कुदरत का इंसाफ-12


- हाँ ! महावीर कुछ याद करता हुआ भय से काँपकर बोला - खास तीन घर ही अधिक प्रभावित हुये थे । मेरा । इतवारी का । और जो कुछ दिन पहले बेचारा जवान लङका मरा सुरेश । ये ज्यादा प्रभावित हुये थे । पर थोङा थोङा प्रभाव सभी घरों पर हुआ था । बस कुछ गिनती के घर ही बचे थे । जो बहुत सीधे साधे घरों के लोग थे । और उन्हें तो ठीक से उस समय जानकारी भी नहीं हो पायी कि गाँव में हंगामा बरपा हुआ है । उनमें से बहुत से जल्दी सो गये थे । वे आराम से सोते रहे । उन्हें दूसरे दिन ही पता चला । बहुत छोटे बच्चे और बुजुर्ग भी प्रभावित नहीं हुये । सुरेश के घर की जवान लङकियाँ तो खुद नंगा होकर गलियों में नाची ।
-
ओह ओह..। प्रत्यक्ष में गहरी सहानुभूति दिखाता हुआ प्रसून मन ही मन घृणा से बोला - उल्लू के पठ्ठे । साले । हरामी । फ़िर भी तुझे समझ में नहीं आया । अपने पाप याद नहीं आये । और पाप का प्रायश्चित करने के बजाय । खुद के इलाज को भागा भागा फ़िर रहा है । अगर तुझे जरा भी अक्ल होती । तो तुझे तो तुरन्त भगवान के आगे कनफ़ेस करना चाहिये था । सर फ़ोङ देना चाहिये था अपना । उसके न्याय में देर है । अँधेर नहीं । उसकी लाठी बे आवाज होती है साले कुत्ते ।
सोचते सोचते उसके आँसू फ़िर से निकलने को हुये । जिसे उसने जबरन ही रोका । और अपनी आवाज को भर्राये जाने से बचाता हुआ बोला - देखिये । अगर इंसान खुद को सुधारना चाहे । तो...। अपनी बात का रियेक्शन उसने गौर से महावीर के चेहरे पर देखा । और बोला - मेरा मतलब कोई स्थिति बिगङ गयी है । तो इलाज तो हो ही जाता है । पर जिन्दगी की हर बात में शायद अवश्य जुङी होती है । और शायद का मतलब है । अनिश्चितिता । शायद ऐसा हो जाय । और शायद ऐसा न भी हो । शायद । है ना
महावीर ने तुरन्त उम्मीद की एक नयी रोशनी के साथ उसकी तरफ़ देखा । वे दोनों आदमी भी यकायक चौंककर देखने लगे ।
लेकिन उनकी तरफ़ कोई ध्यान न देकर वह बोला - हिमालय के ऊपरी दुर्गम पहाङ उतरकर तिब्बत की तरफ़ आप... एक मिनट..। कहकर उसने पी सी नोट बुक निकाली । और नेट पर मैप के द्वारा उन्हें समझाने लगा - यहाँ से जब आप घाटी में उतरेंगे । तो चेन जिंगप्पा नाम का एक बूढा साधु टायप आपको यहाँ मिलेगा । यह हमेशा यहीं रहता है । और ऐसे ही बङे केसेज की डील में जाता है । एण्ड योर केस इज वेरी इंट्रेस्टिंग । मीन उनकी स्पेशलिटी के मुताबिक । सो वे दौङे चले आयेंगे ।
यह सुनते ही तीनों के दिमाग में तत्काल एक ही ख्याल आया । ये आदमी है । या पूरा गधा । गधा नम्बर 1 । एक बार को तो प्रसून के इस सुझाव पर उन्हें इस कदर झुँझलाहट हुयी कि इस बेहूदा आदमी के पास से तुरन्त चले जायें । लेकिन फ़िर उन्होंने सोचा कि अपनी तत्काल हाऊ हाऊ परिस्थिति उन्हें ऐसा सोचने पर विवश कर रही है । जबकि प्रसून सामान्यतया सही ही कह रहा है । वह जितना जानता है । और जैसा जानता है । बता रहा था । इंसान को आसान और नजदीक उपाय की स्वभाव अनुसार अपेक्षा होती ही है । पर कभी कभी उसके लाइलाज जैसे रोग का इलाज बहुत दूर भी होता है । सात समन्दर पार भी होता है । और वहाँ जाना ही होता है । जैसे किसी सात समन्दर पार प्रेमिका के पास भी अभिसार हेतु जाने की व्याकुलता सी होती ही है । अगर वह वहाँ ही रहती हो ।

फ़िर भी वह बेबसी से उँगलियाँ चटकाता हुआ ढीटता से बोला - प्रसून जी ! वैसे आप ठीक ही कह रहे हो । पर क्या आप खुद जानते हो । आप क्या कह रहे हो । इसका मतलब कुछ कुछ ऐसा ही है कि टट्टी हिन्दुस्तान में लग रही है । लग क्या रही है । बल्कि निकली पङ रही है । निकलने वाली है । और आप कह रहे हो । पाखाना पाकिस्तान में है । मेरी बात समझने की कोशिश करो भाई ।
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खैर..। प्रसून ने रिस्टवाच में समय देखा । 6 बजने वाले थे । फ़िर वह अचानक मानों कुछ निर्णय सा लेता हुआ बोला - आप ये बताओ । मुझसे क्या चाहते हो ? क्योंकि आप बङी उम्मीद से मेरे पास आये हो । इसलिये मेरा फ़र्ज बनता है कि आप लोगों की..
लेकिन उसका वाक्य अधूरा ही रह गया । जीने पर भागते हुये कदमों की आहट आयी । और तुरन्त दो युवक लगभग भागते हुये ही आये । और सीधा कमरे में आ गये । उनके चेहरे पर हवाईंया उङ रही थी ।
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दद्दा जल्दी चलो । जल्दी चलो । कहते हुये वह अपनी बात ठीक से कह भी नहीं पा रहे थे । महावीर भी हङबङा गया । और वह और प्रसून दोनों हैरानी से एक दूसरे की तरफ़ देखने लगे ।
उन्होंने उसी हङबङाहट में जल्दी जल्दी बताया । अभी आधा घण्टा पहले ही उसके घर की फ़ूला सहित गाँव की कुछ औरते पगला सी गयीं हैं । और गाँव में बंदूक रिवाल्वर आदि हथियार लिये घूम रही हैं । वे आपको और इतवारी को गन्दी गन्दी गालियाँ देती हुयी घूम रही हैं । और सुरेश के घर में घुसकर सबको मार रही हैं । और आग लगाने की बात कर रही हैं । उन्होंने अपने कपङे जगह जगह से फ़ाङ लिये हैं । वे किसी दैवीय प्रभाव में मालूम होती हैं । और किसी के वश में नहीं आ रही हैं । अतः बस आप जल्दी से चलिये ।
महावीर के होश उङ गये । उसने घबराकर प्रसून की तरफ़ देखा । वे जल्दी चलने को कह रहे थे । जबकि वह देर में भी नहीं जाना चाहता था । बिलकुल भी नहीं जाना चाहता था । शायद अब जिन्दगी भर नहीं जाना चाहता था । प्रसून का दिल फ़िर से खुलकर राक्षसी अट्टाहास लगाने को हुआ । मगर अब फ़ैसले की घङी आ चुकी थी ।
वास्तव में ये मरुदण्डिका ने उसके लिये ही संदेश भेजा था कि आज की रात कयामत की रात होगी । फ़ैसले की रात होगी । और मरुदण्डिका को उसकी सहायता की आवश्यकता थी । आन द स्पाट आवश्यकता थी । क्योंकि प्रसून का फ़ैलाया निर्मित तन्त्र सिर्फ़ चार दिन ही काम करने वाला था । उसके बाद फ़िर से मरुदण्डिका और उसकी प्रेत सेना गाँव में नहीं जा सकती थी । इसलिये इससे पहले कोई और रुकावट आये । वह अपना काम खत्म करना चाहती थी । क्योंकि उसे मालूम था कि महावीर और इतवारी इस समय उसके पास बैठे हैं । इसलिये उसने अपने ही स्टायल में संदेश भेजा था । यानी मियाँ की जूती । और मियाँ का ही सिर । मरने वाला खुद मौत की तरफ़ भागे । आ बैल मुझे मार ।
थैंक्स..मरु..। बेख्याली में प्रसून के मुँह से निकल ही गया । महावीर ने चौककर उसकी तरफ़ देखा । तो वह तेजी से संभलकर बोला - आय मीन । थैंक गाड..आप यहाँ पर हो । तो सचेत हो सकते हो । वरना शायद वे तो आपको मार भी देती ।
महावीर के शरीर में तेज झुरझुरी सी दौङ गयी । उसने गले तक डूब गये अतैराक इंसान की तरह से भयभीत और बुझी बुझी आँखों से प्रसून की तरफ़ देखा । पर प्रसून के दिल में कोई सहानुभूति न हुयी । लेकिन मामला जल्दी वाला था । और उसे स्टायल से डैथ गेम में शामिल रहना था । अतः उसने तुरन्त निर्णय सा लिया । और बाकी लोगों से बोला - आप लोग तुरन्त वापस गाँव पहुँचिये । लेकिन अभी जब तक मैं न पहुँचू । गाँव में अन्दर मत जाना । बाहर से ही निगाह रखना । तब तक मैं अपनी गाङी से इन दोनों..। उसने महावीर और इतवारी की तरफ़ उँगली दिखाई - को अपने साथ लेकर आता हूँ ।.. मौत के मुँह में..। ये शब्द उसने मन ही मन कहे । फ़िर आगे बोला - हम तीनों गाङी से सावधानी से स्थिति का जायजा लेते हुये जायेंगे । और शालिमपुर जाने के लिये यमुना पर ब्रिज थोङा घूमकर भी है । अतः दूसरे रास्ते से पहुँचेंगे । तब तक आप लोग पहुँच कर स्थिति को संभालो ।
देखो भाई ! वह भावहीन स्वर में बोला - साफ़ साफ़ सुन लो । मुझसे ज्यादा उम्मीद मत रखना । पर मेरे से जितना बन पङेगा । मैं आपकी हेल्प करूँगा । अगर आप बोलो । तो चलूँ । ना बोलो । तो ना चलूँ । भले आदमियों के साथ..। उसने महावीर और इतवारी की तरफ़ फ़िर से देखा - भगवान भी कुछ न्याय करता है । आखिर उसका भी कोई इंसाफ़ है । इंसान की सोच से परे इंसाफ़ । वह किसी दीन दुखी की पुकार पर..। उसे फ़िर से रत्ना की याद आयी - पर ध्यान न दे । ऐसा हो नहीं सकता । जब उसने मुझे निमित्त बनाकर आपको मेरे पास भेजा है । तो कुछ सोचकर ही भेजा होगा । इसलिये मैं भी अपनी समझ से पूरा इंसाफ़ ही करूँगा । ये मेरा इंसाफ़ होगा । प्रसून का इंसाफ़ ।
थैंक्स..मरु..। बेख्याली में प्रसून के मुँह से निकल ही गया । महावीर ने चौककर उसकी तरफ़ देखा । तो वह तेजी से संभलकर बोला - आय मीन । थैंक गाड..आप यहाँ पर हो । तो सचेत हो सकते हो । वरना शायद वे तो आपको मार भी देती ।
महावीर के शरीर में तेज झुरझुरी सी दौङ गयी । उसने गले तक डूब गये अतैराक इंसान की तरह से भयभीत और बुझी बुझी आँखों से प्रसून की तरफ़ देखा । पर प्रसून के दिल में कोई सहानुभूति न हुयी । लेकिन मामला जल्दी वाला था । और उसे स्टायल से डैथ गेम में शामिल रहना था । अतः उसने तुरन्त निर्णय सा लिया । और बाकी लोगों से बोला - आप लोग तुरन्त वापस गाँव पहुँचिये । लेकिन अभी जब तक मैं न पहुँचू । गाँव में अन्दर मत जाना । बाहर से ही निगाह रखना । तब तक मैं अपनी गाङी से इन दोनों..। उसने महावीर और इतवारी की तरफ़ उँगली दिखाई - को अपने साथ लेकर आता हूँ ।.. मौत के मुँह में..। ये शब्द उसने मन ही मन कहे । फ़िर आगे बोला - हम तीनों गाङी से सावधानी से स्थिति का जायजा लेते हुये जायेंगे । और शालिमपुर जाने के लिये यमुना पर ब्रिज थोङा घूमकर भी है । अतः दूसरे रास्ते से पहुँचेंगे । तब तक आप लोग पहुँच कर स्थिति को संभालो ।
देखो भाई ! वह भावहीन स्वर में बोला - साफ़ साफ़ सुन लो । मुझसे ज्यादा उम्मीद मत रखना । पर मेरे से जितना बन पङेगा । मैं आपकी हेल्प करूँगा । अगर आप बोलो । तो चलूँ । ना बोलो । तो ना चलूँ । भले आदमियों के साथ..। उसने महावीर और इतवारी की तरफ़ फ़िर से देखा - भगवान भी कुछ न्याय करता है । आखिर उसका भी कोई इंसाफ़ है । इंसान की सोच से परे इंसाफ़ । वह किसी दीन दुखी की पुकार पर..। उसे फ़िर से रत्ना की याद आयी - पर ध्यान न दे । ऐसा हो नहीं सकता । जब उसने मुझे निमित्त बनाकर आपको मेरे पास भेजा है । तो कुछ सोचकर ही भेजा होगा । इसलिये मैं भी अपनी समझ से पूरा इंसाफ़ ही करूँगा । ये मेरा इंसाफ़ होगा । प्रसून का इंसाफ़ ।

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