कुदरत का इंसाफ-05


सुबह के दस बज चुके थे । रत्ना घर के काम से फ़ारिग हो चुकी थी । नरसी कुछ ही देर में खेत से आने वाला था । बच्चे बाहर दरवाजे पर खेल रहे थे । अब वह जल्दी से नहाकर बस अपने पति के साथ भोजन करने वाली थी । गुसलखाने में जाने से पहले उसने दरवाजे की कुण्डी लगाने का विचार किया । फ़िर उसने ये विचार त्याग दिया । नरसी किसी भी क्षण लौट सकता है । और तब उसे कुण्डी खोलने में दिक्कत आने वाली थी ।
नहाते समय वह बारबार यही सोच रही थी । कितनी खुशनुमा जिन्दगी उन्हें भगवान ने दी है । उसे प्यार करने वाला हट्टा कट्टा पति मिला था । उसके दो प्यारे बच्चे हैं । उसके पास जीवन यापन हेतु पर्याप्त खेती है । उसकी जिन्दगी की बगिया खुशी के फ़ूलों से हर वक्त महकी हुयी थी ।
बस उसे यही कमी खलती थी कि काश नरसी का परिवार कुछ और भी बङा होता । पर ऐसा नहीं था । नरसी अपने माँ बाप का अकेला था । उसके सिर्फ़ एक ही बहन थी । जिसकी दूर देश शादी हो चुकी थी । माँ बाप उसके बहुत पहले ही गुजर गये थे । पर वे नरसी के लिये बीस बीघा जमीन छोङ गये थे । जिस पर खेती से पर्याप्त कमाता हुआ नरसी उर्फ़ नरेश अपने छोटे से परिवार को सुख से चला रहा था । और उन दोनों पति पत्नी को उससे अधिक चाह भी नही थी । वे अपनी जिन्दगी से हर हाल में खुश थे । खुश रहना चाहते थे । जिन्दगी । जिसका एक एक पन्ना रहस्य की स्याही और रोमांच की कलम से लिखा जाता है ।
ब्लाउज के हुक बन्द करते करते उसकी निगाह अपने स्तनों पर गयी । और वह खुद ही शर्मा गयी । पुरुष के सानिध्य से स्त्री कैसे एक फ़ूल की तरह खिल उठती है । महक उठती है । उसका अंग अंग पुरुष के प्यार को दर्शाता है ।
कुँआरेपन से ही उसने इस बारे में क्या क्या अरमान संजोये थे । और अपने आपको वासना के भूखे भेङियों से हर जतन से बचाये रखा था । उसका कौमार्य और जवानी सिर्फ़ और सिर्फ़ अपने पति पर निछावर करने के लिये थे । और वह वैसा करने में सफ़ल भी रही थी ।
यही सब सोचते हुये उसने साङी का पल्लू कमर में खोंसा । और बाहर निकलने को हुयी । तभी नरसी ने घर के अन्दर कदम रखा । उसकी हालत देखकर वह घवरा गयी । ऐसा लग रहा था । शायद उसका किसी झगङा हुआ था । उसके चेहरे पर भी बैचेनी सी छायी हुयी थी ।
उसने सारा दिन नरसी से बारबार बात पूछने की कोशिश की । पर वह शून्य में देखता हुआ बात को टालता ही रहा । फ़िर रात को उसका धैर्य जबाब दे गया । वह उसके सीने से लग गयी । और बेहद अपनत्व से बोली - सुनो जी ! क्या तुम मुझे परायी समझते हो ।
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रत्ना ! कहीं शून्य में खोया खोया सा उदास नरेश बोला - बाई चांस मुझे कुछ हो जाय । तो तुम खुद को संभालना । इन बच्चों को ठीक से पालना । क्योंकि मेरा कोई भाई नहीं है । और भी कोई नहीं है । फ़िर इन बच्चों का तुम्ही सहारा होगी । वरना ये मासूम बच्चे दर दर को भटक जायेंगे ।
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क्या । वह भौंचक्का होकर बोली - ऐसा क्यों कह रहे हो जी ?
वह बारबार कसम खिलाती रही । पर नरेश जाने क्यों उसे कोई बात बताना नहीं चाहता था । रत्ना को सारी रात नींद नहीं आयी । ये अचानक जिन्दगी ने आज कैसा रंग बदलना शुरू किया था ।
चलते चलते प्रसून ने सामने निगाह डाली । महावीर का टयूब बैल नजर आने लगा था । पर वह उसका लक्ष्य नहीं था । उसका लक्ष्य उसके एक दिशा में सामने दूर बनी महुआ आम की बगीची थी । जहाँ प्रेतवासा था । वह तेज कदमों से उसी तरफ़ बढ रहा था ।
तब रत्ना की जिन्दगी का अगला अध्याय शुरू हो गया ।
रात के दस बज चुके थे । नरसी शायद सोया हुआ था । या आँखें बन्द किये हुआ था । पर रत्ना बैचेनी से करवटें बदल रही थी । क्या हो गया था । नरसी को । कुछ दिनों से खोया खोया सा रहता था । उसने चुप चुप उसे रोते हुये भी देखा था । बहुत पूछने पर यही बोला था - रत्ना ! काश हमारे घर भी दो चार भाई या परिवार वाले होते ।
तब वह चुप कर गयी थी । इतना तो वह समझ गयी थी कि नरसी उसे वह बात बताकर और दुखी नहीं करना चाहता । शायद बात ही ऐसी हो । जिसका उसके पास कोई हल ही न हो । चैन इक पल नहीं । और कोई हल नहीं ।
तभी अचानक धप्प से आँगन में कोई कूदा । और वह काँपकर रह गयी । लेकिन इससे पहले कि वह कुछ समझ पाती । वह साया ठीक नरसी के पास आ खङा हुआ । उसने रिवाल्वर उसके ऊपर टिका दी ।
और बोला - उठ जा भाई ! मौत ये नहीं देखती कि कोई सो रहा है । या जाग रहा है ।
नरसी चुपचाप उठ खङा हुआ । जैसे ये बात पहले ही से जानता हो । तभी वह साया रत्ना को लक्ष्य करता हुआ बोला - भाभी ! तू भी उठ । अपने साजन को विदा नहीं करेगी क्या ?
वह उन दोनों को बाहर खङी सूमो तक ले आया । और जबरदस्ती अन्दर धकेल दिया । रत्ना ने सहमकर चारों तरफ़ देखा । पर गली में सन्नाटा था । वह फ़रियाद सी करती हुयी बोली - पर मेरे बच्चे ।
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उनको । वह ठण्डे स्वर में बोला - आराम से सोने दे । क्यों डिस्टर्ब करेगी । बस कुछ ही देर में तू वापस आने वाली है ।
सूमो उन्हें लेकर एक फ़ार्म हाउस पहुँची । वहाँ एक गन्दे से कमरे में बल्ब जल रहा था । उस कमरे में सुरेश और महावीर बैठे हुये शराब पी रहे थे । रत्ना उनको देखकर एकदम चौंककर रह गयी । उसको लाने वाले आदमी ने भी नकाब उतार दिया था । वह भी गाँव का ही रहने वाला इतवारी था ।
नरसी को सुरेश के इशारे पर जंगले से बाँध दिया गया था । उसकी आँखों में तीनों के लिये नफ़रत के भाव थे । मौत को तो मानों वह साक्षात खङी ही देख रहा था । रत्ना को हसरत उदासी गम विदाई के मिले जुले भावों से देख रहा था । फ़िर इसके अलावा भी वह भावहीन शून्य सा खङा था । रत्ना को समझ में नहीं आ रहा था कि वह इस कदर खामोश क्यों है । उसके कानों में कभी कहे नरसी के शब्द गूँजे - रत्ना ! वैसे मैं एक चींटी को भी कभी नहीं मारता । पर ये भी सच है कि मैं तीन चार को अकेला ही धूल चटा सकता हूँ ।
अभी यह सब देखती हुयी वह कुछ समझने की कोशिश कर ही रही थी । तभी उसे सुरेश की आवाज सुनाई दी । वह उठ खङा हुआ । और बोला - भाभी ! तू बङी सस्पेंस में लगती है । चल तेरा सभी सस्पेंस अब खत्म कर ही देते हैं ।
ये जो जमीन होती है ना । उसने नीचे जमीन की तरफ़ उँगली की - बहुत जमाने से झगङे मौत की तीन खास वजहों में से एक है । वे तीन वजहें ज्ञानियों ने जर जोरू और जमीन ही बतायी हैं । जर यानी जायदाद हमारे पास बहुत है । जोरू भी है । और कम पङती है । तो बाहरवाली मिल जाती है । और वैसे जमीन भी है । पर भाभी जी ये जमीन की भूख ऐसी है । जो कभी कम नहीं होती । अब देखो ना । दुर्योधन के पास कितना बङा राज्य था । पर वह बोला - नहीं ! हरगिज नहीं । मैं पाण्डवों को सुई बराबर जमीन भी नहीं दूँगा । तब सोच भाभी । अगर मैं जो करने जा रहा हूँ । उसमें कुछ गलत हो । तो तेरा जूता मेरा सर । क्यों भाईयो ।
उन दोनों ने सहमति में सिर हिलाया । रत्ना अभी भी कुछ न समझती हुयी असमंजस में उसे ही देखे जा रही थी ।
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मैं फ़िर से बात पर आता हूँ । वह गम्भीरता से बोला - तू जानती ही है । मैं इसके नरसी के सगे चाचा का लङका हूँ । इसका छोटा भाई । यानी तेरा खानदानी देवर । मैंने इसे कई बार समझाया । तू ये बीस बीघा जमीन मुझे दे दे । क्योंकि हो सकता है । फ़िर कहीं ये जमीन ही तेरी जान की दुश्मन बन जाय । और ऐसा भी नहीं हम कोई अन्याय कर रहे हों । ना ना अन्याय तो हम कर ही नहीं सकते । मैंने कहा । तू ये जमीन पाँच हजार रुपया बीघा के हिसाब से दे । और अपने नगद पैसे ले । नगद । उधार का कोई लफ़ङा नहीं । क्यों भाईयों इसमें कोई गलत बात थी । हो तो बोलो । फ़िर भाभी की जूती मेरा सर ।
दोनों ने फ़िर बङी संजीदगी से सिर हिलाया । और बोले - नहीं । कोई गलत बात नहीं । एकदम न्याय वाली बात थी ।
- देखा भाभी ! वह फ़िर से बोला - ये साले कुत्ते की नस्ल वाले भी इसको सही बता रहे हैं । पर तेरे आदमी को ये एकदम गलत ही लगी । टोटली रांग । इसने मुझे जमीन देने से साफ़ इंकार कर दिया । वोला किसी कीमत पर नहीं । चाहे जान क्यों न चली जाय । और दूसरी बात ये है । वह गौर से रत्ना के ब्लाउज पर देखता हुआ बोला - हम इसे बदले में और जमीन भी दिलवा रहे थे । वहाँ जो जंगल क्षेत्र में जमीन पङी है । बस थोङी सी कम उपजाऊ है । और मौके की नही है । बस इतनी ही तो बात थी ।
फ़िर भाभी जी ! कहावत है ना । एवरीथिंग इज फ़ेयर लव एण्ड वार । और संसार में जंगल राज कायम है । और ये आज का नहीं है । बहुत पुराने जमाने का है । रावन को ले लो । कंस को ले लो । दुर्योधन को ले लो । पूरा इतिहास भरा पङा है । अगर आप गौर करो । तो सबसे ज्यादा लङाईयाँ जमीन के लिये हुयी । सबसे ज्यादा जानें जमीन के लिये गयी । बस हमने भी इससे लङाई की । पर गजब रे गजब । इसने हम तीनों को अकेले मारा । बहुत मारा भाभी जी । कसम से याद आ जाता है । तो अभी भी दर्द होने लगता है । तब हमने साम दाम दण्ड भेद । यानी चारों हथकण्डे अपनाओ । पर बस अपना काम बनाओ । वाली बात अपनायी । क्योंकि हम अच्छी तरह जानते थे । हम इससे लङकर नहीं जीत सकते । हम कट्टा तमंचा चला सकते हैं । तो ये भी चलाना जानता है । हम इसको गोली मार सकते हैं । तो ये भी मार सकता है । भाभी तुम्हारा बलमा कोई गीदङ नहीं । पूरा शेर है । बब्बर शेर । पर शेर भी पिंजङे में आ ही जाता है । बस ट्रिक होनी चाहिये । क्यों भाईयों ?
अबकी दोनों ने बिना कुछ बोले ही समर्थन में सिर हिलाया । लेकिन तभी महावीर बोला - सुरेश ! तू जल्दी कहानी खत्म कर । हम यहाँ बैठे नहीं रहेंगे ।
सुरेश ने मुङकर रिवाल्वर उस पर तान दी । और दाँत पीसकर बोला - शटअप ! महावीर । क्या तू जानता नहीं । मैं कितना न्याय पसन्द इंसान हूँ । अन्याय करना । और होते देखना । मुझे कतई पसन्द नहीं । अगर ये ऐसे ही मर गया । तो भाभी जीवन भर यही सोचती रहेगी । आखिर बात क्या थी । इसीलिये इसको बुलाया भी है । वरना इसे खामखाह परेशान करने की भला क्या आवश्यकता थी ।
तो भाभी जी ! फ़िर हुआ यूँ कि हमने इसको साम दाम दण्ड भेद से समझाया । देख नरसी । तेरे छोटे छोटे दो बच्चे हैं । क्या तू चाहता है कि किसी दिन बेचारे अल्पायु ही कहीं कटे मरे पङे मिलें । तेरी जवान बीबी है । क्या तू चाहता है । अचानक किसी दिन कुछ हरामजादे उससे बलात्कार कर जायें । और फ़िर वो तुझे या अन्य किसी को मुँह दिखाने के काबिल भी नहीं रहे । और फ़ाँसी लगाकर । जलकर । नहर में कूदकर । जहर खाकर । मरने के बहुत से आयडिये होते हैं । किसी आयडिये से मर जायें । इसलिये वो लोग मरें । इससे अच्छा तू अकेला ही मर जाये । क्यों तीन हत्याओं का पाप अपने सिर लेगा । फ़िर हम उन तीनों को कुछ नहीं बोलेंगे । क्यों भाईयो कुछ गलत बोला मैं ?
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व्हाट अ आयडिया सर जी ! महावीर बोला - आप हमेशा सही बोलते हैं ।
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खामोश ! वह नफ़रत से बोला - किसी की जान पर पङी है । और तुझे आयडिया सूझ रहा है । तो भाभी जी ...
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न न नही..नहीं.. भैया नहीं । अचानक रत्ना मानों सब कुछ समझ गयी । वह फ़ूट फ़ूटकर रो पङी । उसे पिछले दिनों के नरसी के रहस्यमय अजीब से व्यवहार के सभी कारण एकदम पता चल गये - आप जमीन ले लो । सब ले लो । पर इन्हें कुछ न कहो । इन्हें छोङ दो । हम लोग इस गाँव से दूर चले जायेंगें । भीख माँगकर गुजारा कर लेंगे । पर मेरे बच्चों को अनाथ न करो । मैं आपसे हाथ जोङकर दया की भीख माँगती हूँ । मुझ पर रहम करो । मेरे छोटे छोटे बच्चों पर दया करो सुरेश । मैं तुम्हारे पाँव पङती हूँ ।
अरे रे रे ..यह क्या कर रही हो भाभी ! वह घवराकर बोला - मुझे क्यों पाप में डाल रही हो । आप मेरी भाभी हो । और भाभी माँ समान होती है । पर..। वह फ़िर से नरसी की छाती पर उँगली से ठकठकाता हुआ बोला - पर मैं क्या करूँ भाभी । मैंने इस बात पर भी बहुत सोचा । क्योंकि मैं बहुत भावुक हूँ ना । दया और प्रेम तो मेरे अन्दर कूट कूटकर भरा हुआ है । अन्याय मुझसे कतई सहन नहीं होता । क्यों भाईयो । ठीक कह रहा हूँ ना । गलत बोलूँ । तो भाभी की चप्पल और मेरा सर ।

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