महावीर
और इतवारी को ऐसा लगा । मानों
वे मरने के बाद जिन्दा हो गये
हैं । प्रसून के हिम्मती स्वर
ने उनके मुर्दा जिस्म में फ़िर
से प्राण से फ़ूँक दिये थे ।
बोलते वक्त कैसा खुदाई मसीहा
सा नजर आ रहा था वो । आसमान से
उतरा दिव्य फ़रिश्ता । दुखियों
का दुख समझने वाला ।
उसके चुप होने पर सबने एक दूसरे की तरफ़ देखा । और मुक्त भाव से उसका समर्थन भी किया । जाने क्यों उसकी एक एक बात । एक एक शब्द । उन्हें सच्चाई से ओतप्रोत दिव्य वाणी सा महसूस हो रहा था । जैसे ये आवाज किसी इंसान के मुँह से नहीं । बल्कि किसी पाक रूह से आ रही थी । जिसका एक एक लफ़्ज । उनकी आत्मा को झंकृत कर रहा था ।
तुरन्त ही सबकी सहमति बन गयी । और महावीर और इतवारी को वहीं छोङकर वे दोनों युवक और वह आदमी वापस रवाना हो गये ।
प्रसून तेजी से दोनों के साथ कामाक्षा के अहाते में खङी वैगन आर से पहुँचा । और कुछ ही देर में उसकी कार शालिमपुर के लिये फ़र्राटा भरने लगी । इतवारी उसकी ड्राइविंग देखकर हैरान था । कार मानों दौङने के बजाय उङ रही हो । टेङी मेङी सङक पर भी फ़ुल स्पीड से दौङती गाङी को वह ऐसे काटता था कि दोनों का कलेजा बाहर निकलने को हो जाता । गाङी किलर झपाटा स्टायल में सिर्फ़ सूंयऽऽऽऽ सूंय़ऽऽऽऽऽ कर रही थी । दूर से आते वाहन भी घबराकर धीमे हो गये । और उसे पर्याप्त जगह देते हुये काफ़ी फ़ासला देकर साइड से हो गये ।
तब महावीर को उसमें कुछ दम नजर आयी । स्टेयरिंग सीट पर बैठे आत्मविश्वास से भरे प्रसून को देखकर उसे समझ आया कि चाँऊ बाबा क्यों इस लङके की मुक्त कण्ठ से तारीफ़ करता था ।
उसके चुप होने पर सबने एक दूसरे की तरफ़ देखा । और मुक्त भाव से उसका समर्थन भी किया । जाने क्यों उसकी एक एक बात । एक एक शब्द । उन्हें सच्चाई से ओतप्रोत दिव्य वाणी सा महसूस हो रहा था । जैसे ये आवाज किसी इंसान के मुँह से नहीं । बल्कि किसी पाक रूह से आ रही थी । जिसका एक एक लफ़्ज । उनकी आत्मा को झंकृत कर रहा था ।
तुरन्त ही सबकी सहमति बन गयी । और महावीर और इतवारी को वहीं छोङकर वे दोनों युवक और वह आदमी वापस रवाना हो गये ।
प्रसून तेजी से दोनों के साथ कामाक्षा के अहाते में खङी वैगन आर से पहुँचा । और कुछ ही देर में उसकी कार शालिमपुर के लिये फ़र्राटा भरने लगी । इतवारी उसकी ड्राइविंग देखकर हैरान था । कार मानों दौङने के बजाय उङ रही हो । टेङी मेङी सङक पर भी फ़ुल स्पीड से दौङती गाङी को वह ऐसे काटता था कि दोनों का कलेजा बाहर निकलने को हो जाता । गाङी किलर झपाटा स्टायल में सिर्फ़ सूंयऽऽऽऽ सूंय़ऽऽऽऽऽ कर रही थी । दूर से आते वाहन भी घबराकर धीमे हो गये । और उसे पर्याप्त जगह देते हुये काफ़ी फ़ासला देकर साइड से हो गये ।
तब महावीर को उसमें कुछ दम नजर आयी । स्टेयरिंग सीट पर बैठे आत्मविश्वास से भरे प्रसून को देखकर उसे समझ आया कि चाँऊ बाबा क्यों इस लङके की मुक्त कण्ठ से तारीफ़ करता था ।
पर
इस सबसे बेपरवाह प्रसून के
दिमाग में रत्ना घूम रही थी
। कुछ ही देर में उसकी गाङी
यमुना ब्रिज पार करती हुयी
शालिमपुर के शमशान में खङी
थी । उसने गाङी रत्ना की खोह
से काफ़ी पहले ही रोक दी थी ।
और उनको समझा दिया था कि वह
कुछ खास इंतजाम कर रहा है ।
इसलिये वह गाङी से बाहर न आयें
। और यहीं उसका इंतजार करें
। वे उसके इस नये कदम पर हैरान
तो हुये । पर उनकी समझ में कुछ
नहीं आया । और वैसे भी प्रसून
जानता था । उन पर हावी हुआ मौत
का डर । न तो उन्हें कुछ सोचने
देगा । और न ही गाङी से निकलने
देगा । जबकि वह इस वक्त शमशान
में और खङा था ।
उसने रत्ना को बुलाकर कुछ समझाया । और 15 मिनट तक समझाता रहा । हालाँकि उसने रत्ना को खुलकर कुछ नहीं बताया कि क्या होने वाला है । पर जब से वह उससे मिला था । किसी भी प्रेत ने उसे तंग नहीं किया था । उसकी एक एक बात सच हुयी थी । इसलिये रत्ना पूरे आदर से उस पर विश्वास करती थी । दरअसल प्रसून उसे सरप्राइज करना चाहता था । और लाइव दिखाना चाहता था । इसलिये वह खास बात गोल ही कर गया ।
फ़िर वह लौटा । और गाङी में सवार हो गया । उसकी गाङी शालिमपुर की ओर रवाना हो गयी । जिसके ऊपर छत पर बैठी हुयी रत्ना अपने पिया के गाँव एक बार फ़िर वापस जा रही थी । उसके बच्चे आराम से खोह में सोये हुये थे । प्रसून के होते जाने क्यों वह उनकी तरफ़ से एकदम निश्चिन्त थी । और उसकी हर बात खुशी से मान लेती थी ।
गाङी शालिमपुर की गलियों में दाखिल होकर रुक गयी । महावीर ने अन्दर बैठे बैठे ही बाहर देखा । उसके छक्के छूट गये । भय से हवाईंया उसके चेहरे पर उङने लगी । वह आँखें फ़ाङ फ़ाङकर बाहर भौंचक्का सा देखने लगा ।
डाण्ट वरी ! कहता हुआ प्रसून उसको थपथपा कर गाङी से बाहर आ गया ।
उसने रत्ना को बुलाकर कुछ समझाया । और 15 मिनट तक समझाता रहा । हालाँकि उसने रत्ना को खुलकर कुछ नहीं बताया कि क्या होने वाला है । पर जब से वह उससे मिला था । किसी भी प्रेत ने उसे तंग नहीं किया था । उसकी एक एक बात सच हुयी थी । इसलिये रत्ना पूरे आदर से उस पर विश्वास करती थी । दरअसल प्रसून उसे सरप्राइज करना चाहता था । और लाइव दिखाना चाहता था । इसलिये वह खास बात गोल ही कर गया ।
फ़िर वह लौटा । और गाङी में सवार हो गया । उसकी गाङी शालिमपुर की ओर रवाना हो गयी । जिसके ऊपर छत पर बैठी हुयी रत्ना अपने पिया के गाँव एक बार फ़िर वापस जा रही थी । उसके बच्चे आराम से खोह में सोये हुये थे । प्रसून के होते जाने क्यों वह उनकी तरफ़ से एकदम निश्चिन्त थी । और उसकी हर बात खुशी से मान लेती थी ।
गाङी शालिमपुर की गलियों में दाखिल होकर रुक गयी । महावीर ने अन्दर बैठे बैठे ही बाहर देखा । उसके छक्के छूट गये । भय से हवाईंया उसके चेहरे पर उङने लगी । वह आँखें फ़ाङ फ़ाङकर बाहर भौंचक्का सा देखने लगा ।
डाण्ट वरी ! कहता हुआ प्रसून उसको थपथपा कर गाङी से बाहर आ गया ।
महावीर
की औरत फ़ूला और इतवारी की औरत
सुषमा को उसी पेङ से रस्सियों
से जकङकर बाँध दिया गया था ।
जिस पर बैठकर योगी ने उल्टा
मारक आहवान किया था । उनके
चारों और गाँव वालों का हुजूम
सा इकठ्ठा हो गया था । दरअसल
एक स्पेशल नाटक के तहत थोङा
उत्पात मचाकर प्रेतनियाँ
शान्त हो गयीं थी । और तब लोगों
की समझ में यही आया कि तांत्रिक
के आने तक अगली किसी घटना को
बचाने के लिये उन्हें मजबूती
से बाँध दिया जाय ।
सो कभी गाँव के मर्दों बूङों के आगे सिर भी न खोलने वाली वे औरतें पूरी बेहयाई से अधफ़टे वस्त्रों में खङी थी । और रस्सियाँ तोङने को मचल रही थी । वे खुलकर उन पर गन्दी नंगी अश्लील गालियों की बौछार सी कर रही थी । लेकिन मजबूर से वे सब शान्ति से सिर झुकाये खङे थे । किसी को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था । उन्हें महावीर का इंतजार था । जो किसी पहुँचे हुये तांत्रिक को बुलाने गया था ।
इसलिये गाङी रुकते ही सबका ध्यान उसकी ओर आकर्षित हुआ । और कई लोग गाङी में झांक झांक कर किसी लम्बी दाङी वाले साधु महात्मा की तलाश करने लगे । उन्होंने इशारे से महावीर से पूछा भी । पर उसने चुप रहने का इशारा कर दिया । तब उन सबका ध्यान प्रसून की तरफ़ गया ।
सो कभी गाँव के मर्दों बूङों के आगे सिर भी न खोलने वाली वे औरतें पूरी बेहयाई से अधफ़टे वस्त्रों में खङी थी । और रस्सियाँ तोङने को मचल रही थी । वे खुलकर उन पर गन्दी नंगी अश्लील गालियों की बौछार सी कर रही थी । लेकिन मजबूर से वे सब शान्ति से सिर झुकाये खङे थे । किसी को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था । उन्हें महावीर का इंतजार था । जो किसी पहुँचे हुये तांत्रिक को बुलाने गया था ।
इसलिये गाङी रुकते ही सबका ध्यान उसकी ओर आकर्षित हुआ । और कई लोग गाङी में झांक झांक कर किसी लम्बी दाङी वाले साधु महात्मा की तलाश करने लगे । उन्होंने इशारे से महावीर से पूछा भी । पर उसने चुप रहने का इशारा कर दिया । तब उन सबका ध्यान प्रसून की तरफ़ गया ।
पर
उन सबकी मनोदशा से एकदम बेपरवाह
सा चलता हुआ वह पेङ से बँधी
औरतों के पास पहुँचा । उसकी
पीठ भीङ की तरफ़ थी । फ़ूला ने
सबकी निगाह बचाकर उसे आँख मारी
। और अश्लील भाव से स्तन हिलाये
। प्रसून ने ऐसे माहौल में
कहीं हँसी न निकल जाये । इसलिये
फ़ौरन उसकी तरफ़ से मुँह फ़ेर
लिया । उसकी निगाह कार की छत
पर बैठी रत्ना पर गयी । जो बङी
हैरत से यह सब देख रही थी । गाँव
के सभी लोगों को वह स्वाभाविक
ही पहचानती ही थी ।
उसने यूँ ही हाथ को फ़ालतू सा घुमाते हुये निगाह बचाकर समय देख लिया । साढे दस से ऊपर ही होने वाले थे । रामलीला की जगह कामलीला शुरू होने ही वाली थी । दर्शक जमा हो चुके थे । आज पूरा गाँव ही चर्चा फ़ैल जाने से यहाँ इकठ्ठा हो गया था । गली के पोल पर जलते दो बल्बों से लाइट का पर्याप्त इंतजाम था । बस कलाकारों की एंट्री होना शेष थी । वे खास कलाकार । जो उसके निमन्त्रण पर आने वाले थे ।
वह ऐसे सीरियस माहौल में सिगरेट पीना नहीं चाहता था । पर अपनी तेज तलब को वह रोक नहीं पाया । और पब्लिक की तरफ़ बहाने से एक मिनट कहता हुआ सिगरेट बीच में ही सुलगाता हुआ गाङी की तरफ़ आया । अपने पीछे लपकती भीङ को इशारे से उसने वहीं रोक दिया ।
और कार की खिङकी से अन्दर झांककर फ़ुसफ़ुसाता हुआ बोला - महावीर जी ! बङी गङबङ है यहाँ । साक्षात मौत का खेल जान पङता है । प्रेतों की संख्या बीस से भी ऊपर महसूस हो रही है । मेरे लिये संभालना बहुत ही मुश्किल जान पङ रहा है । पर मैं सिर्फ़ भागते भूत की लंगोट ही सही । जितना काम तो शायद कर ही लूँगा । देखो मैं इनको वश अश में तो नहीं कर पाऊँगा । क्योंकि बहुत बङे प्रेत हैं । लेकिन उनकी मिन्नतें करके समझौता कराने की कोशिश करूँगा ।
उसने यूँ ही हाथ को फ़ालतू सा घुमाते हुये निगाह बचाकर समय देख लिया । साढे दस से ऊपर ही होने वाले थे । रामलीला की जगह कामलीला शुरू होने ही वाली थी । दर्शक जमा हो चुके थे । आज पूरा गाँव ही चर्चा फ़ैल जाने से यहाँ इकठ्ठा हो गया था । गली के पोल पर जलते दो बल्बों से लाइट का पर्याप्त इंतजाम था । बस कलाकारों की एंट्री होना शेष थी । वे खास कलाकार । जो उसके निमन्त्रण पर आने वाले थे ।
वह ऐसे सीरियस माहौल में सिगरेट पीना नहीं चाहता था । पर अपनी तेज तलब को वह रोक नहीं पाया । और पब्लिक की तरफ़ बहाने से एक मिनट कहता हुआ सिगरेट बीच में ही सुलगाता हुआ गाङी की तरफ़ आया । अपने पीछे लपकती भीङ को इशारे से उसने वहीं रोक दिया ।
और कार की खिङकी से अन्दर झांककर फ़ुसफ़ुसाता हुआ बोला - महावीर जी ! बङी गङबङ है यहाँ । साक्षात मौत का खेल जान पङता है । प्रेतों की संख्या बीस से भी ऊपर महसूस हो रही है । मेरे लिये संभालना बहुत ही मुश्किल जान पङ रहा है । पर मैं सिर्फ़ भागते भूत की लंगोट ही सही । जितना काम तो शायद कर ही लूँगा । देखो मैं इनको वश अश में तो नहीं कर पाऊँगा । क्योंकि बहुत बङे प्रेत हैं । लेकिन उनकी मिन्नतें करके समझौता कराने की कोशिश करूँगा ।
इसलिये
आपको मेरी सलाह है कि कार से
कतई बाहर न निकलें । चाहे कुछ
भी हो जाय । समझो अभी प्रलय भी
आ जाय । फ़िर भी नहीं निकलना
। मौत से किसी की रिश्तेदारी
नहीं होती । अन्दर से लाक भी
लगा लो । क्योंकि इतना तो मैं
जानता हूँ । भूत प्रेत लाक
खोलकर अन्दर आपको मारने । उसने
मारने शब्द पर जोर दिया -
मारने
नहीं आ सकते । वैसे आप निश्चिन्त
रहो । मुझे उम्मीद है । समझौता
हो ही जायेगा । भगवान आपके साथ
पूरा इंसाफ़ करेगा । सच्चा
इंसाफ़ ही करेगा । एकदम सच्चा
इंसाफ़ ।
महावीर ने बङे श्रद्धा भाव से सिर हिलाया । और उसको वापस जाते देखता हुआ भयभीत इतवारी से बोला - कितना अच्छा और सच्चा इंसान है । एकदम भगवान के जैसा । मुझे तो इसमें ही साक्षात भगवान नजर आता है । भगवान ।
वह फ़िर से वापस पेङ के पास पहुँच गया । उसने एक निगाह बँधी औरतों और जमा पब्लिक पर डाली । फ़िर उसने नीचे गन्दी जमीन की तरफ़ देखा । उसका इशारा समझते ही तुरन्त आनन फ़ानन ही वहाँ गद्दी जैसे साजो सामान की सब व्यवस्था हो गयी ।
वह गद्दी पर बैठ गया । उसके पलकों पर आँसू तैरने लगे । उसने आज तक कभी इस ज्ञान का उपयोग किसी के बुरे के लिये नहीं किया था । सदा भले के ही लिये किया था । पर आज उसकी खुद समझ में नहीं आ रहा था कि जो वह करने जा रहा था । वह भला था । या बुरा । एक पल के लिये वह कमजोर सा पङने लगा । उसका आत्मविश्वास डगमगाया । नहीं । शायद ये गलत होगा । तभी उसकी निगाह रत्ना पर गयी । और उसके दिमाग में जमा उसकी जिन्दगी की रील उसके आगे घूमने लगी । वहशी दरिन्दे सुरेश के आगे गिङगिङाती एक असहाय अवला की चीखें - मेरे ब ब बच्चों पर र र रहम करो भईयाऽऽऽ ।
दूसरे ही पल उसके शिथिल होते शरीर में फ़िर से तनाव जागृत होने लगा । उसकी निर्बलता एकदम गायब हो गयी । और वह भावहीन कर्तव्यनिष्ठ योगी सा नजर आने लगा । उसकी आँखें एकदम गोल शून्य 0 होकर चमकने लगी ।
महावीर ने बङे श्रद्धा भाव से सिर हिलाया । और उसको वापस जाते देखता हुआ भयभीत इतवारी से बोला - कितना अच्छा और सच्चा इंसान है । एकदम भगवान के जैसा । मुझे तो इसमें ही साक्षात भगवान नजर आता है । भगवान ।
वह फ़िर से वापस पेङ के पास पहुँच गया । उसने एक निगाह बँधी औरतों और जमा पब्लिक पर डाली । फ़िर उसने नीचे गन्दी जमीन की तरफ़ देखा । उसका इशारा समझते ही तुरन्त आनन फ़ानन ही वहाँ गद्दी जैसे साजो सामान की सब व्यवस्था हो गयी ।
वह गद्दी पर बैठ गया । उसके पलकों पर आँसू तैरने लगे । उसने आज तक कभी इस ज्ञान का उपयोग किसी के बुरे के लिये नहीं किया था । सदा भले के ही लिये किया था । पर आज उसकी खुद समझ में नहीं आ रहा था कि जो वह करने जा रहा था । वह भला था । या बुरा । एक पल के लिये वह कमजोर सा पङने लगा । उसका आत्मविश्वास डगमगाया । नहीं । शायद ये गलत होगा । तभी उसकी निगाह रत्ना पर गयी । और उसके दिमाग में जमा उसकी जिन्दगी की रील उसके आगे घूमने लगी । वहशी दरिन्दे सुरेश के आगे गिङगिङाती एक असहाय अवला की चीखें - मेरे ब ब बच्चों पर र र रहम करो भईयाऽऽऽ ।
दूसरे ही पल उसके शिथिल होते शरीर में फ़िर से तनाव जागृत होने लगा । उसकी निर्बलता एकदम गायब हो गयी । और वह भावहीन कर्तव्यनिष्ठ योगी सा नजर आने लगा । उसकी आँखें एकदम गोल शून्य 0 होकर चमकने लगी ।
उसने
शक्तिशाली सम्मोहिनी तन्त्र
से पूरे गाँव क्षेत्र को ही
बाँध दिया । ये उसी तरह से था
। जैसे जादू वाले निगाह बाँध
देते है । कुछ अच्छे जानकार
सिद्ध बुद्धि को भी बाँध देते
हैं । फ़िर उसने एक तगङा सामूहिक
गण आहवान प्रयोग किया । और
आँखे बन्द कर मन्त्र जगाने
लगा । तुरन्त उसे मरे जानवर
पर मंडराते चील कौवों की भांति
छोटे बङे प्रेतों के हिल्लारते
दल नजर आने लगे । कुछ ही मिनटों
में उसने कार्यवाही पूरी कर
दी ।
अब स्थिति ये थी कि अदृश्य प्रेतों की पूरी सेना किसी आतंकवादियों की भांति गाँव के एक एक आदमी को कवर किये खङी थी । पूरा गाँव प्रेतों की घेरेबन्दी में आ चुका था । सभी सम्मोहित से गाँव वालों को कुछ अजीव सा महसूस हो रहा था । पर क्या । वे नहीं जानते थे । पर क्यों । वे नहीं जानते थे । वे आधे होश में । और आधे बेहोश से थे ।
- मुझे खोल साले भङुये ! फ़ूला अचानक मचलते हुये बोली । और मुझे भी..सुषमा कसमसाकर बोली ।
प्रसून तेजी से खुद उनके पास गया । और फ़ुसफ़ुसाकर बोला - शर्म नहीं आती कामारिका तुझे । इतने लोगों के सामने नंगी हो गयी । फ़िर वह प्रत्यक्ष में ऊँचे स्वर में बोला - ठीक है । खोल देता हूँ । पर एक शर्त है । तुम लोग कोई बदतमीजी वाला काम नहीं करोगी । ये सब गाँव वाले । उसने चारों तरफ़ उँगली घुमाकर इशारा किया - बेचारे शरीफ़ आदमी हैं । अतः तुम भी पूरी शराफ़त से पेश आओगी । ऐसा मैंने इनसे वादा किया है ।
अब स्थिति ये थी कि अदृश्य प्रेतों की पूरी सेना किसी आतंकवादियों की भांति गाँव के एक एक आदमी को कवर किये खङी थी । पूरा गाँव प्रेतों की घेरेबन्दी में आ चुका था । सभी सम्मोहित से गाँव वालों को कुछ अजीव सा महसूस हो रहा था । पर क्या । वे नहीं जानते थे । पर क्यों । वे नहीं जानते थे । वे आधे होश में । और आधे बेहोश से थे ।
- मुझे खोल साले भङुये ! फ़ूला अचानक मचलते हुये बोली । और मुझे भी..सुषमा कसमसाकर बोली ।
प्रसून तेजी से खुद उनके पास गया । और फ़ुसफ़ुसाकर बोला - शर्म नहीं आती कामारिका तुझे । इतने लोगों के सामने नंगी हो गयी । फ़िर वह प्रत्यक्ष में ऊँचे स्वर में बोला - ठीक है । खोल देता हूँ । पर एक शर्त है । तुम लोग कोई बदतमीजी वाला काम नहीं करोगी । ये सब गाँव वाले । उसने चारों तरफ़ उँगली घुमाकर इशारा किया - बेचारे शरीफ़ आदमी हैं । अतः तुम भी पूरी शराफ़त से पेश आओगी । ऐसा मैंने इनसे वादा किया है ।
उन
दोनों ने बङी सीधाई से समर्थन
में सिर हिलाया । तब प्रसून
ने उन्हें खोल दिया । और गाँव
वालों को अर्ध बेहोशी से मुक्त
कर दिया । ताकि वे आगे की स्थिति
भली भांति जान सके । सभी गाँव
वाले मानों एकदम नींद से जागे
। और चैतन्य होकर देखने लगे
।
- जल्दी करना सालिया । फ़ूला होठ काटकर दबे स्वर में बोली - मुझे तेज खुजली होती है । फ़िर मुझसे बर्दाश्त नहीं होता ।
उसकी बात पर कोई ध्यान न देकर प्रसून अपना काम करने लगा । उसने मानसिक रूप से मरुदण्डिका से सम्पर्क किया । और होठों में ही बोला - ध्यान रहे रूपिका । प्रेत किसी निर्दोष को प्रभावित न करें ।
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- जल्दी करना सालिया । फ़ूला होठ काटकर दबे स्वर में बोली - मुझे तेज खुजली होती है । फ़िर मुझसे बर्दाश्त नहीं होता ।
उसकी बात पर कोई ध्यान न देकर प्रसून अपना काम करने लगा । उसने मानसिक रूप से मरुदण्डिका से सम्पर्क किया । और होठों में ही बोला - ध्यान रहे रूपिका । प्रेत किसी निर्दोष को प्रभावित न करें ।
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