कुदरत का इंसाफ-06


- आप बहुत ही दयालु हो । इतवारी बेहद संजीदगी से बोला - आप जैसे दयालु कभी कभी ही पैदा हो पाते हैं । आप गजनी धर्मात्मा हो ।
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ओये खङूस ! सुरेश उसकी तरफ़ रिवाल्वर तानता हुआ बोला - तुझसे किसी ने कहा था । बीच में बोलने को । मैं अपनी प्यारी भाभी जी से बात कर रहा हूँ । हाँ तो भाभी जी । मैंने इस बात पर भी बहुत सोचा कि तुम सबको जीता जी छोङ दूँ । मुझे बस जमीन ही तो चाहिये । जमीन ले लूँ । और तुम सबको कहीं भी जाने दूँ । पर भाभी जी पर..इतिहास..इतिहास गवाह है । जिसने भी ऐसा किया । कुत्ते की मौत मारा गया । दुर्योधन को ले लो । पाँडवों को छोङने का परिणाम क्या हुआ । रावण को ले लो । विभीषण को छोङने का परिणाम क्या हुआ । इसलिये हर समझदार इंसान को इतिहास से सबक लेना चाहिये । क्योंकि इतिहास अपने आपको दुहराता है । इसलिये भाभी जी मैं मरना नहीं चाहता । मैं मरना नहीं चाहता । मुझे मरने से बङा डर लगता है । मारने से बिलकुल नहीं लगता । पर मरने से बहुत लगता है । अगर मैंने इसको छोङ दिया । तो वक्त कोई भी करवट बदल सकता है । आज मैं इसे मारने वाला हूँ । कल ये भी मुझे मार सकता है । समय का क्या भरोसा । ये बहुत जल्द पलटा खाता है । राजा रंक हो जाता है । और रंक राजा । इसलिये समझदार इंसान को समस्या को जङ से ही खत्म कर देना चाहिये ।
कहते कहते उसका चेहरा सर्द हो उठा । उसने रिवाल्वर वापस फ़ेंटे में खोंस लिया । और लम्बे फ़ल वाला चमचमाता हुआ चाकू निकाल लिया । चाकू की नोक से उसने अपना अँगूठा चीरा । और वहाँ से बहते हुये रक्त से नरसी के माथे पर तिलक किया । फ़िर वह नरसी के गले मिलकर रोने लगा । और भर्राये स्वर में बोला - मुझे माफ़ कर देना भाई । बङे भैया । मुझे माफ़ कर देना । मैं तुझे बचाना तो चाहता था । पर बचा न सका । बलिदान की परम्परा से ही वीरों का इतिहास लिखा है । ठीक है भाभी..। वह मुङकर उसकी तरफ़ देखता हुआ बोला ।
रत्ना अचानक आगे का दृश्य तुरन्त समझ गयी । वह दौङकर सुरेश के पैरों से लिपट गयी । वह बारबार नरसी के पैरों से भी - स्वामी आप कुछ करते क्यों नहीं ..कहते क्यों नहीं..कहती हुयी लिपटने लगी । सुरेश भी उसके साथ फ़ूट फ़ूटकर रो रहा था । फ़िर अचानक वह दाँत भींचकर बोला - ऐ हरामजादो ! संभालते क्यों नहीं इसको । मौत का मुहूर्त निकला जा रहा है ।
दोनों तुरन्त रत्ना की तरफ़ लपके । उसी पल सुरेश ने चाकू नरसी के पेट में घोंप दिया । वह कुछ पल नरसी की आँखों में झाँकता रहा । फ़िर उसने चाकू को क्लाक वाइज घुमाया । उसे बङी हैरानी थी । नरसी मामूली सा भी नहीं चीखा । बस उसके चेहरे पर घनी पीङा के भाव जागृत हो गये थे । असहनीय दर्द से उसका चेहरा विकृत हो रहा था । वह बारबार अपने को संभालने की कोशिश कर रहा था । पर असफ़ल हो रहा था । आखिर वह बङी कठिनाई से बोल पाया - र र रत रत्ना इधर आ ।
वह तुरन्त उठकर उसके सामने खङी हो गयी ।
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मेरे बच्चों को । वह अटकती आवाज में बोला - संभालना..उन..क ।
और बात पूरी होने से पहली ही उसकी गरदन एक तरफ़ लुङक गयी ।
मौत सिर्फ़ एक है । एक बार ही आती है । अंजाम भी एक ही होता है । वो शरीर जो अब तक चल फ़िर रहा था । उसका निष्क्रिय हो जाना । मिट्टी के पुतले मानुष का वापस मिट्टी में ही मिल जाना । सारे रिश्ते नातों को एक झटके से बेदर्दी से तोङ देती है मौत ।
पर ये एक बार की मौत भी कई अजीव रंग लेकर आती है । कभी खामोशी से । कभी गा बजा के । कभी हाहाकार फ़ैलाती हुयी । कभी सिसकियों के साथ । दुश्मनी भाव में कभी खुशी के भी साथ । अनेक रंग है इसके । अनेक रूप है इसके । इसके रहस्य जानना बङा ही कठिन है ।
ऐसा ही मौत का अजीव रंग नरसी की मौत पर भी छाया था । वो इंसान पता नहीं । कब से जीवित ही मौत को देख रहा था । और एक स्वस्थ हाल आदमी किसी बीमार जर्जर आदमी की मौत मरने पर विवश हुआ था ।
बीस मिनट हो चुके थे । नरसी की लाश जमीन पर पङी थी । अब वह हमेशा के लिये न उठने को गिर चुका था । रत्ना को जोर से रोने भी न दिया था । वह अपनी जगह पर ही तङफ़ङा कर रह गयी थी । और फ़टी फ़टी आँखों से बस नरसी की लाश को देखे जा रही थी ।
अचानक उसका चेहरा सख्त हो गया । भावहीन सी उसकी आँखे शून्य हो गयी । तीनों अभी भी बैठे शराब पी रहे थे । उसने नरसी की लाश पर निगाह डाली । और दौङकर उससे लिपट गयी । अब तक जबरन रोकी गयी उसकी रुलाई फ़ूट पङी ।
हेऽऽ ईश्वरऽऽऽऽ । वह गला फ़ाङकर चिल्लाई - अबऽऽऽ विश्वास नहीं होता कि तू हैऽऽऽऽ । नहीं विश्वास होता । इस दुनियाँ में कोई ईश्वर । कोई भगवान है । इस देवता आदमी ने क्या गुनाह किया था । अपने जान में इसने कभी चींटी नहीं मरने दी । हर परायी औरत को माँ बहन समझा । दूसरे की भलाई के लिये कभी इसने रात दिन नहीं देखा । तेरे हर छोटे बङे द्वार पर इसने सर झुकाया ।
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और परिणामऽऽऽ । उसने छाती पर हाथ मारा । और दहाङती हुयी बोली - मुझे जबाब देऽऽऽ भगवान । मुझे जबाब चाहिये । मुझे जबाब चाहियेऽऽ । वह अपना सर जमीन पर पटकने लगी - मुझे जबाब देऽऽ भगवन । आज एक दुखियारी औरत । एक बेबा औरत । एक अवला नारी । दो मासूम बच्चों की माँ । सिर्फ़ तुझसे जबाब चाहती है । क्या यही है तेरा न्याय ? क्या ऐसाऽऽ ही भगवान है तूऽऽ । तूने मेरे साथ ऐसा क्यूँ किया ? तूने क्यूँ मेरी हरी भरी बगिया उजाङ दी । मुझे जबाब देऽऽ भगवान । वह फ़िर से भयंकर होकर दहाङी - मैं सिर्फ़ऽऽ जबाब चाहती हूँऽऽऽ । मैं तुझसे दया की भीख नहींऽऽ माँग रही । सिर्फ़ जबाब देऽऽ । तुझे जबाब देनाऽऽ ही होगा । मुझे एक बार जबाब दे भगवान ।
मगर कहीं से कोई जबाब नहीं मिला । फ़िर वह उठकर खङी हो गयी । उसके चेहरे पर भयंकर कठोरता छायी हुयी थी । उसने बेहद घृणा और नफ़रत से तीनों की तरफ़ देखा ।
और जहर भरे स्वर में बोली - कान खोलकर सुन हरामजादे । नाजायज । रण्डी से पैदा सुअर की औलाद । अगर तूने कुतिया का दूध नहीं पिया । तो मार डाल मुझे भी इसी वक्त । और मार डाल । उन दो नन्हें बच्चों को भी ।
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भाभी..भाभी.. भाभी माँ । सुरेश रोता हुआ बोला - ऐसा मत बोलो । मैं बहुत कमजोर दिल इंसान हूँ ।
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थू..थू.. थू है तुझ पर । वह घृणा से थूक कर बोली - आखिरी बात । गौर से सुन हरामजादे । ये एक अवला औरत । एक पतिवृता नारी । और एक देवता इंसान की.. पत्नी का शाप हैऽऽ तुझेऽऽ । कहते कहते उसने पेट पर नाभि के पास गोल गोल हाथ घुमाया । और ऊपर देखती हुयी बोली - अगर मैंने जीवन भर एक सच्ची औरत के सभी धर्म निभाये हैं । तो यही जमीनऽऽऽ । जिसके लिये.. तूने मेरा घर.. बरबाद कर दिया । बहुत जल्द तुझे मिट्टी में मिला देगी ।
कहकर वह बिना मुङे झटके से बाहर निकल गयी । सुरेश ने इतवारी को उसे छोङने हेतु भेजा भी । पर वह अँधेरे में पैदल ही भागती चली गयी । वह बहुत तेजी से अपने घर की तरफ़ भाग रही थी ।
चलते चलते प्रसून रुक गया । उसकी गहरी आँखों में आँसुओं का सैलाव सा उमङ रहा था । और चेहरे पर अजीव सी सख्ती छायी हुयी थी । क्रोध से योगी की सभी नसें नाङियाँ फ़ूल उठी थी । वह वहीं खङे पेङ के तने पर बेबसी से मुठ्ठी बारबार मारने लगा । काफ़ी देर बाद वह शान्त हुआ । फ़िर योगस्थ होकर उसने गहरी गहरी साँसे खींची । और वहीं पेङ के नीचे बैठकर ध्यान करने लगा । सुबह के तीन बजने वाले थे । प्रेत अपने स्थानों पर वापस जाने लगे होंगे । अतः उसने महुआ बगीची की ओर जाने का ख्याल छोङ दिया । वैसे भी वह निरुद्देश्य वहाँ जा रहा था । उसका पूर्व निर्धारित लक्ष्य अभी कुछ नहीं था । शायद कुछ हो । बस यही सोच थी ।
पर अभी भी उसके सामने सवाल थे । आगे आखिर क्या हुआ था ? क्या रत्ना ने दोनों बच्चों के साथ आत्महत्या कर ली थी । नरसी की मौत के बाद उसका क्या हुआ था । जाने क्यों वह इस कहानी को देखना नहीं चाहता था । पर देखने को मजबूर ही था । उसने एक निगाह दूर पीछे छूट गये शालिमपुर के शमशान की तरफ़ डाली । और रत्ना की जिन्दगी का अगला अध्याय खोला ।

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