कोई उसके हाल पूछने
वाला हमदर्द मिला था । वह सब
कुछ बताना चाहती थी । पर बता
नहीं पा रही थी । कई महीनों
बाद उसे कोई इंसान मिला था ।
कई महीनों क्या ?
शायद
इस जीवन में ही पहली बार ।
हैवानों से तो उसका रोज का ही
वास्ता था ।
- आपने ही । वह अचानक भय से झुरझुरी लेती हुयी बोली - शायद मुझे उनसे अभी अभी बचाया था ?
प्रसून ने इंकार में सिर हिलाया । उसने दूर विचरते प्रेतों को देखा । और आसमान की ओर उँगली उठा दी - उसने । बहन उसने बचाया है तुझे । सबको बचाने वाला वही है ।
यकायक रत्ना का चेहरा दुख से बिगङ गया । उसके आँसू नहीं आ सकते थे । फ़िर भी प्रसून को लगा । मानों उसका चेहरा आँसुओं में डूबा हो । फ़िर वह भर्राये हुये मासूम स्वर में बोली - और मारने वाला ?
प्रसून को एक झटका सा लगा । कितना बङा सत्य कह रही थी वो । वो सत्य जो उसे जिन्दगी ने दिखाया था । यकायक उसे कोई जबाब न सूझा । शायद जबाब था भी नहीं उसके पास ।
- कितना समय हो गया ? फ़िर वह भावहीन स्वर में बोला ।
- पाँच महीने..से कुछ ज्यादा ।
- और तुम्हारे पति ? वो फ़िर से चिता को देखता हुआ बोला - वो कहाँ हैं ?
अबकी वह फ़फ़क फ़फ़क कर आँसू रहित रोने लगी । प्रसून ने उसे रोने दिया । उसका खाली हो जाना जरूरी था । वह बहुत देर तक रोती रही । बच्चे उसे रोता हुआ देखकर उसके ही पास आ गये थे । और प्रसून को ही सहमे सहमे से देख रहे थे । प्रसून की समझ में नहीं आ रहा था । वह क्या करे ।
- आपने ही । वह अचानक भय से झुरझुरी लेती हुयी बोली - शायद मुझे उनसे अभी अभी बचाया था ?
प्रसून ने इंकार में सिर हिलाया । उसने दूर विचरते प्रेतों को देखा । और आसमान की ओर उँगली उठा दी - उसने । बहन उसने बचाया है तुझे । सबको बचाने वाला वही है ।
यकायक रत्ना का चेहरा दुख से बिगङ गया । उसके आँसू नहीं आ सकते थे । फ़िर भी प्रसून को लगा । मानों उसका चेहरा आँसुओं में डूबा हो । फ़िर वह भर्राये हुये मासूम स्वर में बोली - और मारने वाला ?
प्रसून को एक झटका सा लगा । कितना बङा सत्य कह रही थी वो । वो सत्य जो उसे जिन्दगी ने दिखाया था । यकायक उसे कोई जबाब न सूझा । शायद जबाब था भी नहीं उसके पास ।
- कितना समय हो गया ? फ़िर वह भावहीन स्वर में बोला ।
- पाँच महीने..से कुछ ज्यादा ।
- और तुम्हारे पति ? वो फ़िर से चिता को देखता हुआ बोला - वो कहाँ हैं ?
अबकी वह फ़फ़क फ़फ़क कर आँसू रहित रोने लगी । प्रसून ने उसे रोने दिया । उसका खाली हो जाना जरूरी था । वह बहुत देर तक रोती रही । बच्चे उसे रोता हुआ देखकर उसके ही पास आ गये थे । और प्रसून को ही सहमे सहमे से देख रहे थे । प्रसून की समझ में नहीं आ रहा था । वह क्या करे ।
कुछ
देर बाद वह चुप हो गयी । प्रसून
को इसी का इंतजार था । उसने
रत्ना से -
सुनो
बहन कहा । रत्ना ने उसकी तरफ़
देखा । प्रसून ने अपनी झील सी
गहरी शान्त आँखें उसकी आँखों
में डाल दी । रत्ना 0
शून्य
होती चली गयी । शून्य । सिर्फ़
शून्य । शून्य ही शून्य ।
अब
उसकी जिन्दगी का पूरा ब्यौरा
प्रसून के दिमाग में कापी हो
चुका था । वह दुखी जीवात्मा
कुछ भी बताने में असमर्थ थी
। और प्रसून को उस तरह उससे
जानने की जिज्ञासा भी नहीं
थी । वह कुछ ही देर में सामान्य
हो गयी । उसे एकाएक ऐसा लगा था
। मानों गहरी नींद में सो गयी
थी । शायद इस नयी अदभुत जिन्दगी
में । शायद इस जिन्दगी से पहले
भी । उसे ऐसी भरपूर नींद कभी
नहीं आयी थी । वह अपने आपको
तरोताजा महसूस कर रही थी ।
- कहाँ रहती हो आप । वह स्नेह से बोला - और खाना ?
अब वह लगभग सामान्य थी । प्रसून के कहाँ रहती हो । कहते ही उसकी निगाह खोह नुमा एक ढाय पर गयी । और खाना कहते ही उसने स्वतः ही चिता की तरफ़ देखा । प्रसून उसके दोनों ही मतलब समझ गया । और यहाँ रहने का कारण भी समझ गया ।
- लेकिन । वह फ़िर से बोला - बच्चे । बच्चे क्या खाते हैं ?
उसके चेहरे पर अथाह दुख सा लहराया । स्वतः ही उसकी निगाह त्याज्य मानव मल पर गयी । प्रसून बेबसी से उँगलिया चटकाने लगा । उसके चेहरे पर गहरी पीङा सी जागृत हुयी । सीधा सा मतलब था । उन्होंने बहुत दिनों से अच्छा कुछ भी नहीं खाया था ।
उसने आसपास निगाह डाली । और फ़िर चलता हुआ एक आम के पेङ से पहुँच गया । उसे किसी सूख चुकी आम डाली की तलाश थी । वैसे जमीन पर सूखी लकङियाँ काफ़ी थी । पर वह सिर्फ़ आम की लकङी चाहता था । अन्य लकङियाँ भोजन में कङवाहट मिक्स कर सकती थी । उसने सबसे नीची डाली का चयन किया । और उछलकर उस डाली पर झूल गया । इसके बाद किसी जिमनास्ट चैम्पियन सा वह पेङ की इस डाली से उस डाली पर जाता रहा । और मोबायल टार्च से अन्त में वह सूखी लकङी तोङने में कामयाव हो गया ।
लकङी के सहारे से जलता हुआ मन्दिर का चङावा और उसमें मिक्स शुद्ध घी के खुशबूदार मधुर धुँये से उन तीनों को बेहद तृप्ति महसूस हुयी । शायद मुद्दत के बाद । तब प्रसून के दिल में कुछ शान्ति हुयी ।
उन तीनों को वहीं छोङकर वह उस खोह के पास पहुँचा । उसने एक लकङी से एक अभिमन्त्रित बङा घेरा खोह के आसपास खींचकर उस जगह को बाँध दिया । अब उसमें रत्ना और उसके दो बच्चे ही अन्दर जा सकते थे । अन्य रूहें उस स्थान को पार नहीं कर सकती थी । अतः काफ़ी हद तक रत्ना सुरक्षित और निश्चिन्त रह सकती थी ।
- कहाँ रहती हो आप । वह स्नेह से बोला - और खाना ?
अब वह लगभग सामान्य थी । प्रसून के कहाँ रहती हो । कहते ही उसकी निगाह खोह नुमा एक ढाय पर गयी । और खाना कहते ही उसने स्वतः ही चिता की तरफ़ देखा । प्रसून उसके दोनों ही मतलब समझ गया । और यहाँ रहने का कारण भी समझ गया ।
- लेकिन । वह फ़िर से बोला - बच्चे । बच्चे क्या खाते हैं ?
उसके चेहरे पर अथाह दुख सा लहराया । स्वतः ही उसकी निगाह त्याज्य मानव मल पर गयी । प्रसून बेबसी से उँगलिया चटकाने लगा । उसके चेहरे पर गहरी पीङा सी जागृत हुयी । सीधा सा मतलब था । उन्होंने बहुत दिनों से अच्छा कुछ भी नहीं खाया था ।
उसने आसपास निगाह डाली । और फ़िर चलता हुआ एक आम के पेङ से पहुँच गया । उसे किसी सूख चुकी आम डाली की तलाश थी । वैसे जमीन पर सूखी लकङियाँ काफ़ी थी । पर वह सिर्फ़ आम की लकङी चाहता था । अन्य लकङियाँ भोजन में कङवाहट मिक्स कर सकती थी । उसने सबसे नीची डाली का चयन किया । और उछलकर उस डाली पर झूल गया । इसके बाद किसी जिमनास्ट चैम्पियन सा वह पेङ की इस डाली से उस डाली पर जाता रहा । और मोबायल टार्च से अन्त में वह सूखी लकङी तोङने में कामयाव हो गया ।
लकङी के सहारे से जलता हुआ मन्दिर का चङावा और उसमें मिक्स शुद्ध घी के खुशबूदार मधुर धुँये से उन तीनों को बेहद तृप्ति महसूस हुयी । शायद मुद्दत के बाद । तब प्रसून के दिल में कुछ शान्ति हुयी ।
उन तीनों को वहीं छोङकर वह उस खोह के पास पहुँचा । उसने एक लकङी से एक अभिमन्त्रित बङा घेरा खोह के आसपास खींचकर उस जगह को बाँध दिया । अब उसमें रत्ना और उसके दो बच्चे ही अन्दर जा सकते थे । अन्य रूहें उस स्थान को पार नहीं कर सकती थी । अतः काफ़ी हद तक रत्ना सुरक्षित और निश्चिन्त रह सकती थी ।
वह
वापस उनके पास आया । उसने रत्ना
को कुछ अन्य जरूरी बातें बतायीं
। और बँध के बाहर डायनों प्रेतों
के द्वारा परेशान करने पर उसे
कैसे उससे सम्पर्क जोङना है
। कौन सा मन्त्र बोलना है । ये
सब बताया । उसने रत्ना को भरपूर
दिलासा दी । बङे से बङे प्रेत
अब उसके या उसके बच्चों के पास
फ़टक भी नहीं पायेंगे ।
रत्ना हैरत से यह सब सुनते देखते रही । जाने क्यों उसे लग रहा था । ये इंसान नहीं है । स्वयँ भगवान ही है । पर अपने आपको प्रकट नहीं करना चाहते । जो हो रहा था । उस पर उसे पूरा विश्वास भी हो रहा था । और नहीं भी हो रहा था कि अचानक ये चमत्कार सा कैसे हो गया ।
प्रसून ने उसे बताया नहीं । लेकिन अब वह अपने स्तर पर पूरा निश्चित था । वह प्रेतों के प्रेत भाव से हमेशा के लिये बच्चों सहित बच चुकी थी । अब बस प्रसून के सामने एक ही काम शेष था । वह उन्हें किसी सही जगह पुनर्जन्म दिलवाने में मदद कर सके । लेकिन ये तो सिर्फ़ रत्ना से जुङा काम था ।
वैसे तो उसे बहुत काम था । बहुत काम । जिसकी अभी शुरूआत भी नहीं हुयी थी । यह ख्याल आते ही उसके चेहरे पर अजीव सी सख्ती नजर आने लगी । और वह - चलता हूँ बहन । कहकर उठ खङा हुआ । रत्ना एकदम हङबङा गयी । उसके चेहरे पर प्रसून के जाने का दुख स्पष्ट नजर आने लगा । वह उसके चरण स्पर्श करने को झुकी । प्रसून तेजी से खुद को बचाता हुआ पीछे हट गया ।
- अब । वह रुँआसी होकर बोली - कब आओगे भैया ?
- जल्द ही । वह भावहीन होकर सख्ती से बोला - तुम्हें । उसने खोह की तरफ़ देखा । त्यागे गये मानव मलों की तरफ़ देखा - किसी सही घर में पहुँचाने के लिये ।
फ़िर वह उनकी तरफ़ देखे बिना तेजी से मु्ङकर एक तरफ़ चल दिया । उसकी आँखें भीग सी रही थी ।
रत्ना हैरत से यह सब सुनते देखते रही । जाने क्यों उसे लग रहा था । ये इंसान नहीं है । स्वयँ भगवान ही है । पर अपने आपको प्रकट नहीं करना चाहते । जो हो रहा था । उस पर उसे पूरा विश्वास भी हो रहा था । और नहीं भी हो रहा था कि अचानक ये चमत्कार सा कैसे हो गया ।
प्रसून ने उसे बताया नहीं । लेकिन अब वह अपने स्तर पर पूरा निश्चित था । वह प्रेतों के प्रेत भाव से हमेशा के लिये बच्चों सहित बच चुकी थी । अब बस प्रसून के सामने एक ही काम शेष था । वह उन्हें किसी सही जगह पुनर्जन्म दिलवाने में मदद कर सके । लेकिन ये तो सिर्फ़ रत्ना से जुङा काम था ।
वैसे तो उसे बहुत काम था । बहुत काम । जिसकी अभी शुरूआत भी नहीं हुयी थी । यह ख्याल आते ही उसके चेहरे पर अजीव सी सख्ती नजर आने लगी । और वह - चलता हूँ बहन । कहकर उठ खङा हुआ । रत्ना एकदम हङबङा गयी । उसके चेहरे पर प्रसून के जाने का दुख स्पष्ट नजर आने लगा । वह उसके चरण स्पर्श करने को झुकी । प्रसून तेजी से खुद को बचाता हुआ पीछे हट गया ।
- अब । वह रुँआसी होकर बोली - कब आओगे भैया ?
- जल्द ही । वह भावहीन होकर सख्ती से बोला - तुम्हें । उसने खोह की तरफ़ देखा । त्यागे गये मानव मलों की तरफ़ देखा - किसी सही घर में पहुँचाने के लिये ।
फ़िर वह उनकी तरफ़ देखे बिना तेजी से मु्ङकर एक तरफ़ चल दिया । उसकी आँखें भीग सी रही थी ।
जिन्दगी
क्या है ?
इसका
रहस्य क्या है ?
इसका
तरीका क्या है ?
इसका
सही गणित क्या है ?
ये
कुछ ऐसे सवाल थे । जिनका आज भी
प्रसून के पास कोई जबाब नहीं
था । क्या जिन्दगी एक किताब
की तरह है । जिसके हर पन्ने पर
एक नयी कहानी लिखी है । एक नया
अध्याय लिखा है । वह अध्याय
। वह कहानी । जो उस दिन का पन्ना
खुद ब खुद खुलने पर ही पढी जा
सकती थी । अगर इंसान कुछ जान
सकता है । तो वो बस अपनी जिन्दगी
के पिछले पन्ने । पिछले पन्ने
।
रत्ना की जिन्दगी के पिछले पन्ने । जो उसकी दिमाग की मेमोरी में दर्ज हो चुके थे । क्या हुआ था इस दुखी औरत और उसके बच्चों के साथ ? उसने दूसरे के दिमाग को अपने दिमाग से चित्त द्वारा देखना शुरू किया ।
वह निरुद्देश्य सा चलता जा रहा था । और उसके आगे आगे सिनेमा के पर्दे की तरह एक अदृश्य परदे पर गुजरा हुआ समय जीवन्त हो रहा था । वह समय जब रत्ना शालिमपुर में रहती थी ।
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रत्ना की जिन्दगी के पिछले पन्ने । जो उसकी दिमाग की मेमोरी में दर्ज हो चुके थे । क्या हुआ था इस दुखी औरत और उसके बच्चों के साथ ? उसने दूसरे के दिमाग को अपने दिमाग से चित्त द्वारा देखना शुरू किया ।
वह निरुद्देश्य सा चलता जा रहा था । और उसके आगे आगे सिनेमा के पर्दे की तरह एक अदृश्य परदे पर गुजरा हुआ समय जीवन्त हो रहा था । वह समय जब रत्ना शालिमपुर में रहती थी ।
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