कुदरत का इंसाफ-03


बुखार बिलकुल भी कम नहीं हुआ था । बल्कि शायद और अधिक तेज हो गया था । पर वह एकदम शान्त था । वह चाहता तो बुखार दस मिनट में उतर जाता । इसी पहाङी से कुछ दूर झाङियों में वह औषधीय पौधे उसने देखे थे । जिनका सिर्फ़ एक बार काङा पीने से बुखार दस मिनट में उतर जाता । इसके अलावा भी वह आराम से किसी डाक्टर से दबा ले सकता था । पर ये दोनों ही काम वह नहीं कर सकता था ।
इनको करने का मतलब था । फ़ेल होना । योग की परीक्षा में फ़ेल हो जाना । अतः वह शान्त था । और शरीर की प्रयोगशाला में शरीर द्वारा ही शरीर को विकार रहित करने का सफ़ल प्रयोग देख रहा था । वह उन घटकों को स्वयँ शीघ्र भी क्रियाशील कर सकता था । जो उसे जल्द स्वस्थ कर सकते थे । पर ये भी गलत था । एक शान्त योगी के साथ प्रकृति कैसे अपना कार्य करती है । वह इस परीक्षण से गुजर रहा था ।
उसकी निगाह फ़िर से शमशान की तरफ़ गयी । और अबकी बार वह चौंक गया ।
उसके सामने एक अजीव दृश्य था । कपालिनी कामारिका और कंकालिनी नाम से पुकारी जाने वाली तीन गणें शमशान वाले रास्ते पर जा रही थीं । पर उसके लिये ये चौंकने जैसी कोई बात नहीं थी । चौंकने वाली बात ये थी कि वे रास्ते से कुछ हटकर खङी एक मँझले कद की औरत को धमका सा रही थी । औरत के पास ही दो छोटे बच्चे खङे थे । वह औरत उनके हाथ जोङ रही थी । कामारिका आगे खङी थी । और उस औरत के गाल और स्तनों में थप्पङ मार रही थी । फ़िर उसने औरत के बाल पकङ लिये । और तेजी से उसे घुमा दिया । फ़िर कपालिनी और कंकालिनी उसको लातों से मारने लगी ।
प्रसून की आँखों में खून उतर आया । उसका दहकता बदन और भी दुगने ताप से तपने लगा । शान्त योगी एकदम खूँखार सा हो उठा । फ़िर उसने अपने आपको संयत किया । और ध्यान वहीं केन्द्रित कर दिया । अब उसे वहाँ की आवाज सुनाई देने लगी ।
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नहीं नहीं ! वह औरत हाथ जोङते हुये चिल्ला रही थी - मुझ पर रहम करो । मेरे बच्चों पर रहम करो ।
पर खतरनाक पिशाचिनी सी कामारिका कोई रहम दिखाने को तैयार ही न थी । उसने दाँत चमकाते हुये जबङे भींचे । और जोरदार थप्पङ उस औरत के गाल पर फ़िर से मारा । इस पैशाचिक थप्पङ के पङते ही वह औरत फ़िरकनी के समान ही अपने स्थान पर घूम गयी । उसकी चीखें निकलने लगी । उसके बच्चे भी माँ माँ करते हुये रो रहे थे । पर डायनों के दिल में कोई रहम नहीं आ रहा था ।
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भगवान..हे भगवान..मुझे बचा ! वह औरत आसमान की तरफ़ हाथ उठाकर रोते हुये बोली - मुझे बचा । कम से कम मेरे बच्चों पर रहम कर मालिक ।
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मूर्ख जीवात्मा ! कामारिका दाँत पीसकर बोली - कहीं कोई भगवान नहीं है । भगवान सिर्फ़ एक कल्पना है । चारों तरफ़ प्रेतों का राज चलता है । तू कब तक यूँ भटकेगी ।
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ये ऐसे नहीं मानेगी ! कपालिनी आपस में अपने हाथ की मुठ्ठियाँ बजाते हुये बोली ।
फ़िर उसने उसके दोनों बच्चे उठा लिये । और गेंद की तरह हवा में उछालने लगी । बच्चे अरब देशों में होने वाली ऊँट दौङ पर बैठे बच्चों के समान चिंघाङते हुये जोर जोर से रोने लगे । उधर कंकालिनी ने वापिस उसे लात घूँसों पर रख लिया ।
प्रसून को अब सिर्फ़ उस औरत के मुँह से भगवान और मेरे बच्चे तथा दोनों माँ बच्चों के चीखने चिल्लाने की ही आवाज सुनाई दे रही थी । तीनों डायनें मुक्त भाव से अट्टाहास कर रही थी ।
प्रसून की आँखे लाल अंगारा हो गयी । उसका जलता बदन थरथर कांपने लगा । यहाँ तक कि उसे समझ में नहीं आया । क्या करे । उसके पास कोई यन्त्र न था । कोई तैयारी न थी । वे सब वहुत दूर थे । और जब तक वह यमुना पार करके वहाँ पहुँचता । तब तक तो वो डायनें शायद उसका भुर्ता ही बना देने वाली थीं ।
उसने आँखे बन्द कर ली । और उसके मुँह से लययुक्त महीन ध्वनि निकलने लगी - अलख .. बाबा .. अलख .. बाबा .. अलख ।
एक मिनट बाद ही उसने आँखें खोल दी । उसके चेहरे पर आत्मविश्वास लौट आया था । उसने हाथ की मुठ्ठी बाँधी । और घङी वाले स्थान तक हाथ के रूप में औरत की कल्पना की । फ़िर उसने सामने देखा । कामारिका कमर पर हाथ टिकाये दोनों डायनों द्वारा औरत और बच्चों को ताङित होते हुये देख रही थी । उसने उसी को लक्ष्य किया ।
फ़िर उसने मुठ्ठी से उँगली का पोरुआ निकाला । और नारी स्तन के रूप में कल्पना की । फ़िर उसने वह पोरुआ बेदर्दी से दाँतों से चबा लिया ।
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हा..आईऽऽऽ ! कामारिका जोर से चिल्लाई । उसने अपने स्तन पर हाथ रखा । और चौंककर इधर उधर देखने लगी । वह पीङा का अनुभव करते हुये अपना स्तन सहला रही थी । कपालिनी कंकालिनी भी सहमकर उसे देखने लगी ।
प्रसून ने उसके दूसरे स्तन का भाव किया । और अबकी दुगनी निर्ममता दिखाई । कामारिका अबकी भयंकर पीङा से चीख उठी । उसने दोनों स्तन पर हाथ रख लिया । और लङखङाकर गिरने को हुयी । दोनों डायनें भौंचक्का रह गयी ।
फ़िर कपालिनी संभली । और दाँत पीसकर बोली - हरामजादे ! कौन है तू ? सामने क्यों नहीं आता । जिगरवाला है । तो सामने आ.. नामर्द ।
तभी कपालिनी को अपने गाल पर जोरदार थप्पङ का अहसास हुआ । थप्पङ की तीवृता इतनी भयंकर थी कि वह झूमती हुयी सी उसी औरत के कदमों में जा गिरी । जिसका अभी अभी वह कचूमर निकालने पर तुली थी ।
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बताते क्यों नहीं ! कामारिका फ़िर से संभलकर सहमकर बोली..त त तुम..आप..आप कौन हो ?
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इधर देख ! प्रसून के मुँह से मानसिक आदेश युक्त बहुत ही धीमा स्वर निकला ।
तीनों ने चौंककर उसकी दिशा में ठीक उसकी तरफ़ देखा । फ़िर - योगी है..कहकर वे बेशर्म स्ट्रिप डांसरों के समान उसकी तरफ़ अश्लील भाव से स्तन हिलाती हुयी भाग गयीं ।
लम्बे लम्बे डग भरता हुआ वह तेजी से उसी तरफ़ चला जा रहा था । जहाँ अभी अभी उसने वह रहस्यमय नजारा देखा था । हालांकि अब वह बहुत ज्यादा उसके लिये रहस्यमय भी नहीं था । वह बहुत कुछ समझ भी चुका था । पर रात के गहन अँधेरे में सन्नाटे में एक प्रेतनियों के आगे लाचार गिङगिङाती औरत और उसके छोटे बच्चों ने उसकी खासी दिलचस्पी जगायी थी । आखिर पूरा मामला क्या था ? कौन थी वह ? और वहाँ क्यों थी । जो जिन्दगी का आखिरी पढाव होता है ।
यही सब विचार उसके दिमाग में तेजी से चक्कर काट रहे थे । कैसा रहस्यमय है ये पूरा जीवन भी । हमसे चार कदम दूर ही जिन्दगी क्या क्या खेल खेल रही है । क्या खेल खेलने वाली है ? शायद कोई नहीं जान पाता । खुद उसने ही थोङी ही देर पहले नहीं सोचा था कि वह यहाँ अकारण ही यहाँ आयेगा । उसे जलती लाश के बारे में मालूमात होगा । पर हुआ था । सब कुछ थोङी देर पहले ही हुआ था ।
चलते चलते वह ठीक उसी जगह आ गया । जहाँ टीले पर वह औरत शान्त बैठी हुयी थी । उसके बच्चे वहीं पास में खेल रहे थे । प्रसून उनकी नजर बचाता हुआ उन्हें छुपकर देखने लगा । कुछ देर शान्ति से उसने पूरी स्थिति का जायजा लिया ।
टीला मुर्दा जलाने के स्थान से महज सौ मीटर ही दूर था । औरत और बच्चों को देखकर जाने किस भावना से उसके आँसू बहने लगे । फ़िर उसने अपने आपको नियन्त्रित किया । और अचानक ही किसी प्रेत के समान उस औरत के सामने जा प्रकट हुआ । वह तुरन्त सहमकर खङी हो गयी । और बच्चों का हाथ थामकर चलने को हुयी ।
- कौन थीं ये ? उसने खुद ही जानबूझ कर मूर्खतापूर्ण प्रश्न किया - अभी अभी जो..
वह एकदम से चौंकी । उसने गौर से प्रसून को देखा । पर वह कुछ न बोली । उसने बात को अनसुना कर दिया । और तेजी से वहाँ से जाने को हुयी ।
प्रसून ने असहाय भाव से हथेलियाँ आपस में रगङी । उसकी बेहद दुखी अवस्था देखकर वह यकायक कुछ सोच नहीं पा रहा था । फ़िर वह सावधानी से मधुर आवाज में बोला - ठहरो बहन । कृपया । मैं उनके जैसा नहीं हूँ ।
वह ठिठककर खङी हो गयी । उसके चेहरे पर गहन आश्चर्य था । वह बङे गौर से प्रसून को देख रही थी । और बारबार देख रही थी । और फ़िर अपने को भी देख रही थी । फ़िर वह कंपकंपाती आवाज में बोली - अ अ आप भगवान जी हो क्या ? मनुष्य रूप में ।
प्रसून के चेहरे पर घोर उदासी छा गयी । वह उसी टीले पर बैठ गया । उसने एक निगाह उन मासूम बच्चों पर डाली । फ़िर भावहीन स्वर में बोला - नहीं ।
औरत ने बच्चों को फ़िर से छोङ दिया था । वह असमंजस की अवस्था में इधर उधर देख रही थी । प्रसून उसके दिल की हालत बखूबी समझ रहा था । और इसीलिये वह बात को कैसे कहाँ से शुरू करे । तय नहीं कर पा रहा था । यकायक उस औरत के चेहरे पर विश्वास सा जगा ।
और वह कुछ चकित सा होकर बोली - आप मुझे देख सकते हो । और इन । उसने बच्चों की तरफ़ उँगली उठाई - दो बच्चों को भी ।
प्रसून ने स्नेह भाव से सहमति में सिर हिलाया । पर उस औरत के चेहरे पर अभी भी हैरत थी ।

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