प्रसून
ने आसमान में चमकते तारों को
देखा । उसने अपने बालों में
उँगलिया घुमाई । और फ़िर महावीर
की तरफ़ देखने लगा ।
यही
कोई रात के 11
बजे
का समय होने जा रहा था । पर
महावीर की आँखों में दूर दूर
तक नींद का नामोनिशान नहीं
था । वह अपने गाँव शालिमपुर
से 6
किमी
दूर अपने टयूबबैल पर लेटा हुआ
था । अक्सर ही वह इस टयूबबैल
पर लेटता था । कभी कभी उसके
चार भाईयों में से भी कोई लेट
जाता था । पर अभी कुछ दिनों से
उसके भाईयों को यहाँ लेटने
में एक अजीव सा भय महसूस होने
लगा था ।
वे कहते थे कि उनकी आम महुआ की बगीची की तरफ़ से कोई औरत सफ़ेद साङी पहने हुये अक्सर टयूब बैल की तरफ़ आती दिखाई देती थी । और तब अक्सर रात के एक दो बजे का समय होता था । हैरानी की बात ये थी कि जब वह दिखना शुरू होती थी । तब वे गहरी नींद में होते थे । उसी नींद में वह उसी तरह महुआ बगीची की तरफ़ से चलकर आती थी । और उन्हें जागते हुये की तरह ही दिखाई देती थी । उसके दिखते ही किसी चमत्कार की तरह उनकी नींद खुल जाती थी । और वे उठकर बैठ जाते थे ।
लेकिन बस उनके आँखे बन्द और खुले होने का फ़र्क हो जाता था । बाकी वह रहस्यमय औरत ठीक उसी स्थान पर होती थी । जहाँ तक वह आँखे बन्द होने की अवस्था में होती थी । उसको देखते ही उनके शरीर के सभी रोगंटे खङे हो जाते थे । उन्हें एकाएक ऐसा भी लगता था कि उन्हें तेज पेशाब सी लग रही है । मगर वह वहीं के वहीं मन्त्रमुग्ध से बैठे रह जाते थे ।
फ़िर वह औरत एक उँगली मोङकर उन्हें पास बुलाने का इशारा करती थी । कामुक इशारे भी करती थी । पर वे भयवश उसके पास नहीं जाते थे । तब वह खीजकर एक उँगली को चाकू की तरह गरदन पर फ़ेरकर इशारा करती थी कि वह उन्हें काट डालेगी । फ़िर वह इधर उधर चक्कर लगाकर वापस बगिया के पीछे जाकर कहीं खो जाती थी ।
ऐसा अनुभव होते ही उसके भाईयों ने टयूबबैल पर लेटना बन्द कर दिया था । उसका भाई घनश्याम तो रात के उसी टाइम टयूबबैल छोङकर घर भाग आया था । और दोबारा नहीं लेटा । दूसरा पटवारी तीन चार दिन हिम्मत करके लेटा । फ़िर उसकी भी हिम्मत जबाब दे गयी । वह अचानक बीमार भी हो गया । और छोटा तो भूतों के नाम से ही काँपता था । सो अब यह जिम्मेवारी महावीर पर ही आ गयी थी ।
वे कहते थे कि उनकी आम महुआ की बगीची की तरफ़ से कोई औरत सफ़ेद साङी पहने हुये अक्सर टयूब बैल की तरफ़ आती दिखाई देती थी । और तब अक्सर रात के एक दो बजे का समय होता था । हैरानी की बात ये थी कि जब वह दिखना शुरू होती थी । तब वे गहरी नींद में होते थे । उसी नींद में वह उसी तरह महुआ बगीची की तरफ़ से चलकर आती थी । और उन्हें जागते हुये की तरह ही दिखाई देती थी । उसके दिखते ही किसी चमत्कार की तरह उनकी नींद खुल जाती थी । और वे उठकर बैठ जाते थे ।
लेकिन बस उनके आँखे बन्द और खुले होने का फ़र्क हो जाता था । बाकी वह रहस्यमय औरत ठीक उसी स्थान पर होती थी । जहाँ तक वह आँखे बन्द होने की अवस्था में होती थी । उसको देखते ही उनके शरीर के सभी रोगंटे खङे हो जाते थे । उन्हें एकाएक ऐसा भी लगता था कि उन्हें तेज पेशाब सी लग रही है । मगर वह वहीं के वहीं मन्त्रमुग्ध से बैठे रह जाते थे ।
फ़िर वह औरत एक उँगली मोङकर उन्हें पास बुलाने का इशारा करती थी । कामुक इशारे भी करती थी । पर वे भयवश उसके पास नहीं जाते थे । तब वह खीजकर एक उँगली को चाकू की तरह गरदन पर फ़ेरकर इशारा करती थी कि वह उन्हें काट डालेगी । फ़िर वह इधर उधर चक्कर लगाकर वापस बगिया के पीछे जाकर कहीं खो जाती थी ।
ऐसा अनुभव होते ही उसके भाईयों ने टयूबबैल पर लेटना बन्द कर दिया था । उसका भाई घनश्याम तो रात के उसी टाइम टयूबबैल छोङकर घर भाग आया था । और दोबारा नहीं लेटा । दूसरा पटवारी तीन चार दिन हिम्मत करके लेटा । फ़िर उसकी भी हिम्मत जबाब दे गयी । वह अचानक बीमार भी हो गया । और छोटा तो भूतों के नाम से ही काँपता था । सो अब यह जिम्मेवारी महावीर पर ही आ गयी थी ।
उन
सबके देखे महावीर दिलेर था ।
वह भूत प्रेतों को नहीं मानता
था । दूसरे कभी कभी वह एक गिरोह
के साथ डकैती डालने में भी
बतौर डकैत शामिल रहता था । अतः
रात बिरात ऐसे बीहङों पर रहने
का उसे खासा तर्जुबा था । उसने
भूत छोङो । आज तक भूत का चुहिया
जैसा बच्चा भी कहीं नहीं देखा
था ।
अतः अपने भाईयों के डरपोक होने की हँसी उङाता हुआ वह टयूबबैल पर खुद लेटने लगा । और आज उसे दस दिन हो गये थे । इन दस दिनों में उसे एक काली सी छाया सिर्फ़ सपने में दिखाई दी । वह एक भयंकर काले रंग की पूर्ण नग्न औरत थी । जो हाथ में एक बङा सा हड्डा पकङे रहती थी । उसको देखते ही वह हङबङाकर जाग गया था । और जब वह उठा । तब वह पसीने से तरबतर था । उसकी साँस धौंकनी के समान चल रही थी । पर जागने पर कहीं कुछ न था । जैसा कि उसके भाई कहते थे । फ़िर ऐसा तीन चार बार हुआ था । बस एक बार ये अन्तर हुआ कि जब वह काली औरत दिखी । तो उसके स्तन और कमर के आसपास काफ़ी बङे बङे बाल थे । मानों वह बालों से बना कोई वस्त्र पहने हो । बस इतना ही दृश्य उसे दिखा था ।
अतः अपने भाईयों के डरपोक होने की हँसी उङाता हुआ वह टयूबबैल पर खुद लेटने लगा । और आज उसे दस दिन हो गये थे । इन दस दिनों में उसे एक काली सी छाया सिर्फ़ सपने में दिखाई दी । वह एक भयंकर काले रंग की पूर्ण नग्न औरत थी । जो हाथ में एक बङा सा हड्डा पकङे रहती थी । उसको देखते ही वह हङबङाकर जाग गया था । और जब वह उठा । तब वह पसीने से तरबतर था । उसकी साँस धौंकनी के समान चल रही थी । पर जागने पर कहीं कुछ न था । जैसा कि उसके भाई कहते थे । फ़िर ऐसा तीन चार बार हुआ था । बस एक बार ये अन्तर हुआ कि जब वह काली औरत दिखी । तो उसके स्तन और कमर के आसपास काफ़ी बङे बङे बाल थे । मानों वह बालों से बना कोई वस्त्र पहने हो । बस इतना ही दृश्य उसे दिखा था ।
महावीर
अपना लायसेंसी रिवाल्वर हमेशा
साथ रखता था । अतः यहाँ भी सोते
समय वह उसे पूर्ण ऐहतियात के
साथ रखने लगा । पर आज तो उसे
नींद ही नहीं आ रही थी । वह एक
अजीव सी बैचेनी महसूस कर रहा
था । अतः वह चारपाई पर उठकर
बैठ गया । और बीङी सुलगाकर
उसका कश लेते हुये दिमाग को
संयत करने की कोशिश करने लगा
। फ़िर उसने थोङी दूर स्थिति
महुआ बगीची को देखा । बगीची
के आसपास एकदम शान्ति छाई हुयी
थी । रात के काले अँधेरे में
सभी पेङ रहस्यमय प्रेत के समान
शान्त खङे थे ।
वह उठकर टहलने लगा । रिवाल्वर उसने कमर में लगा ली । और बीङी का धुँआ छोङते हुये इधर उधर देखने लगा ।
तभी उसकी निगाह यमुना पारी शमशान की तरफ़ गयी । और वह बुरी तरह चौक गया । नीम शीशम के दो पेङो के बीच एक मँझले कद की औरत दो छोटे बच्चों के साथ घूम रही थी । अभी लगभग बारह बजने वाले थे । और यह औरत अकेली यहाँ इन छोटे छोटे बच्चों के साथ क्या कर रही थी । जहाँ इस वक्त कोई आदमी भी अकेले में आता हुआ घबराता है । यह ठीक वैसा ही था । जैसे कोई औरत अपने खेलते हुये बच्चों की निगरानी कर रही हो ।
वह इसका पता लगाने के लिये वहाँ जाना चाहता था । पर उसकी हिम्मत न हुयी । वह कुछ देर तक उन्हें देखता रहा । फ़िर वे लोग अंधेरे में गायब हो गये । दो बच्चों के साथ इस रहस्यमय औरत ने उसे और भी भयानक सस्पेंस में डाल दिया था । क्या माजरा था । क्या रहस्य था । उसकी कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था ।
वह उठकर टहलने लगा । रिवाल्वर उसने कमर में लगा ली । और बीङी का धुँआ छोङते हुये इधर उधर देखने लगा ।
तभी उसकी निगाह यमुना पारी शमशान की तरफ़ गयी । और वह बुरी तरह चौक गया । नीम शीशम के दो पेङो के बीच एक मँझले कद की औरत दो छोटे बच्चों के साथ घूम रही थी । अभी लगभग बारह बजने वाले थे । और यह औरत अकेली यहाँ इन छोटे छोटे बच्चों के साथ क्या कर रही थी । जहाँ इस वक्त कोई आदमी भी अकेले में आता हुआ घबराता है । यह ठीक वैसा ही था । जैसे कोई औरत अपने खेलते हुये बच्चों की निगरानी कर रही हो ।
वह इसका पता लगाने के लिये वहाँ जाना चाहता था । पर उसकी हिम्मत न हुयी । वह कुछ देर तक उन्हें देखता रहा । फ़िर वे लोग अंधेरे में गायब हो गये । दो बच्चों के साथ इस रहस्यमय औरत ने उसे और भी भयानक सस्पेंस में डाल दिया था । क्या माजरा था । क्या रहस्य था । उसकी कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था ।
अब
उसे भी टयूब बैल पर लेटते हुये
भय लगने लगा था । पर वह यह बात
भला किससे और कैसे कहता । अतः
उसे मजबूरी में लेटना पङता
था । पर वह बिलकुल नहीं सो पाता
था । वह काली नग्न औरत और वह
दो बच्चों वाली रहस्यमय औरत
उसे अक्सर दिखायी देते थे ।
जाने किस अज्ञात भावना से अब
तक वह यह बात किसी को बता भी
नहीं पाया ।
इतना बताकर वह चुप हो गया । और आशा भरी नजरों से प्रसून को देखने लगा । पर उसे उसके चेहरे पर कोई खास भाव नजर नहीं आया । जबकि वह कुछ जानने की आशा कर रहा था । तब उसने अपनी तरफ़ से ही पूछा ।
- कुछ खास नहीं । प्रसून लापरवाही से बोला - कभी कभी ऐसे भृम हो ही जाते हैं । अब जैसे तेज धूप में रेगिस्तान में पानी नजर आता है । पर होता नहीं है । जिन्दगी एक सपना ही तो है । और सपने में कुछ भी दिखाई दे सकता है । कुछ भी ।
महावीर उसके उत्तर से संतुष्ट तो नहीं हुआ । मगर आगे कुछ नहीं बोला । दरअसल उसे ये अहसास भी हो गया था कि प्रसून अपने तेज बुखार के चलते अशान्त था । और बात करने में परेशानी अनुभव कर रहा था । बस शिष्टाचार के चलते उसे मना नहीं कर पा रहा था ।
अतः उसने भी इस समय उसे तंग करना उचित नहीं समझा । और फ़िर किसी समय आने की सोचकर चला गया ।
वास्तव में यही सच था । प्रसून पर एक आंतरिक चिङचिङाहट सी छायी हुयी थी । पर ऊपर से वह एकदम शान्त लग रहा था । महावीर के जाने के बाद उसने चारपायी पर लेटकर आँखें बन्द कर लीं ।
इतना बताकर वह चुप हो गया । और आशा भरी नजरों से प्रसून को देखने लगा । पर उसे उसके चेहरे पर कोई खास भाव नजर नहीं आया । जबकि वह कुछ जानने की आशा कर रहा था । तब उसने अपनी तरफ़ से ही पूछा ।
- कुछ खास नहीं । प्रसून लापरवाही से बोला - कभी कभी ऐसे भृम हो ही जाते हैं । अब जैसे तेज धूप में रेगिस्तान में पानी नजर आता है । पर होता नहीं है । जिन्दगी एक सपना ही तो है । और सपने में कुछ भी दिखाई दे सकता है । कुछ भी ।
महावीर उसके उत्तर से संतुष्ट तो नहीं हुआ । मगर आगे कुछ नहीं बोला । दरअसल उसे ये अहसास भी हो गया था कि प्रसून अपने तेज बुखार के चलते अशान्त था । और बात करने में परेशानी अनुभव कर रहा था । बस शिष्टाचार के चलते उसे मना नहीं कर पा रहा था ।
अतः उसने भी इस समय उसे तंग करना उचित नहीं समझा । और फ़िर किसी समय आने की सोचकर चला गया ।
वास्तव में यही सच था । प्रसून पर एक आंतरिक चिङचिङाहट सी छायी हुयी थी । पर ऊपर से वह एकदम शान्त लग रहा था । महावीर के जाने के बाद उसने चारपायी पर लेटकर आँखें बन्द कर लीं ।
प्रसून
चुपचाप लेटा हुआ था । उसकी
आँखों में नींद नहीं थी । जबकि
वह गहरी नींद सो जाना चाहता
था । बल्कि वह तो अब हमेशा के
लिये ही सो जाना चाहता था ।
जाने क्यों जिन्दगी से यकायक
ही उसका मोहभंग हो गया था । वह
इस जीवन से ऊब चुका था ।
उसने मोबायल निकालकर उसमें टाइम देखा । रात का एक बजने वाला था । रात काफ़ी गहरा चुकी थी । चारों तरफ़ सन्नाटा छाया हुआ था । सब नींद के आगोश में जा चुके थे । उसने एक सिगरेट सुलगायी । और बैचेनी से फ़िर से उठकर बैठ गया । उसका मुँह यमुना पारी शमशान की तरफ़ था । शमशान में भी पूर्ण शान्ति सन्नाटे का माहौल था । तमाम प्रेत इधर उधर अपनी रात्रिचर्या हेतु चले गये थे । बस राख बना सुरेश ही वहाँ अकेला पङा था ।
रात का ये माहौल कभी उसे बेहद पसन्द था । कितनी रहस्यमय होती है । ये रात भी । जो इंसान के लिये रात होती है । वह सिद्धों योगियों सन्तों के लिये दिन होता है । और जो इंसान के लिये दिन होता है । वह योगियों की रात होती है । कोई मामूली चीज नहीं होती है रात । रात में अधिकांश इंसानों की उनके सो जाने से संसार में फ़ैली वासनायें सिमट जाती हैं । और तब दो ही लोग जागते है । भोगी और योगी । काम इच्छा के भोगी रात के शान्त शीतल माहौल में मदन उत्सव मनाते हैं । और योगी अपनी शक्तियों को जगाते हैं । बस इंसानों के स्तर पर रात इन्हीं दो बातों के लिये ही होती है । लेकिन इसके अतिरिक्त रात के रहस्यमय आवरण में क्या क्या छुपा होता है । क्या क्या और होता है । ये बिरला ही जान पाते हैं ।
अतः रात उसके लिये कभी प्रेमिका के समान थी । एक शान्त प्रेमिका । जो प्रेमी का भाव समझकर उसकी इच्छानुसार समर्पण के लिये उसके सामने बिछी रहती है ।
sourse- hindivicharmunch
उसने मोबायल निकालकर उसमें टाइम देखा । रात का एक बजने वाला था । रात काफ़ी गहरा चुकी थी । चारों तरफ़ सन्नाटा छाया हुआ था । सब नींद के आगोश में जा चुके थे । उसने एक सिगरेट सुलगायी । और बैचेनी से फ़िर से उठकर बैठ गया । उसका मुँह यमुना पारी शमशान की तरफ़ था । शमशान में भी पूर्ण शान्ति सन्नाटे का माहौल था । तमाम प्रेत इधर उधर अपनी रात्रिचर्या हेतु चले गये थे । बस राख बना सुरेश ही वहाँ अकेला पङा था ।
रात का ये माहौल कभी उसे बेहद पसन्द था । कितनी रहस्यमय होती है । ये रात भी । जो इंसान के लिये रात होती है । वह सिद्धों योगियों सन्तों के लिये दिन होता है । और जो इंसान के लिये दिन होता है । वह योगियों की रात होती है । कोई मामूली चीज नहीं होती है रात । रात में अधिकांश इंसानों की उनके सो जाने से संसार में फ़ैली वासनायें सिमट जाती हैं । और तब दो ही लोग जागते है । भोगी और योगी । काम इच्छा के भोगी रात के शान्त शीतल माहौल में मदन उत्सव मनाते हैं । और योगी अपनी शक्तियों को जगाते हैं । बस इंसानों के स्तर पर रात इन्हीं दो बातों के लिये ही होती है । लेकिन इसके अतिरिक्त रात के रहस्यमय आवरण में क्या क्या छुपा होता है । क्या क्या और होता है । ये बिरला ही जान पाते हैं ।
अतः रात उसके लिये कभी प्रेमिका के समान थी । एक शान्त प्रेमिका । जो प्रेमी का भाव समझकर उसकी इच्छानुसार समर्पण के लिये उसके सामने बिछी रहती है ।
sourse- hindivicharmunch
 
No comments:
Post a Comment