कुदरत का इंसाफ-13


महावीर और इतवारी को ऐसा लगा । मानों वे मरने के बाद जिन्दा हो गये हैं । प्रसून के हिम्मती स्वर ने उनके मुर्दा जिस्म में फ़िर से प्राण से फ़ूँक दिये थे । बोलते वक्त कैसा खुदाई मसीहा सा नजर आ रहा था वो । आसमान से उतरा दिव्य फ़रिश्ता । दुखियों का दुख समझने वाला ।
उसके चुप होने पर सबने एक दूसरे की तरफ़ देखा । और मुक्त भाव से उसका समर्थन भी किया । जाने क्यों उसकी एक एक बात । एक एक शब्द । उन्हें सच्चाई से ओतप्रोत दिव्य वाणी सा महसूस हो रहा था । जैसे ये आवाज किसी इंसान के मुँह से नहीं । बल्कि किसी पाक रूह से आ रही थी । जिसका एक एक लफ़्ज । उनकी आत्मा को झंकृत कर रहा था ।
तुरन्त ही सबकी सहमति बन गयी । और महावीर और इतवारी को वहीं छोङकर वे दोनों युवक और वह आदमी वापस रवाना हो गये ।
प्रसून तेजी से दोनों के साथ कामाक्षा के अहाते में खङी वैगन आर से पहुँचा । और कुछ ही देर में उसकी कार शालिमपुर के लिये फ़र्राटा भरने लगी । इतवारी उसकी ड्राइविंग देखकर हैरान था । कार मानों दौङने के बजाय उङ रही हो । टेङी मेङी सङक पर भी फ़ुल स्पीड से दौङती गाङी को वह ऐसे काटता था कि दोनों का कलेजा बाहर निकलने को हो जाता । गाङी किलर झपाटा स्टायल में सिर्फ़ सूंयऽऽऽऽ सूंय़ऽऽऽऽऽ कर रही थी । दूर से आते वाहन भी घबराकर धीमे हो गये । और उसे पर्याप्त जगह देते हुये काफ़ी फ़ासला देकर साइड से हो गये ।
तब महावीर को उसमें कुछ दम नजर आयी । स्टेयरिंग सीट पर बैठे आत्मविश्वास से भरे प्रसून को देखकर उसे समझ आया कि चाँऊ बाबा क्यों इस लङके की मुक्त कण्ठ से तारीफ़ करता था ।
पर इस सबसे बेपरवाह प्रसून के दिमाग में रत्ना घूम रही थी । कुछ ही देर में उसकी गाङी यमुना ब्रिज पार करती हुयी शालिमपुर के शमशान में खङी थी । उसने गाङी रत्ना की खोह से काफ़ी पहले ही रोक दी थी । और उनको समझा दिया था कि वह कुछ खास इंतजाम कर रहा है । इसलिये वह गाङी से बाहर न आयें । और यहीं उसका इंतजार करें । वे उसके इस नये कदम पर हैरान तो हुये । पर उनकी समझ में कुछ नहीं आया । और वैसे भी प्रसून जानता था । उन पर हावी हुआ मौत का डर । न तो उन्हें कुछ सोचने देगा । और न ही गाङी से निकलने देगा । जबकि वह इस वक्त शमशान में और खङा था ।
उसने रत्ना को बुलाकर कुछ समझाया । और 15 मिनट तक समझाता रहा । हालाँकि उसने रत्ना को खुलकर कुछ नहीं बताया कि क्या होने वाला है । पर जब से वह उससे मिला था । किसी भी प्रेत ने उसे तंग नहीं किया था । उसकी एक एक बात सच हुयी थी । इसलिये रत्ना पूरे आदर से उस पर विश्वास करती थी । दरअसल प्रसून उसे सरप्राइज करना चाहता था । और लाइव दिखाना चाहता था । इसलिये वह खास बात गोल ही कर गया ।
फ़िर वह लौटा । और गाङी में सवार हो गया । उसकी गाङी शालिमपुर की ओर रवाना हो गयी । जिसके ऊपर छत पर बैठी हुयी रत्ना अपने पिया के गाँव एक बार फ़िर वापस जा रही थी । उसके बच्चे आराम से खोह में सोये हुये थे । प्रसून के होते जाने क्यों वह उनकी तरफ़ से एकदम निश्चिन्त थी । और उसकी हर बात खुशी से मान लेती थी ।
गाङी शालिमपुर की गलियों में दाखिल होकर रुक गयी । महावीर ने अन्दर बैठे बैठे ही बाहर देखा । उसके छक्के छूट गये । भय से हवाईंया उसके चेहरे पर उङने लगी । वह आँखें फ़ाङ फ़ाङकर बाहर भौंचक्का सा देखने लगा ।
डाण्ट वरी ! कहता हुआ प्रसून उसको थपथपा कर गाङी से बाहर आ गया ।
महावीर की औरत फ़ूला और इतवारी की औरत सुषमा को उसी पेङ से रस्सियों से जकङकर बाँध दिया गया था । जिस पर बैठकर योगी ने उल्टा मारक आहवान किया था । उनके चारों और गाँव वालों का हुजूम सा इकठ्ठा हो गया था । दरअसल एक स्पेशल नाटक के तहत थोङा उत्पात मचाकर प्रेतनियाँ शान्त हो गयीं थी । और तब लोगों की समझ में यही आया कि तांत्रिक के आने तक अगली किसी घटना को बचाने के लिये उन्हें मजबूती से बाँध दिया जाय ।
सो कभी गाँव के मर्दों बूङों के आगे सिर भी न खोलने वाली वे औरतें पूरी बेहयाई से अधफ़टे वस्त्रों में खङी थी । और रस्सियाँ तोङने को मचल रही थी । वे खुलकर उन पर गन्दी नंगी अश्लील गालियों की बौछार सी कर रही थी । लेकिन मजबूर से वे सब शान्ति से सिर झुकाये खङे थे । किसी को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था । उन्हें महावीर का इंतजार था । जो किसी पहुँचे हुये तांत्रिक को बुलाने गया था ।
इसलिये गाङी रुकते ही सबका ध्यान उसकी ओर आकर्षित हुआ । और कई लोग गाङी में झांक झांक कर किसी लम्बी दाङी वाले साधु महात्मा की तलाश करने लगे । उन्होंने इशारे से महावीर से पूछा भी । पर उसने चुप रहने का इशारा कर दिया । तब उन सबका ध्यान प्रसून की तरफ़ गया ।
पर उन सबकी मनोदशा से एकदम बेपरवाह सा चलता हुआ वह पेङ से बँधी औरतों के पास पहुँचा । उसकी पीठ भीङ की तरफ़ थी । फ़ूला ने सबकी निगाह बचाकर उसे आँख मारी । और अश्लील भाव से स्तन हिलाये । प्रसून ने ऐसे माहौल में कहीं हँसी न निकल जाये । इसलिये फ़ौरन उसकी तरफ़ से मुँह फ़ेर लिया । उसकी निगाह कार की छत पर बैठी रत्ना पर गयी । जो बङी हैरत से यह सब देख रही थी । गाँव के सभी लोगों को वह स्वाभाविक ही पहचानती ही थी ।
उसने यूँ ही हाथ को फ़ालतू सा घुमाते हुये निगाह बचाकर समय देख लिया । साढे दस से ऊपर ही होने वाले थे । रामलीला की जगह कामलीला शुरू होने ही वाली थी । दर्शक जमा हो चुके थे । आज पूरा गाँव ही चर्चा फ़ैल जाने से यहाँ इकठ्ठा हो गया था । गली के पोल पर जलते दो बल्बों से लाइट का पर्याप्त इंतजाम था । बस कलाकारों की एंट्री होना शेष थी । वे खास कलाकार । जो उसके निमन्त्रण पर आने वाले थे ।
वह ऐसे सीरियस माहौल में सिगरेट पीना नहीं चाहता था । पर अपनी तेज तलब को वह रोक नहीं पाया । और पब्लिक की तरफ़ बहाने से एक मिनट कहता हुआ सिगरेट बीच में ही सुलगाता हुआ गाङी की तरफ़ आया । अपने पीछे लपकती भीङ को इशारे से उसने वहीं रोक दिया ।
और कार की खिङकी से अन्दर झांककर फ़ुसफ़ुसाता हुआ बोला - महावीर जी ! बङी गङबङ है यहाँ । साक्षात मौत का खेल जान पङता है । प्रेतों की संख्या बीस से भी ऊपर महसूस हो रही है । मेरे लिये संभालना बहुत ही मुश्किल जान पङ रहा है । पर मैं सिर्फ़ भागते भूत की लंगोट ही सही । जितना काम तो शायद कर ही लूँगा । देखो मैं इनको वश अश में तो नहीं कर पाऊँगा । क्योंकि बहुत बङे प्रेत हैं । लेकिन उनकी मिन्नतें करके समझौता कराने की कोशिश करूँगा ।
इसलिये आपको मेरी सलाह है कि कार से कतई बाहर न निकलें । चाहे कुछ भी हो जाय । समझो अभी प्रलय भी आ जाय । फ़िर भी नहीं निकलना । मौत से किसी की रिश्तेदारी नहीं होती । अन्दर से लाक भी लगा लो । क्योंकि इतना तो मैं जानता हूँ । भूत प्रेत लाक खोलकर अन्दर आपको मारने । उसने मारने शब्द पर जोर दिया - मारने नहीं आ सकते । वैसे आप निश्चिन्त रहो । मुझे उम्मीद है । समझौता हो ही जायेगा । भगवान आपके साथ पूरा इंसाफ़ करेगा । सच्चा इंसाफ़ ही करेगा । एकदम सच्चा इंसाफ़ ।
महावीर ने बङे श्रद्धा भाव से सिर हिलाया । और उसको वापस जाते देखता हुआ भयभीत इतवारी से बोला - कितना अच्छा और सच्चा इंसान है । एकदम भगवान के जैसा । मुझे तो इसमें ही साक्षात भगवान नजर आता है । भगवान ।
वह फ़िर से वापस पेङ के पास पहुँच गया । उसने एक निगाह बँधी औरतों और जमा पब्लिक पर डाली । फ़िर उसने नीचे गन्दी जमीन की तरफ़ देखा । उसका इशारा समझते ही तुरन्त आनन फ़ानन ही वहाँ गद्दी जैसे साजो सामान की सब व्यवस्था हो गयी ।
वह गद्दी पर बैठ गया । उसके पलकों पर आँसू तैरने लगे । उसने आज तक कभी इस ज्ञान का उपयोग किसी के बुरे के लिये नहीं किया था । सदा भले के ही लिये किया था । पर आज उसकी खुद समझ में नहीं आ रहा था कि जो वह करने जा रहा था । वह भला था । या बुरा । एक पल के लिये वह कमजोर सा पङने लगा । उसका आत्मविश्वास डगमगाया । नहीं । शायद ये गलत होगा । तभी उसकी निगाह रत्ना पर गयी । और उसके दिमाग में जमा उसकी जिन्दगी की रील उसके आगे घूमने लगी । वहशी दरिन्दे सुरेश के आगे गिङगिङाती एक असहाय अवला की चीखें - मेरे ब ब बच्चों पर र र रहम करो भईयाऽऽऽ ।
दूसरे ही पल उसके शिथिल होते शरीर में फ़िर से तनाव जागृत होने लगा । उसकी निर्बलता एकदम गायब हो गयी । और वह भावहीन कर्तव्यनिष्ठ योगी सा नजर आने लगा । उसकी आँखें एकदम गोल शून्य 0 होकर चमकने लगी ।
उसने शक्तिशाली सम्मोहिनी तन्त्र से पूरे गाँव क्षेत्र को ही बाँध दिया । ये उसी तरह से था । जैसे जादू वाले निगाह बाँध देते है । कुछ अच्छे जानकार सिद्ध बुद्धि को भी बाँध देते हैं । फ़िर उसने एक तगङा सामूहिक गण आहवान प्रयोग किया । और आँखे बन्द कर मन्त्र जगाने लगा । तुरन्त उसे मरे जानवर पर मंडराते चील कौवों की भांति छोटे बङे प्रेतों के हिल्लारते दल नजर आने लगे । कुछ ही मिनटों में उसने कार्यवाही पूरी कर दी ।
अब स्थिति ये थी कि अदृश्य प्रेतों की पूरी सेना किसी आतंकवादियों की भांति गाँव के एक एक आदमी को कवर किये खङी थी । पूरा गाँव प्रेतों की घेरेबन्दी में आ चुका था । सभी सम्मोहित से गाँव वालों को कुछ अजीव सा महसूस हो रहा था । पर क्या । वे नहीं जानते थे । पर क्यों । वे नहीं जानते थे । वे आधे होश में । और आधे बेहोश से थे ।
-
मुझे खोल साले भङुये ! फ़ूला अचानक मचलते हुये बोली । और मुझे भी..सुषमा कसमसाकर बोली ।
प्रसून तेजी से खुद उनके पास गया । और फ़ुसफ़ुसाकर बोला - शर्म नहीं आती कामारिका तुझे । इतने लोगों के सामने नंगी हो गयी । फ़िर वह प्रत्यक्ष में ऊँचे स्वर में बोला - ठीक है । खोल देता हूँ । पर एक शर्त है । तुम लोग कोई बदतमीजी वाला काम नहीं करोगी । ये सब गाँव वाले । उसने चारों तरफ़ उँगली घुमाकर इशारा किया - बेचारे शरीफ़ आदमी हैं । अतः तुम भी पूरी शराफ़त से पेश आओगी । ऐसा मैंने इनसे वादा किया है ।
उन दोनों ने बङी सीधाई से समर्थन में सिर हिलाया । तब प्रसून ने उन्हें खोल दिया । और गाँव वालों को अर्ध बेहोशी से मुक्त कर दिया । ताकि वे आगे की स्थिति भली भांति जान सके । सभी गाँव वाले मानों एकदम नींद से जागे । और चैतन्य होकर देखने लगे ।
-
जल्दी करना सालिया । फ़ूला होठ काटकर दबे स्वर में बोली - मुझे तेज खुजली होती है । फ़िर मुझसे बर्दाश्त नहीं होता ।
उसकी बात पर कोई ध्यान न देकर प्रसून अपना काम करने लगा । उसने मानसिक रूप से मरुदण्डिका से सम्पर्क किया । और होठों में ही बोला - ध्यान रहे रूपिका । प्रेत किसी निर्दोष को प्रभावित न करें ।


 09 10 11 12 ... 14 15

sourse- hindivicharmunch

No comments:

Post a Comment

Featured Post

सिंह और गाय

  एक गाय घास चरने के लिए एक जंगल में चली गई। शाम ढलने के करीब थी। उसने देखा कि एक बाघ उसकी तरफ दबे पांव बढ़ रहा है। वह डर के मारे इधर-उधर भा...