कुदरत का इंसाफ-09


प्रसून को मानों गहरी तसल्ली हुयी । उसे एक असीम शान्ति सुख सकून का अनुभव सा हुआ । उसने एक गहरी सांस भरी । मानों उसके सीने से बहुत बङा बोझ उतर गया हो । फ़िर उसने बेहद प्रसंशा से सिल्विया की ओर देखा ।
ओर बोला - कमाल है डियर ! आपने बहुत अच्छा रिसर्च किया है ।
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ओ नो प्रसून ! वह वहाँ से गुजरते दो प्रेतों को हाइ का हाथ हिलाते हुये बोली - इनफ़ेक्ट ये आदमी अपने को छटुर समझटा हय । बट होटा हय साला छूटिया । छटुर छूटिया ।
पिछले चार दिन से उदास और अभी भी बुखार में तपते प्रसून ने उसके इंगलिश टोन में कही बात को समझ लिया । और उसके मुँह से जबरदस्त ठहाका निकला । सिल्विया भी उसके साथ मुक्त भाव से हँसी । प्रसून उसकी तरफ़ हा हा हा के साथ उँगली करता हुआ बोला - यू मीन चतुर ***िया ना । प्लीज इसको एक्सप्लेन भी कर । चतुर ***िया । हा हा हा । ओ माय गाड । व्हाट अ स्पेशल वर्ड चतुर ***िया ।
उसके कहने के अन्दाज और अपनी जिन्दगी में पहली बार सुने इस अदभुत मिश्रित शब्द से प्रसून बहुत देर तक हँसता रहा । उसकी हँसी रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी । सिल्विया बार बार.. ओ प्रसून तुम भी ना डियर .. कहती हुयी उसको हाथ से बारबार चपत सा लगा देती थी । तब बहुत देर में दोनों की हँसी रुकी ।
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चतुर ***िया का मतलब है । वह फ़िर से बोली - ऐसा इंसान जो खुद ही अपने आपको समझता तो बहुत चतुर है । पर होता एकदम ***िया है । इस तरह वह मिलकर चतुर ***िया हो जाता है । जैसे ये साला हरामी सुरेश था । क्या मिला इसे ? जो इसका खुद का लक से मिला था । उससे भी हाथ धो बैठा । और लाखों साल के नरक में गया ।
दूसरे प्रसून इंसान की ये कितनी अजीब सोच है कि प्रेत या देवता etc कुछ अलग चीज होते हैं । जिस प्रकार इन लाइफ़ एक इंसान अपना स्टेंडर्ड बनाकर आफ़्टर बेड टाइम पूअर टू रिच हो जाता है । दैन ये भी आफ़्टर लाइफ़ रिजल्ट कर्मा गति होती है । बट आदमी का स्वभाव नेचर etc वही रहता है । बस जिस प्रकार पूअर से रिच बने आदमी में थोङा ठाठवाठ से रहने एण्ड अदर लाइफ़ स्टायल में चैंज हो जाता है । वही आफ़्टर लाइफ़ भी होता है । एक गरीब आदमी झोंपङे के बजाय महल में रहने लगा । साइकिल के बजाय प्लेन से चलने लगा । ये देवता हुआ । एण्ड प्रेत रिजल्ट में । वह लाइफ़ का गेम हार गया । और दर दर भटकने को मजबूर हो गया । और...
- ओ के..ओ के. सिल्वी ! प्रसून उसे जल्दी से रोकता हुआ बोला - मैं यहाँ एक खास काम से आया हूँ । ये बहुत अच्छा हुआ । तुम मुझे मिल गयी । क्या तुम्हें पता है । यहाँ की कुछ प्रेत वहाँ । उसने महावीर के टयूब बैल की तरफ़ उँगली उठायी - वहाँ के एक आदमी को मारने या डराने धमकाने जाती हैं । मैं उनके बारे में जानना चाहता हूँ । उनसे मिलना चाहता हूँ । उनकी हेल्प भी चाहता हूँ ।
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ठीक है प्रसून ! वह उठते हुये बोली - आओ मेरे साथ ।
प्रसून उठकर खङा हो गया । उसने एक सिगरेट सुलगाई । और मार्निंग वाक से अन्दाज में उसके साथ चलने लगा । अब वह खुद को बेहद हलका महसूस कर रहा था । वह सिल्विया के साथ चलता हुआ महुआ बगीची पहुँचा । वहाँ काफ़ी संख्या में प्रेत घूम रहे थे । कपालिनी कामारिका और कंकालिनी भी वहाँ एक साथ ही किसी प्रेत से मस्ती कर रही थी । पर सिल्विया उसे महुआ बगीची से होकर निकालती हुयी आगे लेकर चलती गयी । और फ़िर एक लम्बा बंजर इलाका पार करके वे एक घने पेङों के झुरमुट से पहुँचे । जहाँ शक्तिशाली प्रेतों का स्थायी वास था । या कहिये हेड आफ़िस था । यह एकदम निर्जन क्षेत्र था । और आमतौर पर आदमी से अछूता था । इसके प्रेत एरिया होने की खबर भी स्थानीय लोगों को पता थी । अतः वे उधर जाने से बचते थे । प्रसून का वहाँ भव्य स्वागत हुआ ।
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अगले दिन । दोपहर के बारह बजे थे । प्रसून कामाक्षा के ऊपरी कमरे में लेटा हुआ था । और गहरी नींद में सोया हुआ था । कल सुबह भी पाँच बजे ही वह प्रेतवासा से लौटा था । सिल्विया ने उसकी मुलाकात मरुदण्डिका नामक बेहद खतरनाक प्रेतनी से कराई थी । मरुदण्डिका उसका कार्य प्रकार या पद था । वैसे उसका नाम रूपिका था । रूपिका सुलझे स्वाभाव की प्रेतनी थी । और अन्य प्रेतनियों की अपेक्षा उसमें काम भोग वासना बहुत ही कम थी । प्रेतों के आम स्वभाव से भी उसका स्वभाव अलग और हटकर था ।
मरुदण्डिका प्रेतनियाँ दरअसल वे स्त्रियाँ बनती हैं । जो अपने जीवन में सख्त मिजाज वाली होती हैं । अपने पति बच्चों और घर को अपने ही कङे अनुशासन में चलाती हैं । ये अनुशासन इतना अधिक सख्त होता है कि वे पति को अपने साथ सेक्स भी लिमिट और तरीके से करने देती हैं । जिसको सिर्फ़ औपचारिक सेक्स कह सकते हैं । ये न सिर्फ़ घर में वरन अपने स्वभाव के चलते सोसायटी में भी अपनी उपस्थिति में अनुशासन का माहौल बना देती हैं ।
इनकी धारणा होती है कि इंसान को सलीके और कायदे से इंसानियत के आधार पर जिन्दगी को जिन्दगी के नियमों से गुजारना चाहिये । फ़िर बहुत से कारणों में से किसी कारणवश ये अपनी कर्म त्रुटि से या अकाल मृत्यु से मृत्यु उपरान्त मरुदण्डिका प्रेत स्थिति में रूपान्तरण हो जाती हैं । और जैसा कि इंसानी जीवन में होता है । व्यक्ति को उसके गुण और योग्यता के आधार पर ही काम और पद सौंपा जाता है । यहाँ भी वही बात घटित होती है ।
रूपिका से प्रसून की काफ़ी देर बात होती रही । महावीर को डराने वही जाती थी । और उसे जल्द से जल्द अंजाम मौत देना ही उसका मकसद था । लेकिन समस्या ये थी कि महावीर प्रेतभाव में नहीं आ पा रहा था । उसके अन्दर रात की परिस्थितियों में घूमते रहने से भय का लगभग अभाव ही था । और किसी भी प्रेत भाव को आरोपित करने हेतु इंसान का डरपोक या भय भाव में होना आवश्यक ही होता है । रूपिका उसके घर वालों और अन्य बहुतों को भी तिगनी का नाच नचाने वाली थी । पर वहाँ भी वही प्राब्लम थी । किन्हीं नियमों के चलते वह शालिमपुर के उस आवादी क्षेत्र में तब तक ऐसा तांडव नहीं मचा सकती थी । जब तक वह स्थान एक खास भाव से दूषित न हो जाय । और दूसरे पहले के कुछ अन्य कारणों से बहाँ तांत्रिक इंतजाम थे । इसलिये बह विवशता से कसमसा रही थी ।
प्रसून ने उसकी इच्छानुसार ये सभी बाधायें खत्म करने का वादा किया । तब उसके चेहरे पर अनोखी चमक पैदा हुयी । लक्ष्य को प्राप्त करने की चमक ।
शाम के ठीक 5 बजे मोबायल के अलार्म से प्रसून की आँख खुली । वह अपने कमरे से उठकर नीचे कामाक्षा में पहुँचा । उसने चाय पी । और वहीं से कार लेकर बाजार चला गया ।
शाम आठ बजे वह वापस कामाक्षा लौटा । और सीधा अपने कमरे में चला गया । फ़िर वहाँ से निबटकर वह सीधा शालिमपुर के शमशान पहुँचा । और किसी चिता की राख को पैकेट में भरने लगा । उसने एक निगाह खोह की तरफ़ डाली । पर रत्ना उसे दिखाई न दी । और स्वयँ अभी उसकी कोई तवज्जो भी उसकी तरफ़ नहीं थी ।
इस वक्त उसने अपना हुलिया बदल सा रखा था । और आमतौर पर एक पढा लिखा मगर देहाती सा नजर आ रहा था । फ़िर सारी तैयारी के बाद वह अपने आपको बचाता हुआ शालिमपुर गाँव में जाकर ऐसे घूमने लगा । मानों किसी खास आदमी से मिलने जा रहा हो । और उसका घर आदि जानता हो । हलका अँधेरा होने से यह कोई नहीं देख पा रहा था कि उसके हाथ में थमे पैकेट से बहुत थोङी थोङी चिता की राख उसके चलने के साथ साथ जमीन पर गिरती जा रही थी । और दूसरे हाथ के टिन के डब्बे से एक महीन छेद से शराब और सुअर का खून आदि मिश्रित दृव की पतली लकीर भी गिर रही थी । जो उसने बाजार से हासिल किये थे । इस तरह उसने कुछ ही मिनटों में पूरे गाँव का चक्कर लगाया । कुछ स्थानों पर जहाँ जहाँ उसे तांत्रिक इंतजामात नजर आये । उसने जेब से एक मोटी कील निकालकर जमीन में दबा दी । और वापस निकाल ली ।
अब मरुदण्डिका और उसकी प्रेत फ़ौज आराम से निर्विघ्न गाँव पर धावा बोल सकती थी । बस उसे इसके लिये एक बार आहवान बस और करना था । ये उसका सौभाग्य ही था कि इस बीच किसी ने भी उसकी तरफ़ कोई खास ध्यान नहीं दिया था । टोका नहीं था । और उसे गाँव में ही आया कोई व्यक्ति या गाँव का ही कोई व्यक्ति समझा था

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