कुदरत का इंसाफ-14


जबाब उसके इच्छानुसार ही मिला । फ़िर वह मन्त्र पढता हुआ फ़ूलों की पंखरिया उछालने लगा । भीङ में खङी औरतें लहरा लहरा कर एक एक करके झूमती हुयी गद्दी के पास गिरने लगीं । जबकि फ़ूला और सुषमा शान्त बैठी थी । माफ़ी माफ़ी कहती हुयी वे औरतें गद्दी के आगे सिर झुकाती थी । और फ़िर कुछ ठीक सी हालत में चली जाती थी । मुश्किल से पन्द्रह औरतें आयीं । इसका मतलब था । यही लोग रत्ना की घटना में किसी न किसी प्रकार से साझीदार थे । या फ़िर राजदार तो थे ही । मगर सब कुछ जानते हुये भी चुप थे । जैसे ही औरतों के साथ यह क्रिया हुयी । उनसे संबन्धित सामान्य स्वभाव के पुरुष भी किसी अपराध बोध से स्वतः प्रेरित खुद भी माफ़ी माफ़ी करते हुये सिर झुका गये । इस तरह इंसाफ़ के इस मुकद्दमें में मामूली और दया के पात्र मुजरिम उसी वक्त रिहा हो गये ।
और अब मुख्य अभियुक्तों की वारी थी । मुख्य अभियुक्त । जो बङी हैरानी की बात थी कि वहाँ नहीं थे ।
उसने फ़िर से पंखुरियाँ उछाली । और जमीन पर प्रतीकात्मक अभिमन्त्रित हथेली मारी ।
कुछ ही क्षणों में उसे भीङ के पीछे शोर सा नजर आया । फ़िर सुरेश के घर की औरतें लङकियाँ भागती हुयी उधर आयी । और भीङ को चीरती हुयी गद्दी के पास खङी हो गयी । तभी अब तक शान्त बैठी तन्दुरस्त फ़ूला और सुषमा हय्याऽऽ हय्याऽऽ चिल्लाती हुयी खङी हो गयी । और उन औरतों और लङकियों को गिरा गिराकर मारने लगी । उन्होंने बेदर्दी से उनके कपङे फ़ाङ डाले । कुछ हौसला मन्द उनका हस्तक्षेप करने आगे बङे । पर फ़िर किसी अज्ञात प्रेरणा से बँधे हुये से कसमसा कर खङे रह गये ।
शायद ही उस गाँव में ऐसा नंगा नाच कभी हुआ हो । बिलकुल द्रौपदी चीरहरण जैसा दृश्य था । और सभी महाबली नपुंसक की भांति असहाय से खङे थे । और अपने ही घर की औरतों की बेइज्जती का खुद तमाशा देखने को विवश थे । प्रसून की निगाह रत्ना पर गयी । वह मानों बारबार अपने आँसू पोंछ रही थी । आँसू जो प्रेतों को कभी नहीं आते ।
आखिरकार कोई बारह बजे समझौते की बात शुरू हो ही गयी । माध्यम अभी भी वे ही दोनों थी ।
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क्या समझौता करायेगा तू । फ़ूला भङक कर बोली - ये साले इंसान कहाँ है । जो कोई समझौता करेंगे । ये साले हिजङे हैं हिजङे । एक अवला पर मर्दानगी दिखाने वाले हिजङे । किसी गरीब सीधे साधे इंसान का घरबार उजाङ देने वाले नपुंसक । नामर्द साले । और बाबे । तू भी फ़ूट ले । यहाँ से । साले । कोई समझौता नहीं होगा । सबको वहाँ...। उसने शालिमपुर के शमशान की तरफ़ उँगली उठाई । और दाँत पीसकर बोली - वहाँ पहुँचाकर ही छोङूँगी । कुत्तो तुम्हारे आँगन में अब बच्चे नहीं । मौत खेलेगी । सिर्फ़ मौत ।
तमाम भीङ में भय की सिहरन दौङ गयी । उनके रोम का एक एक बाल खङा हो गया । औरतें और लङकियाँ तो फ़ूट फ़ूटकर रोने लगी । यह फ़रमान सुनकर भीङ में चिल्ली सी मच गयी ।
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समझने की कोशिश करो । वह मिन्नतें सी करता हुआ बोला - इंसान गलतियों का पुतला होता है । अगर उसमें गलती ना हो । तो वह देवता ना हो जाये । फ़िर वह फ़ुसफ़ुसाकर बहुत धीमे से बोला - अभी लात पङी ना । तो सब फ़िल्मी डायलाग भूल जायेगी । मुझसे भी मजा ले रही है । कम से कम मुझसे तो तमीज से बोल ।
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ये कोई ऐसी गलती नहीं । वह फ़िर से चिल्लाई - जो माफ़ की जाये महात्मा । बुला उन साले कुत्तों को । जो कार में छुपे बैठे है । भैण के..
प्रसून ने जोर से आवाज लगाई । तो वे आ गये । फ़ूला और सुषमा को उन्हें देखकर एकदम बिजली सी चमकी । और वे उस पर झपट पङी । उस अदम्य अदभुत शक्ति के आगे प्रसून के बचाते बचाते भी दोनों ने उनको धुन ही दिया । और फ़िर कामारिका और कपालिनी पूरी मस्ती में आ गयी । प्रसून के रोकते रोकते उन्होंने चर्रऽऽ से ब्लाउज फ़ाङ दिया । और मानों घुटन से आजाद होकर मुक्ति महसूस की । महावीर और इतवारी की शर्म से गरदन झुक गयी ।
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क्यों । वह व्यंग्य से बोली - जब दूसरों की औरत को नंगा करते हो । तब शर्म नहीं आती । जब उसको बेआबरू करते हो । तब तुम्हारी शर्म कहाँ जाती है । देखो आज तुम्हारे घर की इज्जत भरे बाजार बेइज्जत हो रही है । अब दो मूँछो पर ताव । सालों हिजङों । थू । थू है तुम पर ।
- ये सब छोङ । उसने मानों फ़रियाद की - समझौते की बात बोल ।
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मैंने कहा ना । वह जिद भरे स्वर में बोली - कोई समझौता नहीं हो सकता । इन कुत्तों को मरना ही होगा । जैसे को तैसा । ये प्रभु का बनाया नियम है ।
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उसी प्रभु ने । प्रसून झूठी हताशा का प्रदर्शन करता हुआ बोला - दया का भी नियम बनाया है । माफ़ी का भी नियम बनाया है । इंसान को सुधारने हेतु बहुत गुंजाइश है । उसके कानून में ।
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तो सुन बाबा । वह आदतानुसार छिपाकर फ़िर भी प्रसून को आँख मारने से नहीं चूकी । और फ़िर साधारण उच्च स्वर में बोली - इस गाँव में इस दैवीय तवाही का कारण है । नरसी और उसके परिवार पर हुआ बेइंतिहा जुल्म । जिसको इसमें बैठे से बहुत से नामर्द जानते भी हैं । बहुत सी औरतें भी जानती हैं । पर वे चुप हैं । बोलो बोलो । अब क्यों चुप हैं । अतः उसकी कब्जायी जमीन पर गाँव वालों के पैसे से एक शानदार मन्दिर बनबाया जाय । उसमें एक तरफ़ नरसी उसकी बीबी और बच्चों की यादगार मूर्तियाँ लगवायीं जाय । ताकि किसी निर्दोष पर हुये हैवानी जुल्म । और उसके बाद ईश्वर के बेआवाज लाठी की मार से फ़ैला ये दैवीय प्रकोप इस गाँव के इतिहास में सदा के लिये लिख जाय । और कोई जालिम किसी पर जुल्म करने से पहले सौ बार सोचे । हजार बार सोचे ।
और ये दोनों परिवार । उसने इतवारी और महावीर की तरफ़ इशारा किया - इस दैवीय प्रकोप और वायु प्रकोप से मुक्ति हेतु किसी वैष्णों देवी जैसे मन्दिर के लिये आज के आज यहीं से निकल जाय । तब कुछ शान्ति संभव है । वरना..। वह बेहद खतरनाक स्वर में बोली - वरना इस गाँव के घरों में चूल्हे नहीं । चितायें जलेगी । चितायें ।
- प्रसून जी ! तभी उसे रूपिका का संदेश सुनाई दिया - कृपया जल्दी खत्म करें इसे । समय ऊपर हो रहा है । चुङैलों का तो ऐसी मस्ती करने का स्वभाव होता है । पर आपको क्यों मजा आ रहा है । मैं समझ नहीं पा रही । कृपया समय पर ध्यान दें । समय अपनी कार्यवाही हेतु तैयार है ।
वास्तव में वह सही कह रही थी । जाने क्यों उसे लग रहा था । ये रात आठ घण्टे के बजाय आठ सौ घण्टे की होती । और वह इन दुष्टों को भरपूर त्रासित करता । जाने क्यों उसके अन्दर एक वक्ती तौर पर राक्षस सा पैदा हो गया था । जो खुलकर अट्टाहास करना चाहता था । खुलकर उन सबको बताना चाहता था । उसके न्याय में तिनका भर रियायत नहीं है । बेबकूफ़ इंसान । उसका कानून है - आँख का बदला आँख । हाथ का बदला हाथ । बेइज्जती का बदला बेइज्जती । और जान का बदला जान । जान ।
उसने इतवारी और महावीर को देखा । और मानों इशारे से पूछा । समझौते की शर्त मंजूर है । या नहीं । पर उनकी हालत तो पैना छुरा लिये कसाई के सामने खङे उस बकरे की तरह थी । जो पूछ रहा था - भाई ! तुझे झटके से हलाल कर दूँ । या धीरे धीरे रेतकर । और बकरा कह रहा था - जैसे मर्जी कर । अब हलाल तो होना ही है ।
सभी गाँव वाले खुश थे । गाँव पर पिछले दो दिन से छाई तबाही उस लङके जैसे महात्मा की कृपा से टल चुकी थी । सभा समाप्त हो गयी थी । इंसाफ़ की अदालत उठ चुकी थी । फ़ैसला सुनाया जा चुका था ।
महावीर और इतवारी सोच रहे थे कि दो चार दिन बाद वैष्णों देवी आदि जायें । उन्होंने प्रसून से इस बात का मशविरा किया । तो उसने बेहद लापरवाही से कहा । जो आपकी मर्जी । जो आपको ठीक लगे । पर तभी और लोगों ने याद दिलाया कि देवियों ने सीधा यही के बाद जाने को कहा था । अतः फ़ालतू में उनको नाराज करना ठीक नहीं । जो फ़िर से कोई नई तवाही आये । इसलिये सूमो से आज का आज ही अभी निकल जाओ । मौत के भय से भयभीत उन दोनों को भी यही उचित लगा ।
और उसी सूमो में महावीर और इतवारी का परिवार उसी समय मामूली तैयारी के साथ अपनी नयी यात्रा हेतु चल पङा । वे सब कोई दस लोग हुये थे ।
तब प्रसून ने मानों फ़ुरसत में रत्ना की तरफ़ देखा । वह चलता हुआ अपनी कार के पास आया । तो रत्ना ने इशारे से अपने घर जाने हेतु पूछा । जिसे इशारे से ही प्रसून ने मना कर दिया । और वहीं का वहीं बैठे रहने को कहा । जब तक वह न कहे । वह शान्त हो गयी ।
सूमो थोङी दूर निकल चुकी थी । तब प्रसून ने गाङी स्टार्ट की । और एक निश्चित फ़ासले के साथ सूमो के पीछे लगा दी । उसने एक सिगरेट सुलगाई । और बङे सकून के साथ स्टेयरिंग पर हाथ घुमाने लगा । कुछ ही देर में दोनों गाङियाँ बाईपास रोड पर आ गयी । इस सङक पर वाहनों का आना जाना 24 घण्टे ही रहता था । वह बङी बेसबरी से किसी खास बात का इंतजार कर रहा था ।
और तब उसे महावीर की गाङी के ठीक आगे ऊँचाई पर रूपिका नजर आयी । वह अपने आरीजनल रूप में थी । उसके हाथ में हड्डी का बना एक मुगदर सा हथियार था । वह पूर्णतः नग्न थी । और स्याह काली थी । उसकी आँखे बहुत छोटे लाल बल्ब के समान चमक रही थी ।


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