नरसी
की मौत के बाद रत्ना ने शालिमपुर
छोङ दिया था । वह अपने दोनों
बच्चों के साथ खेत पर रखवाली
के उद्देश्य से बनी झोंपङी
का ही विस्तार कर उसमें रहने
लगी थी । अब उसमें जीने की कोई
चाह नहीं रही थी । वह बस लाश
की तरह अपने बच्चों के लिये
जी रही थी । वह अकेली ही दिन
रात खेत में जी तोङ मेहनत कर
अपने को थका लेती थी । और शाम
को सब कुछ भूलकर बेहोशी जैसी
नींद में चली जाती थी । बस यही
उसकी जिन्दगी रह गयी थी । उसने
एक बार दोनों बच्चों के साथ
जान देने के बारे में भी सोचा
। मगर नरसी के अन्तिम शब्द और
उसका लिया हुआ वादा याद आते
ही वह काँपकर रह गयी । फ़िर
उसने अपनी जिन्दगी की बेलगाम
कश्ती को वक्त के निर्मम थपेङों
के साथ उसके हालात पर छोङ दिया
। उसके चेहरे पर एक स्थायी
शून्यता छा गयी थी । उसकी सूनी
सी स्याह आँखों में जिन्दगी
का कोई रंग नहीं बचा था ।
नरसी की लाश एक नहर के पास से बरामद हुयी थी । जिस पर सभी गाँव वालों ने रोते पी्टते हाय हाय करते हुये किसी अज्ञात हत्यारे द्वारा अज्ञात कारणों से हत्या की रिपोर्ट दर्ज करा दी थी । फ़ूट फ़ूटकर रोता हुआ सुरेश अपने तयेरे भाई के साथ ही मानों मर जाने को ही तैयार था । बङी मुश्किल से लोगों ने उसे रोका । वह भाभी भाभी माँ कहते हुये रत्ना के पैरों से भी लिपटता था । और बारबार छाती पीटते हुये यही अफ़सोस करता था कि - काश ! मौत के समय वह भी नरसी भैया के पास होता । तो अपनी जान देकर भी वह उन्हें बचाता ।
रत्ना भावहीन चेहरे से ये सब अन्तिम नाटक देखती रही । और फ़िर वह गाँव का घर छोङकर खेतों पर आ गयी ।
नरसी की लाश एक नहर के पास से बरामद हुयी थी । जिस पर सभी गाँव वालों ने रोते पी्टते हाय हाय करते हुये किसी अज्ञात हत्यारे द्वारा अज्ञात कारणों से हत्या की रिपोर्ट दर्ज करा दी थी । फ़ूट फ़ूटकर रोता हुआ सुरेश अपने तयेरे भाई के साथ ही मानों मर जाने को ही तैयार था । बङी मुश्किल से लोगों ने उसे रोका । वह भाभी भाभी माँ कहते हुये रत्ना के पैरों से भी लिपटता था । और बारबार छाती पीटते हुये यही अफ़सोस करता था कि - काश ! मौत के समय वह भी नरसी भैया के पास होता । तो अपनी जान देकर भी वह उन्हें बचाता ।
रत्ना भावहीन चेहरे से ये सब अन्तिम नाटक देखती रही । और फ़िर वह गाँव का घर छोङकर खेतों पर आ गयी ।
तब
रात के बारह बजे थे । पूरे
शालिमपुर में सन्नाटा छाया
हुआ था । गाँव के सभी लोग नींद
के आगोश में जा चुके थे । शालिमपुर
के शमशान में प्रेतों की चहल
पहल जारी थी । रत्ना गहरी नींद
में सोयी पङी थी कि अचानक हङबङा
कर उठ बैठी ।
कोई उसके सीने पर आहिस्ता आहिस्ता हाथ फ़ेर रहा था । आँखे खुलते ही उसे वे तीन शैतान नजर आये । महावीर और इतवारी एक तरफ़ खङा था । सुरेश जमीन पर आराम से पालथी लगाये उसके स्तनों को सहला रहा था ।
- तू जाग गयी । सुरेश मीठे स्वर में बोला - मैंने सोचा । तुझे डिस्टर्ब न करूँ ।
रत्ना ने भावहीन चेहरे से पास सोये अपने दोनों बच्चों को देखा । बेबसी से उसके आँसू निकलने को हुये । जिसे उसने सख्ती से निकलने से पहले ही रोक दिया । उसने अपना आँचल ठीक करने की कोशिश की । जिसे सुरेश ने फ़िर से झटक दिया । उसे मन ही मन अपनी प्रतिज्ञा याद आयी कि - जीवन में कितना भी जुल्म उस पर हो । वह कोई विरोध नहीं करेगी । बल्कि वह देखेगी कि इस दुनियाँ में भगवान का न्याय क्या है ? भगवान है भी । या नहीं । या यहाँ सिर्फ़ शैतान का राज है । सिर्फ़ शैतान का राज । शैतान ।
और शैतान उसके सामने थे ।
सुरेश उसका ब्लाउज हटाने लगा । वह लाश की तरह हो गयी । और उसने सख्ती से अपनी आँखे बन्द कर ली
कोई उसके सीने पर आहिस्ता आहिस्ता हाथ फ़ेर रहा था । आँखे खुलते ही उसे वे तीन शैतान नजर आये । महावीर और इतवारी एक तरफ़ खङा था । सुरेश जमीन पर आराम से पालथी लगाये उसके स्तनों को सहला रहा था ।
- तू जाग गयी । सुरेश मीठे स्वर में बोला - मैंने सोचा । तुझे डिस्टर्ब न करूँ ।
रत्ना ने भावहीन चेहरे से पास सोये अपने दोनों बच्चों को देखा । बेबसी से उसके आँसू निकलने को हुये । जिसे उसने सख्ती से निकलने से पहले ही रोक दिया । उसने अपना आँचल ठीक करने की कोशिश की । जिसे सुरेश ने फ़िर से झटक दिया । उसे मन ही मन अपनी प्रतिज्ञा याद आयी कि - जीवन में कितना भी जुल्म उस पर हो । वह कोई विरोध नहीं करेगी । बल्कि वह देखेगी कि इस दुनियाँ में भगवान का न्याय क्या है ? भगवान है भी । या नहीं । या यहाँ सिर्फ़ शैतान का राज है । सिर्फ़ शैतान का राज । शैतान ।
और शैतान उसके सामने थे ।
सुरेश उसका ब्लाउज हटाने लगा । वह लाश की तरह हो गयी । और उसने सख्ती से अपनी आँखे बन्द कर ली
-
आँखे
खोल भाभी !
सुरेश
उसका गाल थपथपाकर बोला -
यूँ
मुर्दा मत हो । क्यूँ मेरा दिल
तोङती है तू । अपने देवर का
स्वागत नहीं करेगी क्या । कैसी
भाभी है तू । देवर क्या होता
है । नहीं जानती । देवर का मतलब
होता है । दूसरा वर । जब पहला
वर न हो । तब वर की जगह पूरी
करने वाला दूसरा वर । देवर ..
ही
होता है ।
उसके शरीर से उतरते कपङों के साथ साथ उसके आज तक के पहने विश्वास के आवरण भी उतरते जा रहे थे । ईश्वर भी उसकी भावनाओं से उतर गया । भगवान भी उतर गया । खुदाई मददगार भी उतर गये । रिश्ते उतर गये । नाते उतर गये । गाँव उतर गया । शहर उतर गये । और वह अन्दर बाहर से पूर्ण नग्न हो गयी । एकदम नग्न । एक मन्दिर में लगी बेजान पत्थर सी नग्न मूर्ति ।
शैतान उसके मुर्दा शरीर को मनचाहा घुमा रहे थे । और खुद के विचार उसके मन को घुमा रहे थे । ये इंसान किस कदर अकेला है । किस कदर असुरक्षित है । चारों तरफ़ हैवानियत का नंगा नाच हो रहा है । बच्चे कहीं जाग न जायें । इसलिये उसने अपने मुँह से निकलने वाली हर आवाज को रोक दिया था ।
तीनों के चेहरे पर तृप्ति के भाव थे । पर वह किसी भावहीन वैश्या की तरह अपने कपङे ठीक कर रही थी । उसकी सभी भावनायें अभी अभी रौंदी जा चुकी थी । मानसिक हलचल के तिनकों को दरिन्दों की वासना का तूफ़ान उङा ले गया था । उसकी आखिरी अमानत । आखिरी पूँजी । उसका सतीत्व भी लुट गया था । अब कुछ नहीं बचा था । जिसको बचाने का जतन करना था ।
उसके शरीर से उतरते कपङों के साथ साथ उसके आज तक के पहने विश्वास के आवरण भी उतरते जा रहे थे । ईश्वर भी उसकी भावनाओं से उतर गया । भगवान भी उतर गया । खुदाई मददगार भी उतर गये । रिश्ते उतर गये । नाते उतर गये । गाँव उतर गया । शहर उतर गये । और वह अन्दर बाहर से पूर्ण नग्न हो गयी । एकदम नग्न । एक मन्दिर में लगी बेजान पत्थर सी नग्न मूर्ति ।
शैतान उसके मुर्दा शरीर को मनचाहा घुमा रहे थे । और खुद के विचार उसके मन को घुमा रहे थे । ये इंसान किस कदर अकेला है । किस कदर असुरक्षित है । चारों तरफ़ हैवानियत का नंगा नाच हो रहा है । बच्चे कहीं जाग न जायें । इसलिये उसने अपने मुँह से निकलने वाली हर आवाज को रोक दिया था ।
तीनों के चेहरे पर तृप्ति के भाव थे । पर वह किसी भावहीन वैश्या की तरह अपने कपङे ठीक कर रही थी । उसकी सभी भावनायें अभी अभी रौंदी जा चुकी थी । मानसिक हलचल के तिनकों को दरिन्दों की वासना का तूफ़ान उङा ले गया था । उसकी आखिरी अमानत । आखिरी पूँजी । उसका सतीत्व भी लुट गया था । अब कुछ नहीं बचा था । जिसको बचाने का जतन करना था ।
-
हे
प्रभु !
वह
भावुक होकर मन ही मन बोली -
आपको
बारम्बार प्रणाम है । प्रणाम
है । आपकी लीला अपरम्पार है
। पार है । आप दयालु से भी दयालु
हो । दयालु हो । सबकी रक्षा
करने वाले हो । करने वाले हो
। कोई द्रौपदी नंगी होती है
। नंगी होती है । तब आप दौङे
दौङे आते हो । दौङे दौङे आते
हो । हे दाता प्रभु !
आप
किसी असहाय पर जुल्म होता नहीं
देख सकते । नहीं देख सकते ।
आपकी इस महिमा को भला आपके
सिवा दूसरा कौन समझ सकता है
। कौन समझ सकता है । मेरा बारम्बार
प्रणाम स्वीकार करें प्रभु
। स्वीकार करें प्रभु ।
तभी वह फ़िर से चौंकी । ख्यालों में खोयी उसे सुरेश की आवाज फ़िर से सुनाई दी । वह मधुर स्वर में बोला - भाभी..भाभी जी..भाभी तू कितनी अच्छी है । देख । वैसे तो हम ये सोचकर आये थे कि नरसी मर गया है । किसी राक्षस हत्यारे ने उसे मार डाला । कुछ तेरा हालचाल पूछ आयें । कुछ तेरी भूख प्यास का इंतजाम करें ।
लेकिन भाभी ! आजकल इतना भी टाइम नहीं किसी के पास कि सिर्फ़ एक काम के लिये किसी के पास भागा भागा पहुँच जाये । आज आदमी एक बार के जाने में दो काम निकालता है । तीन भी निकाल लेता है । चार भी । और पाँच भी ।
सो देख । तेरा पहला काम तो हमने निकाल दिया । अब इसे तेरा काम समझ ले । या मेरा समझ ले । ये तेरी मर्जी । हमने तो तुझ पर दया ही की । हमेशा दया । भाभी । वह भीगे स्वर में बोला - मैं बचपन से ही बङा भावुक हूँ । किसी का दुख मुझसे देखा नहीं जाता । यहाँ ..उसने दिल पर हाथ रखा - यहाँ से रोना आता है । क्यों भाइयों कुछ गलत बोला मैं । गलत हो तो । भाभी का जूता । और मेरा सिर ।
तभी वह फ़िर से चौंकी । ख्यालों में खोयी उसे सुरेश की आवाज फ़िर से सुनाई दी । वह मधुर स्वर में बोला - भाभी..भाभी जी..भाभी तू कितनी अच्छी है । देख । वैसे तो हम ये सोचकर आये थे कि नरसी मर गया है । किसी राक्षस हत्यारे ने उसे मार डाला । कुछ तेरा हालचाल पूछ आयें । कुछ तेरी भूख प्यास का इंतजाम करें ।
लेकिन भाभी ! आजकल इतना भी टाइम नहीं किसी के पास कि सिर्फ़ एक काम के लिये किसी के पास भागा भागा पहुँच जाये । आज आदमी एक बार के जाने में दो काम निकालता है । तीन भी निकाल लेता है । चार भी । और पाँच भी ।
सो देख । तेरा पहला काम तो हमने निकाल दिया । अब इसे तेरा काम समझ ले । या मेरा समझ ले । ये तेरी मर्जी । हमने तो तुझ पर दया ही की । हमेशा दया । भाभी । वह भीगे स्वर में बोला - मैं बचपन से ही बङा भावुक हूँ । किसी का दुख मुझसे देखा नहीं जाता । यहाँ ..उसने दिल पर हाथ रखा - यहाँ से रोना आता है । क्यों भाइयों कुछ गलत बोला मैं । गलत हो तो । भाभी का जूता । और मेरा सिर ।
कुछ
गलत नहीं । महावीर संजीदगी
से बोला -
आप
सच्चे धर्मात्मा हो । गजनी
धर्मात्मा ।
- कमीनों ! वह नफ़रत से बोला - डफ़र ! आज शायद पहली बार तुम सही बोले हो । खैर..तुम भाङ में जाओ । मैं अपनी प्यारी भाभी से बात करता हूँ । भाभी ! उसके हाथ में एक शीशी प्रकट हुयी - इसको पायजन बोलते हैं । हिन्दी में जहर । बङे काम की चीज बनायी है । भगवान ने ये । कोई दवा.. दुख दर्द दूर न कर पाये । ये सभी दुख दर्द मिटा देती है । वो भी हाथ के हाथ । इधर दवा अन्दर । उधर दुख बाहर । फ़िर भला मैं कैसे तुझे दुखी देख सकता हूँ । लेकिन ये..। उसके हाथ में कागज और एक पैड प्रकट हुआ - ये भी देख भाभी । इससे अँगूठा की ठप्पा निशानी लगाते हैं । और ये ठप्पा इन कागजों पर लगाना है । इस ठप्पे का मतलब ये है कि हालतों से मजबूर तूने ये जमीन हमें बेच दी । बाकी कोर्ट कचहरी के कुछ झंझट होते हैं । जो सब ले देकर निबट जाते हैं । जैसे दारोगा निबट गया । थाना निबट गया । बीस हजार जमा करो । और थाने में बोलकर मर्डर करने जाओ । अब उनके भी बाल बच्चें होते हैं भाभी । बाल बच्चे..। कहते कहते उसने एक सर्द निगाह सोये हुये मासूम बच्चों पर डाली - बाल बच्चे । जैसे ये हैं । और मैं चाहता हूँ । दो तीन साल के छोटे छोटे ये बाल जैसे फ़ूल से बच्चे भी क्यूँ इस बेदर्द जालिम दुनियाँ में कष्ट भोगें ।
रत्ना के चेहरे पर कोई भाव नहीं था । उसने एक निगाह अपने बच्चों पर डाली । और.. एक मिनट..सुरेश कहती हुयी झोंपङी से बाहर आ गयी । उसने एक निगाह दूर तक फ़ैली अपनी जमीन पर डाली । जिसके जर्रे जर्रे से नरसी की महक आ रही थी । वह झुकी । उसने मिट्टी उठाकर हाथ में ले ली । और उसे अपने बदन पर लगाने लगी । वे तीनों हैरत से उसे देख रहे थे । उसने मिट्टी से मुँह पोत लिया । छाती पर लगाया । और हर जगह लगाया । फ़िर उस विधवा ने उसी मिट्टी का सिन्दूर अपनी माँग में भर लिया । उसने शून्य 0 आँखों से अन्तिम बार फ़िर से खेतों को देखा । और पति के चरणों का भाव करते हुये उसे झुककर प्रणाम किया । उसने मुङकर शालिमपुर को देखा । जहाँ कभी उसके अरमानों की डोली आयी थी । उसने हाथ जोङकर अपनी ससुराल का भाव करते हुये उसे भी प्रणाम किया ।
वह फ़िर से भीतर आयी । और एक निगाह उसने फ़िर से बच्चों पर डाली । किसी भी चिन्ता से बेफ़िक्र वे मासूम मीठी नींद सो रहे थे । उसने एक झटके से सुरेश से कागज ले लिये । और बताये गये स्थान पर अँगूठा लगाती गयी । फ़िर उसने सुरेश के हाथों से जहर की शीशी ले ली । और अपने बच्चों के पास बैठ गयी । न चाहते हुये भी उसके दोनों आँखों से एक एक बूँद गालों पर लुङक ही गयी । उसने अपने बच्चों के गाल पर प्यार से हाथ फ़ेरा । उनके माथे पर चुम्बन किया । और फ़िर दृणता से ढक्कन खोल लिया । सोते हुये बच्चों का मुँह खोलकर उसने बारी बारी से उनके मुँह में जहर उङेल दिया । फ़िर उसने संतुष्टि भाव से शीशी में बचे जहर को देखा । और - हे प्रभु ! कहते हुयी बचा हुआ जहर गटागट पी गयी ।
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- कमीनों ! वह नफ़रत से बोला - डफ़र ! आज शायद पहली बार तुम सही बोले हो । खैर..तुम भाङ में जाओ । मैं अपनी प्यारी भाभी से बात करता हूँ । भाभी ! उसके हाथ में एक शीशी प्रकट हुयी - इसको पायजन बोलते हैं । हिन्दी में जहर । बङे काम की चीज बनायी है । भगवान ने ये । कोई दवा.. दुख दर्द दूर न कर पाये । ये सभी दुख दर्द मिटा देती है । वो भी हाथ के हाथ । इधर दवा अन्दर । उधर दुख बाहर । फ़िर भला मैं कैसे तुझे दुखी देख सकता हूँ । लेकिन ये..। उसके हाथ में कागज और एक पैड प्रकट हुआ - ये भी देख भाभी । इससे अँगूठा की ठप्पा निशानी लगाते हैं । और ये ठप्पा इन कागजों पर लगाना है । इस ठप्पे का मतलब ये है कि हालतों से मजबूर तूने ये जमीन हमें बेच दी । बाकी कोर्ट कचहरी के कुछ झंझट होते हैं । जो सब ले देकर निबट जाते हैं । जैसे दारोगा निबट गया । थाना निबट गया । बीस हजार जमा करो । और थाने में बोलकर मर्डर करने जाओ । अब उनके भी बाल बच्चें होते हैं भाभी । बाल बच्चे..। कहते कहते उसने एक सर्द निगाह सोये हुये मासूम बच्चों पर डाली - बाल बच्चे । जैसे ये हैं । और मैं चाहता हूँ । दो तीन साल के छोटे छोटे ये बाल जैसे फ़ूल से बच्चे भी क्यूँ इस बेदर्द जालिम दुनियाँ में कष्ट भोगें ।
रत्ना के चेहरे पर कोई भाव नहीं था । उसने एक निगाह अपने बच्चों पर डाली । और.. एक मिनट..सुरेश कहती हुयी झोंपङी से बाहर आ गयी । उसने एक निगाह दूर तक फ़ैली अपनी जमीन पर डाली । जिसके जर्रे जर्रे से नरसी की महक आ रही थी । वह झुकी । उसने मिट्टी उठाकर हाथ में ले ली । और उसे अपने बदन पर लगाने लगी । वे तीनों हैरत से उसे देख रहे थे । उसने मिट्टी से मुँह पोत लिया । छाती पर लगाया । और हर जगह लगाया । फ़िर उस विधवा ने उसी मिट्टी का सिन्दूर अपनी माँग में भर लिया । उसने शून्य 0 आँखों से अन्तिम बार फ़िर से खेतों को देखा । और पति के चरणों का भाव करते हुये उसे झुककर प्रणाम किया । उसने मुङकर शालिमपुर को देखा । जहाँ कभी उसके अरमानों की डोली आयी थी । उसने हाथ जोङकर अपनी ससुराल का भाव करते हुये उसे भी प्रणाम किया ।
वह फ़िर से भीतर आयी । और एक निगाह उसने फ़िर से बच्चों पर डाली । किसी भी चिन्ता से बेफ़िक्र वे मासूम मीठी नींद सो रहे थे । उसने एक झटके से सुरेश से कागज ले लिये । और बताये गये स्थान पर अँगूठा लगाती गयी । फ़िर उसने सुरेश के हाथों से जहर की शीशी ले ली । और अपने बच्चों के पास बैठ गयी । न चाहते हुये भी उसके दोनों आँखों से एक एक बूँद गालों पर लुङक ही गयी । उसने अपने बच्चों के गाल पर प्यार से हाथ फ़ेरा । उनके माथे पर चुम्बन किया । और फ़िर दृणता से ढक्कन खोल लिया । सोते हुये बच्चों का मुँह खोलकर उसने बारी बारी से उनके मुँह में जहर उङेल दिया । फ़िर उसने संतुष्टि भाव से शीशी में बचे जहर को देखा । और - हे प्रभु ! कहते हुयी बचा हुआ जहर गटागट पी गयी ।
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