-
आप
बहुत ही दयालु हो । इतवारी
बेहद संजीदगी से बोला -
आप
जैसे दयालु कभी कभी ही पैदा
हो पाते हैं । आप गजनी धर्मात्मा
हो ।
- ओये खङूस ! सुरेश उसकी तरफ़ रिवाल्वर तानता हुआ बोला - तुझसे किसी ने कहा था । बीच में बोलने को । मैं अपनी प्यारी भाभी जी से बात कर रहा हूँ । हाँ तो भाभी जी । मैंने इस बात पर भी बहुत सोचा कि तुम सबको जीता जी छोङ दूँ । मुझे बस जमीन ही तो चाहिये । जमीन ले लूँ । और तुम सबको कहीं भी जाने दूँ । पर भाभी जी पर..इतिहास..इतिहास गवाह है । जिसने भी ऐसा किया । कुत्ते की मौत मारा गया । दुर्योधन को ले लो । पाँडवों को छोङने का परिणाम क्या हुआ । रावण को ले लो । विभीषण को छोङने का परिणाम क्या हुआ । इसलिये हर समझदार इंसान को इतिहास से सबक लेना चाहिये । क्योंकि इतिहास अपने आपको दुहराता है । इसलिये भाभी जी मैं मरना नहीं चाहता । मैं मरना नहीं चाहता । मुझे मरने से बङा डर लगता है । मारने से बिलकुल नहीं लगता । पर मरने से बहुत लगता है । अगर मैंने इसको छोङ दिया । तो वक्त कोई भी करवट बदल सकता है । आज मैं इसे मारने वाला हूँ । कल ये भी मुझे मार सकता है । समय का क्या भरोसा । ये बहुत जल्द पलटा खाता है । राजा रंक हो जाता है । और रंक राजा । इसलिये समझदार इंसान को समस्या को जङ से ही खत्म कर देना चाहिये ।
- ओये खङूस ! सुरेश उसकी तरफ़ रिवाल्वर तानता हुआ बोला - तुझसे किसी ने कहा था । बीच में बोलने को । मैं अपनी प्यारी भाभी जी से बात कर रहा हूँ । हाँ तो भाभी जी । मैंने इस बात पर भी बहुत सोचा कि तुम सबको जीता जी छोङ दूँ । मुझे बस जमीन ही तो चाहिये । जमीन ले लूँ । और तुम सबको कहीं भी जाने दूँ । पर भाभी जी पर..इतिहास..इतिहास गवाह है । जिसने भी ऐसा किया । कुत्ते की मौत मारा गया । दुर्योधन को ले लो । पाँडवों को छोङने का परिणाम क्या हुआ । रावण को ले लो । विभीषण को छोङने का परिणाम क्या हुआ । इसलिये हर समझदार इंसान को इतिहास से सबक लेना चाहिये । क्योंकि इतिहास अपने आपको दुहराता है । इसलिये भाभी जी मैं मरना नहीं चाहता । मैं मरना नहीं चाहता । मुझे मरने से बङा डर लगता है । मारने से बिलकुल नहीं लगता । पर मरने से बहुत लगता है । अगर मैंने इसको छोङ दिया । तो वक्त कोई भी करवट बदल सकता है । आज मैं इसे मारने वाला हूँ । कल ये भी मुझे मार सकता है । समय का क्या भरोसा । ये बहुत जल्द पलटा खाता है । राजा रंक हो जाता है । और रंक राजा । इसलिये समझदार इंसान को समस्या को जङ से ही खत्म कर देना चाहिये ।
कहते
कहते उसका चेहरा सर्द हो उठा
। उसने रिवाल्वर वापस फ़ेंटे
में खोंस लिया । और लम्बे फ़ल
वाला चमचमाता हुआ चाकू निकाल
लिया । चाकू की नोक से उसने
अपना अँगूठा चीरा । और वहाँ
से बहते हुये रक्त से नरसी के
माथे पर तिलक किया । फ़िर वह
नरसी के गले मिलकर रोने लगा
। और भर्राये स्वर में बोला
- मुझे
माफ़ कर देना भाई । बङे भैया
। मुझे माफ़ कर देना । मैं तुझे
बचाना तो चाहता था । पर बचा न
सका । बलिदान की परम्परा से
ही वीरों का इतिहास लिखा है
। ठीक है भाभी..।
वह मुङकर उसकी तरफ़ देखता हुआ
बोला ।
रत्ना
अचानक आगे का दृश्य तुरन्त
समझ गयी । वह दौङकर सुरेश के
पैरों से लिपट गयी । वह बारबार
नरसी के पैरों से भी -
स्वामी
आप कुछ करते क्यों नहीं ..कहते
क्यों नहीं..कहती
हुयी लिपटने लगी । सुरेश भी
उसके साथ फ़ूट फ़ूटकर रो रहा
था । फ़िर अचानक वह दाँत भींचकर
बोला -
ऐ
हरामजादो !
संभालते
क्यों नहीं इसको । मौत का
मुहूर्त निकला जा रहा है ।
दोनों तुरन्त रत्ना की तरफ़ लपके । उसी पल सुरेश ने चाकू नरसी के पेट में घोंप दिया । वह कुछ पल नरसी की आँखों में झाँकता रहा । फ़िर उसने चाकू को क्लाक वाइज घुमाया । उसे बङी हैरानी थी । नरसी मामूली सा भी नहीं चीखा । बस उसके चेहरे पर घनी पीङा के भाव जागृत हो गये थे । असहनीय दर्द से उसका चेहरा विकृत हो रहा था । वह बारबार अपने को संभालने की कोशिश कर रहा था । पर असफ़ल हो रहा था । आखिर वह बङी कठिनाई से बोल पाया - र र रत रत्ना इधर आ ।
वह तुरन्त उठकर उसके सामने खङी हो गयी ।
- मेरे बच्चों को । वह अटकती आवाज में बोला - संभालना..उन..क ।
और बात पूरी होने से पहली ही उसकी गरदन एक तरफ़ लुङक गयी ।
दोनों तुरन्त रत्ना की तरफ़ लपके । उसी पल सुरेश ने चाकू नरसी के पेट में घोंप दिया । वह कुछ पल नरसी की आँखों में झाँकता रहा । फ़िर उसने चाकू को क्लाक वाइज घुमाया । उसे बङी हैरानी थी । नरसी मामूली सा भी नहीं चीखा । बस उसके चेहरे पर घनी पीङा के भाव जागृत हो गये थे । असहनीय दर्द से उसका चेहरा विकृत हो रहा था । वह बारबार अपने को संभालने की कोशिश कर रहा था । पर असफ़ल हो रहा था । आखिर वह बङी कठिनाई से बोल पाया - र र रत रत्ना इधर आ ।
वह तुरन्त उठकर उसके सामने खङी हो गयी ।
- मेरे बच्चों को । वह अटकती आवाज में बोला - संभालना..उन..क ।
और बात पूरी होने से पहली ही उसकी गरदन एक तरफ़ लुङक गयी ।
मौत
सिर्फ़ एक है । एक बार ही आती
है । अंजाम भी एक ही होता है ।
वो शरीर जो अब तक चल फ़िर रहा
था । उसका निष्क्रिय हो जाना
। मिट्टी के पुतले मानुष का
वापस मिट्टी में ही मिल जाना
। सारे रिश्ते नातों को एक
झटके से बेदर्दी से तोङ देती
है मौत ।
पर ये एक बार की मौत भी कई अजीव रंग लेकर आती है । कभी खामोशी से । कभी गा बजा के । कभी हाहाकार फ़ैलाती हुयी । कभी सिसकियों के साथ । दुश्मनी भाव में कभी खुशी के भी साथ । अनेक रंग है इसके । अनेक रूप है इसके । इसके रहस्य जानना बङा ही कठिन है ।
ऐसा ही मौत का अजीव रंग नरसी की मौत पर भी छाया था । वो इंसान पता नहीं । कब से जीवित ही मौत को देख रहा था । और एक स्वस्थ हाल आदमी किसी बीमार जर्जर आदमी की मौत मरने पर विवश हुआ था ।
बीस मिनट हो चुके थे । नरसी की लाश जमीन पर पङी थी । अब वह हमेशा के लिये न उठने को गिर चुका था । रत्ना को जोर से रोने भी न दिया था । वह अपनी जगह पर ही तङफ़ङा कर रह गयी थी । और फ़टी फ़टी आँखों से बस नरसी की लाश को देखे जा रही थी ।
अचानक उसका चेहरा सख्त हो गया । भावहीन सी उसकी आँखे शून्य हो गयी । तीनों अभी भी बैठे शराब पी रहे थे । उसने नरसी की लाश पर निगाह डाली । और दौङकर उससे लिपट गयी । अब तक जबरन रोकी गयी उसकी रुलाई फ़ूट पङी ।
पर ये एक बार की मौत भी कई अजीव रंग लेकर आती है । कभी खामोशी से । कभी गा बजा के । कभी हाहाकार फ़ैलाती हुयी । कभी सिसकियों के साथ । दुश्मनी भाव में कभी खुशी के भी साथ । अनेक रंग है इसके । अनेक रूप है इसके । इसके रहस्य जानना बङा ही कठिन है ।
ऐसा ही मौत का अजीव रंग नरसी की मौत पर भी छाया था । वो इंसान पता नहीं । कब से जीवित ही मौत को देख रहा था । और एक स्वस्थ हाल आदमी किसी बीमार जर्जर आदमी की मौत मरने पर विवश हुआ था ।
बीस मिनट हो चुके थे । नरसी की लाश जमीन पर पङी थी । अब वह हमेशा के लिये न उठने को गिर चुका था । रत्ना को जोर से रोने भी न दिया था । वह अपनी जगह पर ही तङफ़ङा कर रह गयी थी । और फ़टी फ़टी आँखों से बस नरसी की लाश को देखे जा रही थी ।
अचानक उसका चेहरा सख्त हो गया । भावहीन सी उसकी आँखे शून्य हो गयी । तीनों अभी भी बैठे शराब पी रहे थे । उसने नरसी की लाश पर निगाह डाली । और दौङकर उससे लिपट गयी । अब तक जबरन रोकी गयी उसकी रुलाई फ़ूट पङी ।
हेऽऽ
ईश्वरऽऽऽऽ । वह गला फ़ाङकर
चिल्लाई -
अबऽऽऽ
विश्वास नहीं होता कि तू हैऽऽऽऽ
। नहीं विश्वास होता । इस
दुनियाँ में कोई ईश्वर । कोई
भगवान है । इस देवता आदमी ने
क्या गुनाह किया था । अपने जान
में इसने कभी चींटी नहीं मरने
दी । हर परायी औरत को माँ बहन
समझा । दूसरे की भलाई के लिये
कभी इसने रात दिन नहीं देखा
। तेरे हर छोटे बङे द्वार पर
इसने सर झुकाया ।
- और परिणामऽऽऽ । उसने छाती पर हाथ मारा । और दहाङती हुयी बोली - मुझे जबाब देऽऽऽ भगवान । मुझे जबाब चाहिये । मुझे जबाब चाहियेऽऽ । वह अपना सर जमीन पर पटकने लगी - मुझे जबाब देऽऽ भगवन । आज एक दुखियारी औरत । एक बेबा औरत । एक अवला नारी । दो मासूम बच्चों की माँ । सिर्फ़ तुझसे जबाब चाहती है । क्या यही है तेरा न्याय ? क्या ऐसाऽऽ ही भगवान है तूऽऽ । तूने मेरे साथ ऐसा क्यूँ किया ? तूने क्यूँ मेरी हरी भरी बगिया उजाङ दी । मुझे जबाब देऽऽ भगवान । वह फ़िर से भयंकर होकर दहाङी - मैं सिर्फ़ऽऽ जबाब चाहती हूँऽऽऽ । मैं तुझसे दया की भीख नहींऽऽ माँग रही । सिर्फ़ जबाब देऽऽ । तुझे जबाब देनाऽऽ ही होगा । मुझे एक बार जबाब दे भगवान ।
मगर कहीं से कोई जबाब नहीं मिला । फ़िर वह उठकर खङी हो गयी । उसके चेहरे पर भयंकर कठोरता छायी हुयी थी । उसने बेहद घृणा और नफ़रत से तीनों की तरफ़ देखा ।
- और परिणामऽऽऽ । उसने छाती पर हाथ मारा । और दहाङती हुयी बोली - मुझे जबाब देऽऽऽ भगवान । मुझे जबाब चाहिये । मुझे जबाब चाहियेऽऽ । वह अपना सर जमीन पर पटकने लगी - मुझे जबाब देऽऽ भगवन । आज एक दुखियारी औरत । एक बेबा औरत । एक अवला नारी । दो मासूम बच्चों की माँ । सिर्फ़ तुझसे जबाब चाहती है । क्या यही है तेरा न्याय ? क्या ऐसाऽऽ ही भगवान है तूऽऽ । तूने मेरे साथ ऐसा क्यूँ किया ? तूने क्यूँ मेरी हरी भरी बगिया उजाङ दी । मुझे जबाब देऽऽ भगवान । वह फ़िर से भयंकर होकर दहाङी - मैं सिर्फ़ऽऽ जबाब चाहती हूँऽऽऽ । मैं तुझसे दया की भीख नहींऽऽ माँग रही । सिर्फ़ जबाब देऽऽ । तुझे जबाब देनाऽऽ ही होगा । मुझे एक बार जबाब दे भगवान ।
मगर कहीं से कोई जबाब नहीं मिला । फ़िर वह उठकर खङी हो गयी । उसके चेहरे पर भयंकर कठोरता छायी हुयी थी । उसने बेहद घृणा और नफ़रत से तीनों की तरफ़ देखा ।
और
जहर भरे स्वर में बोली -
कान
खोलकर सुन हरामजादे । नाजायज
। रण्डी से पैदा सुअर की औलाद
। अगर तूने कुतिया का दूध नहीं
पिया । तो मार डाल मुझे भी इसी
वक्त । और मार डाल । उन दो नन्हें
बच्चों को भी ।
- भाभी..भाभी.. भाभी माँ । सुरेश रोता हुआ बोला - ऐसा मत बोलो । मैं बहुत कमजोर दिल इंसान हूँ ।
- थू..थू.. थू है तुझ पर । वह घृणा से थूक कर बोली - आखिरी बात । गौर से सुन हरामजादे । ये एक अवला औरत । एक पतिवृता नारी । और एक देवता इंसान की.. पत्नी का शाप हैऽऽ तुझेऽऽ । कहते कहते उसने पेट पर नाभि के पास गोल गोल हाथ घुमाया । और ऊपर देखती हुयी बोली - अगर मैंने जीवन भर एक सच्ची औरत के सभी धर्म निभाये हैं । तो यही जमीनऽऽऽ । जिसके लिये.. तूने मेरा घर.. बरबाद कर दिया । बहुत जल्द तुझे मिट्टी में मिला देगी ।
कहकर वह बिना मुङे झटके से बाहर निकल गयी । सुरेश ने इतवारी को उसे छोङने हेतु भेजा भी । पर वह अँधेरे में पैदल ही भागती चली गयी । वह बहुत तेजी से अपने घर की तरफ़ भाग रही थी ।
- भाभी..भाभी.. भाभी माँ । सुरेश रोता हुआ बोला - ऐसा मत बोलो । मैं बहुत कमजोर दिल इंसान हूँ ।
- थू..थू.. थू है तुझ पर । वह घृणा से थूक कर बोली - आखिरी बात । गौर से सुन हरामजादे । ये एक अवला औरत । एक पतिवृता नारी । और एक देवता इंसान की.. पत्नी का शाप हैऽऽ तुझेऽऽ । कहते कहते उसने पेट पर नाभि के पास गोल गोल हाथ घुमाया । और ऊपर देखती हुयी बोली - अगर मैंने जीवन भर एक सच्ची औरत के सभी धर्म निभाये हैं । तो यही जमीनऽऽऽ । जिसके लिये.. तूने मेरा घर.. बरबाद कर दिया । बहुत जल्द तुझे मिट्टी में मिला देगी ।
कहकर वह बिना मुङे झटके से बाहर निकल गयी । सुरेश ने इतवारी को उसे छोङने हेतु भेजा भी । पर वह अँधेरे में पैदल ही भागती चली गयी । वह बहुत तेजी से अपने घर की तरफ़ भाग रही थी ।
चलते
चलते प्रसून रुक गया । उसकी
गहरी आँखों में आँसुओं का
सैलाव सा उमङ रहा था । और चेहरे
पर अजीव सी सख्ती छायी हुयी
थी । क्रोध से योगी की सभी नसें
नाङियाँ फ़ूल उठी थी । वह वहीं
खङे पेङ के तने पर बेबसी से
मुठ्ठी बारबार मारने लगा ।
काफ़ी देर बाद वह शान्त हुआ
। फ़िर योगस्थ होकर उसने गहरी
गहरी साँसे खींची । और वहीं
पेङ के नीचे बैठकर ध्यान करने
लगा । सुबह के तीन बजने वाले
थे । प्रेत अपने स्थानों पर
वापस जाने लगे होंगे । अतः
उसने महुआ बगीची की ओर जाने
का ख्याल छोङ दिया । वैसे भी
वह निरुद्देश्य वहाँ जा रहा
था । उसका पूर्व निर्धारित
लक्ष्य अभी कुछ नहीं था । शायद
कुछ हो । बस यही सोच थी ।
पर अभी भी उसके सामने सवाल थे । आगे आखिर क्या हुआ था ? क्या रत्ना ने दोनों बच्चों के साथ आत्महत्या कर ली थी । नरसी की मौत के बाद उसका क्या हुआ था । जाने क्यों वह इस कहानी को देखना नहीं चाहता था । पर देखने को मजबूर ही था । उसने एक निगाह दूर पीछे छूट गये शालिमपुर के शमशान की तरफ़ डाली । और रत्ना की जिन्दगी का अगला अध्याय खोला ।
पर अभी भी उसके सामने सवाल थे । आगे आखिर क्या हुआ था ? क्या रत्ना ने दोनों बच्चों के साथ आत्महत्या कर ली थी । नरसी की मौत के बाद उसका क्या हुआ था । जाने क्यों वह इस कहानी को देखना नहीं चाहता था । पर देखने को मजबूर ही था । उसने एक निगाह दूर पीछे छूट गये शालिमपुर के शमशान की तरफ़ डाली । और रत्ना की जिन्दगी का अगला अध्याय खोला ।
 
No comments:
Post a Comment